प्रस्तावना ✧
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲
> “योग भीतर का मौन है —
और संप्रदाय बाहर की भाषा।”
मनुष्य की सबसे प्राचीन खोज यही रही है:
मैं कौन हूं?
मैं कहाँ से आया हूं?
क्या ईश्वर बाहर है — या मैं ही उसका प्रतिबिंब हूं?
योग इसी मौलिक प्रश्न से जन्मा —
एक खोज, एक प्यास,
जिसमें शब्द समाप्त हो जाते हैं
और मौन बोलने लगता है।
लेकिन जैसे-जैसे यह मौन गहराने लगा,
कुछ लोग डर गए —
क्योंकि जहाँ मौन है, वहाँ कोई गुरु नहीं,
वहाँ कोई धर्म नहीं,
वहाँ कोई संस्था नहीं।
तभी संप्रदायों ने जन्म लिया —
मौन को शब्दों में बाँधने का प्रयास शुरू हुआ।
अनुभव को मत में बदला गया,
और योग को धर्म बना दिया गया।
ध्यान को विधि बना दिया गया,
और आत्मा को संस्था के नीचे दबा दिया गया।
१–१० | योग का सार
1. योग वह मार्ग है जहाँ "तू" और "वह" एक हो जाते हैं।
संप्रदाय वह है जहाँ तू और वह अलग रहते हैं।
2. योग स्वयं से मिलन है,
संप्रदाय दूसरों से दूरी बनाए रखता है।
3. योग की यात्रा मौन से शुरू होती है,
संप्रदाय शब्दों से।
4. योग आत्मा से एकत्व की ओर ले जाता है,
संप्रदाय बाहरी तत्वों पर निर्भर करता है।
5. योग चेतना का जागरण है,
संप्रदाय विश्वास का निर्माण।
6. योग में कोई गुरु नहीं,
सबकुछ भीतर है।
7. संप्रदाय में गुरु है,
सबकुछ बाहर की ओर निर्देशित है।
8. योग सत्य की खोज है,
संप्रदाय सत्य की परिभाषा देता है।
9. योग अनुभव के बिना शब्दों को नकारता है,
संप्रदाय शब्दों के बिना अनुभव को नकारता है।
10. योग अनंतता की ओर बढ़ता है,
संप्रदाय सीमितताओं को स्थापित करता है।
११–२० | योग और संप्रदाय के उद्देश्य
11. योग केवल आत्मज्ञान है,
संप्रदाय व्यक्ति को धर्म के ढांचे में बांधता है।
12. योग का उद्देश्य — मौन और समाधि,
संप्रदाय का उद्देश्य — विश्वास और पूजा।
13. योग में कोई मंदिर नहीं,
क्योंकि मंदिर तू है।
14. संप्रदाय में मंदिर है,
क्योंकि ईश्वर कहीं बाहर है।
15. योग में गुरु से परे सत्य है,
संप्रदाय में गुरु सत्य का प्रमाण बनता है।
16. योग के मार्ग में कोई दुविधा नहीं,
संप्रदाय की राह में कभी कोई द्वार बंद नहीं होता।
17. योग एकता की ओर ले जाता है,
संप्रदाय भेदभाव की रेखाएं खींचता है।
18. योग प्रेम की भाषा है,
संप्रदाय भय और आस्था की भाषा है।
19. योग तुझे तेरे भीतर की शक्ति दिखाता है,
संप्रदाय तुझे तुझे स्वयं से दूर करता है।
20. योग ने कहा "तू स्वयं ईश्वर है",
संप्रदाय कहता है "ईश्वर तुझसे अलग है।"
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२१–३० | योग का मार्ग:
21. योग में कोई विरोध नहीं,
केवल मिलन है।
22. योग की सबसे बड़ी सच्चाई —
तू और मैं एक ही हैं।
23. योग शांति का मार्ग है,
संप्रदाय संघर्ष का।
24. योग में किसी गुरु की आवश्यकता नहीं,
क्योंकि आत्मा ही सर्वोच्च गुरु है।
25. संप्रदाय में गुरु एक माध्यम है,
क्योंकि तू सच्चे गुरु से अनजान है।
26. योग में किसी पूजा की आवश्यकता नहीं,
क्योंकि ध्यान ही पूजा है।
27. संप्रदाय में पूजा और कर्मकांडी विधियाँ हैं,
जो तुम्हें बाहर की तरफ खींचती हैं।
28. योग अपने भीतर के शांति और प्रेम को महसूस करने का रास्ता है,
संप्रदाय तुझे बाहरी समाज में प्रेम और शांति खोजने की बात करता है।
29. योग में कोई 'अच्छा' और 'बुरा' नहीं,
केवल सत्य और असत्य है।
30. संप्रदाय अच्छाई और बुराई के बीच विभाजन करता है,
और तुझे एक निश्चित आदर्श में बाँधता है।
३१–४० | धर्म के दृष्टिकोण से
31. योग तुझे हर बंधन से मुक्त करता है,
संप्रदाय तुझे बंधनों में बाँधता है।
32. योग प्रेम के मार्ग पर चलता है,
संप्रदाय भय की नींव पर खड़ा है।
33. योग में कोई पूजा नहीं,
क्योंकि तू स्वयं ईश्वर है।
34. संप्रदाय में पूजा होती है,
क्योंकि ईश्वर बाहर है।
35. योग में 'धर्म' का कोई अस्तित्व नहीं,
क्योंकि धर्म तो केवल तुझे भीतर से जोड़ने की एक लहर है।
36. संप्रदाय में धर्म एक व्यवस्था है,
जो तुझे बाहर की ओर निर्देशित करता है।
37. योग का उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार है,
संप्रदाय का उद्देश्य बाहरी अनुशासन और आदेश है।
38. योग आत्मा का मुक्त रूप है,
संप्रदाय का उद्देश्य रूप और नियमों में बंधा हुआ है।
39. योग में अहंकार का कोई स्थान नहीं,
संप्रदाय में अहंकार की पुष्टि होती है।
40. योग ज्ञान की खोज है,
संप्रदाय विश्वास और आस्था की आवश्यकता बताता है।
४१–५० | आध्यात्मिक स्वतंत्रता
41. योग केवल एक अनुभव है,
संप्रदाय केवल एक विश्वास।
42. योग की सच्चाई मौन में बसी है,
संप्रदाय की सच्चाई शब्दों में बसी है।
43. योग एकता और शांति का संदेश देता है,
संप्रदाय अलगाव और संघर्ष को बढ़ावा देता है।
44. योग में हर व्यक्ति स्वीकृत है,
संप्रदाय में कोई विशेष वर्ग निर्धारित है।
45. योग का मार्ग सहज और स्वाभाविक है,
संप्रदाय का मार्ग कठोर और नियंत्रित है।
46. योग में कोई भ्रम नहीं,
संप्रदाय में भ्रम और विश्वास की गहरी गुफाएं हैं।
47. योग अनुभव के द्वारा जागृति देता है,
संप्रदाय शास्त्रों और रिवाजों के द्वारा।
48. योग अनन्त सत्य की ओर मार्गदर्शन करता है,
संप्रदाय बाहरी सत्य के अनुकरण के लिए बाध्य करता है।
49. योग जीवन के हर पहलू में सहजता लाता है,
संप्रदाय जीवन को अनुशासन और नियमों में बांधता है।
50. योग तुम्हें शुद्ध आत्मज्ञान प्रदान करता है,
संप्रदाय तुम्हें समाज में धर्म को निभाने की आदत सिखाता है।
५१ | अंतिम सूत्र
51. "योग स्वयं में एक अनुभव है —
संप्रदाय बाहरी नियंत्रण का नाम है।
योग आत्मा का सीधा मार्ग है,
संप्रदाय आत्मा से दूर जाने का।"
अज्ञात अज्ञानी