Yamraj ka Nyay - 2 in Hindi Spiritual Stories by Vishal Saini books and stories PDF | यमराज का न्याय - 2

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यमराज का न्याय - 2

उधर, विचित्रदास स्वर्ग पहुँच गया। स्वर्ग का दृश्य बड़ा ही खूबसूरत था। वहाँ फूलों की महक हवा में तैर रही थी। हर तरफ सुंदर अप्सराएँ थीं, जो विचित्रदास की सेवा में लगी थीं। एक अप्सरा ने उसे अमृत का प्याला दिया, और दूसरी ने उसे स्वादिष्ट फल। वहाँ विश्राम के लिए सुन्दर सिंहासन थे विचित्रदास एक स्वर्ण सिंहासन पर बैठा था, अप्सराएँ वाद्ययंत्र बजा रही थीं। विचित्रदास स्वर्ग के आनंद में मदहोश था।

नरक में, चित्रदास को अगले दिन सजा मिलनी थी। उसे उबलते तेल के कड़ाह में डाला जाना था। रात को, जब सजा का समय खत्म हुआ, तो सभी आत्माएँ एक जगह इकट्ठा हुईं। कुछ आत्माएँ रो रही थीं, कुछ चुपचाप बैठी थीं। चित्रदास को गुस्सा आ रहा था। 

उसने कहा, “यह यमलोक का कानून गलत है! मैंने जीवन भर भलाई की, और मुझे यह सजा? और वह पापी विचित्रदास स्वर्ग में मजे कर रहा है? यह अन्याय है!”

उसकी बात सुनकर कई आत्माएँ उसकी ओर देखने लगीं। एक आत्मा ने कहा, "मेरे साथ भी यही हुआ। मैंने तो बस एक अपनी पत्नी से अलग अपनी गर्लफ्रेंड के साथ संबंध बनाए थे, और मुझे यहाँ सजा मिल रही है।”

चित्रदास ने जोश में कहा, “हमें यह अन्याय सहन नहीं करना चाहिए! अगर यमराज का कानून गलत है, तो हमें इसके खिलाफ आवाज उठानी होगी! मैं कहता हूँ, हम हड़ताल करेंगे! कल जो भी यमदूत हमे सज़ा देने आएगा हम सब मिलकर उसका मुकाबला करेंगे।  बोलो है  मंजूर....”

आत्माओं ने एक स्वर में नारा लगाया, “मंजूर है,  हम मुकाबला करेंगे.... हम मुकाबला करेंगे।”

नरक में एक विद्रोह की शुरुआत हो चुकी थी। चित्रदास ने एक ऐसी क्रांति शुरू कर दी थी, जिसने यमराज के दरबार की नींव हिला दी। उसने नरक की सभी आत्माओं को अपने पक्ष में कर लिया था। जैसे ही कोई यमदूत सजा देने आता, सभी आत्मा उसे मिलकर भगा देती।

नरक में पहली बार ऐसा माहौल बना था। यमदूत, जो हमेशा आत्माओं को डराते थे, अब असमंजस में पड़ गए थे। 

चित्रदास के विद्रोह की खबर यमराज के दरबार तक पहुँची। यमराज का भयानक महल, जो पहले से ही डरावना था, अब उनके क्रोध से और भी भयावह हो गया। यमदूत डर से काँप रहे थे, और चित्रगुप्त अपनी विशाल किताब लिए चुपचाप खड़ा था।

यमराज ने गरजते हुए चित्रगुप्त से पूछा, “चित्रगुप्त! यह क्या हो रहा है? नरक में हड़ताल? आत्माएँ विद्रोह कर रही हैं? यह चित्रदास कौन है, जो मेरी व्यवस्था को चुनौती दे रहा है? क्या मेरे दरबार की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी?”

चित्रगुप्त ने अपनी किताब खोली और शांत स्वर में कहा, “हे भगवन, चित्रदास वही आत्मा है, जिसे हमने नरक की सजा दी थी। वह कहता है कि उसने कोई गलत काम नहीं किया, फिर भी उसे नरक मिला। उसने नरक की सभी आत्माओं को अपने पक्ष में कर लिया है और कह रहा है कि आपका कानून गलत है। वे यमदूतों से लड़ने की धमकी दे रहे हैं और नरक की व्यवस्था ठप कर दी है।”

यमराज का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उन्होंने अपने त्रिशूल को जमीन पर पटका, जिससे पूरा दरबार काँप उठा। यमदूतों के चेहरों पर डर साफ दिख रहा था। 

यमराज ने चिल्लाकर कहा, “यह आत्मा मेरे दरबार को चुनौती दे रही है? मैं देखता हूँ, इस चित्रदास में कितनी हिम्मत है!”

यमराज ने अपनी शक्ति से एक चमकदार प्रकाश उत्पन्न किया, और पलक झपकते ही चित्रदास उनके सामने खड़ा था।  

यमराज ने गरजते हुए कहा, “चित्रदास! तूने मेरे नरक की व्यवस्था क्यों खराब की? तुझे सजा दी गई थी, और तू उसे भुगतने की बजाय विद्रोह कर रहा है? क्या तू मेरे न्याय को नहीं जानता?”

चित्रदास डरता हुआ बोला, “भगवन, मैंने जीवन भर भलाई की। मुझे नरक क्यों? और वह विचित्रदास, जो शराबी था, जुआरी था, औरतों के साथ गलत करता था, उसे स्वर्ग क्यों?”

यमराज की भौंहें तन गईं, उन्होंने चित्रगुप्त की ओर देखा। “चित्रगुप्त, इस आत्मा को जवाब दे। इसे बताओ कि इसको सजा क्यों दी गई।”

चित्रगुप्त ने अपनी विशाल किताब देखी और गंभीर स्वर में बोला, “चित्रदास, तूने भले ही अच्छे काम किए, पर तूने भगवान के भक्तों की निंदा की। निंदा सबसे बड़ा पाप है, क्योंकि यह दूसरों के विश्वास को चोट पहुँचाता है। तेरे इस पाप का फल तुझे नरक में मिला।”

चित्रदास ने कहा, "और वह विचित्रदास? उसने तो हर पाप किया, शराब पी, जुआ खेला, चोरी की, औरतों के साथ गलत किया। फिर उसे स्वर्ग कैसे मिला?”

चित्रगुप्त ने शांत स्वर में जवाब दिया, “विचित्रदास का अंतिम समय देख, चित्रदास। उसका बेटा, जो भगवान का भक्त था, उसके मरने से पहले उसके पास था। उसने विचित्रदास के सामने भगवान का नाम लेना शुरू कर दिया था। मरते-मरते विचित्रदास ने भी भगवान का नाम ले लिया, और अगर कोई मरता हुआ आदमी भगवान का पवित्र नाम ले ले तो उसके सारे पाप धुल जाते हैं। भगवान ने प्रसन्न होकर उसके सारे पाप माफ कर दिए।”

चित्रदास अवाक् रह गया। उसने कहा, “एक पल में सारे पाप माफ? क्या यह इतना आसान है?”

यमराज ने अपनी शक्ति से एक चमकदार दृश्य प्रकट किया,  उसमें विचित्रदास के अंतिम पल दिखाई देने लगे। चित्रदास ने देखा विचित्रदास तीव्र बुखार में अपने बिस्तर पर पड़ा था,  उसका चेहरा पीला पड़ चुका था, और उसकी साँसें धीमी हो रही थीं। उसका बेटा उसके पास बैठा था।

बेटा बोला, “पिताजी, आपको दवा दे दी हैं, पिताजी कठिन पल है भगवान का नाम लीजिए। भगवान श्रीकृष्ण का नाम लीजिए वे आपको जल्दी ठीक करेंगे। बोलिए, ‘हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे,  हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे'।”

विचित्रदास ने कमजोर स्वर में कहा, “मैंने तो सारी जिंदगी पाप किए, बेटा। अब क्या फायदा?”

बेटे ने उसका हाथ थामा और कहा, “पिताजी, भगवान दयालु हैं। एक बार सच्चे दिल से उनका नाम लीजिए। तुम्हारे सारे पाप धुल जाएँगे।”

विचित्रदास ने आँखें बंद कीं और काँपते स्वर में कहा, “हरे कृष्ण… हरे कृष्ण …” उसकी साँसें थम गईं, 

यह दृश्य देखकर चित्रदास की आँखें नम हो गईं। उसने धीमी आवाज में कहा, “यह… यह सच है? सिर्फ भगवान का नाम लेने से उसके सारे पाप माफ हो गए?”

चित्रगुप्त ने कहा,हाँ, चित्रदास। भगवान का नाम सबसे पवित्र है। जो सच्चे दिल से उनका नाम लेता है, उसके पाप धुल जाते हैं। तूने भले ही अच्छे काम किए, पर तूने भगवान को नहीं माना। यही तेरा सबसे बड़ा पाप था।”

चित्रदास का सिर झुक गया। वह चुपचाप खड़ा रहा, उसने सोचा, "क्या भगवान का नाम इतना शक्तिशाली है?” उसका गुस्सा अब पछतावे में बदल रहा था।

वह धीरे से बोला, “भगवन, मैंने गलती की। मुझे नहीं पता था कि भक्तों  का अपमान करना इतना बड़ा पाप है। मैंने तो बस यह सोचा कि अच्छे कर्म ही सबकुछ हैं। मुझे माफ कीजिए ”

यमराज ने चित्रदास की ओर देखा। उनकी आँखों में एक करुणा थी। उन्होंने कहा, “चित्रदास, तुझे अपनी गलती का एहसास हुआ है। यह अपने आप में एक बड़ा प्रायश्चित है।”

यमराज ने चित्रगुप्त की ओर देखा और कहा, “चित्रगुप्त, इस आत्मा के कर्मों का हिसाब दोबारा देखो।”

चित्रगुप्त ने अपनी किताब खोली और बोला, “महाराज, चित्रदास के अच्छे कर्म भारी हैं। उसकी निंदा एक पाप था, पर अब उसने सच्चे दिल से माफी माँगी है। उसका प्रायश्चित पूरा हुआ है।”

यमराज ने मुस्कुराते हुए कहा, “चित्रदास, मैं तेरी सजा माफ करता हूँ। तुझे स्वर्ग में स्थान मिलेगा।”

चित्रदास सिर झुकाकर कहा, “धन्यवाद, भगवन मैं अब समझ गया हूँ कि कर्म और भक्ति दोनों जरूरी हैं।”

चित्रदास को यमदूत स्वर्ग ले गए। चित्रदास स्वर्ग में जाकर विचित्रदास से मिला। दोनों स्वर्ग का आनंद लेने लगे।