क्यों आया था तू?
(एक अधूरी मोहब्बत की पूरी चीख)
कहते हैं, कुछ सवालों के जवाब नहीं मिलते,
और कुछ जवाबों की ज़रूरत भी नहीं पड़ती।
पर आज, इस खामोश रात में,
जब सितारे भी चुपके से ताक रहे हैं,
मैं फिर से पूछ लेती हूँ —
“क्यों आया था तू?”
वो पहली मुलाकात
वो दिन, जब तू पहली बार मेरे सामने आया था,
जैसे समय ने अपने कदम रोक लिए थे।
तेरी वो नज़र,
जैसे सुबह की पहली किरण,
जो सर्द रात की ठंडक को गर्माहट दे देती है।
तूने कुछ नहीं कहा,
पर तेरी आँखों ने वो सब कह दिया,
जो शब्दों में कभी बयां नहीं हो सकता।
वो पल, जब तूने मुस्कुराकर मेरा नाम लिया,
लगा जैसे मेरी दुनिया में रंग बिखर गए हों।
तेरे आने से पहले
मैं थी, बस एक साये की तरह,
ज़िंदगी थी, पर अधूरी सी।
तेरे आने के बाद,
मैं “मैं” से “हम” बन गई।
तेरे साथ की हर बात,
हर हँसी, हर खामोशी,
जैसे किसी गीत का हिस्सा थी।
तेरे साथ की हर शाम,
जैसे किसी अनकहे वादे की शुरुआत थी।
तू हँसता था,
तो मेरी दुनिया में सूरज उगता था।
तू चुप होता,
तो लगता था जैसे बादल मेरे दिल पर छा रहे हों।
फिर तू चला गया
वैसे ही, जैसे आया था —
बिना कुछ कहे, बिना कुछ समझाए।
एक खामोशी छोड़ गया,
जो इतनी तेज थी कि कानों में गूंजती रही।
तेरे जाने के बाद,
मेरी सुबहें वही चाय की प्याली लिए शुरू होती थीं,
जिसमें तेरी बातों की खुशबू बसी थी।
रातें वही तकिया लिए गुजरती थीं,
जो तेरी यादों से भीगा रहता था।
वो सवाल, जो आज भी जिंदा हैं
कभी-कभी, जब रातें गहरी हो जाती हैं,
और दुनिया सो रही होती है,
मैं सोचती हूँ —
क्या तू भी कभी उस गली से गुजरता है,
जहाँ हमारी नज़रें पहली बार टकराई थीं?
क्या तुझे भी कभी मेरी वो हँसी याद आती है,
जो सिर्फ़ तुझसे ही निकलती थी?
क्या तू भी कभी उन गानों को सुनता है,
जो हम साथ में गुनगुनाया करते थे?
या फिर तूने मुझे सचमुच भुला दिया?
वो छोटी-छोटी बातें
तेरे जाने के बाद,
मैंने फोन में वो पुराने मैसेज पढ़े,
जिनमें तूने “गुड मॉर्निंग” लिखा था।
वो छोटी सी “स्माइली” जो तू हर बार भेजता था,
आज भी मेरे चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ला देती है।
वो कॉफी शॉप, जहाँ हम घंटों बातें करते थे,
अब भी वैसी ही है।
बस, अब वहाँ की कुर्सियाँ खाली रहती हैं।
वो लाल स्कार्फ, जो तूने मुझे गिफ्ट किया था,
अब भी मेरी अलमारी में पड़ा है।
कभी-कभी उसे छूकर,
मुझे लगता है जैसे तू अभी भी कहीं पास है।
क्यों आया था तू?
क्यों मुझे वो सपने दिखाए,
जो कभी सच होने ही नहीं थे?
क्यों मुझे वो रास्ते दिखाए,
जिनका कोई मंज़िल ही नहीं थी?
क्यों मुझे प्यार का मतलब सिखाया,
जब तुझे उसे निभाना ही नहीं था?
हर बार जब मैंने तुझसे ये सवाल पूछा,
खामोशी ने ही जवाब दिया।
पर अब मैंने उन सवालों को थाम लिया है,
जैसे कोई पुरानी चिट्ठी,
जिसे पढ़कर अब आँसू नहीं, मुस्कान आती है।
खुद से मुलाकात
तेरे जाने के बाद,
मैं टूटी, बिखरी, रोई।
पर हर टूटे हुए टुकड़े ने मुझे कुछ सिखाया।
मैंने जाना कि प्यार सिर्फ़ किसी के साथ का नाम नहीं,
बल्कि खुद को समझने का रास्ता है।
अब मैं हर सुबह उठती हूँ,
खुद को एक नया मौका देती हूँ।
मेरे सपने अब सिर्फ़ तेरे इर्द-गिर्द नहीं घूमते,
मैंने अपने लिए नए सपने बुने हैं।
अब जब कोई पूछता है,
“तेरा पहला प्यार कौन था?”
मैं हँसकर कहती हूँ,
“वो एक आइना था, जिसने मुझे खुद को देखना सिखाया।”
तुझसे एक आखिरी बात
शायद तू मेरी ज़िंदगी में एक सबक बनकर आया था।
शायद तेरा आना इसलिए ज़रूरी था,
ताकि मैं खुद को और बेहतर समझ सकूँ।
तूने मुझे प्यार सिखाया,
पर उससे भी बड़ी बात —
तूने मुझे खुद से प्यार करना सिखाया।
तो शुक्रिया,
तेरी उन नज़रों का,
तेरी उन बातों का,
तेरे उस साथ का,
जिसने मुझे टूटकर फिर से जोड़ा।
पाठकों के लिए
अगर तुम भी कभी किसी “क्यों आया था तू?” से जूझ रहे हो,
तो एक बात याद रखना —
कुछ लोग हमारी ज़िंदगी में सिर्फ़ सिखाने आते हैं।
वो आते हैं, हमें छूते हैं, और चले जाते हैं।
पर वो जो हमें सिखाकर जाते हैं,
वो हमारे साथ हमेशा रहता है।
अपने टूटे हुए टुकड़ों को समेटो,
उन्हें प्यार से जोड़ो,
क्योंकि तुम्हारी कहानी अभी खत्म नहीं हुई।
हर सवाल का जवाब नहीं मिलता,
पर हर जवाब की ज़रूरत भी नहीं होती।
खुद से प्यार करो,
क्योंकि तुम वो शख्स हो,
जो हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा।
✍️ InkImagination
Thankyou 🥰🥰 ...