यह कहानी पूरी तरह से स्वरचित और मौलिक है। कहानी पूरी तरह से काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है। किसी विशेष घटना, स्थान, किरदार, जीवित या मृत किसी भी व्यक्ति से कहानी का कोई सम्बन्ध नहीं है। कहानी के कॉपी राइट्स लेखिका - कंचन सिंगला के पास सुरक्षित हैं। कॉपी राईट एक्ट का उलंघन करने की चेष्टा ना करें।
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कंचन सिंगला 💛💛💛💛💛💛💛 गोल्डन हार्ट
यह कहानी अधिकतर अपने हिस्सो में समाज से जुड़े कुछ पहलुओं को भी दर्शाएगी जो लड़कियों की ज़िंदगी का कड़वा सच है कहीं ना कहीं आज भी।
कहानी शुरू होती है
एक पांच साल की लड़की जिसका नाम कंगना है। वह जिद पर अड़ी है कि मम्मा मुझे मार्शल आर्ट की क्लास में एडमिशन चाहिए। मुझे भी बाकी लड़कियों की तरह ही मार्शल आर्ट्स सीखने हैं। उसकी मॉम उसे मना करते हुए कहती हैं...यह कह कर कि लड़की हो तुम यह सब तुम्हारे किसी काम का नहीं है। हाथ पैर तुड़वा लाओगी तुम्हारी शादी कैसे होगी फिर, नहीं सीखना यह सब, जाओ जाकर पढ़ाई पर ध्यान दो, अभी तुम इसके लिए बहुत छोटी हो।
कंगना भी जिद्दी थी। उसने जो सोच लिया वह उसे पूरा करके ही रहती थी। अपनी मां के मना करने पर वह उदास जरूर हुई थी लेकिन निराश नहीं।
उसके रसोई से जाने के बाद उसकी मां कहती है ....पता नहीं इस लड़की को कहां से पता चला ऐसी चीजों के बारे में, यह स्कूल वाले भी ना उम्र महज देखते मासूम बच्चों की कुछ भी करवाने के लिए फोर्स कर देते हैं। और हमारे मासूम बच्चे जिद पकड़ कर बैठ जाते है। सब इनके ठगने का नया तरीका का। एक लंबी कोशिश के बाद जब आखिर उसकी जिद जीत गई, उसने जिद करके अपनी बात मनवा ली थी। उसका एडमिशन मार्शल आर्ट्स की क्लास में करवा दिया गया था यह सोचकर कि बस नया नया शौक है लेकिन यह सिर्फ शौक नहीं था बल्कि यह शुरुवात थी एक नए सफर की।
आखिर यह जिद आयी क्यों, क्यों आया उसके मन में उसे वो सब सीखना है जो उसे मजबूत बना सके ? आखिर क्यों एक पांच साल की बच्ची इतनी सी उम्र में ही लड़ना सीखना चाहती थी ? वजह थी इसके पीछे बहुत बड़ी वजह।
कुछ दिन पहले ही वह अपने परिवार के साथ भंडारदरा अपने दूर के मामा जी के यहां गई थी जो उसकी मां के खास भाई में से एक थे लेकिन सगे नहीं।
जब सब शादी को एंजॉय कर रहे थे तब उस रात उनका वहशी रूप उस मासूम के सामने आया। उन्होंने उस छोटी मासूम बच्ची को मोलेस्ट करने की कोशिश की उस शादी समारोह के बीच। वह उनका हाथ अपने दातों से काट कर उन्हें धक्का देकर गिरा देती है और वहां से भाग जाती है।
उसे स्कूल में सिखाया गया था गुड टच और बैड टच के बारे में।
वह भागते हुए अपनी मां के पास पहुंचती है पर बता नहीं पाती क्योंकि वह व्यस्त थी। वह बहुत कोशिश करती है लेकिन उसकी मां को तो मानो फुर्सत ही नहीं थी। इस बीच उसने नन्ही कंगना को इतना डराया कि वह किसी से कुछ कह ही नहीं पाई। सबकी नजरों में वो एक आदर्श इन्सान था। वैसे भी एक शरारती बच्चे की बात को गंभीरता से लेता ही कहां है। इसलिए उसे भी अनसुना कर दिया गया। वह चुप भले ही हो गई थी लेकिन उस दिन से उसके दिल में एक अजीब सा डर बैठ गया था। इसके बाद वो वहां से वापस अपने घर आ चुकी थी। स्कूल जाकर उसे पता चला कि स्कूल में मार्शल आर्ट्स की क्लासेज शुरू होने वाली हैं। यह सुनकर उसने निश्चय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो वह यह क्लासेज ज्वाइन करेगी। इसके बाद वह घर आकर जिद करके बैठ गई थी कि उसे मार्शल आर्ट की क्लासेज ज्वॉइन करनी ही है। बहुत जतन के बाद उसे एडमिशन मिल ही गया था।
बीस साल आगे
कंगना के बचपन का दोस्त आशीष जो उससे शादी करना चाहता है और उसे बहुत पसंद भी करता है, लेकिन कंगना उसे एक दोस्त की तरह ही पसंद करती है। कंगना की छोटी बहन शिल्पी जो उससे बस दो साल छोटी है वो आशीष को पसंद करती है। दोनों बहने एक दूसरे से बिल्कुल जुदा है, एक नटखट शरारती और दूसरी सीधी, शांत और समझदार ।
कॉलेज पूरा होते ही कंगना के परिवार ने उसकी शादी उसके बचपन के दोस्त आशीष से पक्की कर दी थी वो भी उससे बिना कुछ पूछे। वह अपनी मॉम से बोलती है... एक बार पूछ तो लेते मुझसे कम से कम, मैं ये शादी करना चाहती हूं भी या नहीं ?
हमने जरूरी नहीं समझा, तुम्हारे लिए यही सही है। उसकी मां न उसे उत्तर देते हुए कहा।
पर पापा! उसने आगे कहना चाहा लेकिन इससे पहले ही उसकी मां ने उसे डांटते हुए कहा पर वर कुछ नहीं सुनना हमें। जो फैसला घर के बड़ों ने ले लिया है उसे चुपचाप मान लो। इसी में तुम्हारी भलाई है। अब मैं तुम्हारी किसी जिद को नहीं मानने वाली। वैसे भी तुम उसे बचपन से जानती हो, कितना संस्कारी लड़का है आशीष। ढूंढने से भी नहीं मिलेगा और पास में ही रहता है कोई खास दिक्कत भी नहीं होगी। अब हमें इससे आगे कुछ नहीं सुनना। वह कमरे से लॉन्ड्री वाले कपड़े सिमेटते हुए वहां से निकल गई। कंगना न गुस्से में अपना हाथ जोर से बेड पर पटक दिया। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था। वह उठकर खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई।
कुछ देर बाद जब उसका गुस्सा शांत होता है तब वह सोचती है कि कम से कम मैं उसे जानती तो हूं वो भी बचपन से, उन्होंने मेरे लिए किसी अनजान को नहीं चुना। शायद मेरे लिए यही ठीक है। इतना सोचकर वह सो गई थी क्योंकि उसका गुस्सा अब हवा हो चुका था या फिर शायद वह उनके फैसले को मान चुकी थी।
अगले दिन कंगना देखती है....उसकी मॉम किचन में कुछ बना रही होती है जाकर पीछे से उनके गले में बाहें डालते हुए उनकी गर्दन पर सर टीकाकर खड़ी हो गई थी।
उसे ऐसे खुद पर प्यार जताते देख उसकी मॉम पूछती हैं....क्या चाहिए तुम्हें ?
कंगना कहती है....आपको हर बार पता चल जाता है ना।
उसकी मॉम मुस्कुराते हुए कहती हैं.....मां हूं तुम्हारी कैसे नहीं पता चलेगा। बताओ अब क्या नयी मांग है तुम्हारी ?
क्या डिमांड होगी ?????
समीक्षा में बताएं !!!!!!!!!