"---मतलब ----" ये एक सत्य कहानी है। जीवन को इतना तो काबिल कर लो, जो तुम्हारी काबलियत हर शक्श को पता चले।
दुनिया मतलबी है, बाद मे वो यही कह देती है अगर बात नहीं सुनी " किस गुमान मे है, आज कल कहा सुनता है आपनी बात " तुम्हे बस तोड़े गी। ये दुनिया, जख्मो पे नमक छिड़के गी।।
मंदिर के कपाट अभी खुले ही थे, समय होगा 6 वजे का। सुबह रोज ऐसी ही चढ़ती है, ऐसे ही दिन डल जाता है। कितना आपना पन था लोगों मे, आज मोबाइल ने सब कुछ छीन लिया.... रिश्तेदार भी बस नाम के ही रह गए, कारण बस यही है हम किसी से मिलना पसंद ही नहीं करते। मतलब है तो दो बाते कर लेगे वो भी यही, " तुम्हारा तिविटर पर अकॉउंट कैसे चल रहा है "
आगे जवाब " चार तो है भाई, पाँचवा बनाने का सोच रहा हूँ.... बस यही पे खत्म बातचीत।
कोई कया करे। 2025 चल रहा है। सब ऐसे घरो मे रविवार को बैठे है मोबाइलो पर जैसे कोई आपना रोजगार चला रहे हो। चाये कब ठंडी हो गयी कोई पता ही नहीं चला, गर्म गर्म कब जुबा साड़ ली, पता ही नहीं चला,
कभी जुदा तो करो, इस नामुराद बीमारी को। जो भाई भाई और भाभी को भी रिश्ते मे कड़वा बना रही है।
शहर ऐसे घूम सुम सा हुआ बैठा है... देखो चलो साथ मेरे
जैसे कर्फू लगा हो.... लोग जैसे आपने फ़र्ज़ भूल ही गए लगे। ऐसे कह लो, जैसे हम इतने आरामदायक हो गए है
ये सब मोबाइल का ही चक्रविवो है।
मतलब के बिना कोई किसी से बात ही नहीं करता, हम कैसे भूल गए, वो सब जो पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा था
मकान कच्चे थे, लेकिन उस वक़्त मन सच्चे थे। सथों मे बैठे साथिओं साथ लम्बी लम्बी बाते करना, कितना स्वाबिक लगता था... चार घरो मे पता होता था, कि बलकार सिंह के आज सब्जी ये बनी थी।
कितना मिलवर्तन था.... शादी वाले दिन, सब लड़की की शादी मे जुड़ जाते थे।
कहते थे, "अमरो यहां बेटी तुम जा रही हो, उसका सुसर मेरे पापा से इकठे पढ़े थे " फिर ये बात सुन कर सब हस पढ़ते थे।
आज वो हासा कहा चला गया। मतलब ही सब के मुँह मे भरा रहता है। "कालू वफादार है, पर वो पड़ोसी की भी टांग नहीं पकड़ ता.... कयो कि वो समझता है, कि मै एक वफ़ादार कुत्ता हूँ। " पर आज --------------------------------
भाई भाई पर, दोस्त दोस्त पर, वाइफ आपने पति पर पीठ पीछे छुरा घोपता... किसलिए मतलब पूरा करना था, कर लिया। जमीन का बटवारा आज सबसे पहले होता है... इसमें कोई बाबे की इज्जत नहीं समझता... चुस्ती मकारी,
ये सब आज की देन है। तुम कैसे बनना चाहते हो, ये आज की दुनिया के धक्को पर छोड़ दो। दुपहर की धुप का अर्थ होता था पहले कोई, आज बस मोबाइल से फुरसत हो तो बताये तुम्हे कोई । तुम जान जाओगे जल्दी ही, ये जो रिश्ते सिमट कयो गए... इसके पीछे मतलब ही है और कुछ नहीं।
("चलदा ") --------------------- नीरज शर्मा --------