स्नेही मित्रों!
आशा है सब आनंद में हैं।
आज आप सबसे साझा करती हूँ सकारात्मता का दूसरा नाम.... डॉ.रवीन्द्र मरडिया! जीवन में जब कभी उदास बादल घिरने लगते हैं, ये अपने अपनत्व भरे व्यवहार से सबमें ऊर्जा भरने का काम करते हैं।
रवींन्दसुखिनः
से सबका जुड़ाव बिना किसी प्लानिंग के हो जाता है। रवीन्द्र जी का कला व साहित्य से ज़बरदस्त लगाव है। ये किसी एक के मित्र नहीं, मित्रों के मित्र हैं। इसीलिए इनकी बरसों पहले एक पुस्तक लिखी गई जो इस शीर्षक से प्रकाशित हुई 'Buddy To All'
मैं क्यों इस बात को यहाँ साझा कर रही हूँ? इसके पीछे कारण है कि अनेकों झंझावातों को झेलते हुए, ये कितनी बार गिरे, उठे, चले और जीवन के सफ़र में कोई न कोई नया परचम लहराकर फिर से पूरी ऊर्जा के साथ खड़े हो गए।
उद्योग को एक पड़ाव पर लाकर इन्होंने कला की ओर रुख किया। जब महसूस हुआ कि उसमें खरे नहीं उतर पा रहे हैं तो जहाँ थे यानि मुंबई से ही अनेक उभरते व स्थापित कलाकारों के साथ कला-प्रदर्शनियाँ शुरू कीं और फिर अहमदाबाद ने इन्हें पुकार लिया।
अहमदाबाद से लगभग 50/60 कि. मीटर दूर एक फ़ार्म-हाऊस कभी ख़रीदा होगा, वहाँ रहना शुरू किया। पूरी गिनती तो नहीं बता सकती लेकिन कोरोना-काल में अपने फ़ार्म हाऊस से आसपास के कितने ही गाँवों के लिए लगातार खाने की व्यवस्था की।
यहाँ अहमदाबाद में एक ख़ूबसूरत आर्ट-गैलरी का निर्माण किया और उभरते हुए व स्थापित कलाकारों के साथ लगातार प्रदर्शनियाँ करने के अतिरिक्त उनकी पेंटिंग्स को लेकर देश-विदेशों में प्रदर्शनियाँ करते रहे। अपनी आर्ट गैलरी में कला व साहित्य का सदा स्वागत किया। अव्यवसायिक कार्यक्रमों के उपयोग के लिए गैलरी खुली रखी।
कुछ ईश्वर की ही अनुकंपा होती है या जिसे कहते हैं कुछ लेन देन होता है। मेरा 75वाँ जन्मदिन इन्होंने उसी आर्ट गैलरी में मनाया।यह अहमदाबाद की साहित्यिक दुनिया में पहली बार हुआ। मुझे कुछ ही दिन दिए गए और पर्यावरण पर 75 अच्छांदस रचनाएँ लिखवाई गईं। इतनी जल्दी कैसे? के उत्तर में था, यह हमको नहीं मालूम। कार्यक्रम
मुझे अचानक शीर्षक सूझा 'डैफ़ोडिल! तेरे झरने से पहले!'अब चला चली का मेला, शायद....
उस कार्यक्रम में सबको ख़ुद फ़ोन करके आमंत्रित किया। आ.बाजपेई जी व ममता जी को भी फ़ोन किया, मैं पहले अहमदाबाद के एक इंटरनेशनल कार्यक्रम में आप दोनों से थोड़ी देर के लिए मिल चुकी थी किंतु किसी कारण से उनका आना संभव नहीं हो सका।
प्रसिद्ध दोहाकार व ग़ज़लकार नरेश शांडिल्य जी को दिल्ली से, प्रतिष्ठित साहित्यकार व राही रैंकिंग के जन्मदाता प्रबोध गोविल जी को जयपुर से आमंत्रित किया। बहुत वर्षों पुराने मित्र अशोक कौशिक व प्रमिला कौशिक दोनों पति पत्नी शामिल हुए। यहाँ के मेरे सभी साहित्यकार मित्रों को और मेरे परिवार को स्वयं इन्वाइट भेजकर बुलाया। मेरे हिस्से में केवल आँखें भर देखते रहना आया।
गए वर्ष उनके जन्मदिन पर बुक लाँच के साथ ज़बरदस्त ख़ूबसूरत फ़िल्म बनाई कवि, लेखक, एक्टर प्रिय रवि यादव ने!
रवीन्द्र जी अपने कला के जुनून के साथ अँग्रेज़ी, हिन्दी की कई पुस्तकें लिख चुके हैं। उनका एक ही स्लोगन है... जीयो और जीने दो।हर परिस्थिति में ख़ुश रहो। डॉ.रवीन्द्र मरडीया आज के ज़माने में सकारात्मकता का एक ऐसा नाम हैं कि कोई भी उनसे मिलकर उनका मित्र बन जाता है।
पिछले दिनों दिल की बीमारी लेकर बैठ गए, मैंने कहा भई, सबमें स्नेह बाँट रहे हैं तो दिल पर तो उनका अधिकार नहीं है।
ढाई आखिर प्रेम के पंडित! आपकी समाज को बहुत ज़रूरत है, स्वस्थ रहिए, आनंदित रहिए। हम सभी आपके मित्र आप पर गर्वित हैं।
आज आपकी ख़ूबसूरत जीवन-संगिनी बीना जी का जन्मदिन है। उनके साथ आपको भी ढेरों शुभकामनायें। वे आपकी ज़िंदगी में न होतीं तो आप ये रवीन्द्र न होते। सदा आनंद में रहें, स्वस्थ रहें।
सर्वे भवंतु सुखिनः
सब स्वस्थ रहें, सकारात्मक रहें, आनंदित रहें। इसी कामना के साथ आज का लेख समाप्त करके अगली बार कुछ और बात साझा करुंगी।
सस्नेह
आप सबकी मित्र
डॉ. प्रणव भारती