Chapter 1 – “गाँव का निकम्मा मास्टर”
गर्मी की तपती दोपहर थी। गाँव के चौराहे पर कुछ लोग चौपाल जमाए बैठे थे। सबकी बातें एक ही तरफ घूम रही थीं – प्रशांत मास्टर।
“अरे सुना तुमने? पंचायत ने अल्टीमेटम दे दिया है!”
“हाँ भाई! अगर सात दिन में उसके स्कूल में दस बच्चे नहीं हुए, तो दरवाज़ा बंद!”
“हहह… कौन भेजेगा बच्चा उस निकम्मे के पास? अपने टाइम का खुद मास्टर फेल!”
“कहते हैं वो बच्चों को मार्शल आर्ट्स सिखाएगा! अरे खुद कभी काबिल था क्या?”
भीड़ में हँसी गूँज उठी।
गाँव के सिवान के पास, एक जर्जर स्कूल के बरामदे में प्रशांत चुपचाप बैठा था। उसकी आँखों में गुस्सा भी था और लाचारी भी। चारों तरफ धूल उड़ी हुई थी, टूटी-फूटी खिड़कियाँ, और छत से टपकते पानी के निशान। यही उसकी दुनिया थी।
प्रशांत (सोचते हुए):
“कभी सपना था कि इस गाँव से चैंपियन्स निकलेंगे। लेकिन आज… लोग नाम लेकर हँसते हैं। क्या यही मेरी किस्मत है?”
इतने में स्कूल का दरवाज़ा खुला। अंदर आया रघुनाथ मास्टर, उसी के साथी, जो हमेशा ताना मारने का मौका नहीं छोड़ता था।
“अरे प्रशांत भाई!” – रघुनाथ ने व्यंग्य से कहा – “पंचायत का फैसला सुना? या बताऊँ?”
प्रशांत ने कुछ नहीं कहा। उसने बस निगाहें झुका लीं।
“सुन लो… अगर सात दिन में दस बच्चे नहीं, तो ये स्कूल बंद। और हाँ, नया मास्टर आएगा। काबिल मास्टर।”
उसने ज़ोर से हँसी।
“तुम्हारे लिए तो अच्छा है… कम से कम मजाक बनना बंद होगा!”
रघुनाथ चला गया। लेकिन उसके शब्द तीर की तरह चुभ गए।
प्रशांत गुस्से में मुट्ठी भींचता है।
“ये लोग मुझे निकम्मा कहते हैं। लेकिन मैं हार नहीं मानूँगा। चाहे कुछ भी हो जाए।”
लेकिन अंदर से एक आवाज़ आई –
“क्या कर पाओगे तुम, प्रशांत? खुद को संभाल नहीं पाए, दूसरों को क्या सिखाओगे?”
उस रात, प्रशांत अकेला स्कूल में बैठा रहा। बाहर तूफ़ान था, बिजली चमक रही थी। वो अपने दिल पर हाथ रखकर बोला –
“अगर भगवान है न… तो मुझे एक आखिरी मौका दे। एक मौका… सबको साबित करने का।”
तभी अचानक उसके सीने में तेज़ दर्द उठा।
वो ज़मीन पर गिर पड़ा।
साँसें भारी हो गईं।
आँखों के सामने अँधेरा छा गया।
आखिरी सोच –
“शायद… यही… अंत है…”
अचानक…
अंधेरे में एक आवाज़ गूँजी:
"तुम्हें मौका चाहिए…? तो लो… लेकिन ये दुनिया अब वैसी नहीं रही, जैसी तुमने छोड़ी थी।"
बिजली चमकी।
आँखें खुलीं l
लेकिन ये वही प्रशांत नहीं था।
Chapter 2 – “अंतिम रात और नया जीवन”
अँधेरा… सन्नाटा… और पानी की हल्की आवाज़।
प्रशांत को लगा कि वो किसी गहरे कुएँ में गिर रहा है। उसके कानों में एक अजीब सी आवाज़ गूँज रही थी—
"तुम्हें एक मौका चाहिए था… मैं तुम्हें दूँगा। लेकिन बदले में… तुम्हें मेरा अधूरा काम पूरा करना होगा।"
प्रशांत ने आँखें खोलने की कोशिश की, लेकिन कुछ दिखा नहीं।
"कौन है तू…? और ये कहाँ हूँ मैं…?"
आवाज़ गहरी और गंभीर थी।
"तुम्हारी दुनिया खत्म हो चुकी है… अब तुम मेरी दुनिया में हो। एक दुनिया जहाँ ताकत ही सब कुछ है। जहाँ मास्टर वही जो दूसरों को झुका दे।"
फिर अचानक रोशनी की चमक हुई…
प्रशांत ने आँखें खोलीं।
वो स्कूल के बरामदे में पड़ा था। बाहर सूरज की किरणें फूट रही थीं।
उसने अपने सीने को छुआ। धड़कन तेज़ थी, लेकिन ज़िंदा था।
"ये… मैं मर नहीं गया?"
लेकिन जैसे ही उसने हाथों को देखा… कुछ अलग लगा।
उसके अंदर एक अजीब सी शक्ति बह रही थी।
उसकी यादों के साथ कुछ नई यादें भी जुड़ गईं।
किसी दूसरे इंसान की यादें।
किसी ऐसे योद्धा की, जिसने सैकड़ों लड़ाइयाँ लड़ी थीं… और सब जीती थीं।
प्रशांत (सोचते हुए):
“ये क्या हो रहा है… ये यादें… ये तलवारें… ये जानवर… ये उड़ते हुए लोग… ये सब कहाँ से आया?”
तभी दरवाज़े पर आवाज़ आई।
“अरे मास्टर जी… जिंदा हो?”
दरवाज़े पर खड़ा था रघुनाथ मास्टर।
“सुना था कल तू मर गया… पंचायत वाले तो मिठाई बाँटने ही वाले थे!”
वो हँसते हुए चला गया।
प्रशांत ने गहरी साँस ली।
"तो ये मौका है… ये वो चांस है जिसकी मैंने दुआ माँगी थी।"
लेकिन दिमाग में एक और आवाज़ गूँजी।
"याद रखो… ये सिर्फ़ ताकत की दुनिया है। जो कमजोर है… वो मिट जाता है।"
प्रशांत उठ खड़ा हुआ।
उसने आईने में खुद को देखा।
वो वही था… लेकिन आँखों में अलग चमक थी।
अचानक बाहर पंचायत का आदमी आया।
“प्रशांत मास्टर! पंचायत ने कहा है… सात दिन में दस छात्र नहीं, तो स्कूल बंद। समझे?”
प्रशांत मुस्कुराया।
"पहले मैं डरता था… लेकिन अब? खेल शुरू होता है।"
Chapter 3 – “एक भी छात्र नहीं”
सुबह का वक्त था। गाँव के चौक पर हलचल शुरू हो चुकी थी। लोग अपने-अपने काम में व्यस्त थे, लेकिन कुछ निगाहें अभी भी प्रशांत पर टिकी हुई थीं।
वो साफ कपड़े पहनकर निकला था, चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान लिए।
प्रशांत (सोचते हुए):
"पहले के प्रशांत ने हार मान ली थी… लेकिन मैं नहीं मानूँगा। अब इस दुनिया के खेल को मैं खेलूँगा… अपने नियमों पर।"
उसने चौक पर बच्चों के माता-पिता को इकट्ठा किया।
“सुनिए सब लोग! मेरे स्कूल में Martial Arts की क्लास शुरू हो रही है। बच्चों का शरीर मजबूत होगा, दिमाग तेज़ होगा, और…”
भीड़ में से आवाज़ आई –
“अरे छोड़ो मास्टर! पहले खुद का हाल देखो।”
“सात दिन का टाइम है न? फिर बोरिया-बिस्तर बाँध के निकलना।”
हँसी के फव्वारे छूट गए।
प्रशांत ने मुस्कुराकर सबको देखा।
"ये खेल आसान नहीं होगा। लेकिन अब मैं पहले वाला बेबस मास्टर नहीं।"
उसने बच्चों से बात करने की कोशिश की।
“अर्जुन! तू क्यों नहीं आता? तुझे तो ताकतवर बनना था न?”
अर्जुन – एक 14 साल का दुबला-पतला लड़का, हल्की लंगड़ाहट के साथ बोला –
“माँ मना कर रही है, मास्टर। कहती है लड़ाई-झगड़े का काम नहीं करना।”
उसके पीछे से आवाज़ आई –
“और वैसे भी, तेरा कज़िन शहर के Royal Academy में है। तू क्या कर लेगा?”
भीड़ में से अर्जुन का कज़िन मुस्कुराता हुआ निकला – लंबा, गठीला, चमकदार कपड़ों में।
“अरे मास्टर जी, आपसे कौन सी जीतने की उम्मीद रखेगा?”
लोग फिर हँसने लगे।
प्रशांत के अंदर कुछ उबल रहा था।
"पहले होता, तो चुप रह जाता… लेकिन अब? नहीं।"
उसने अर्जुन को देखा –
“सुनो अर्जुन। अगर हिम्मत है न, तो कल सुबह मेरे स्कूल आना। बाकी सब मैं संभाल लूँगा।”
अर्जुन चौंक गया।
लेकिन दिन भर कोशिश के बावजूद…
एक भी बच्चा नहीं आया।
शाम तक प्रशांत अकेला स्कूल के बरामदे में बैठा था।
सूरज ढल रहा था।
चारों तरफ सन्नाटा।
अचानक उसके सामने पुरानी लकड़ी का बोर्ड हिलने लगा।
उसकी नज़र बोर्ड से होते हुए जंगल की तरफ गई।
वहाँ… पेड़ों के पीछे… दो चमकती आँखें।
जैसे कोई जानवर उसे घूर रहा हो।
लेकिन ये आम जानवर नहीं था।
उसके चारों तरफ नीली रोशनी की लकीरें थीं।
प्रशांत ने गहरी साँस ली।
"तो ये वही दुनिया है… जो मैंने देखी थी… आसमान में उड़ते लोग, और ये रोशनी… ये Magic Beast है।"
उसके होंठों पर हल्की मुस्कान आई।
"खेल अब और मजेदार होने वाला है।"
Chapter 4 – “कमजोरों का बैच”
अगली सुबह।
गाँव में खबर फैल गई थी – “प्रशांत मास्टर बच्चों को ट्रेन करने निकले थे, लेकिन कोई नहीं आया।”
लोगों की हँसी और तेज़ हो गई थी।
चौक पर खड़े कुछ लोग कह रहे थे –
“अब देखना, सात दिन में ये मास्टर अपना बोरिया-बिस्तर बाँधकर जाएगा।”
“कौन भेजेगा बच्चा उस निकम्मे के पास?”
इसी बीच, स्कूल के बाहर अचानक चार साये दिखे।
चारों बच्चे… और उनके साथ आया रघुनाथ मास्टर।
उसके चेहरे पर चालाकी भरी मुस्कान थी।
“अरे प्रशांत भाई! ये देखो… तुम्हारे लिए चार छात्र। तुम्हारी किस्मत खुल गई!”
प्रशांत ने उन चार बच्चों को देखा।
पहला – अर्जुन, वही लंगड़ा लड़का।
दूसरी – रानी, एक दुबली-पतली लड़की, आँखों में डर साफ झलक रहा था।
तीसरा – चोटू, इतना दुबला कि हवा में उड़ जाए।
चौथा – गोलू, मोटा-सा लड़का, जिसकी आँखों में गुस्सा था लेकिन शरीर में दम नहीं।
रघुनाथ ने व्यंग्य किया –
“ये चारों… गाँव के सबसे बड़े हीरे हैं। इन्हें चैंपियन बना देना, मास्टर!”
लोगों ने ज़ोर से हँसी।
प्रशांत मुस्कुराया।
"तो ये है उनकी चाल। कमजोर बच्चों को देकर मेरा मजाक बनाने का प्लान। लेकिन अब खेल बदलूंगा…"
उसने बच्चों की आँखों में देखा।
अर्जुन की आँखों में एक अजीब सी उम्मीद थी।
रानी डर के मारे काँप रही थी।
चोटू नीचे ज़मीन देख रहा था।
गोलू गुस्से में दाँत भींच रहा था।
प्रशांत (सोचते हुए):
"कमजोर नहीं होते, कमजोर बनाए जाते हैं। और मैं इन्हें बदलूँगा।"
“ठीक है,” उसने शांत स्वर में कहा।
“आज से तुम सब मेरे छात्र हो। लेकिन एक बात याद रखना—ये आसान नहीं होगा। जो डरेगा, वो बाहर जाएगा।”
बच्चों ने चुपचाप सिर हिलाया।
---
शाम को, प्रशांत उन्हें लेकर स्कूल के पीछे जंगल में गया।
“मास्टर जी… हम यहाँ क्यों आए हैं?” – अर्जुन ने डरते हुए पूछा।
“क्योंकि असली ताकत चार दीवारों में नहीं सिखाई जाती।”
वो आगे बढ़ा।
जंगल के भीतर एक अजीब सी ठंडक थी।
पत्तों की सरसराहट… और अचानक…
“ग्र्र्र्र…”
चारों बच्चे डर के मारे पीछे हट गए।
झाड़ियों के बीच से निकला वही जानवर—
नीली आँखों वाला लोमड़ी जैसा Magic Beast।
उसकी पूँछ के चारों तरफ नीली रोशनी की लपटें नाच रही थीं।
रानी चीखी –
“मास्टर! ये… ये क्या है?”
प्रशांत मुस्कुराया।
“ये है… तुम्हारा पहला डर। और मैं चाहता हूँ कि तुम इसे देखो।”
बच्चों ने उसकी तरफ देखा।
“लेकिन मास्टर… ये तो हमें खा जाएगा!”
प्रशांत आगे बढ़ा।
उसकी आँखों में अजीब चमक थी।
“जब तक डरोगे… यही होगा। लेकिन आज… ये जानवर सीख जाएगा कि यहाँ कौन मालिक है।”
Magic Beast दहाड़ता हुआ उसकी तरफ झपटा।
बच्चे चीख पड़े।
लेकिन प्रशांत ने एक कदम भी पीछे नहीं हटाया।
उसकी मुट्ठियाँ कसीं…
और अचानक…
उसकी मुट्ठी पर काली रोशनी चमकी।
Chapter 5 – “पहला Magic Stone”
धम्म्म!
जंगल में गूँजती धमाके की आवाज़ से चारों बच्चे सन्न रह गए।
नीली आँखों वाला Magic Beast पीछे जा गिरा, उसकी आँखों की चमक कुछ पल के लिए बुझ गई।
रानी काँपते हुए बोली –
“म… मास्टर जी… आपने उसे…?”
प्रशांत ने गहरी साँस ली।
उसकी हथेली से धुआँ उठ रहा था।
“ये ताकत… ये मेरे शरीर में कैसे?”
उसके दिमाग में उस रहस्यमयी आवाज़ की गूँज सुनाई दी—
"मैंने कहा था… ताकत ही सब कुछ है। ये सिर्फ़ शुरुआत है।"
Magic Beast फिर से उठा। उसकी पूँछ से नीली आग की लपटें फूटने लगीं।
“ग्र्र्र्र्र्र…”
अर्जुन घबराकर बोला –
“मास्टर! भागिए! ये मरने वाला नहीं!”
लेकिन प्रशांत शांत था।
उसने बच्चों की तरफ देखा।
“अगर तुम सब डरकर भागोगे, तो हमेशा के लिए हार जाओगे। मैं तुम्हें सिर्फ़ एक बार कह रहा हूँ—खड़े रहो।”
चारों बच्चे डरते हुए वहीं खड़े रहे।
Beast फिर झपटा।
इस बार प्रशांत ने पूरी ताकत से मुट्ठी नहीं चलाई।
उसने अपने पैर के नीचे की मिट्टी पर हाथ रखा।
अचानक उसके हाथ से काली रेखाएँ निकलकर जमीन पर फैल गईं।
जैसे किसी ने धरती पर काली बिजली उतार दी हो।
Beast का शरीर वहीं रुक गया, उसकी आँखों में डर झलकने लगा।
प्रशांत की आवाज़ गूँजी—
“अब इस खेल का अंत।”
उसने एक ही वार में Beast की गर्दन तोड़ दी।
चारों बच्चे अवाक उसे देखते रह गए।
रानी की आँखों से डर हट चुका था।
अर्जुन बुदबुदाया –
“मास्टर… आप निकम्मे नहीं हो…”
प्रशांत मुस्कुराया।
“निकम्मा… ये शब्द मुझे कभी नहीं सुनना।”
---
Beast का शरीर जमीन पर पड़ा था।
अचानक उसके सीने से एक चमकता हुआ पत्थर बाहर निकला।
उससे नीली रोशनी फैल रही थी।
रानी ने हैरानी से पूछा –
“ये… क्या है?”
प्रशांत ने पत्थर उठाया।
उसे पकड़ते ही उसके भीतर से गर्माहट की लहर दौड़ गई।
“तो ये है Magic Stone… इस दुनिया की ताकत का असली स्रोत।”
उसकी आँखों में चमक आ गई।
"अगर मुझे इस दुनिया में जीना है… तो ये Stones इकट्ठा करने होंगे।"
---
जंगल से बाहर निकलते वक्त अर्जुन ने हिम्मत करके कहा –
“मास्टर… क्या हम भी ये ताकत पा सकते हैं?”
प्रशांत ने उसकी आँखों में देखा।
“अगर हिम्मत है… तो तुम सिर्फ़ ताकत ही नहीं, इस दुनिया के मालिक भी बन सकते हो।”
चारों बच्चों की आँखों में पहली बार उम्मीद की चमक आई।
Chapter 6 – “निकम्मों की ट्रेनिंग”
स्कूल के गेट पर भीड़ जमा थी।
अर्जुन का कज़िन – विक्रम – चमकदार नीले कपड़ों में खड़ा था। उसके कंधे पर एक छोटा, पंखों वाला Beast बैठा था जिसकी आँखों में सुनहरी चमक थी।
उसने व्यंग्य भरी हँसी के साथ कहा –
“अरे अर्जुन… तू इस निकम्मे मास्टर के पास ट्रेनिंग करेगा?
Royal Academy वाले तुझे कुत्तों से भी नीचे समझेंगे!”
अर्जुन ने सिर झुका लिया।
रानी डर के मारे पीछे हट गई।
गोलू ने गुस्से में दाँत भींचे, लेकिन कुछ बोल नहीं पाया।
प्रशांत धीरे-धीरे आगे बढ़ा।
उसकी आँखें विक्रम पर जमी थीं।
“और ये कौन सा पंछी है? Royal Academy में अब पालतू जानवर भी लड़ना सीखते हैं?”
भीड़ हँस पड़ी।
विक्रम का चेहरा लाल हो गया।
“सावधान रह मास्टर! तू नहीं जानता कि Royal Academy में दाखिला पाने का मतलब क्या है। ये Beast कोई जानवर नहीं… ये है Skyfang, हवा में उड़ने वाला शिकारी।
और एक दिन… ये मुझे इस दुनिया के टॉप रैंक में पहुँचाएगा।”
प्रशांत ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा –
“एक दिन… मेरे छात्र तुझे हर कदम पर पछाड़ेंगे। और तब ये Royal Academy भी हमारे पैरों के नीचे होगी।”
विक्रम हँस पड़ा।
“तू? तेरे ये चार कबूतर? हहह… देखता हूँ कब तक स्कूल बंद नहीं होता।”
उसने Beast को पुचकारा और चला गया।
लेकिन जाते-जाते कहा –
“गाँव की हँसी बनने के लिए तैयार रह, मास्टर।”
---
प्रशांत ने बच्चों को देखा।
“डर लगे तो अभी बता दो। रास्ता खुला है।”
चारों ने एक-दूसरे को देखा।
अर्जुन ने गहरी साँस लेकर कहा –
“मास्टर… मैं रहूँगा। चाहे कुछ भी हो।”
रानी ने धीरे से कहा –
“मैं भी…”
गोलू गरज पड़ा –
“उस विक्रम को सबक सिखाना है।”
चोटू ने डरते-डरते सिर हिला दिया।
प्रशांत मुस्कुराया।
“अच्छा। तो शुरू करते हैं असली खेल।”
---
पहली ट्रेनिंग – जंगल की दौड़
प्रशांत उन्हें फिर जंगल में ले गया।
“आज से तुम्हारा असली इम्तिहान शुरू। अगर तुम सोच रहे हो कि मैं तुम्हें आसान रास्ता दूँगा, तो अभी घर जाओ।”
उसने दूर पहाड़ी की तरफ इशारा किया।
“वहाँ तक दौड़कर जाओ। बीच में जो भी आएगा… उसका सामना खुद करना होगा।”
रानी काँप उठी।
“वहाँ तो… जंगली जानवर हैं…”
प्रशांत ने ठंडी आवाज़ में कहा –
“ताकत डर के पार मिलती है।”
चारों बच्चे दौड़ पड़े।
रास्ते में काँटे, कीचड़, और अजीब आवाज़ें।
अर्जुन लंगड़ाहट के बावजूद हार नहीं मान रहा था।
गोलू थककर हाँफने लगा।
चोटू का चेहरा सफेद पड़ गया।
रानी रोने लगी, लेकिन रुकी नहीं।
प्रशांत दूर से सब देख रहा था।
उसकी आँखों में हल्की चमक थी।
“इनमें दम है… अगर सही दिशा दी जाए।”
---
रास्ते में अचानक झाड़ियों से एक छोटा Magic Lizard निकला।
उसकी आँखों से हरी चमक निकली।
रानी चीख पड़ी।
अर्जुन ने पत्थर उठाकर मारा, लेकिन चूक गया।
तभी…
गोलू ने पूरी ताकत से लात मारी।
Lizard दूर जा गिरा।
गोलू हाँफते हुए बोला –
“हम डरकर भागने नहीं वाले।”
प्रशांत की आँखों में गर्व झलक गया।
---
शाम को सब लौटे तो थककर चूर हो चुके थे।
प्रशांत ने उन्हें बैठाया और एक चमकता पत्थर दिखाया –
वही जो उसने कल Beast से निकाला था।
“ये है Magic Stone। इस दुनिया की ताकत का सबसे बड़ा स्रोत। जिसको ये पत्थर मिलते हैं… वो ताकतवर बनता है।
लेकिन याद रखना… ये सिर्फ़ पत्थर नहीं, ये जिम्मेदारी है।
जिसके पास ताकत है… उसके सामने खतरे भी बढ़ते हैं।”
अर्जुन ने पत्थर की तरफ देखते हुए कहा –
“मास्टर… क्या एक दिन हमारे पास भी होंगे?”
प्रशांत ने कहा –
“हाँ… लेकिन उससे पहले तुम्हें अपनी जान दाँव पर लगानी होगी।”
चारों के चेहरे पर डर भी था और जुनून भी।