Hamari Adhuri Kahaani - 4 in Hindi Fiction Stories by Kanchan Singla books and stories PDF | हमारी अधूरी कहानी - 4

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हमारी अधूरी कहानी - 4

सुकेंद्र ने कहा....राजकुमारी रुहानिका आप हमारी होने वाली पत्नी थी। आपके माता पिता ने हमें आपके लिए चुना था लेकिन आपने इस कायर को स्वयं के लिए चुन कर भूल कर दी। जिसकी सजा हम सबको भुगतनी पड़ी। अब जब आप लौट आई हैं तो हमारा मिलन होकर उस अधूरी कहानी को पूरा कर ही देते हैं जिससे इस लड़ाई का अंत हमेशा के लिए हो जाएगा।

रूहानी ने सुकेंद्र की तरफ देखकर कहा.... हमने तुम्हें ना ही तब चुना था और ना ही आज चुनेंगे सुकेंद्र, तुम्हें प्यार का अर्थ ही नहीं मालूम तुम सिर्फ छिनना जानते हो इसी वजह से तुम हमें पहली दृष्टि में ही पसंद नहीं आए। हम तुमसे नफरत करते हैं सुकेंद्र। तुम्हें चुनने की बजाय इस बार भी हम मृत्यु को चुनना स्वीकार करेंगे। 
सुकेंद्र कहता है...इस बार हम आपको मरने नहीं देंगे राजकुमारी, अगर आपने जान देने की कोशिश भी की तो हम आपको अपने जैसा बना देंगे। हमारी अधूरी कहानी पूरी होकर ही रहेगी इस बार।

आवेंद्र, रूहानी के बगल में आकर खड़े होते हुए कहता है...इतने बलिदान के बाद भी अगर तुम्हारी नफरत और जिद नहीं बदल सके तो हम सेनापति आवेंद्र प्रण लेते हैं कि आज आपकी इस कहानी को समाप्त कर देंगे और राजकुमारी की रक्षा करेंगे। जो उत्तरदायित्व आपकी सुरक्षा का आपके पिताजी ने हमें सौंपा था राजकुमारी उसको अब पूरी तरह से निभाने का वक्त आ गया है।

आवेंद्र ने अपने बड़े बड़े पंखों को फैलाकर रूहानी को उनमें छिपा लिया। उसने अपने पास छिपाए एक खास लकड़ी के अस्त्र को बाहर निकाला और सुकेंद्र से भिड़ गया। सुकेंद्र भी अपनी पूरी ताकत से आवेंद्र का सामना कर रहा था। उसने आवेंद्र के सीने को अपने नुकीले पंजे से चीरते हुए कहा...एक मामूली सा सेनापति एक राजकुमार के आगे कुछ भी नहीं है। तुम्हारा कल भी कोई अस्तित्व नहीं था और आज भी नहीं है। तुम सिर्फ एक दास थे और आज भी उसी के काबिल हो। 

वह अगला वार करके आवेंद्र को मार देता इससे पहले ही आवेंद्र ने अपनी तरफ आते सुकेंद्र के सीने में उस लकड़ी के खंजर को घोंप दिया। खंजर लगते ही सुकेंद्र छटपटाते हुए दूर जा गिरा। कुछ ही सेकेंडों में उसने तड़पते हुए प्राण त्याग दिए। 

उसकी मृत्यु होने पर बचे हुए भेड़िए पीछे हट गए। युद्ध रुक गया था। सुकेंद्र का शरीर धीरे धीरे काले धुएं में परिवर्तित होकर हवा में घुल गया। बचे हुए भेड़िए भी पीछे हटते हुए वहां से चले गए।
आवेंद्र भी बुरी तरह से घायल होकर जमीन पर आ गिरा था। रूहानी ने उसे संभालते हुए आंसू भरी आंखों से कहा... आवेंद्र आपने फिर से हमारे लिए स्वयं को खतरे में डाल दिया। आपको यह नहीं करना चाहिए था।

आवेंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा....मुझे खुशी है कि मैं मरने से पहले अपने फर्ज को निभा आया और अपने प्यार को भी बचा पाया। इतना कहकर उसने रूहानी को अपने हृदय से लगा लिया। रूहानी अब बेहोशी की अवस्था में उसकी बाहों में थी। उसने रूहानी को अपनी बाहों में उठाया और उसे उसकी नानी के घर छोड़ आया। 

आवेंद्र ने भी इस हमले में अपनी जान गंवा दी थी। रूहानी इस बात से अनजान थी। अगली सुबह जब रूहानी की आंख खुली तो उसने स्वयं को बिस्तर में पाया। अवेंद्र ने उसकी यादें मिटा दी थी लेकिन वह मिट नहीं पाई। उसे सब याद था। वह एकदम चीखते हुए नींद से उठ खड़ी हुई। वह बार बार आवेंद्र का नाम पुकार रही थी। उसे होश आया तो लगा मानों उसने कोई डरावना सपना देख लिया हो। 

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