एक प्रतिष्ठित लेखक की कृति के विषय में कुछ कहना सूरज को दीया दिखाने जैसा होगा। फिर से दोहरा रही हूँ कि कोई समीक्षक नही हूँ लेकिन पढ़कर बस मन के भाव जाहिर करने का इरादा जरूर है।
आदरणीय मुकेश दुबे भैया कृत शिवना प्रकाशन से प्रकाशित "कड़ी धूप का सफर" जेठ की तपती दोपहरी में भी सावन की शीतल बयार का सुख दे गया। कल रात पढ़ने बैठी तो खत्म किये बिना न रख पाई।
कलयुग में जहाँ हर रिश्ते की नींव स्वार्थ पर टिकती है वहीं इस उपन्यास के सभी पात्र आदर्शवादिता की मिसाल खड़ी करते नजर आते हैं। पात्रों का एक दूसरे के लिए जीना, बिना कहे मन की बात समझना , आपस में प्रेम और त्याग की भावना संग सम्मान देना हमें कलयुग से सतयुग में पहुँचा देता है।
नायक मनोज द्वारा पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन के लिए और मन मे बसी लड़की के लिए प्रेम अनुकरणीय है। मनोज और अनुभा एक साथ न होकर भी सदैव साथ रहे। लड़की होते हुए भी अनु का वैवाहिक प्रस्ताव भेजना, मनोज को प्रस्ताव मिलने में लगे नौ साल और फिर यही सोचकर कि अब तलक इंतजार में थोड़ी बैठी होगी, उसका शांत रह जाना। अचानक स्टेशन पर अनुभा से पुनः मुलाकात और मनोज की दिनचर्या का परिवर्तित होना। सभी कुछ सहज और सरल तरीके से बढ़ता चला गया। अंत में विवाह किये बिना ही एक दूसरे की देखभाल के वायदे के साथ एक घर में रहना।
अंत में अगर उनका विवाह हो जाता तो सुखान्त मन को एक शीतल झौंके सा सहला देता। हमारा समाज अभी इतना परिपक्व नही कि ऐसे रिश्ते को सम्मान की दृष्टि से देखे। भाषा की बात की जाए तो पात्रों की गरिमा एवम पदानुसार अंग्रेजी भाषा का सरलता से प्रयोग किया गया है।लवलीन के पंजाबी पारिवारिक माहौल को दिखाने के लिए पंजाबी मिश्रित हिंदी जुबान में मिठास घोलती नजर आयी। रेलवे स्टेशन का वेटिंग रूम, रेलगाड़ियों के नाम एवम समयसारिणी को देखते हुए लगता है कि लेखक ने लिखने से पहले अच्छे से जानकारी एकत्रित की है। कहीं भी किसी किस्म का झोल नजर नही आता। घटनाओं का विस्तृत विवरण भी लेखक के सामान्य जीवन की घटनाओं पर पकड़ दर्शाता है।कहानी बड़ी सहजता के साथ मन्थर गति से अपने मन्तव्य की और अग्रसर रहती है।अंत में कहूंगी एक ही बैठक में पठनीय उपन्यास है।भविष्य के अग्रिम सफर के लिए मील का पत्थर है "कड़ी धूप का सफर।"
इस कड़ी धूप के सफर के बाद शीतल छाया और ठंडी बयार सी बहुत सारी पुस्तकें आ चुकी भैया की। सौभाग्यशाली हूं कि मुझे सदैव उनका स्नेहिल आशीर्वाद मिलता है। भैया आप दीर्घायु हों, सदैव स्वस्थ रहें यही ईश्वर से प्रार्थना है और आपकी कलम निरंतर चलती रहे। हैं हैं कहानियों का आगाज होता रहे और हमें ओढ़ने को मिलती रहें। आज यादों के पिटारे में यह अभिव्यक्ति नज़र आई तो पुनः शेयर करने से रोक नहीं पाई। एक बेहतरीन उपन्यास है।
आपके लेखन की समीक्षा का साहस नहीं मुझमें। यह पाठकीय प्रतिक्रिया मात्र है। एक बहन का स्नेह है।
बहुत बहुत बधाई भैया।
विनय...दिल से बस यूं ही