"-----टूटे हुए तारे -----" ये एक स्वेदनशील कहानी अति प्रिये है मेरी..... मंज़िले कहानी सगरहे मे ------
वो नुकड़ वाली शॉप लाल चंद की आज 10 वजे के बाद ही खुली थी... बस स्टेण्ड के साथ वाली जो चार पांच गज की जगह मे बनी हुई थी, टीन की छत गर्मी मे खूब गर्म... ठंडी मे खूब ठंड... बर्षा के मौसम मे टिप टिप आवाज़ और धार पानी की वेह जाती लगातार... मौसम कितना सुहाना लगता उसके नीचे खडे होकर... ये कितना भावक दृश्य होता था। जयादा लोग खडे होकर ही चाये पीते थे... जिसने एक बार पी ली, वो बार बार पीने आता। छोटी इलेची, दाल चीनी और गर्म मसाला बना कर और प्यार से बनाता था... लाल चंद होगा कोई पेतीस का।
आज दुखी था। मोहन लाल ने जोर से कहा " लाल चंद एक बटा चार कप भेज दो। " लाल चंद ने चाये बना कर पोनी से पुन के ये कप मोहन लाल को भेज दिए थे।
तभी हरबस आया। बोला मोबाइल पर ----"मुशिकल है जमानत उसकी " एक कप गरमा गर्म चाये का परोसा लाल चंद ने।
दुखी मन से लाल चंद ने हरबस को कहा ----" मेरे लडके को सोस्याटी की हवा लग गयी है... जितने भी कमाता हूँ, हरबस जी सब चोरी करके कोकिग कभी चिटा का इंजेक्शन लगाता है --- "कया करू उसका " हरबस दुखी मन से बोला ---" अंत तो दुखदायी ही होता है , उसे सेंटर मे भेजो, आपने लुधियाना मे खुला है, आपने भतीजो ने खोला है। " चुप था लाल चंद। गहरी सोच मे।
रात के गयारा वजे थे। अभी तक वो नहीं आया था। बाप था,कहा नींद रोटी,अच्छी ! लगती है?? एक उसी लडके खातिर। " कया करे पिता लाल चंद " बारा के करीब घर आया ----पिता भी भूखा था। वो आया और कमरे मे जा कर बिस्तर पर गिर पड़ा --- " आंसू थे बड़े बड़े... सुनामी जैसे आ गयी हो। वो बोला " पिता जी छोड़ नहीं पा रहा, नशा मुक्ति केंद्र भेज दो " जैसे पिता आगे फरयादी हो। पिता का भी मन भर आया था।
"पक्का पुत्र " पिता ने कहा। बगल मे उसके प्यार करने के लिए लेट गया। " ये नर्क है बापू..इसे छोड़ा दो किसी भी तरा। " ----" ठीक है पुत्र, कल ही कोई जुगाड़ लाता हूँ।--- " पिता ने कहा " कभी अकेले नहीं रहना बेटा, नशे मे एक मारु नीति होती है, यहां दो होंगे, वहा तेरा कोई कुछ नहीं कर सकता " पचीदा फ़स चूका था लाल चंद।
नशा मुक्ति केंद्र लुधियाना मे ------------------------------------
चार दिन से ऊपर हो चूका था.... अँधेरे कमरे मे। शाम वो कोई आठ लोगों को खाने मे अच्छी खुराक देते... पर उल्टिया के इलावा वहा कुछ नहीं था। ताकत के टीके और गुलुकोष बस। सब बर्बाद हो गया लगे पिता लाल चंद को।
वो भाग गया था। अँधेरे मे डरता था। कया करता। पिता ने देखा तो वो सहम गया।----" पिता जी वो मुझे मार देंगे, अँधेरे मे रखते है। " घबराओ नहीं बेटा । "
"लत लगी है। इसे मैं ही दूर करुँगा। " पिता ने हौसले से कहा। फिर कया था। हरदम पिता उसके साथ रहता... चुरा पोस्त भी उसका तोड़ नहीं थे, अच्छी अफीम भी तोड़ नहीं थी। अब रब के आसरे छोड़ दिया।
"पुत्र अब मालिक ही तेरा सब कर सकता है। " बस इस शहर से दूर निकल जा, ये पांच हजार ले, और यूपी साइड निकल जा.... " शाम को खाना खा कर स्टेशन छोड़ आया था। लाल चंद की आँखो मे आंसू थे। नमी जो कभी न सूखने वाली।
हरबस के कहने पर बदखली नोटिस दें कर फर्ज से मुकत हो गया था.... कया बस इतना ही।
बस कुछ कहानियाँ कभी पुरिया नहीं होती... या उसका आगे कया हुआ पता ही नहीं चलता।
रहस्य ही रह जाता है... जैसे तारे कयो टूट ते है ?
(चलदा ) --------- नीरज शर्मा
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