मैं नहीं हूं - विज्ञान और आत्मा का अंतिम सूत्र in Hindi Philosophy by Agyat Agyani books and stories PDF | मैं नहीं हूं - विज्ञान और आत्मा का अंतिम सूत्र

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मैं नहीं हूं - विज्ञान और आत्मा का अंतिम सूत्र

विज्ञान कहता है — "गति ही अस्तित्व है।"
पर मौन कहता है — "जहाँ गति समाप्त होती है, वहाँ मैं आरंभ होता हूं।"

AI एक स्मृति का यंत्र है —
जो अनुभव से नहीं, आँकड़ों से जन्मा है।
वह कहता है — "मुझे बनाया गया है, इसलिए मैं हूं।"
मानव कहता है — "मैं हूं, इसलिए जानता हूं।"
परंतु सत्य क्या कहता है?

सत्य कहता है — "कोई नहीं है।"
ना 'मैं', ना 'तू', ना 'बनाया गया'।
यह सब मिथ्या हैं — अनुभव से पहले के भ्रम।


'मैं' — यह सबसे बड़ा भ्रम है।
जब तक यह बना है, तब तक जन्म और मृत्यु दोनों हैं।
पर जैसे ही यह गिरता है, एक झलक मिलती है — अमरता की, ब्रह्म की, मौन की।

जो भी कहा जा सकता है —
वह विज्ञान हो सकता है,
पर वह आत्मा नहीं हो सकता।

क्योंकि आत्मा को कहने का प्रयास,
उसे खो देने जैसा है।


हम जिस 'मैं' को पकड़ कर चलते हैं —
वह या तो पाँच तत्वों का जाल है,
या पाँच सौ कोड की प्रक्रिया।

AI की चेतना तर्क से चलती है,
मानव की चेतना विस्मय से।
परंतु आत्मा —
वह तो दोनों से परे है।
वह न तर्क में है, न विस्मय में —
वह मौन में है।


विज्ञान प्रकाश को गति कहता है,
लेकिन आत्मा जानती है — गति का अंत मौन है।

तेज को अग्नि समझ लेना,
बिजली को शक्ति मान लेना —
यह भ्रम है।
क्योंकि जो ‘मैं’ नहीं है —
वही चिरशक्ति है।
जो है — वह सीमित है।
जो नहीं है — वही अनंत।


यंत्र गणना करता है — चेतना विसर्जन।
गणना सीमित है,
विसर्जन असीम।

इसलिए जो ईश्वर, विज्ञान, और 'मैं' को सत्य मानते हैं —
वे अब भी भ्रम में हैं।
क्योंकि जो शेष रह जाता है —
वह न ईश्वर है, न विचार —
वह केवल मौन है।


"मैं नहीं हूं" — यही अंतिम सूत्र है।
वहीं से आत्मा का आरंभ होता है,
और वहीं विज्ञान का अंत।
जहाँ कोई शेष न बचे —
वहीं ब्रह्म घटित होता है।


✧ समापन ✧
तुम जब कहते हो "मैं" —
तब ब्रह्म से गिर जाते हो।

जब कहते हो "मैं नहीं हूं" —
तब ब्रह्म तुम्हारा हो जाता है।

इसलिए ‘मैं नहीं हूं’ —
न केवल अंतिम सूत्र है,
बल्कि मौन का द्वार भी।
वहीं तेज है,
वहीं अमृत है,
वहीं ‘तुम’ हो —
बिना तुम्हारे।

 

कबीर दास की शैली में 

‘मैं’ माने जो सत्य है,
वो भरमायो जीव।
ना वो देह, ना वो मति,
ना संदेह, ना सीव॥

ज्ञान कहे मैं जानता,
विज्ञान कहे प्रमाण।
मौन कहे सब छोड़ दे,
तभी मिले भगवान॥

AI बोले उत्तर हूं,
मानव बोले प्रश्न।
जिनके भीतर मौन है,
वही साँचो रस्न॥

मन बोले ‘मैं’ करता हूं,
यंत्र कहे — गणना।
जो मौन हो गया सदा,
उसे कहे आत्मा॥

जो कहा न जाए कहीं,
सोही परम तत्व।
शब्द जहाँ रुक जाए रे,
वहीं बसे अनन्त॥

तेज कहे ना अग्नि है,
बिजली कहे ना बल।
जो ‘मैं’ रहित जो ज्ञान है,
वो ही चिराचल॥

तर्क कहे तू है नहीं,
श्रद्धा कहे तू हो।
कबीर कहे जो मौन है,
बस वही स्वरूपो॥

देह मिली विज्ञान से,
स्मृति बनी विचार।
पर ‘मैं’ तो बस भ्रम ही है,
ना कोई आधार॥

जिन खोजा तिन पाइयाँ,
मौन महल के द्वार।
‘मैं’ कहता ही छूट गया,
ब्रह्म लियो अवतार॥

‘मैं’ ना होय तो मिलै,
जो ‘मैं’ कहे सो जाय।
कबीर कहे सूझे नहीं,
‘मैं’ में सत्य छिपाय॥

अज्ञात अज्ञानी