Tum hi to ho - 13 in Hindi Love Stories by Queen of Night books and stories PDF | Tum hi to ho - 13

Featured Books
  • ओ मेरे हमसफर - 12

    (रिया अपनी बहन प्रिया को उसका प्रेम—कुणाल—देने के लिए त्याग...

  • Chetak: The King's Shadow - 1

    अरावली की पहाड़ियों पर वह सुबह कुछ अलग थी। हलकी गुलाबी धूप ध...

  • त्रिशा... - 8

    "अच्छा????" मैनें उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा। "हां तो अब ब...

  • Kurbaan Hua - Chapter 42

    खोई हुई संजना और लवली के खयालसंजना के अचानक गायब हो जाने से...

  • श्री गुरु नानक देव जी - 7

    इस यात्रा का पहला पड़ाव उन्होंने सैदपुर, जिसे अब ऐमनाबाद कहा...

Categories
Share

Tum hi to ho - 13

अब आगे, 

दोनों कार में बैठ गए। शुभ ने इंजन स्टार्ट किया, लेकिन कुछ देर तक गाड़ी चुपचाप चलती रही।

दोनों ही जैसे अपने-अपने ख्यालों में खोए थे।


सिद्धि ने खामोशी तोड़ी,

"Thank you… मौका देने के लिए। अब बस जॉब लग जाए।"


शुभ ने उसकी तरफ एक पल देखा,

"मैंने कुछ नहीं किया। अगर आप capable होंगी, तो जॉब पक्की है।"


कुछ सेकंड फिर खामोशी।

शुभ मन ही मन सोच रहा था — मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ? क्यों इस लड़की की इतनी मदद करना चाहता हूँ?

सुबह दिग्विजय अंकल ने बताया था कि कैसे एक लड़की ने जान की परवाह किए बिना उनका accident में बचाव किया… और अब वो लड़की उसके सामने बैठी थी।

शायद इसी वजह से… शायद इसलिए कि उसने किसी अपने की जान बचाई है, और शायद इसलिए भी कि… वो मुझे अलग लगती है।

कुछ पल खामोशी के बाद शुभ ने अचानक पूछा,

"वो… अंकल ने बताया था, आज सुबह जो accident हुआ… आप थीं वहां?"


सिद्धि ने हल्के से सिर हिलाया,

"हाँ… बस जो सही लगा, कर दिया।"


"सही लगा?" शुभ ने भौंहें चढ़ाईं, "अपनी जान खतरे में डालना सही था?"

उसके लहजे में नाराज़गी से ज्यादा चिंता थी।


सिद्धि हल्की मुस्कान के साथ बोली,

"जब किसी की जान बचानी हो, तो सोचने का वक्त नहीं मिलता।"


शुभ ने उसकी तरफ देखा — उस पल उसे एहसास हुआ कि ये लड़की सिर्फ साहसी ही नहीं, बल्कि दिल से भी साफ़ है। शायद यही वजह थी कि वो उसके बारे में सोचने से खुद को रोक नहीं पा रहा था।


गाड़ी आगे बढ़ी, लेकिन शुभ के मन में सवालों और ख्यालों की भीड़ लगी रही।

वहीं सिद्धि खिड़की से बाहर देखते हुए बस यही सोच रही थी — काश ये जॉब लग जाए… माँ का इलाज बिना पैसों की चिंता के हो सके।

थोड़ी ही देर में गाड़ी सिद्धि के घर के बाहर रुकी।

वो उतरने लगी तो मुस्कुराकर बोली,

"कभी घर पर आइएगा।"


शुभ ने हल्की मुस्कान दी,

"कभी और… अभी आपको आराम करना चाहिए। कल बड़ा दिन है।"

उसके लहजे में फिर वही अनकही चिंता थी।


शुभ वहां से निकल गया।


सिद्धि घर पहुंची तो उसकी माँ दरवाज़े पर ही खड़ी मिल गईं, जैसे उसका इंतज़ार कर रही हों।

"बेटा, आ गई? कैसा रहा इंटरव्यू?"


"अच्छा था, माँ। कल तक पता चल जाएगा," सिद्धि ने कहा, फिर हल्के से डांटते हुए,

"लेकिन आप यहां क्यों खड़ी हैं? आपको आराम करना चाहिए था।"


माँ ने मुस्कुराकर कहा,

"कोई बात नहीं, चलो अब खाना खाते हैं।"


दोनों माँ-बेटी साथ बैठकर खाना खाने लगीं

उधर, शुभ अपने घर पहुँचा।

आम दिनों में वो इतनी जल्दी कभी घर नहीं आता था।

वो तो अक्सर काम में इतना डूबा रहता था कि समय का पता ही नहीं चलता था।

पर आज… आज ऐसा नहीं था।


आज किसी के कारण — या यूँ कहें, एक लड़की की वजह से — वो अपनी आदत तोड़कर जल्दी घर आया था।

उसकी देखभाल करने की अनजानी-सी चाहत उसे खींच लाई थी।

रास्ते भर वो अपने ही ख्यालों में खोया सोच रहा था कि उसके व्यवहार में कितने बदलाव आ गए हैं।


जब से सुबह उसने दिग्विजय अंकल के accident के बारे में सुना था, और जाना था कि सिद्धि ने बिना सोचे-समझे अपनी जान की परवाह किए बिना उन्हें बचा लिया, तब से उसके मन में एक अजीब-सी बेचैनी थी।


"पता नहीं क्यों, लेकिन उसे यूँ अकेले जाने देना सही नहीं लग रहा था…

शायद इसलिए कि उसने अंकल की जान बचाई है…

या शायद इसलिए कि अब वो मुझे अजनबी नहीं लगती…

जाने क्यों, लगता है कि उसकी सुरक्षा भी मेरी ज़िम्मेदारी है।"


यही सोचकर उसने उसे घर छोड़ने का फैसला किया था।

और अब, उसे उसके दरवाज़े तक छोड़कर आने के बाद भी, उसका चेहरा उसकी आंखों से हट नहीं रहा था।


वो फ्रेश होकर अपने कमरे में आया, लैपटॉप खोला और काम करने बैठ गया।

लेकिन स्क्रीन पर लिखे शब्द धुंधले पड़ रहे थे…

मन बार-बार उसी पर लौट रहा था — वो लड़की, जो सुबह से ही उसके ज़ेहन में बस गई थी, और जिसने अनजाने में उसके लिए एक गहरा अहसान कर दिया था।


रात ढलने लगी। शुभ बिस्तर पर लेटा था, लेकिन नींद दूर-दूर तक नहीं थी।

छत को देखते हुए उसने खुद से कहा,

"क्या ये सिर्फ कृतज्ञता है… या कुछ और?

आज ही मिला हूँ, फिर भी लग रहा है जैसे सालों से जानता हूँ।

उसकी आंखों में जो डर और हिम्मत साथ-साथ थी… वो बार-बार याद आ रही है।

न जाने क्यों… मैं चाहता हूँ कि वो सुरक्षित रहे, खुश रहे… और शायद… मेरे आस-पास रहे।"


वो करवट बदलकर लेट गया, लेकिन बेचैनी वहीं थी।

दिल कह रहा था — ये एहसास सिर्फ एक एहसान का बदला नहीं है… कुछ और है, जो धीरे-धीरे अपना असर दिखा रहा है।


आज के लिए इतना ही....