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🌧️ भाग 1: बारिश की वापसी
तीन दिन बाद फिर बारिश आई थी। जान्हवी अपनी खिड़की से बाहर देख रही थी — वही पुरानी सड़क, वही भीगी हवा… लेकिन इस बार विराज नहीं था।
उसने अपनी स्केचबुक खोली — और एक अधूरी तस्वीर देखी।
> “मैंने उसका चेहरा बनाया… लेकिन मुस्कान नहीं।
> क्योंकि मुझे नहीं पता कि वो मेरे लिए मुस्कराता है या खुद के लिए।”
वो तस्वीर को पूरा करने की कोशिश करती है — लेकिन ब्रश रुक जाता है।
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📷 भाग 2: विराज की चुप्पी
विराज अपने कमरे में बैठा है — कैमरा बंद, लाइट्स बंद, लेकिन दिल खुला हुआ।
वो जान्हवी को मैसेज लिखता है —
> “आज बारिश है… और मैं तुम्हारे बिना भीग रहा हूँ।”
लेकिन वो मैसेज भेजता नहीं।
वो सोचता है — क्या मैं उसे वो कह सकता हूँ जो अब तक नहीं कहा?
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☕ भाग 3: कैफ़े की मुलाक़ात
जान्हवी “किरदार” कैफ़े जाती है — वहाँ विराज पहले से मौजूद है।
वो दोनों एक-दूसरे को देखते हैं — लेकिन कोई मुस्कान नहीं, कोई सवाल नहीं।
> “तुमने मैसेज नहीं किया,” जान्हवी कहती है।
> “तुमने तस्वीर नहीं भेजी,” विराज जवाब देता है।
दोनों चुप हो जाते हैं — लेकिन उस चुप्पी में एक अधूरी बात गूंज रही है।
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🎨 भाग 4: दीवार पर सच्चाई
जान्हवी स्टेशन की दीवार पर जाती है — और एक नई स्केच बनाती है।
इस बार वो एक लड़की है — जो बारिश में खड़ी है, लेकिन उसके हाथ खाली हैं।
विराज वहाँ आता है — और कहता है:
> “तुम्हारे हाथों में कुछ नहीं… लेकिन तुम्हारी आँखों में सबकुछ है।”
जान्हवी जवाब देती है:
> “कभी-कभी जो नहीं कहा जाता… वही सबसे ज़्यादा कहा जाता है।”
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💌 भाग 5: अधूरी बात
विराज जान्हवी को एक चिट्ठी देता है — लेकिन उसमें कुछ नहीं लिखा।
> “ये वो चिट्ठी है जो मैं तुम्हें देना चाहता था… लेकिन शब्द नहीं मिले।”
जान्हवी चिट्ठी को देखती है — और मुस्कराती है।
> “शब्दों की ज़रूरत नहीं… क्योंकि मैं तुम्हारी खामोशी पढ़ना सीख गई हूँ।”
वो चिट्ठी को अपनी स्केचबुक में चिपका देती है — और उसके नीचे लिखती है:
> “Usne jo nahi kaha… wahi sab kuch था.”
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🌧️ भाग 6: वो शाम
बारिश हल्की थी, लेकिन हवा में कुछ भारीपन था।
जान्हवी स्टेशन की दीवार के सामने खड़ी थी — उसकी स्केचबुक में वो चिट्ठी अब भी चिपकी थी, जिसमें विराज ने कुछ नहीं लिखा था।
वो सोच रही थी — क्या खामोशी भी कभी जवाब बन सकती है?
तभी विराज आया — भीगा हुआ, लेकिन उसकी आँखों में कोई तूफ़ान था।
> “तुम्हारी स्केच में जो अधूरापन है… वो मेरी आँखों में उतर आया है।”
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🎨 भाग 7: आँखों की तस्वीर
जान्हवी विराज की आँखों में देखती है — वहाँ कोई मुस्कान नहीं, कोई आँसू नहीं… सिर्फ एक गहराई।
वो कहती है:
> “तुम्हारी आँखों में बारिश है… लेकिन वो बाहर नहीं गिरती।”
विराज जवाब देता है:
> “क्योंकि मैं डरता हूँ… कि अगर वो बह गई, तो तुम चली जाओगी।”
जान्हवी उसकी आँखों की तस्वीर बनाती है — पहली बार बिना चेहरा, सिर्फ आँखें।
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☕ भाग 8: कैफ़े की सच्चाई
दोनों “किरदार” कैफ़े में बैठते हैं — इस बार कोई कॉफी नहीं, सिर्फ खामोशी।
जान्हवी कहती है:
> “तुमने कभी कहा नहीं… लेकिन मैं सुनती रही।”
विराज जवाब देता है:
> “मैंने कभी देखा नहीं… लेकिन तुम मेरी तस्वीर बनती रही।”
वो दोनों एक-दूसरे की तरफ देखते हैं — और पहली बार, कोई डर नहीं होता।
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📷 भाग 9: तस्वीर जो सब कह गई
विराज जान्हवी को एक तस्वीर देता है — एक लड़की, बारिश में भीगती हुई, स्केचबुक पकड़े।
जान्हवी चौंकती है —
> “ये मैं हूँ… लेकिन ये तस्वीर मैंने कभी नहीं देखी।”
विराज कहता है:
> “मैंने तुम्हें पहली बार देखा था… और उसी पल मुझे लगा था कि मेरी तस्वीरें अब तुम्हारे बिना अधूरी हैं।”
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🌌 भाग 10: इज़हार
जान्हवी स्टेशन की दीवार पर एक नई स्केच बनाती है — एक लड़का और लड़की, दोनों भीगते हुए, लेकिन उनके बीच कोई छतरी नहीं।
वो लिखती है:
> “Uski aankhon mein baarish thi… aur meri स्केच में इश्क़।”
विराज उसके पास आता है — और पहली बार कहता है:
> “मैं तुमसे प्यार करता हूँ… लेकिन तुम्हारी खामोशी से ज़्यादा।”
जान्हवी मुस्कराती है —
> “और मैं तुम्हारी आँखों से ज़्यादा… तुम्हारी तस्वीरों से प्यार करती हूँ।”
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✨ एपिसोड का समापन
- एक इज़हार जो शब्दों से नहीं, आँखों से हुआ
- एक तस्वीर जो सबकुछ कह गई
- और एक दीवार — जहाँ अब सिर्फ रंग नहीं, रिश्ते भी थे
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Writer: Rekha Rani