पुनर्वा अपनें पिता सुखवासी राम की इकलौती बेटी थी, सुखवासी राम की आर्थिक स्थिति सामाजिक स्तर पर वहुत अच्छी थी , लोध समाज में उनका वहुत ही सम्मान था, या फिर यह कहा जाय कि वह लोध समाज के अच्छे और कद्दावर नेता थे। जिसका एक कारण सुखवासी राम की ईमानदारी, नेक नियत और उनकी कर्तव्यनिष्ठा ही थी, साथ ही वह हर किसी के दुःख-सुख में वह हमेशा तत्पर रहते थे। सन्तान के नाम पर उनकें दो बेटे और एक बेटी ही थी कुल बात यह कि परिवार सिमित और खुशहाल था । बेटी दोनों भाइयों से छोटी थी जिसका नाम पुनर्वा था । सुखवासी राम के घर पर दस बारह भैंस और आठ दस गाय , जो जर्सी,से लेकर मारवाड़ी उच्च कोटि की थीं,और अच्छा दूध भी देतीं थीं। अतः सुखवासी राम का पुशतैनी धंधा दूधबेचने का ही था , बैसे तो उनकें पितृ-सम्पत्ति में पूर्वजों द्वारा छोड़ी बीस बीघा जमीन भी थी ।कुल मिलाकर यह कि वह ढूध की डेयरी भी अपनें घर पर चलाते थे ,इसी के साथ साथ वह अपना पुशतैनी धंधा जो कि उन्होनें वचपन से ही अपनें पिता की विरासत में मिला था ,जो घर घर जाकर वह दूध बांटनें का किया करतें थे। उनके गाँव के निकटवर्ती शहर एटा के कुछ पुराने घरानों में पिता के समय से ही वह घर घर जाकर दूध बाँटने का काम पूरी निष्ठा से वह घर घर जाकर अभी भी किया करतें थे, और शेष बचे समय का उपयोग वह घर पर खुली दूध की डेयरी पर बिताते थे, चूँकि सुखवासी राम अनपढ़ अँगूठा छाप तो थें पर दिमांग के तेज थे। अतः डेयरी की देखभाल के कार्य में उनकी मदद उनका बड़ा बेटा मधुआ बारह वर्षीय स्कूल से आकर ही डेयरी का लेखा-जोखा रखता था ,वह कक्षा छह का छात्र था। जीवन हँसते गाते हुए बिना रुके धीमे-धीमे गुजर रहा था ," समय वहुत बलबान है ,जो नई नई आशाओं के साथ जीवन में अनेकानेक रंग भर देता है " और यही रँग अब सुखवासी राम के जीवन में चारों ओर से विखर कर मुश्करातें दिखे, बड़ा बेटा मधुआ इंटर करनें के बाद अपनी पसंद की सजातीय पढ़ी लिखी वहू ले आया और अपनें पिता-माता से अलग होकर अपना स्वतः काम-धंधे में व्यस्त रहनें लगा,।इसी के साथ उसकी जगह डेयरी की देखभाल सुखवासी राम का छोटा पुत्र " कर्ता " जिसका नाम था, करनें लगा था, किन्तु सुखवासी राम नें फिर भी अपना धंधा घर घर दूध बाँटनें का कार्य बन्द नहीं किया था,अतः अब उनका समय घर पर वहुत कम बीतता था। छोटी बेटी पुनर्वा भी अब समय के साथ साथ बड़ी होकर पढ़ लिखकर विवाह योग्य हो गई थी,आम लड़कियों की तरह उसनें भी अपनीं सुन्दर आँखों में अपनें सुन्हेरे भविष्य के सपनों को देखना आरम्भ कर दिया था,। समय वही मंथर गतिचलित था, एक दिन पुनर्वाइसी गाँव के अपनें सहपाठी एक नवयुवक अमरजीत सिंह को अपना दिल दे बैठी ,दोनों का प्रेंम परिवान चढ़नें लगा था, दोनों छुप छुप कर कभी खेतों खलिहानों, तो कभी बाग वगीचों,कभी कॉलिज में अक्सर मिलनें लगे थे। कहतें हैं इश्क़ मुश्क और मधु पान स्वयं दिखनें लगतें हैं , और एक दिन पुनर्वा और अमरजीत के प्रेंम करनें की कहांनी की बात की भनक पुनर्वा के छोटे भाई कर्ता को लग गई , और उसनें अपना परमकर्तब्य समझकर अपनें पिता को इस कहांनी की खबर अविलम्ब दे दी, बेटी के इस आचरण से सुखवासी राम का दिल दुखी होने लगा ,अतः उन्होनें किसी तरह भाग दौड़ कर पुनर्वा का रिश्ता एक सुदर्शन युवक से बिना पुनर्वा को बताए तय कर दिया, इधर पुनर्वा चाँदनी रातों में अपनें प्रियतम अमरजीत से मिलनें छुप छुप कर अक्सर अपनें घर में सभी परिजनों के सोनें के बाद मिलनें हर रात्रि में जाती, और घर बालों के पुनः जागनें से पहिले ही वह वापिस आ जाती थी। यह क्रिया पुनर्वा के द्वारा उसकी शादी तय करने से पहले से ही चल रही थी, परिवार में किसी अन्य घर बालों को इस बात की कानों कान ख़बर भी नहीं थी। एक रात पुनर्वा अपनें प्रेंमी अमरजीत से मिलनें अपनें घर के पिछबाड़े भाग में मिलने गई जहाँ आम,अनार,जामुन,और यू.के.लिप्टिस के पौधों का एक घना झुरमुट था , मिलनें चली गई, लेकिन अभी तक अमरजीत वहाँ निर्धारित समय पर नहीं आया, वह उस झुरमुट में बैठी हुई अपनें प्रेंमी के मिलनें की आशा में वहीं बैठी रही समय गुज़रता गया और अमरजीत का उस झुरमुट रूपी कुंज में अभी तक आनें का कोई नामोनिशान भी नहीं था। इधर होली का त्योहार भी नजदीक था, अतः घर पर बननें बालें पकवानों में पुनर्वा की छोटी भावी नें अपनी ननद पुनर्वा को घर में बनाए जानें बालें पकवानों को लेकर हाथ बंटानें को भी कहा था,। अतः पुनर्वा असमञ्जस में थी ,एक ओर त्यौहार के कारण मुहल्लें में हुड़दंग था तो दूसरीओर प्रियतम से मिलनें की चाह नें उसे अजीव कश्मकश में डाल दिया था,अतः वह अपनीं भाबी से पेट खराब होनें का बहाना बनाकर उस झुरमुट में वहाँ अपनें प्रेंमी अमरजीत से मिलनें चली आई थी किन्तुअमरजीत के समय पर वहाँ ना आने से वह अभी तक निर्णय नहीं कर सकी, कि वह क्या करें, इसी सोच विचार में वह प्रतीक्षा करतें करतें नींद में भरी उनींदी सी देखती देखती ही वही सो गई , पता नहीं वह कब तक उस झुरमुट में सोती रहती, कि तभी किसी नें उसे धीरे से टकटका दिया, उसनें उनींदी आँखों से देखा उसका प्रेमी उसके सामनें खड़ा हुआ उसे मुष्करातें हुए जगा रहा था।" तुम इतनी देर से आये हो ? "पुनर्वा नें प्रेंम पगा उपालंभ दिया।" अरे यार ! क्या करता कुछ यार लोगों ने जबर्दस्ती होली बढ़ानें के लिए अपनें संग चलनें का दबाब डाला तो देर होगई ।"अमरजीत नें विलम्ब से आनें की वजह बताई।" अमरजीत तुम्हें मेरीं मजवूरी नहीं दीखती है,। "वह झल्लाकर बोली।" सॉरी यार..... माँफ़ कर दो "वह कहता हुआ पुनर्वा को अपनीं बाहों में भर चुका था।तभी अकस्मात उस झुरमुट के आसपास कुछ पदचापों की आबाज़ पुनर्वा नें महसूस की और वह अमरजीत की बांहों से छिटककर दूर हो गई, तभी उस झुरमुट में तीन चार होली के हुड़दंगे लड़कें जो अमरजीत के दोस्त थें प्रवेश कर चुके थे,उन्होनें पुनर्वा को बुरी नियत से पकड़ लिया।" अवे साले अमरजीत अकेले अकेले ही इस रस मलाई को अब तक खाता रहा है,चल हट साले ! अब हमें भी इस रसमलाई को मिलबाँट कर खानें दे,।"पूरनसिंह पुनर्वा को वदनियत से पकड़ता हुआ चिल्लाया।" तू जैसा सोच रहा है ?, वह बात नहीं हैं यार। "अमरजीत नें अपनें दोस्तों को समझानें की कोशिश की।" हट साले ! हमें बेबकूफ समझता है, चल हट ,हमें सब मालूमात है,।"दूसरा साथी खरगी बोला।" आज साले ! अच्छा मौका मिला है तो तेरा ना नू करना बेकार है। "तीसरे कलुआ नें मौक़े पर चौका मारा।" देखों ! मैं एसी-वैसी लडक़ी नहीं हूँ। "अब तक घबड़ाई खड़ी पुनर्वा नें अपनें इज्जत पर खतरें को भाँपते देखकर अविलम्ब कहा।" साली ,कुतिया यहाँ झुरमुट में अब तक क्या करबा रही थी ? "।पोथी ने उसका अधोवस्त्र पकड़कर जोर से झटका दिया फलस्वरूप उसकी स्कर्ट फटकर नीचें खिसक गई। अब उसके वदन पर निचले हिस्से में अंडरवियर मात्र था जिस से उसकी गोरी मांशल जँघाओं की चमड़ी अति आकर्षण बनी हुई थी ।ठीक उसी समय अमरजीत नें गुस्सा में भर कर पोथी के एक उछलकर पसलियों में किक जड़ दी।जिसके कारण पोथी पुनर्वा के ऊपर अचानक से गिर पड़ा और उसनें अगलें पल पुनर्वा को दबोचते हुए अपनें साथियों को सचेत किया।" पकड़ो, इस साले अमरजीत को। "और उसी के साथ उसके तीनों मित्रों नें अमरजीत को पकड़कर जोर से जमीन पर पटक दिया।दूसरी ओर पोथी पुनर्वा के ऊपरी वस्त्रों को पूरी तरह से फाड़ चीरकर अलग कर चुके थे ,कुल मिलाकर अब पुनर्वा के वो कोमल अंगों की नुमाइश पूरी तरह से हो चुकी थी, तभी पुनर्वा जोर से चींखी.....।" वव.व..व ..वचाओ .....वचाओ.......भैय्या ....मुझे बचाओं । "तभी उसके घर से पुनर्वा के दोनों भाई और उसके पिता सुखवासी राम नें उस झुरमुट में उसकी चीखें सुनकर प्रवेश किया , और पुनर्वा को प्राकृतिक अवस्था में देखकर शर्म से पानी पानी हो गए।पोथी और उसके तीनों साथी पुनर्वा, और अमरजीत को यूँ हीं छोड़कर अंधेरे का लाभ उठातें हुए भाग निकलें, अपनी वहिंन को इस हालातों में नग्न और अमरजीत के निकट खड़ा देख उन दोनों भाईयों का सारा गुस्सा अमरजीत के ऊपर फूट पड़ा , अतः उन्होंने अमरजीत को अब लात और घूँसों से जी चाहां तब तक रुई की तरह धुनते रहे, और अंत में वह अपनी वहिंन को लेकर अपनें घर चले गए,।इधर गाँव में पूरी रात होली का बैसे ही हुड़दंग ढोल-नगाड़ों के साथ गावँ में हुड़दंगे घूम घूम कर होली को बढ़ानें में लगे हुए थे, अतः इस घटना की जानकारी किसी को नहीं हुई, इस तरह इस घटना को घटे दो दिन गुजर जाने के वाद भी किसी को अमरजीत की कोई भी कैसी भी ख़बर नहीं हुई, । एक दिन होलिका दहन का भी समय आ पहुँचा ,और निर्धारित समय पर होलिका दहन किया गया, लोग फ़ागुन की वासन्ती वायु से उद्धेवलित होकर अपनें अपनें प्रियजनों के साथ फ़ाग की मस्ती में झूमते गातें घूम रहे थे ,किन्तु विरहनि पुनर्वा अपनें प्रीयतम की यादों में खोई हुई अपनी अट्टालिका पर उदास बैठी थी, अचानक उसके मन में अमरजीत की लिखी पाती वाचने की प्रबल इच्छा जागृत होगई और अगलें क्षण वह सब कुछ भूलकर छुपाकर रखीं अमरजीत की यादों को पढ़नें लगी। वह जितनीं बार पाती पढ़ती थी औऱ उसकें कपोलों पर ढुलकनें बालें अश्रु उसके दामन को भिगो जातें,तभी उसकी बड़ी भावी अवीर-गुलाल और रँग लिए ऊपर उसके पास अट्टालिका पर आ धमकी।पुनर्वा क्या कर रही हो।उसकी भावी उसके आँसुओं से भीगें चेहरे को देखकर बोल उठी ।कक्ककुछ नहीं भावी जी।वह अपनी अंतर्मन की विरहवेदना को शांत करती हुई बोली।फिर आज खुशियोंके अवसर पर तुम्हारें चेहरे पर बारह क्यों बजे हैं, चलो हमारें संग होली क्यों नहीं खेलतीं हो।उसकी भावी नें उसके हाथ को पकड़कर खींचा।प्लीज़ भावी खेलनें का मन नहीं हो रहा है।वह अनमनें भाव से खड़ी हुई तभी पुनर्वा के अंक में रखा अमरजीत का वह प्रेंम पत्र नींचे जमीन पर गिर चुका था, जिसे अति शीघ्रता से मधुआ की पत्नी नें उठा लिया ,और पढनें लगी।प्लीज भाबीजी एसा मत करो, मेरे पत्र को पढ़ना .....।वह कहते कहतें चुप होगई, उसके आँखों से दो मोटे मोटे आँसुओं की बूँदें टपकतें हुए उसकें कपोलों से होतीं हुईं ज़मीन पर गिरीं।पुनर्वा तुम्हारी शादी अब से कुछ दिनों बाद होंगी, और तुम हो की किसी और की मुहब्बत में गिरफ्तार हो।उसकी भाबीजी नें उसे समझाने की कोशिश की।नहीं भाबीजी मैं ! तन-मन से अमरजीत की हो चुकी हूँ ,आगे भी मैं उसी की रहूँगी।क्या बकती हो, अमरजीत हमारें घर का दामाद तो हरगिज नहीं बनेगा।कुछ भी हो भावीजी मैंने अमरजीत को अपना पिया मान लिया है और यह " मेरे की पिया की पाती है "।ठहर बेबकूफ लड़की, तुझें अपनें भाइयों और पिता की इज्जत का जरा भी ख्याल नहीं, ।उसके छोटे भाई कर्ता नें पुनर्वा की बात सुनकर गुस्साएं स्वर में कहा, और कुछ पलों को वह रुका और बोला। तेरे बड़े भैय्या नें तो तेरा विवाह भी निश्चित कर दिया है, अब रही अमरजीत की बात, तो हम लोग कल पंचायत बुलाएंगे ,। और फिर अगलें दिन गाँव में एक पंचायत बुलाई गई, जिसमें अमरजीत को और उसके पिता को विशेष रूपसे आमंत्रित किया गया था, किन्तु आश्चर्य की बात यह थी की अमरजीत के पिता वालेन्दु तो उपस्थित रहे थे पर अमरजीत उस पँचायत में नहीं आया।अतः पंचायत के सदस्यों द्वारा उसकें पिताजी से पूँछनें पर ज्ञात हुआ कि " अमरजीत घर से बिना किसी के बताए कहीं गया हुआ है ", । अतः पंचायत के सदस्यों ने निर्णय दिया कि अमरजीत के आनें और उसके सम्मुख होनें पर ही यह पंचायत का उचित निर्णय पुनः लिया जा सकता है।और इसी के साथ पंचायत भंग होगई,।समय तेजी से गुजरनें लगा था किंतु अमरजीत लौट कर कभी नहीं आया, यहाँ तक कि पुनर्वा की विवाह की तिथि भी नज़दीक आगई ,और आज वह दिन भी नज़दीक आ गया , जिस दिन पुनर्वा की वारात आनी थी। उसी रोज़ पुनर्वा के घर के पीछें बालें पौधों के झुरमुट में अमरजीत की सूखी और कुत्तों द्वारा आधी खाई लाश बरामद हुई, जिसकी ख़बर पूरे गाँव में जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी, अतः यह ख़बर पुनर्वा को भी ज्ञात हो चुकी थी,पल भर को उस रात का खौपनाक मज्जर पुनर्वा की आँखों में तैरता चला गया,।हे भगवान !तो क्या मेरे पिया की मौत उसी रात हो चुकी थी।वह सोचती हुई उठी और अपनें दो मंजिला अट्टालिका से अपनें प्रियतम की ढेंरों पाती लिए वह उसनें नींचे की ओर छलाँग लगादी, अगलें पल गाँव में एक शोक लहर दौड़ गई ।सांध्यकालीन अवसर पर वारात सुखवासी राम के घर आई, किन्तु वहाँ उस समय ना कोई सजाबट,और नहीं कोई बारात के आनें पर जो हलचल होती है वह दिखाई दी, तो वर पक्ष के लोगों ने गाँव के मुखिया जी को साथ लेकर सुखवासीराम के घर पर जाकर देखा तो सभी लोग सन्न रह गये, कारण था परिवार के सभी सदस्य एक साथ घर के आँगन में मृत पड़े हुए थे,एक ओर पुनर्वा की लाश और उसके नज़दीक पड़े " उसके पिया की पातियाँ " शेष मात्र घटना की दिशा और दशा बता रहे थे।★★★★★★★★समाप्त★★★★★★★★Written By H.K.Joshi