Khoon ki Pyaas - 4 in Hindi Short Stories by Vivek Singh books and stories PDF | खून की प्यास: सुनसान सड़क का श्राप - 4

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खून की प्यास: सुनसान सड़क का श्राप - 4



पार्ट 4 — “तहखाने का सौदा”

तहखाने का अंधेरा अब और भी गाढ़ा हो चुका था। टॉर्च की हल्की-सी रोशनी सिर्फ राघव के चारों ओर गोल घेरे की तरह फैल रही थी, और उसके बाहर… बस घुप्प काला सन्नाटा।
जंजीर उसके पैरों में कसती जा रही थी। ठंडी, खुरदरी धातु उसकी त्वचा को चीर रही थी, और हर खिंचाव के साथ ऐसा लग रहा था मानो कोई अदृश्य हाथ उसे अंधेरे की तरफ खींच रहा हो।

वो औरत… वही सड़ी-गली शक्ल वाली… अब ठीक उसके सामने खड़ी थी। उसकी सांस बर्फ जैसी ठंडी, और आंखों में वही खून की लालिमा जो इंसान नहीं… किसी अनकही यातना की गवाही दे रही थी।

"तू नहीं जाएगा," उसने बमुश्किल होंठ हिलाते हुए कहा, "अधूरा सौदा पूरा कर।"

राघव ने कांपते हुए पूछा, "कौन सा सौदा?"
औरत का चेहरा अचानक करीब आ गया, इतनी नज़दीक कि राघव को उसकी सड़ी हुई त्वचा से आती बदबू महसूस हुई।
"जो तेरे ख़ून से पूरा होगा…"


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जंजीर की फुसफुसाहट

जंजीर अचानक खुद-ब-खुद हिलने लगी। छन… छन… छन…
लेकिन ये सिर्फ धातु की आवाज़ नहीं थी — उसके भीतर से आवाजें आ रही थीं, जैसे कई लोग एक साथ धीरे-धीरे कुछ बोल रहे हों।
राघव ने कान लगाने की कोशिश की…
"हमको छोड़ दे… हमको छोड़ दे…"

ये आवाजें इतनी करुणा से भरी थीं कि राघव का दिल कांप उठा। उसने पांव छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन जंजीर की पकड़ और भी मजबूत हो गई।
औरत ने धीमे से कहा, "इनकी रूहें यहां बंधी हैं… मेरी तरह।"


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दीवार में दफन सच

अचानक, तहखाने के बाएं कोने की दीवार से हल्की-सी रोशनी निकलने लगी — पीली, मद्धम, जैसे दीये की लौ।
औरत ने उसकी तरफ़ इशारा किया, "देख… यही तेरे सवाल का जवाब है।"

राघव खिंचता-घसीटता वहां पहुँचा। दीवार के पास पहुँचते ही उसने देखा — वहाँ ईंटों के पीछे पुराना लकड़ी का दरवाज़ा छुपा था, जिस पर अजीब-सी आकृतियां खुदी हुई थीं। कुछ आकृतियां इंसानों की थीं, कुछ जानवरों की… और कुछ बिल्कुल पहचान से बाहर।
दरवाज़े के बीचों-बीच एक लोहे का ताला लगा था, जो ज़ंग खाकर आधा टूट चुका था।

राघव ने ताले को छूते ही एक तेज़ झटका महसूस किया, जैसे किसी ने उसे बिजली का करंट दे दिया हो।
और उसी पल उसके कान में वो औरत फिर फुसफुसाई — "ये दरवाज़ा तू खोलेगा… तभी सब खत्म होगा।"


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अतीत की झलक

जैसे ही राघव ने ताला खींचा, उसके दिमाग में तेज़-तेज़ तस्वीरें चमकने लगीं —

एक पुराना ज़मींदार, जिसके हाथ में वही जंजीर थी।

तहखाने में बंधी वही औरत, जो अब उसके सामने खड़ी थी, लेकिन उस समय ज़िंदा थी और खूबसूरत भी।

ज़मींदार का क्रूर चेहरा और उसके कानों में गूंजती आवाज़ —
"तेरा प्यार तेरी सजा बनेगा।"


फिर… चिल्लाहटें, खून, और जंजीर का कसता हुआ फंदा।

राघव ने सिर झटक दिया। ये सब क्या था? सपना? भ्रम? या उस औरत का अतीत?
उसने पूछा, "ये सब तुम मुझसे क्यों करवा रही हो?"
औरत की आंखें अचानक नम हो गईं —
"क्योंकि तू ही है… जो मेरा नाम जानता है।"


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नाम का खेल

राघव हड़बड़ा गया — "नाम?"
औरत ने धीरे-धीरे कहा, "मीरा…"
ये नाम सुनते ही तहखाने में बंधी जंजीर जोर से हिलने लगी, जैसे उसे गुस्सा आ गया हो। छन-छन-छन!
छत से धूल झड़ने लगी, दीवार में दरारें पड़ने लगीं।

मीरा ने राघव का हाथ पकड़ लिया — उसकी पकड़ ठंडी थी, लेकिन कसकर थामे हुए थी।
"दरवाज़ा खोल… वरना ये जगह हम दोनों को निगल जाएगी।"


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दरवाज़े के पीछे

राघव ने पूरी ताकत से ताला तोड़ा। दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला… और भीतर से जो गंध आई, उसने उसका दम घुटा दिया।
अंदर एक छोटा-सा कमरा था, जिसके बीचों-बीच लकड़ी का एक बक्सा रखा था। बक्से के ऊपर सूखी हुई लाल रंग की परत थी — ख़ून की।
मीरा ने इशारा किया, "खोल इसे।"

राघव झुककर बक्सा खोला… और अंदर देखा —
पुरानी हड्डियां, कुछ चांदी के सिक्के, और वही लालटेन जो उसने हवेली के बाहर देखी थी।
लेकिन सबसे डरावना था एक मोटा, चमड़े से बंधा हुआ कागज़ों का बंडल, जिस पर लिखा था —
"सौदे का वचन"


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सौदे की कहानी

राघव ने कागज़ खोला। उसमें लिखा था कि ज़मींदार ने मीरा को पाने के लिए एक तांत्रिक से सौदा किया था —
"उसकी रूह और जिस किसी ने उसका नाम लिया, वह इस हवेली से बाहर नहीं जा पाएगा, जब तक कोई स्वेच्छा से अपना खून देकर जंजीर तोड़े।"

राघव के हाथ कांपने लगे — तो इसका मतलब…
मीरा सिर्फ कैद नहीं थी, वो शापित भी थी, और अब ये शाप उसे भी अपनी गिरफ्त में ले चुका था।

मीरा ने उसकी आंखों में देखा —
"अब तेरे पास दो रास्ते हैं… या तो भागने की कोशिश कर और यहां हमेशा के लिए फंस जा… या अपना खून दे और मुझे आज़ाद कर।"


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अंत से पहले का खेल

तहखाने की दीवारें अब और जोर से हिल रही थीं। ऊपर से अजीब-सी चीखें गूंजने लगीं, जैसे हवेली की बाकी रूहें भी जाग उठी हों।
जंजीर की पकड़ अब राघव की टांगों से ऊपर कमर तक पहुंच चुकी थी।

उसने चारों तरफ देखा —
बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था। सिर्फ वो बक्सा, जंजीर, और मीरा की लाल आंखें…

मीरा धीरे से बोली,
"समय खत्म हो रहा है, राघव…"


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यहीं पर पार्ट 4 खत्म होगा — अगले भाग में ये तय होगा कि राघव अपना खून देकर सौदा पूरा करता है, या कोई तीसरा, अप्रत्याशित मोड़ सामने आता है