Tum hi to ho - 12 in Hindi Love Stories by Queen of Night books and stories PDF | Tum hi to ho - 12

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Tum hi to ho - 12

अब आगे, 

दिग्विजय जी हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाते हैं।


सिद्धि आत्मविश्वास से कहती है,

"अंकल, ये नौकरी मुझे मेरी काबिलियत के आधार पर दीजिए, सिर्फ इसलिए नहीं कि मैंने आपकी जान बचाई थी।"


दिग्विजय जी उसकी बात सुनकर प्रसन्न होते हैं।

"बिलकुल बेटा," वे कहते हैं, "और इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं है। मुझे खुशी है कि तुमने इस मौके का गलत फायदा नहीं उठाया, बल्कि खुद मेहनत से नौकरी ढूंढ रही हो। ऐसे ईमानदार लोग आजकल बहुत कम मिलते हैं।"


सिद्धि मुस्कुराकर उन्हें धन्यवाद कहती है और सादगी से कहती है,

"अपना ध्यान रखिएगा अंकल।"


वो जाने को पलटती है, तभी दिग्विजय जी उसे रोकते हैं।

"रुको बेटा, ये फॉर्म भर दो, ताकि तुम्हारी डिटेल्स हमारे पास रहें। जरूरत पड़ी तो हम तुमसे संपर्क कर सकें।"


सिद्धि बाहर आती है और लॉबी में बैठकर वह फॉर्म भरने लगती है।


उधर, दिग्विजय जी सीधे शुभ के केबिन की ओर बढ़ते हैं।


शुभ उन्हें देखते ही उठ खड़ा होता है और आदरपूर्वक उन्हें बैठने को कहता है।


असल में थोड़ी देर पहले ही समीर का कॉल आया था, जिसने शुभ को पूरे एक्सिडेंट की जानकारी दी थी। तभी से शुभ बेचैन था।


"अंकल, आप ठीक हैं न?" शुभ चिंता से पूछता है।


"हां, बता दिया न उस तेरे चमचे ने!" दिग्विजय जी हल्के अंदाज़ में कहते हैं।


शुभ मुस्कुरा कर कहता है,

"वो उसकी ड्यूटी है, और आपको सुरक्षित रखना मेरी ज़िम्मेदारी।"


"मैं ठीक हूं," दिग्विजय जी भावुक होकर कहते हैं, "एक प्यारी सी बच्ची ने मेरी जान बचाई है।"


शुभ राहत की सांस लेते हुए कहता है,

"अच्छा हुआ आपको कोई चोट नहीं आई।"


अंकल सिर हिलाकर सहमति जताते हैं।


शुभ फिर पूछता है,

"अंकल, इंटरव्यू कैसा रहा?"


"मुझे तो कोई परेशानी नहीं लगी। बल्कि सच कहूं तो, वो लड़की बिल्कुल परफेक्ट है।" दिग्विजय जी गंभीरता से कहते हैं।


शुभ के चेहरे पर खुशी की एक झलक आती है, लेकिन वो अपनी भावनाओं को छुपाते हुए कहता है,

"अगर आप उसे फाइनल करते हैं तो मुझे भी कोई आपत्ति नहीं है।"


तभी दिग्विजय जी मुस्कराकर कहते हैं,

"वैसे वो वही लड़की है जिसने मेरी जान बचाई थी।"


शुभ चौंकता है,

"क्या सच में अंकल? उन्हें कुछ हुआ तो नहीं?"


फिर उसे एहसास होता है कि वह जल्दी में क्या बोल गया। वो खुद को संभालते हुए कहता है,

"मेरा मतलब… उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर आपको बचाया, ऐसे लोग बहुत कम होते हैं अंकल।"


दिग्विजय जी हां में सिर हिलाते हैं,

"इसलिए तो मैंने कहा कि वो लड़की बहुत खास है।"


"अच्छा सुनो," वे आगे कहते हैं,

"शाम तक मैं तुम्हें फाइनल रिज़ल्ट्स बता दूंगा। हमें कुल पांच एम्प्लॉइज की ज़रूरत है। बाकी इंटरव्यू लेकर अंतिम फैसला लूंगा।"


उधर शुभ ख्यालों में खो जाता है —

कैसे एक लड़की कुछ ही घंटों में उसके दिल के इतने करीब आ गई कि अब वो उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर पा रहा।


उसे अचानक याद आता है —

"सिद्धि शायद अभी बाहर ही होगी... मुझे उससे एक बार मिल लेना चाहिए।"

सिद्धि बाहर निकलकर सड़क पर आती है और इधर-उधर रिक्शा ढूंढ़ने लगती है। धूप हल्की-सी तेज हो चली थी और हवा में एक बेचैनी-सी घुली थी। तभी पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ उसके कानों में गूंजती है।


"सिद्धि..."


वो पलटती है।


सामने शुभ खड़ा था — हल्का सा मुस्कुरा रहा, पर आंखों में कुछ और ही सवाल थे।


दरअसल, इंटरव्यू खत्म हो चुका था। राघव ने शुभ को ये सब पहले ही बता दिया था। जब से शुभ को पता चला कि उसी लड़की — सिद्धि ने — अपनी जान की परवाह किए बिना दिग्विजय जी की जान बचाई, तब से उसका दिल बेचैन था।


वो नहीं समझ पा रहा था कि क्यों, लेकिन वो एक बार सिद्धि से मिलना चाहता था। देखना चाहता था कि वो ठीक है या नहीं… बस अपनी आंखों से।


इसी बेचैनी ने उसे केबिन से बाहर निकलने को मजबूर किया। राघव को कुछ समझ तो नहीं आया, पर इतना जरूर जान गया कि शुभ सीधे सिद्धि के पीछे निकला है।


अब जब शुभ ने उसे यूँ रिक्शा ढूंढ़ते देखा, तो बिना कुछ सोचे उसके पास आ गया।


सिद्धि ने जैसे ही उसकी आवाज़ सुनी, वो पलटी और थोड़ा चौंकी।


"सर आप...? यहां?"

उसने संकोच से पूछा, "कोई काम था क्या?"


शुभ थोड़ा झिझका।

"हाँ वो... नहीं मतलब..."

उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे।


सिद्धि ने फिर पूछा,

"सर, सब ठीक है?"


वो थोड़ा हिचकिचाते हुए बोला,

"कहीं जा रही हो? मैं ड्रॉप कर देता हूं।"


सिद्धि ने तुरंत मना किया,

"नहीं सर, मैं बस घर ही जा रही हूं। रिक्शा मिल जाएगा, चली जाऊँगी।"


शुभ ने नज़रे चुराते हुए कहा,

"मैं भी घर ही जा रहा था... इसलिए पूछा।"


एक पल के लिए दोनों के बीच खामोशी छा गई।


सिद्धि को कुछ अजीब-सा लगा। उसकी निगाहें शुभ के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने लगीं।

"पर सर..." उसने धीरे से कहा।


शुभ हल्की मुस्कान के साथ बोला,

"क्या अब भी हम पर भरोसा नहीं है?"


सिद्धि थोड़ा असहज होकर बोली,

"नहीं-नहीं, आप गलत समझ रहे हैं... ऐसी कोई बात नहीं है..."


"तो चलो," शुभ ने नर्म लहजे में कहा,

"बस एक लिफ्ट है, कोई एहसान नहीं।"


सिद्धि थोड़ी झिझक के बाद चुपचाप साथ चल पड़ती है।


उसके कदम तो आगे बढ़ रहे थे, लेकिन दिल में हलचल थी। शुभ के लिए भी ये सफर सिर्फ ड्रॉप करने तक सीमित नहीं था — वो शायद उस लड़की को समझना चाहता था, जो एक ही दिन में उसके दिल के सबसे कोमल कोने में उतर चुकी थी।

धन्यवाद पढ़ने के लिए उम्मीद है की आप को यह कहानी अच्छी लगे 

Byy everyone