Manzile - 34 in Hindi Women Focused by Neeraj Sharma books and stories PDF | मंजिले - भाग 34

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मंजिले - भाग 34

मंजिले कहानी सगरहे की घुटन -----जिंदगी चरदिवारी मे बंद होकर रहे गयी.. सकून अब कहा रह गया था। जिंदगी के ऊंचे दाव कोई ईमानदार कैसे खेल सकता था। खेलने के लिए बाईमान होना लाजमी होता है।

जिसने कभी झूठ नहीं बोला, वो सख्श आज की तारीख मे कौन हो सकता है... बाईमान बनोगे, तो मिस्टर आमीर बन जाओगे, पर जिनका जमीर मर गया होगा वही ऐसा कर सकता है।

                                  घुटन तभी खारो जैसी चुभती है, ज़ब तुम चार दीवारों मे जकड़ लेते हो आपने आप को, सच कहता हूँ, कभी बोझ को हटाओ, फिर देखो घुटन कैसे तुमसे लाखो मील दूर भाग जाएगी।

जयादा फुर्ती और जल्द बाज़ी इंसान को अंधे कुए जैसे बना देती है। जिंदगी मॅहगी नहीं है, इसे जीओ सस्ते से तरीको मे। भाव अर्थ समझने के लिए जैसे धिक्शरनी की जरूरत होती है, ऐसे ही अच्छे से मित्रो की। जानो तुमाहरे अंदर भी काबलियत है, एक कलाकार भी तो हो सकता है। कभी बात करना,  आपने अंदर की रूहानीयत से।

जीवन थोड़ा है.. पर ढंग  से जीओ। उन लोगों को कयो नहीं छोड़ देते, जो तुम्हे पीछे को धकेल ते हो। उन नेगटिव लोगों को सदा के लिए आपनी मनोदशा की वसीयत से बेदखल कर दो। कयो नहीं समझते, या कोशिश नहीं करते, जिंदगी रंग मच है, हम कलाकार है। मदहोश कयो रहते हो -----

ये कहानी यूँ ही तो लिखी नहीं जाती। कुछ होता है तो कहानी बनती है। घुटन कहानी नवजोत कौर की है। जो सुंदर थी, बरटेन की पक्की वस्नीक थी, एक अच्छा गुरमुखी परिवार, सरदार जी को ढूंढ लिया जो दस साल बड़ा था नवजोत से। एक और भाई था वो उससे तीन साल छोटा था। बस थी तो एक सास, उसकी , जिसने नवजोत कौर को घुटन सी जेल दी । बेटा उसका कम नहीं था, उसने उसे कभी समझा ही नहीं था आपनी प्यारी दुहलन को। दुहलन थी एक हीरा, दस साल बड़ा था हरनाम सिंह। पसद था या नहीं था, ये कोई सवाल नहीं बनता था। सस्कृति, सस्कार उस बेटी को जन्म से मिले हुए थे। शादी के चार दिन बाद ---- उसे किचन की हद -बन्दी मे बंद कर दिया गया। सारा काम बस नवजोत करे... रोटी, पानी, किचन की संभाल भी। हरनाम सिंह से पहली दफा उसे गुस्से मे बस गाले मिली, कयो पता ही नहीं। वो कोई नशा करता था। हरगिज नहीं। वो राते छोटी होती थी.. पर नवजोत को सबसे लम्मी लगती... कभी न खत्म होने वाली। वो एक साल बाद प्रेग्नेंट हो गयी थी। पर एक घुटन से ज्यादा कुछ नहीं थी। तना हुआ चेहरा था सास का । श्री गुरद्वारे मे जाती पर मुँह पर पड़ोसी को दिखाने को बनावटी हासा। कैसे हस लेते थे... वो अंदरला हासा कैसे जानती कया फर्क हो सकता है। कुछ तो होगा , काम कार ठीक चल रहा था उनका। फिर कयो नवजोत को 24 साल मे इतना कुछ ह्रासमेंट देख लिया था... आदमीयों से उसे नफ़रत हो गयी थी। घर से घर तक। ये कौन से जन्मों की सजा थी।

एक रात शिटी से इतना कुटा... कयो..? गलती। यही की उसने हरनाम से प्यार की बाते की थी। पर ये कया ? उसका मुँह बंद इस तरा से। वो प्रेग्नेंट थी। जुल्म सितम।

पैके गयी थी.. पिता भाई को हाल बताया तो " बेटा किस घर मे नहीं है " बाप के प्रश्न का हल था " सही हो जायेगा बेटा कयो चिंता करती हो " वो फिर चुप कर गयी। सच्ची घटना पर ये लम्बी कहानी ------ फिर आगे कया हुआ ?

(चलदा ) -------------- नीरज शर्मा।