📖 Chapter 1: ₹5001 की दस्तक
साहिल किनारे जैसी ज़िंदगी चल रही थी — सीधी, थकी हुई, और थोड़ी बुझी हुई।
प्रशांत, एक 23 साल का नौजवान, बिहार के एक छोटे से गाँव सैन राम राय में रहता था। आठवीं तक पढ़ाई के बाद हालात ऐसे बने कि स्कूल छूट गया। अब वह एक छोटे से कमर्शियल वाहन का ड्राइवर था — कभी स्कूल की वैन, कभी गिट्टी-बालू ढोने वाला ट्रक।
पिता का साया दो साल पहले उठ गया था — विजय जी अब सिर्फ तस्वीरों में मुस्कुराते थे। घर में माँ, छोटा भाई प्रकाश, और दादा-दादी थे।
बस एक दोस्त था — सनी, और कभी-कभी मदद करने वाला बड़ा भाई जैसा इंसान — बाबुल।
📅 25 जून 2023
एक थका हुआ दिन था। सूरज छुपा, और बिजली कट चुकी थी। प्रशांत मोबाइल का डाटा खत्म हो जाने की वजह से खाली स्क्रीन देख रहा था।
तभी उसके फोन में एक नोटिफिकेशन आया।
📲 "₹5001 आपके अकाउंट में जमा हुआ।"
वो चौंका — "किसने भेजा ये पैसा?"
ना कोई लॉटरी, ना किसी से उम्मीद।
अगले ही पल, एक और मैसेज आया:
📩 "यही शुरुआत है। मंज़िल अभी बाकी है। बस पीछे मुड़ कर मत देखना। - R"
"R?" ये कौन था?
उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं। मोबाइल की स्क्रीन पर उंगलियाँ थम गईं।
उसने झट से बैंक ऐप खोला — पैसा सच में आया था।
लेकिन भेजने वाले का नाम लिखा था — "पेंडेंट ऑफ़ ट्रुथ"
(सच का लॉकेट)
“ये क्या कोई फ़िल्मी नाम है?” प्रशांत बड़बड़ाया।
पर कुछ तो था इस पैसे में... और उस मैसेज में...
उसने सनी को फोन किया —
"भाई, किसी ने मेरे अकाउंट में ₹5001 भेजे, और नाम लिखा है – पेंडेंट ऑफ़ ट्रुथ।"
सनी हँस पड़ा, “अबे, कहीं तू किसी जादुई चक्कर में तो नहीं पड़ गया?”
लेकिन रात को जब प्रशांत नींद में करवटें बदल रहा था, तभी कमरे के कोने से एक धीमी नीली रौशनी निकली।
वहीं पर रखा था उसका पुराना ताबीज — जो उसके पापा ने बचपन में दिया था।
वो अब नीली चमक दे रहा था।
और अगले दिन से उसकी ज़िंदगी बदलने लगी।
📖 Chapter 2: ताबीज और टेलीपैथी
रात के दो बज रहे थे।
पूरे गाँव में सन्नाटा पसरा था — पर प्रशांत की आँखों में नींद नहीं थी। वो अब भी उस नीली रौशनी के बारे में सोच रहा था जो उस पुराने ताबीज़ से निकली थी — वही ताबीज़ जो उसके पापा ने उसे बचपन में पहनाया था।
धीरे से उठा, कमरे के कोने से वो ताबीज़ उठाया — अब उसकी चमक मद्धम हो गई थी, लेकिन उसमें एक अजीब सी गर्माहट थी।
"ये कोई मामूली चीज़ नहीं है..."
उसके मन ने पहली बार उसकी बात नहीं काटी।
🌙 उसी रात – सपना या सच?
नींद का झोंका आया... और वो जैसे किसी दूसरी दुनिया में पहुंच गया।
सामने एक झील थी। नीली धुंध में लिपटी हुई।
और झील के किनारे खड़ी थी एक लड़की — सफेद सूट, खुले बाल, और आँखों में कोई पुराना दर्द।
"तुमने बहुत देर कर दी, प्रशांत,"
उस लड़की ने बिना देखे कहा।
"तुम कौन हो?" प्रशांत ने पूछा, लेकिन आवाज़ जैसे गले में ही अटक गई।
उसने पलटकर देखा — और वही चेहरा!
रुहानी।
वही लड़की जिसे उसने 2021 में पहली बार देखा था, जिसके लिए दिल कभी बोला ही नहीं — पर जो आज तक दिमाग से गई नहीं।
"मैंने कभी कुछ कहा नहीं... लेकिन दिल में तुम थी,"
प्रशांत बोलना चाहता था, मगर तब तक सपना टूट चुका था।
🌄 सुबह
आँख खुली तो पसीने में तरबतर था।
उसके पास रखा मोबाइल फिर से बजा —
📲 "तुम उसे खोज नहीं सकते... जब तक अपना रास्ता खुद नहीं खोजते। - R"
उसका सिर घूम गया।
"क्या ये सब... ताबीज़ से जुड़ा है? क्या ये सब महज़ सपने हैं या कुछ ज़्यादा?"
सनी को कॉल लगाया —
“भाई, मैंने एक सपना देखा — और उसमें रुहानी थी... वही, जिससे मैं कभी बात तक नहीं कर पाया था।”
सनी चुप रहा, फिर बोला,
"तेरा दिल और किस्मत दोनों मिलके तुझे किसी ओर ले जा रहे हैं। और अब ये ताबीज़... मामला हल्का नहीं है भाई।"
प्रशांत ने नज़रों के सामने रखे ताबीज़ को देखा — और पहली बार... उस पर यकीन करने लगा।
📖 Chapter 3: ₹300 का सपना
सुबहे 8 बजे — छत पर बैठा प्रशांत
हवा चल रही थी, पर मन बेचैन था।
ताबीज़ अब हर वक्त जेब में रखता था — जैसे कोई अदृश्य ढाल हो।
कल रात का सपना और वो मैसेज — सब कुछ अभी भी दिमाग में घूम रहा था।
उसी समय, उसके मोबाइल में एक नोटिफिकेशन आया।
📱 "CryptoVision Investment Plan – आज सिर्फ ₹300 से शुरू करें और पाएं अद्भुत अनुभव!"
सामान्य होता तो हटाता... लेकिन आज मन कुछ और कह रहा था।
एक अनजान खिंचाव था उस लिंक की ओर।
"चलो, आखिरी बार ट्राई करते हैं। ₹300 ही तो हैं..."
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🔗 ऑनलाइन इन्वेस्टमेंट
उसने लिंक खोला, KYC भरा, और ₹300 भेज दिए।
लेकिन जैसे ही पेमेंट कम्प्लीट हुआ, स्क्रीन ब्लैक हो गई।
3 सेकेंड बाद स्क्रीन पर उभरे सिर्फ दो शब्द —
💬 "सच का दूसरा द्वार खुल चुका है।"
और नीचे एक बटन था: [Download Key of Trust]
(विश्वास की कुंजी डाउनलोड करें)
प्रशांत ने बिना सोचे बटन दबा दिया।
फोन में एक अजीब सी .zip फाइल डाउनलोड हुई — नाम था:
📂 Ruhani_Truth_Path_001.zip
"रुहानी?!"
उसका दिल धड़क उठा।
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📜 फाइल के अंदर...
फाइल खोली तो एक छोटा सा नोट और एक ऑडियो फाइल मिली।
नोट में लिखा था:
> "इस राह पर कदम रखा है तो अब पीछे मत देखना।
जो खो गया है, वो मिल सकता है —
पर उसकी कीमत सिर्फ पैसा नहीं, यादों का बलिदान है।
ताबीज़ से सवाल करो।
और अपने अंदर के डर से लड़ो।"
📼 Audio file play की
एक धीमी आवाज़... वही लड़की की, जो सपना में दिखी थी।
> "प्रशांत... क्या अब भी तुम मुझे सिर्फ एक याद मानते हो?"
"अगर हां... तो सब भूल जाओ।
अगर नहीं... तो 3 दिन के अंदर उस पुल पर पहुँचो
जहाँ हमने एक बार तुम्हें देखा था —
गंडक नदी का पुराना पुल।"
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🌒 रात
प्रशांत अब सोच में डूबा था।
ये सब मज़ाक नहीं हो सकता था।
सपने, ताबीज़, ₹5001, रुहानी, और अब... ₹300 से खुलता एक रहस्य।
क्या ये उसकी अधूरी मोहब्बत की शुरुआत थी?
या एक ऐसी दुनिया की तरफ़ दरवाज़ा, जिसे वो खुद नहीं समझता?
तभी उसके ताबीज़ ने एक बार फिर चमकना शुरू किया —
पर इस बार सिर्फ नीली नहीं, थोड़ी सुनहरी रौशनी भी थी।
📖 Chapter 4: गंडक पुल पर रुहानी की परछाईं
तीन दिन बीत चुके थे।
हर दिन उसके ताबीज़ की चमक थोड़ी कम, फिर थोड़ी ज़्यादा होती जा रही थी — जैसे वो भी इंतज़ार में हो।
प्रशांत, अपने छोटे भाई प्रकाश से झूठ बोलकर निकला था —
“मालूम नहीं कितनी देर लगेगी... एक काम से शहर जा रहा हूं।”
असल में, वो गया था — गंडक नदी का पुराना पुल ढूंढने।
जहाँ उसे एक बार रुहानी दिखी थी — सिर्फ एक झलक, साल 2021 में।
🛵 रास्ता
सड़कें टूटी हुई थीं, बाइक पुरानी थी, पर इरादा साफ था।
पुल की तरफ बढ़ते हुए उसे उस दिन की हर बात याद आ रही थी —
वो सफेद सूट वाली लड़की, जो अपनी सहेली के साथ आई थी, और एक बार मुड़कर मुस्कराई थी...
...और उसी दिन से वो मुस्कान उसके दिल में बस गई थी।
🌉 पुल पर
पहुंचते ही, हल्की सी ठंडी हवा चली।
पुल पर कुछ पुरानी लकड़ियाँ टूटी पड़ी थीं, और बीच में जंग लगे लोहे की रेलिंग।
अचानक, उसके ताबीज़ ने फिर से चमकना शुरू किया — अब ज़्यादा तेज़।
और फिर... कुछ अजीब हुआ।
सामने धुंध सी उठी — और उस धुंध में एक परछाईं उभरी।
सिर्फ परछाईं — रुहानी की।
"प्रशांत..."
उसने वही आवाज़ सुनी जो उसने ऑडियो में सुनी थी।
"मैं चाहती थी तुमसे बात करना... पर मैं सिर्फ याद बन गई हूं।
तुमने कभी अपने जज़्बात कहे नहीं — और मैं दूर होती गई।"
प्रशांत कांपता हुआ बोला,
"पर मैं अब भी तुम्हें चाहता हूं..."
परछाईं हँसी — दुखी हँसी।
"प्यार सिर्फ चाहने से नहीं होता, समझने और जताने से होता है।
अब अगर तुम मुझे पाना चाहते हो,
तो तुम्हें सिर्फ वक़्त से नहीं, अपने डर और किस्मत से लड़ना होगा।"
⏳ एक आखिरी बात
उसके हाथ में एक चमकती सी चीज़ रखी गई — एक पुराना पेंडेंट
वही, जैसा उसके सपनों में था।
“यह लो। इससे आगे का रास्ता तुम पर निर्भर करता है।
पर याद रखो — जहाँ मोहब्बत अधूरी होती है,
वहीं से जादू की शुरुआत होती है।”
और फिर रुहानी की परछाईं हवा में घुल गई।
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💔 उस रात
प्रशांत वापस घर लौटा तो खामोश था।
किसी से कुछ नहीं कहा।
पर उस रात उसने एक वादा किया —
अब ना कोई बात अधूरी रहेगी,
ना मोहब्बत, ना मंज़िल।