Uri: The Surgical Strike in Hindi Film Reviews by Gaurav Pathak books and stories PDF | उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक

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उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक

रात का अंधेरा गहराता जा रहा था। बाहर सन्नाटा पसरा था, लेकिन मेरे भीतर एक अजीब-सी हलचल थी। हाथों में चाय का प्याला और सामने टिमटिमाती स्क्रीन—जहाँ शुरू हो रही थी एक ऐसी कहानी, जिसने सिर्फ़ सिनेमा नहीं, पूरे हिंदुस्तान का आत्मसम्मान जगाया था।

“उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक।”


पहला असर


फिल्म की शुरुआत में ही दिल कसक उठा। सीमाओं पर बैठे जवान, जिनकी आँखों में न थकान थी, न शिकायत—सिर्फ़ मुल्क की हिफ़ाज़त का जुनून। और फिर वो मनहूस मंजर, जब आतंकियों का हमला होता है और हमारे कई जवान शहीद हो जाते हैं। उस दृश्य ने दिल के भीतर ऐसा दर्द भरा कि आँखें अपने आप नम हो गईं। लगा जैसे कोई अपनों को खोने का दुःख हो।


मैं सोचने लगा—हम अक्सर अख़बारों में ‘आतंकी हमला’ की खबरें पढ़ जाते हैं, चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ देख लेते हैं और फिर अगले ही पल अपने काम में लग जाते हैं। लेकिन उस एक पल के पीछे कितने घर बिखर जाते हैं, कितनी माँएँ विधवा हो जाती हैं, कितने बच्चे अनाथ हो जाते हैं—यह शायद तभी समझ आता है जब इसे परदे पर पूरे विस्तार से दिखाया जाता है।


मेजर विहान की एंट्री


और तभी परदे पर आता है वह चेहरा—मेजर विहान सिंह शेरगिल (विक्की कौशल)। आँखों में सख़्ती, चाल में अनुशासन और दिल में सिर्फ़ एक ही बात—“देश सबसे पहले।”

उसका हर संवाद सीधा दिल पर चोट करता है।

“This is the new India, sir. Yeh ghar mein ghusega bhi aur marega bhi.”

उस पल मुझे लगा जैसे यह डायलॉग सिर्फ़ दुश्मनों को नहीं, हमें भी याद दिलाने के लिए कहा गया हो—कि अब हमें अपनी कमजोरियों से लड़ना है, समझौते नहीं करने।


सैनिकों की ज़िंदगी का सच


फिल्म ने सिर्फ़ युद्ध नहीं दिखाया, बल्कि सैनिकों की मानवीय ज़िंदगी को भी सामने रखा। एक सैनिक अपने परिवार को याद करता है, कोई फोन पर अपनी माँ से बात करता है, तो कोई अपने बच्चे की तस्वीर जेब में रखता है।

वो दृश्य देखकर लगा—ये सिर्फ़ वर्दी पहने लोग नहीं, बल्कि हमारे जैसे ही बेटे, भाई, दोस्त हैं। फर्क बस इतना है कि इनके हिस्से का ‘सपना’ मुल्क की सरहदें बन जाती हैं।


“How’s the Josh?”


फिल्म का सबसे बड़ा जादू तब हुआ, जब मेजर विहान ने अपने साथियों को पुकारा—

“How’s the Josh?”

और गूँज उठा पूरा स्क्रीन—

“High Sir!”

उस पल मैं अपनी कुर्सी पर बैठा नहीं रह पाया। दिल से आवाज़ आई—“High Sir!”

जैसे मैं भी उनके साथ खड़ा हूँ, जैसे मैं भी उस पल का हिस्सा हूँ। यह संवाद सिर्फ़ सिनेमा का नहीं रहा, यह पूरे हिंदुस्तान की नसों में दौड़ गया।


सर्जिकल स्ट्राइक की तैयारी


फिल्म का मध्य हिस्सा पूरी तरह तैयारी और रणनीति पर केंद्रित है। नक्शों पर निशान लगते हैं, दुश्मन के इलाके का अध्ययन होता है, हेलीकॉप्टर उड़ान भरते हैं, जवान रातों को जागते हैं।

इन दृश्यों ने मुझे सिखाया—“जीत अचानक नहीं मिलती, उसके पीछे महीनों की योजना, अनुशासन और त्याग छुपा होता है।”

यहाँ तक कि छोटी-सी गलती पूरे मिशन को खतरे में डाल सकती है।


मेजर विहान अपने साथियों से कहता है—

“हर एक सेकंड की कीमत है। हम सिर्फ़ सटीकता से जीतेंगे, भावनाओं से नहीं।”

यह पंक्ति मुझे अपनी ज़िंदगी के हर क्षेत्र में याद दिलाती है—सिर्फ़ भावनाएँ नहीं, अनुशासन और तैयारी भी ज़रूरी हैं।


स्ट्राइक का रोमांच


और फिर आता है वह हिस्सा जिसके लिए पूरा देश सिनेमाघरों में सांसें थामे बैठा था—सर्जिकल स्ट्राइक।

अंधेरी रात, पहाड़ों के बीच दुश्मन का अड्डा, और हमारे जवानों की परछाइयाँ।

जब पहली गोली चली, मेरा दिल भी धक से रह गया। विस्फोटों की आवाज़, गोलियों की बौछार, जवानों का साहस—सब कुछ इतना जीवंत कि लगा जैसे मैं भी वहीं खड़ा हूँ।


मेजर विहान की आवाज़ गूँजती है—

“Ye unka ghar hai, par aaj ke baad unki kabr bhi yahin hogi.”

यह संवाद मेरे लिए किसी शेर से कम नहीं था।


जीत की गूँज


जब मिशन सफल होता है और खबर पूरे देश में फैलती है, वह क्षण किसी पर्व की तरह है। लोग झंडे लहराते हैं, सैनिक गर्व से मुस्कुराते हैं और दर्शक तालियों से गूँज उठते हैं।

लेकिन मेरे दिल में उस वक्त एक अजीब-सी खामोशी थी। क्योंकि मुझे याद आया—इस जीत के पीछे उन जवानों का खून है, जिनके नाम अख़बारों में नहीं छपते, लेकिन जिनकी कुर्बानी ने यह दिन संभव बनाया।


भावनाओं का असर


फिल्म खत्म होने के बाद मैं देर तक स्क्रीन के सामने बैठा रहा। खिड़की से बाहर देखा तो आसमान में चाँद था, लेकिन मेरे भीतर अब भी वही ज्वाला जल रही थी।

मैं सोच रहा था—“अगर ये जवान रात-रात भर जागकर हमारी नींद की हिफ़ाज़त कर सकते हैं, तो हम अपनी छोटी-छोटी मुश्किलों से क्यों हार जाते हैं?”

उस रात मुझे पहली बार समझ आया कि देशप्रेम सिर्फ़ युद्धक्षेत्र में नहीं, बल्कि हर उस काम में है जो ईमानदारी से किया जाए।


जिंदगीनामा का सबक


फिल्म ने मुझे यह एहसास कराया कि ज़िंदगी का असली मकसद सिर्फ़ जीना नहीं, बल्कि जीते-जी कुछ ऐसा करना है जिससे दूसरों की ज़िंदगी आसान हो।

हर इंसान अपनी जगह सैनिक बन सकता है—कोई डॉक्टर बनकर, कोई शिक्षक बनकर, कोई लेखक बनकर। फर्क बस इतना है कि हमारे ‘हथियार’ अलग-अलग होते हैं।


शायरी (फिल्म से प्रेरित)


“जो मिट जाते हैं वतन की राहों में,

वो शहीद कहलाते हैं।

जो जीते हैं मुल्क की शान के लिए,

वो ज़िंदा रहकर भी अमर हो जाते हैं।”



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निष्कर्ष


“उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक” सिर्फ़ एक फिल्म नहीं, यह एक एहसास है। यह हमें याद दिलाती है कि हम आज जो चैन की नींद सोते हैं, उसके पीछे हज़ारों जवानों की जागी हुई रातें हैं।

विक्की कौशल का अभिनय, संवाद, बैकग्राउंड स्कोर—सबने मिलकर इसे अमर बना दिया।

लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि यह फिल्म हमें अपनी ज़िंदगी की लड़ाइयों में भी हिम्मत से लड़ना सिखाती है।


और जब भी मैं थकान या निराशा महसूस करता हूँ, मुझे सिर्फ़ एक डायलॉग याद आता है—

“How’s the Josh?”

और मेरे भीतर की आवाज़ गूँज उठती है—

“High Sir!”



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