Episode 1: Sirf Dost Ya Kuch Aur?
हम स्कूल में साथ थे। हर दिन की तरह मैं हमेशा उसके बगल वाली बेंच पर बैठता — वो मुस्कुराती थी, और मैं जी उठता था।
वो पढ़ने में तेज थी, दिखने में बहुत खूबसूरत बेहद मासूम जिससे देख पत्थर भी पिघल जाए फिर मैं कहाँ इन मासूम निघाओ से बचने वाला था — जैसे उसे देखता तो कुछ देर ठहर सा जाता। और मैं? मैं बस एक आम सा लड़का था… पुरानी साइकिल, घिसे हुए जूते और कुछ ख्वाब।
हम अच्छे दोस्त थे। वो मुझे हर बात बताती थी, अपने घर की परेशानियाँ, कॉलेज का टेंशन, टीचर्स की बोरियत — सब कुछ। पर एक बात जो मैं कभी नहीं बता पाया… वो ये थी कि मैं उससे बेपनाह मोहब्बत करता था।
कभी-कभी जब हम स्कूल ग्राउंड साथ में बैठते, मैं चुपचाप उसकी बातों में खो जाता। मुझे लगता था — ये लम्हा कभी न खत्म हो। पर मेरे मन की बात जुबां पर कभी आई ही नहीं।
फिर एक दिन… वक़्त ने अपनी रफ़्तार ली और हम स्कूल से कॉलेज में आ गए ।
उस दिन से सब बदलने वाला था — वो भी और मेरा प्यार भी।
“कुछ लोग हमारी ज़िंदगी में बहुत पहले से होते हैं…
पर हम उन्हें तब तक नहीं पहचानते जब तक वो किसी और के साथ नहीं दिखते।”
मैं और वो… स्कूल के बेंच से लेकर कॉलेज के फॉर्म तक साथ थे।
हमारे बीच कभी ‘आई लव यू’ नहीं हुआ,
पर एक रिश्ता था… जो लफ़्ज़ों से नहीं, नज़रें और मुस्कुराहटों से जुड़ा था।
वो हमेशा कहती,
“तू सबसे सच्चा दोस्त है मेरा…”
और मैं हर बार बस इतना ही सोचता — काश मैं सिर्फ दोस्त न होता।
हर सुबह जब उसकी आवाज़ सुनता, दिन अच्छा लगने लगता।
जब वो नहीं आती थी कॉलेज, दिल यूँ खाली लगता जैसे किताब से कोई जरूरी पन्ना फट गया हो।
वो खूबसूरत थी, मासूम थी और शायद दुनिया की सबसे प्यारी लड़की…
और मैं?
सिर्फ एक आम सा लड़का, पुरानी साइकिल पर आता, jeans फटी हुई, और चप्पल भी घिसी हुई
पर मेरे दिल में ख्वाब थे…
उसके साथ पूरी ज़िंदगी बिताने के।
हम कैंटीन में साथ बैठते, गार्डन में बातें करते — कभी उसके घर के बाहर भी छोड़ देता था।
पर एक दिन सब बदल गया।
हम कॉलेज के गार्डन में बैठे थे तभी
कॉलेज में एक नया लड़का आया —
शाइनी कार, branded घड़ी, और arrogant attitude वाला अमीर बाप का बिगड़ा बेटा।
वो उससे देख कर उसकी तरफ़ अट्रैक्ड होगई जैसे मानो उससे वो लड़का एक दम ट्रिगर कर दिया हो
उसे देख कर मैं समझ गया —
अब मेरी जगह कोई और लेने वाला है।
धीरे-धीरे वो उससे बातें करने लगी,
उसके साथ घूमने फिरने लगी और फिर एक दिन…
उसके साथ गार्डन में बैठी दिखी — ठीक उसी जगह जहाँ कभी मैं उसके बगल में बैठा करता था।
वो दोनों रिलेशनशिप में आ चुके थे और मैं दूर हो गया था
दिल टूटा, पर जुबान पर ताला रहा।
मैंने खुद से कहा,
“अगर उसकी खुशी उसमें है… तो शायद मुझे भी उसी में खुश होना चाहिए।”
मैं हर दिन खुद को मारता था, अंदर ही अंदर।
पर उसके चेहरे पर मुस्कान देख कर चुप हो जाता।
पर एक चीज़ जो मैं नहीं समझ सका…
वो थी मेरी खुद की खामोशी की सज़ा।
अब मैं सिर्फ एक साया बन चुका था — जो कभी उसका सबसे करीबी हुआ करता था।
“एक Signal, एक Cycle, और एक Aakhri Nazar…
वही थी मेरी कहानी की turning point…”
To be continued.....