Hamari Adhuri Kahaani - 3 in Hindi Fiction Stories by Kanchan Singla books and stories PDF | हमारी अधूरी कहानी - 3

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हमारी अधूरी कहानी - 3

बाहर से आते शोर को रूहानी ने भी सुना। जब उसने बाहर खड़े भेड़ियों की फौज को देखा तो उसकी आत्मा कांप उठी। उसे लगा जैसे शायद यही उसका अंतिम वक्त होगा। तभी हवेली से अनगिनत चमगादड़ों की फौज बाहर जाने लगी। रूहानी उन्हें देखकर चौंक गई। उन्होंने बाहर जाकर मानव रूप जो ले लिया था। 
रूहानी के मुंह से निकला "वैंपायरस" ! क्या अब इनकी लड़ाई होने वाली है ?

तभी उसकी आंखों के सामने आरव जो एक सुंदर नौजवान के तौर पर उससे मिला था वह भी अपने असली रूप में आकर वैंपायर की फौज के आगे खड़ा हो गया। उसे देख रूहानी को जोरदार झटका लगा। इतनी देर से वह एक वैंपायर के साथ वक्त बिता रही थी। उससे बातचीत कर रही थी। उसका सर मानों घूम रहा था।

बाहर लड़ाई छिड़ चुकी थी। भेड़ियों के सरदार ने कहा... आर्वेंद्र (आरव) आज तुम्हें समाप्त करके उसे मैं अपने साथ ले जाऊंगा। तुम अब कुछ नहीं कर पाओगे कमजोर वैंपायर, मेरी फौज थोड़ी ही देर में तुम्हारे सारे साथियों को नोच डालेगी। तुम अकेले उसे बचा नहीं पाओगे। ना तब उसे बचा पाए थे और ना ही अब बचा पाओगे।

आर्वेंद कहता है...सुकेंद्र तुम आज नहीं बचोगे। तुम्हें समाप्त करके मैं बरसों पुराना बदला लेकर अपने भीतर जल रही अग्नि को शांत करूंगा। इतना कहकर वह दोनों एक दूसरे से भिड़ गए। सुकेंद्र भी अपने मानवीय रूप में आ चुका था।

उन दोनों के देखकर रूहानी को धुंधला धुंधला कुछ याद आ रहा था। कोई उसे खींचते हुए कहीं लेकर जा रहा था। वह कड़ा जिसे वह यादों में देख पा रही थी वही सुकेंद्र ने पहना हुआ है। "क्या इनसे मेरा पिछले जन्म का कोई नाता है?" रूहानी के मुख से निकला।
लड़ाई भीषण रूप ले चुकी थी। कहीं वैंपायर मर रहे थे तो कहीं भेड़िए। कहीं किसी की उखड़ी हुई गर्दन पड़ी थी तो कहीं किसी का हाथ या पैर। 

रूहानी ने देखा लड़ाई की कंपन से दीवार पर लगी तस्वीर नीचे गिर गई थी। उसने तस्वीर को साफ किया यह तस्वीर तो उसकी और आवेंद्र की थी। वह तस्वीर को थोड़ी देर तक निहारती रही। एकदम से उठी और बाहर की तरफ भागी। 

एक दूसरे को समाप्त कर देने को उतारू आवेंद्र और सुकेंद्र के बीच आकर खड़ी हो गई। वह उन दोनों को रोकते हुए बोली...पहले भी यह लड़ाई मेरी मृत्यु पर ही समाप्त हुई थी और आज भी ऐसे ही समाप्त होगी। इतना कहकर उसने अपने हाथ में पकड़े कांच के टुकड़े को अपने पेट में घोंपने के लिए आगे बढ़ाया। तभी आवेंद्र ने उसे रोकते हुए कहा...राजकुमारी रुहानिका रुक जाइए! यह मत कीजिए! आपके लौटने का यहां की धरती को कबसे से इंतजार था। इस लड़ाई को समाप्त करने के लिए मैं अपना बलिदान देने को तैयार हूं।

आवेंद्र की बात सुनकर रुहानिका की आंखों से आंसू बह निकले। वह रोते हुए बोली...कितनी बार अपना बलिदान देंगे आप हमारे प्रेम की खातिर आवेंद्र? पिछली बार आप इंसान से पिशाच रूप में बदल गए हमारी सुरक्षा की खातिर और अब फिर से बलिदान की बात कर रहे हैं। 

आवेंद्र खामोश रहा लेकिन उसकी आंखे बता रही थी उसके भीतर छिपे दर्द की कहानी।

कहानी पसंद आ रही है तो आप समीक्षा में अपने विचार व्यक्त करके बता सकते हैं आपका आभार रहेगा।।