Padausin ki Pappi in Hindi Comedy stories by H.k Bhardwaj books and stories PDF | पडौसिन की पप्पी

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पडौसिन की पप्पी

■■ पड़ौसन की पप्पी ■■                                               ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


मेरा पाँच वर्ष का नौनिहाल पौता वेहद मीठी मीठी बातें बनानें में वहुत माहिर है,अतः वह मेरें से ज्यादा घुला मिला होनें के कारण अधिकांश मेरे पास ही खेलता रहता है ।एक दिन मैं लॉन में कुर्सी डालें अखवार पढ़नें में व्यस्त था कि अचानक मेरें कानों में उसके जोर जोर से रोनें की आवाज़ सुनाई दी।मैंने अख़बार से ध्यान हटाकर ऊपर घर की ओर देखतें हुए पूँछा।अरे नौनिहाल बेटा क्यों रो रहें हो ? ऊपर से उसके पिता की डाँटने की आवाज़ सुनाई दी।जाओ अपनें दादाजी के पास, और उन्हें ही अपनीं वाहिआत फ़रमाइश सुनाओं उन्होंनें ही तुम्हें सबसे अधिक सिर पर चढ़ा रखा है, जाओ वही तुम्हारी ऊल-जलूल मांगें पूरी कर सकतें हैं।अरे भई क्या बात है ? इस बच्चें को क्यों मारतें पीटतें रहतें हो।मैंने नौनिहाल का पक्ष लेतें हुए नाराजगी से भरें शब्दों में उसके पिता को डाँटते हुए कहा।मेरी आवाज सुनकर ,इस बार मेरा पौत्र नौनिहाल रोता हुआ ऊपर की सीढ़ियों से नींचें उतरता हुआ मुझें दिखाई दिया, और मेरें नज़दीक आकर ज़ोर-ज़ोर से रोनें लगा। मैंने उससे पुचकारतें हुए पूछा ।काहे को रो रहे हो नौनिहाल बेटा।दादाजी, ......दादा जी ....., पापा जी ने..... मुझे...वहुत जोर से चांटा मारा।काहे को जोर से, मारा उसनें तुम्हें चांटा ? ।मेने उसे पुचकारतें हुए रुक रुक कर प्रश्नात्मक ढंग से पूँछा।जी मैंने उनसे .....पैसे मांगे, तो उन्होंनें .....।वह फ़िर रोनें लगा था अतः मैंने उसे एक बार फिर चुपकराया और उस से पुनः पूँछा।फिर क्या हुआ ?उन्होंने मुझे बोला जाओ दादाजी, से कह देना वह तुम्हें  जो मांगते हो वो तुरन्त दिलबा देगें ।उसने मुझे पूरी बात सुनाई और बोला ।दादाजी ....दादाजी ....आप हमें  .....दिलबा दो ना।ठीक है , पहले रोना वन्द करो,तब हम तुम्हारी फ़रमाइश पूरा करायेंगें।मैंने उसे पूरी तरह आश्वाशन दिया।तभी उसी समय हमारीं नई बरावर के मकान में रहनें बाली किराएदार पड़ोसिन अचानक हमारे फ्लैट के गेट पर आई और हमारे नज़दीक आकर लॉन में आकर खड़ी ही हुई थी, कि नौनिहाल ने पुनः जिद करतें हुए पड़ौसन की ओर देखतें हुए पुनः कहा।दादाजी दादाजी अब दिला दो ना हमें।नौनिहाल की मीठी और तोतली बातों को सुनकर वह उसके सिर पर हाथ फिराकर , मेरीं ओर देखती हुई बोली।वहुत प्यारा बच्चा है।वह नई पड़ोसिन हँसमुख और मिलनसार स्वभाव की थी ,अतः उसने नौनिहाल को अपनीं गोदी में प्यार से मुझसे लिया, और उस से पूँछनें लगी।बेटा नौनिहाल तुम्हें क्या चाँहिये ?जी आँटी .....क्या आप दिला.....दोगी...?हाँ हाँ बेटा.....हम...... जरूर दिला देंगे, पर बताओं तो कि, तुम्हें क्या चाँहिए ?जी आँटी रहनें दों, प्लीज हम आप से माँगेंगे तो हमें दादाजी भी डाटेंगें।कहता हुआ नौनिहाल उसकी गोद से उतरनें लगा।वह महिला हमारे पड़ौस में रहने अभी अभी चन्द दिनों से ही आई थी।अतः वह अक्सर हमारी पत्नी के निकट आकर बैठ जाया करती थी , क्यों कि उसके पति के काम पर जाने के बाद उसका मन घर पर नहीं लगता था, क्यो की अभी उस पर कोई सन्तान भी नहीं था।अतः वह हमसे बोली ,देखिये कितना प्यारा बच्चा है ,आप इसको दिलबा दो ना, यह क्या मांग रहा है ?अतः हमने अपनें पौत्र नौनिहाल को पुनः पुचकार कर पूँछा।बेटा तुम्हें क्या चाहिए ,जल्दी से बोलों ? ।वह पल भर उस नई पडोसन के मुख की ओर देखता रहा पर , बोला कुछ नहीं।क्या हुआ ? बेटा बोलों क्या चाँहिये तुम्हें ?।वह पड़ोसिन नें नौनिहाल को अपनीं ओर टकटकी बाँधें देखतें हुए पाया तो, वह स्वाभाविक हँसकर पुनःनौनिहाल से बोली।किन्तु इस बार भी वह नंन्हा बालक शान्त होकर उसे देखता रहा।अच्छा हमें बताओं क्या चाँहिए तुम्हें।मैंने उसे अपनीं गोद में लेकर पुनः उसे पुचकारतें हुए पूँछा।जी दादा जी हमें तो बस एक , " पड़ौसन की पप्पी " दिलबा दो ना प्लीज।उसकी यह बात सुनकर वह हमारी पड़ोसिन शर्म से नीचे को सिर झुका कर खड़ी हो गई, और उसके कपोलों की लालिमा पहिलें से और भी गहरी हो चुकी थी, वह लज्जा से शरमातें हुए बोली।हाय रे राम, यह तो..... बड़ा नटखट है।हमने अपने पौत्र नौनिहाल से डाँट कर कहा। यह क्या बद्तमीजी है ? तो तुम्हें तुम्हारे , पिता ने तुम्हें इस लिये चांटा मारा था।जी दादा जी, वेशक इस में कोई शक की गुंजाइश नहीं है।वह मुश्कराते हुए, अपनें ढीट अंदाज में धूर्तता से अपने वही विंदास अंदाज में पुनः बोला।" पड़ोसिन की पप्पी " दिल बा दो ना प्लीज दादा जी। वह पुनःजिद करनें लगा,हम बार बार उसे समझाते रहें।बेटा गन्दी बात नहीं बोलते।पर वह बार बार वही बात बोलता रहा।अतः वह पड़ोसिन उस वच्चे की पुनः उसी बात की जिद करतें सुन कर लजाती हुई बोली।हाय राम यह बच्चा तो  बड़ा बदमाश है, अभी से ऐसी बात बोल रहा है।हमने अपने पौत्र को प्यार से पुनः समझाया,।बेटा ऐसे नहीं कहतें,अच्छा अब बेटा चलो, तुन्हें कुछ खाने को दिलबाते है,।और मैं उसका हाथ पकड़ कर निकट की एक डेली नीड्स जनरल स्टोर पर ले गया ।और उस दुकानदार से बोला ।इस बच्चे को कोई खाने की चीज दे दो ,जिसे यह पसंद करे।अगले पल उस दुकानबाले ने उसे एक आकर्षक पाउच पीलेरंग का उसे थमा दिया।लो भैया " पड़ौसन की पप्पी ", एक रुपये की है।हम चौंक कर उस पाउच को उलट पुलट कर देखने लगे, उस पर लिखा था " पड़ोसिन की पप्पी"और हमारें मुहँ से बेसाख़्ता निकल गया वाह भई बाह क्या नाम रखा है।★★★★★★★समाप्त★★★★★★★★★★Written by h k bharadawas