गणेश जी की कथा
प्राचीन भारतीय संस्कृति में भगवान गणेश जी का स्थान अद्वितीय है। उन्हें विघ्नहर्ता, बुद्धि और विवेक के देवता, तथा मंगल कार्यों के आरंभ में सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता के रूप में जाना जाता है। उनकी कहानियाँ न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाली शिक्षाएँ भी प्रदान करती हैं।
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गणेश जी का जन्म
एक पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने अपने शरीर के उबटन (हल्दी और चंदन के लेप) से गणेश जी की रचना की। उन्होंने उस मिट्टी और हल्दी से एक बालक का निर्माण किया और उसमें प्राण फूँक दिए। पार्वती ने गणेश को अपना पुत्र मानकर कहा कि जब तक वे स्नान कर रही हों, तब तक कोई भी अंदर न आए।
इसी समय भगवान शिव वहाँ पहुँचे। गणेश जी ने उन्हें रोक दिया, क्योंकि वे अपनी माता का आदेश मान रहे थे। शिव जी को यह अपमानजनक लगा और दोनों में युद्ध हो गया। अंततः शिव जी ने क्रोध में आकर अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर काट दिया। जब पार्वती बाहर आईं और यह दृश्य देखा तो वे व्यथित हो गईं और अपने पुत्र को पुनर्जीवित करने की मांग की।
शिव जी ने गणेश जी के शरीर पर हाथी का सिर लगाया और उन्हें जीवन प्रदान किया। तभी से वे गजानन या गणपति कहलाए।
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प्रथम पूज्य क्यों बने?
एक समय देवताओं में यह विवाद हुआ कि सबसे पहले पूजनीय कौन है। सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी और महादेव से समाधान पूछा। तब एक परीक्षा रखी गई – जो तीनों लोकों की परिक्रमा पहले करेगा, वही सबसे पहले पूज्य माना जाएगा।
सभी देवता अपने-अपने वाहन पर बैठकर तीनों लोकों की परिक्रमा के लिए निकल पड़े। परंतु गणेश जी का वाहन तो छोटा चूहा था। उन्होंने बुद्धि से काम लिया। वे सीधे अपने माता-पिता शिव-पार्वती की परिक्रमा करने लगे और कहा कि माता-पिता ही संपूर्ण ब्रह्मांड के समान हैं। इस प्रकार गणेश जी ने ज्ञान और भक्ति से यह प्रतियोगिता जीत ली। तभी से वे प्रथम पूज्य बने और किसी भी पूजा, यज्ञ या शुभ कार्य में सबसे पहले उनकी आराधना की जाने लगी।
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महाभारत लेखन की कथा
एक अन्य प्रसिद्ध कथा महाभारत से जुड़ी है। जब महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना करनी चाही तो उन्होंने गणेश जी को लेखक बनने के लिए आमंत्रित किया। गणेश जी ने शर्त रखी कि वे लिखना तभी स्वीकार करेंगे यदि व्यास जी बिना रुके बोलेंगे। व्यास जी ने भी शर्त रखी कि गणेश जी हर श्लोक का अर्थ समझकर ही लिखेंगे।
इस प्रकार गणेश जी ने अपनी टूटी हुई दाँत से महाभारत लिखी। कहा जाता है कि इसी कारण उन्हें एकदंत भी कहा जाता है। यह कथा हमें धैर्य, परिश्रम और ज्ञान की महत्ता सिखाती है।
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गणेश जी के प्रतीकात्मक स्वरूप की महत्ता
गणेश जी का रूप भी कई गहरी शिक्षाएँ देता है।
उनका हाथी का सिर विशाल बुद्धि और धैर्य का प्रतीक है।
उनकी छोटी आँखें एकाग्रता सिखाती हैं।
उनके बड़े कान यह दर्शाते हैं कि हमें अधिक सुनना चाहिए और कम बोलना चाहिए।
उनका चूहा वाहन यह बताता है कि चाहे साधन छोटे हों, लेकिन दृढ़ निश्चय से बड़ी से बड़ी बाधा पार की जा सकती है।
उनकी चार भुजाएँ अलग-अलग गुणों और शक्तियों की प्रतीक हैं।
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गणेश चतुर्थी का पर्व
गणेश जी की पूजा का सबसे बड़ा उत्सव गणेश चतुर्थी है, जो भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाता है। लोग गणपति बप्पा को घर में लाकर, दस दिनों तक पूजा करते हैं और फिर विसर्जन के समय "गणपति बप्पा मोरया" के जयकारे लगाते हैं। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का नहीं बल्कि सामाजिक एकता, भाईचारे और संस्कृति का प्रतीक भी बन गया है।
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जीवन की शिक्षा
गणेश जी की कहानियाँ हमें यह सिखाती हैं कि –
माता-पिता का सम्मान करना सर्वोपरि है।
बुद्धि और विवेक से हर कठिनाई का समाधान निकल सकता है।
धैर्य और परिश्रम से महान कार्य संपन्न होते हैं।
किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत सद्बुद्धि और शुभ चिंतन से होनी चाहिए।
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निष्कर्ष
गणेश जी केवल एक देवता ही नहीं, बल्कि जीवन जीने का मार्ग भी दिखाते हैं। वे हमें यह संदेश देते हैं कि सच्ची पूजा केवल मंत्रों और अनुष्ठानों में नहीं, बल्कि सही सोच, सही आचरण और दूसरों की भलाई में है। यही कारण है कि आज भी हर शुभ कार्य की शुरुआत "श्री गणेशाय नमः" कहकर की जाती है।
दीपांजलि
दीपाबेन शिम्पी गुजरात