पंचम अध्याय
सामने आये रावल और कासिम
कुछ दिनों का समय बीता। हिन्दसेना के दस जहाज तीर के आकार में जलमार्ग पर प्रशस्त थे। मध्य में एक जहाज था, वहीं पाँच जहाज पीछे की दायीं ओर और चार पीछे की बायीं ओर चल रहे थे। हर जहाज को नीचे से लगभग दायीं और बायीं ओर से पच्चीस पच्चीस नाविक योद्धा खे रहे थे। सबसे आगे के जहाज के नीचे के कक्ष में ही अपने घाव पर पट्टी बांधे कालभोज विश्राम कर रहा था। उसके सामने एक आसन पर बैठा देवा उसे घूरे जा रहा था। अपने मित्र के नेत्रों में कटाक्ष का आभास पाकर झेंपते हुए भोज ने शय्या से उठने का प्रयास किया।
“बैठे रहो।” खीजते हुये देवा ने आगे कहा, “अब जो हो गया उसे परिवर्तित तो नहीं कर सकते आप, मेवाड़ नरेश ? आगे जो होगा देखा जायेगा।”
अपने घाव को सहलाते हुए भोज ने उसे घूरा, “जो कहना है सीधे सीधे कहो। अभी पहेलियाँ बुझाने में मुझे कोई रूचि नहीं है।”
“अच्छा, तो फिर सीधे सीधे सुनिए। सामने था आपके सलीम, फिर क्यों बच गया वो आपकी तलवार से ?”
“वो...मुझे।” हिचकिचाते हुए भोज ने अपनी भूल स्वीकार की, “भ्राता सुबर्मन के प्रति मेरे अत्याधिक भावुक होने के कारण अकस्मात ही मुझे उस सलीम में उनकी छाया दिखाई पड़ने लगी। तुमने सही कहा था इन भावनाओं के कारण ही उस दिन मुझसे इतनी बड़ी चूक हो गयी और हमारा अभियान अधूरा रह गया। बच के निकल गया वो सलीम।”
देवा ने उसे क्षणभर घूरा, फिर खीजते हुए उठकर खिड़की से समुद्र की ओर देखा, “यदि आगे भी अपने किसी प्रधान शत्रु के साथ युद्ध करते हुए ऐसा ही हुआ तो क्या करेंगे? महादेव के आशीर्वाद और मोखा की सहायता से इस बार तो बच गए। अगली बार क्या पता ये भूल करने के लिए प्राण बचे ही न।”
कालभोज ने देवा के उस कटाक्ष का कोई उत्तर नहीं दिया। बस उठकर खड़ा हो आया और अपने कंधे उचकाये। देवा ने उसे पुनः टोका, “आपको विश्राम करना चाहिये, घाव अभी पूर्ण रूप से भरा नहीं है।”
रावल ने अपनी कमर पर हाथ फेरा फिर पूरे विश्वास से कहा, “अब ना कोई पीड़ा है, ना कोई सुराख़ बचा है। मेरा शरीर तलवार संभालने जितना स्वस्थ है।”
“और मन के स्वास्थ का क्या ?” देवा ने पुनः कटाक्षमय स्वर में कहा, “आप पर पूरी हिन्दसेना का विश्वास टिका है, भोजराज।”
भोज ने बिना कोई उत्तर दिए मेज पर रखी एक औषधि की शीशी उठाई और भौहें सिकोड़ते हुये वो कड़वी दवा अपने गले में उड़ेल ली। फिर अपना मुंह पोछते हुए देवा की ओर मुड़ा, “सरकंडे होंगे जहाज में? मिले तो उनके साथ मिट्टी भी ले आना।”
“सरकंडे और मिट्टी, पर कहाँ से..?” देवा आश्चर्य में था।
“मैंने गुरुदेव से कहकर रसोई में बीस किलो मिट्टी रखवाई थी। ले आओ उसे, बोरों में होगी।”
“मिट्टी रखवाई थी ? पर किसलिए ?”
“ऊपर जहाज की छत पर लेकर आओ, बताता हूँ।”
शीघ्र ही देवा हाथों में दस सरकंडे लिए जहाज की छत्त पर आया। उसके साथ दो सिपाही चार बोरे साथ ले आये। देवा ने उन्हें वो बोरे भूमि पर रखकर जाने का संकेत किया। उनके जाने के उपरांत देवा ने भोज से प्रश्न किया, “अब बतायेंगे करना क्या है ?”
शीतकाल में घने कोहरे के मध्य उगे सूर्य की लालिमा की ओर निहारते हुये भोज ने जल द्वारा सूर्य देव को अर्घ दिया और फिर देवा के निकट आया, “सरकंडों का खेल एक बार फिर हो जाये ? इस बार थोड़े अलग तरीके से।”
देवा अब भी संशय में था, “तुम आखिर करना क्या चाहते हो ?”
“बस एक छोटा सा प्रयास, ताकि मेरी निजी पीड़ा के आगे फिर कभी हिन्दसेना का भविष्य संकट में ना पड़े।” कहते हुए भोज ने बोरे खोलकर जहाज की छत्त पर मिट्टी के ढेर लगाना आरम्भ किया, फिर देवा की ओर मुड़कर देखा, “अब यहाँ आओ, जैसा जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा करते रहो।”
शीघ्र ही एक प्रहर के भीतर ही भोज ने देवा की सहायता से सुबर्मन की चार गज ऊँची मिट्टी से बनी प्रतिमा तैयार की, और फिर भोज ने तीन सरकंडे देवा के हाथ में दिये। उस भव्य प्रतिमा को देख वहाँ उपस्थित देवा की आँखें आश्चर्य से फटी लग रही थीं। भोज ने अपनी कला का अद्भुत उपयोग कर ऐसी प्रतिमा बनायी थी मानों स्वयं सुबर्मन उनके सामने खड़ा हो।
उस प्रतिमा और उसके हाथ में थमे तीनों सरकंडों को अच्छे से निहारने के उपरांत भोज ने सुबर्मन की ओर देख कहना आरंभ किया, “आप हमारी मित्रता की जड़ थे, भ्राताश्री। चाहें हम तीनों के बीच कोई भी द्वेष आ जाए, आपने ही सदैव हमारी मित्रता की उस डोर को थामे रखा और उसे टूटने नहीं दिया। आपका हमारे जीवन से जाना हमारे हृदय में एक ऐसा सुराख कर गया है जिसे कदाचित कभी नहीं भरा जा सकता। मैं ये स्वयं सुनिश्चित करुँगा कि इतिहास आपको सम्मान से स्मरण करे। किन्तु अब समय आ गया कि मैं स्वयं को इस ग्लानि के भार से मुक्त करूँ कि आप मेरे हाथों वीरगति को प्राप्त हुए हो, अन्यथा ये भार समस्त हिन्दसेना और लाखों सिंधियों की आशाओं को अग्नि में झोंक देगा।”
देवा जिज्ञासावश देखता रहा कि भोज करने क्या वाला है। कालभोज ने मित्रता के प्रतीक उन तीनों सरकंडों को बारी बारी से देखा, फिर सुबर्मन की नयी बनी प्रतिमा को कंधे पर उठाया और जहाज के किनारे ले आया। फिर उसने पुनः सुबर्मन के जीवंत मुख को देखा, “आप सदैव मेरी स्मृतियों में रहेंगे। किन्तु ये भी उतना ही सत्य है कि आपने अपने अधर्मी पिता का समर्थन किया, वही आपकी मृत्यु का कारण बना। इसलिए अब मैं इस ग्लानि का बोझ और नहीं उठाऊंगा, ये न्यायोचित नहीं। आपके अस्थि विसर्जन का अधिकार और सौभाग्य तो मिला नहीं, इसलिए आज आपके इस प्रतिरूप और इन सरकंडों के विसर्जन के साथ ही अपने ह्रदय का सारा बोझ मैं इस हिन्द महासागर को समर्पित कर रहा हूँ।” कहते हुए भोज ने उन तीनों सरकंडों के साथ सुबर्मन के पुतले को सागर में गिरा दिया। जल में उसके अवशेषों को बहता देख भोज ने उसे प्रणाम किया, “ईश्वर आपको स्वर्ग में सर्वोच्च स्थान दे, यही मेरी कामना है।”
इतना कहकर भोज पीछे हट गया। भरी आँखों से देवा अपने मित्र की ओर देख उसकी मानसिकता समझने का प्रयास कर रहा था। वहीं कालभोज उन मिट्टी के अवेशेषों को उस घने कोहरे में अपनी दृष्टि से ओझल होता देखता रहा। एक प्रहर तक भोज वहीं जहाज के किनारे खड़ा जल को निहारता रहा। तभी धुंध के बीच से अकस्मात गूँजे एक अंजान स्वर ने कालभोज के कान खड़े कर दिये। तत्काल ही वो दायीं ओर मुड़ा और चीखते हुए अपने एक जहाज को आदेश दिया, “तीसरा जहाज, सावधान।”
रावल के एक स्वर में ही उसके कारवां के दायीं ओर की पंक्ति में तैर रहे तीसरे जहाज के पचासों नाविक शीघ्रता से हरकत में आये, और अपने चप्पूओं को तीव्रता से घुमाते हुए जहाज की दिशा बदली। अगले ही क्षण घने कोहरे के बीच अग्नि में लिपटा एक विशाल गोला उसी ओर बढ़ा, और अपनी दिशा परवर्तित करते हिन्दसेना के जहाज के पीछे के भाग से टकरा ही गया।
किन्तु जहाज को अधिक हानि नहीं हुयी, किनारे का छोटा सा भाग तोड़ते हुए वो गोला जल में समा गया। उसमें अग्नि लगे इससे पूर्व ही हिन्द के वीर पानी के कनस्तर लेकर तैयार थे और शीघ्र ही उन्होंने जहाज के टूटे हुए भाग की ओर पानी डाल डालकर अग्नि को बुझा दिया।
कालभोज तत्काल ही देवा की ओर मुड़ा, “मिली सूचना के अनुसार उनके पास एक ही मंजनीक है। तुम्हें ज्ञात है ना क्या करना है ? अगला गोला आने में अभी समय लगेगा। जाओ, और अब कहाँ मिलना है तुम जानते हो।”
सहमति में सर हिलाते हुये देवा जहाज की छत्त से नीचे उतरा और नीचे के कक्ष में बैठे लगभग दो सौ सशस्त्र योद्धाओं के सामने आया। उन्हें देख देवा ने तलवार और ढाल अपनी पीठ पर टाँगी और उन सैनिकों को आदेश दिया, “आक्रमण का समय आ गया है।” आदेश देकर उसने अपने मुंह में एक हाथ लम्बी लकड़ी की नली लगाईं, जिससे वो पानी में अपना सर ऊपर किये बिना साँस ले सके। बाकी दो सौ सिपाहियों ने भी उसका अनुसरण किया और देवा के साथ साथ धीरे धीरे समुद्र के भीतर अपने अपने शस्त्रों को लिये पानी में कूद गये।
शीघ्र ही भोज ने देखा कि घने कोहरे से पार पाकर अरबों के दस जहाज उसके कारवाँ की बायीं ओर से प्रहार करने को आ रहे थे। अगले ही क्षण उसने एक और अरबी बिगुल सुना जो उसके कारवाँ की दायीं ओर से आ रहा था। कालभोज ने पलटकर देखा तो अरबियों का हरा ध्वज लिए दस जहाज उस दिशा से भी आ रहे थे। हुँकार भरते हुए भोज ने आदेश दिया, “रक्षाकवच।”
रावल का आदेश सुनते ही सर्वप्रथम कुछ सैनिक ढाल उठाये हर एक नाविक के निकट आये और उनके सामने के द्वार ढक दिये ताकि बाहरी आक्रमण से उनका रक्षण हो सके और वो निर्भीक होकर चप्पू चलाते रहे। दस जहाज के पाँच सौ नाविकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपरांत, शेष चार सहस्त्र सैनिकों ने अलग अलग जहाजों पर दो पंक्तियाँ बनायीं। आगे की पंक्ति में लम्बी लम्बी ढाल पकड़े दो सहस्त्र सैनिक थे और उनके पीछे खड़े थे हिन्द के धनुर्धर।
इधर देवा और उसके दो सौ सिपाही लकड़ी की नलियों के जरिये साँस लेते हुए सागर में तैरकर शत्रु की ओर बढ़ते चले जा रहे थे। बायीं ओर से आते अरबों के कारवां में सबसे आगे था मुहम्मद बिन कासिम का जहाज जिस पर एक मंजनीक भी स्थापित थी। अरबी सिपाही उस युद्धक यंत्र को दूसरे आक्रमण के लिए तैयार कर रहे थे।
कासिम पर पैनी दृष्टि जमाये रावल के उदर के घाव से अकस्मात ही रक्त बहने लगा। तभी वो हुआ जिसकी दोनों योद्धाओं को जाने कब से प्रतीक्षा थी, अर्थात सामने आये रावल और कासिम। दोनों के जहाज में महज सौ गज की दूरी थी जब उन दोनों की आँखें मिलीं।
अपने सामने खड़े योद्धा की कदकाठी और नेत्रों का रौद्र देख कासिम को ये अनुमान लगाने में तनिक भी विलम्ब नहीं हुआ कि वो कौन है, “तो आखिर सामने आ ही गया वो जलजला जिसके बारे में इतना सुन रखा था।” मन में नाना प्रकार के विचार लिए कासिम ने तलवार पर अपना कसाव बढ़ाया, “शुज्जा से ज्यादा ताकतवर, जयशाह से पैनी तलवार। आज देखते हैं कि इन कहानियों की सच्चाई क्या है।”
रावल और कासिम के नेत्र एक दूसरे से आ मिले। दोनों अपनी दृष्टि से एक दूसरे की शक्ति को परखने का प्रयास करने लगे। इधर समुद्र में तैरता देवा और उसका दल अपना सर छुपाकर नली से प्राणवायु लेते हुए कासिम के मंजनीक वाले जहाज के निकट पहुँच आये। दो सौ हिन्द के वीर अकस्मात ही जल से निकलकर चप्पू से जहाज को चलाते अरबी नाविकों पर टूट पड़े।
जहाज के नीचे से भगदड़ का स्वर सुन कासिम अचंभित रह गया। देवा और उसके साथी नीचे से ही जहाज के भीतर घुस आये और शत्रु पर भयावह आक्रमण किया। अकस्मात आक्रमण से अचंभित हुए अरबी योद्धा पीछे हटने लगे। देवा के साथियों ने कुछ क्षणों तक शव पर शव गिराये और अवसर पाते ही उसके साथियों ने जहाज को मिट्टी के तेल से छिड़कना आरम्भ किया। बदहवासी में कासिम नीचे दौड़कर अपने सिपाहियों को एकजुट करके आक्रमण को आया, तब तक देवा मशाल तैयार कर चुका था।
कासिम की ओर कटाक्षमय दृष्टि से देखते हुये देवा ने अपने साथियों को आदेश दिया, “वापस जाओ।”
देवा के आदेश पर सारे हिन्दवीर अपनी अपनी सुराही लिए वापस जल में कूद गए, और देवा ने भी मशाल को जहाज के भीतर फेंका और जल में कूद गया। मिट्टी के तेल के संपर्क में आते ही मंजनीक संभाले उस जहाज को अग्नि की लपटों ने घेरना आरम्भ किया। हैरत में पड़ा कासिम अपने साथियों को लेकर पीछे हटने लगा। क्रोध में कासिम ने अपनी बायीं और दायीं ओर चल रहे अरबी जहाज को आदेश दिया, “दुश्मन भागने न पाये। हमला करो।”
बगल के दोनों जहाजों के अरबी तीरंदाजों ने अपने अपने कमान पर तीर चढ़ाये।
“आक्रमण।” रावल ने भी गगनचुम्बी हुँकार भरी। जिसे सुनते ही हिन्दवीरों ने देवा के दल के रक्षण के लिए उन्हीं दोनों जहाजों पर बाणों की वर्षा आरम्भ की जो अभी जल में कूदे देवा के दल पर तीर बरसाने की तैयारी ही कर रहे थे।
कासिम ने देखा कि उसका जहाज अब धीरे धीरे अग्नि की चपेट में आ रहा है। बगल के दो जहाज पर भी आक्रमण हो चुका है। कुछ क्षण विचलित होने के उपरांत कासिम ने अपना पसीना पोछते हुए निर्णय लिया, और अपने साथियों को आदेश दिया, “मंजनीक को भूल जाओ। पानी में तैरकर दूसरे जहाजों पर जाओ।”
इधर रावल की योजना अनुसार देवा और उसके दल ने जहाज पर लौटने के बजाय जल के भीतर से ही अपनी दिशा बदलली और दूसरी दिशा में तैरकर आगे बढ़ गये। वहीं कासिम और उसका दल तैरते हुए अलग अलग जहाज़ों पर चढ़ गया। जहाज में वापस चढ़ कासिम ने पुनः सामने के जहाज की ओर देखा। जहाँ मेवाड़ नरेश गर्व से छाती ताने खड़े थे।
कासिम ने अपनी बायीं ओर देखा। अग्नि ने जहाज के साथ साथ मंजनीक को भी अपने आगोश में लेना आरम्भ कर दिया। जहाज भी टेढ़ा होकर डूबने की कगार पर था, और कई अरबी योद्धा भी अग्नि की चपेट में आ चुके थे।
“बहुत शैतानी दिमाग है तुम्हारा रावल। पर ये जंग अभी खत्म नहीं हुयी।” मन में कटु विचार लिए कासिम ने रावल को घूरते हुए बिगुल बजाया।
“ढालें ऊपर।” गर्जना कर आदेश देते हुए कालभोज ने कंधे उचकाये, अपने रिस रहे घाव पर कसके अंगवस्त्र बाँधा। फिर शिरस्त्राण और कवच धारण करते ही नीचे नाविकों की ओर गए जहाँ ढाल सजाये हिन्दवीर नाविकों के पास ही खड़े थे। रावल ने पुनः सारी परिस्थितियों का आंकलन किया और मुख्य नाविक को आदेश दिया, “कच्छ का टापू बस दो मील की दूरी पर है। शीघ्र चलो। देवा हमें सीधा वहीं मिलेगा।”
इधर ऊपर अरबों के उन्नीस जहाजों ने दोनों दिशाओं से हिन्दवीरों पर तीरों से आक्रमण करना आरम्भ कर दिया। रावल की रक्षणनीति अपनाकर हिन्द के वीर उन लम्बी ढालों पर उन तीरों को झेलते जा रहे थे। वहीं ढालों के पीछे बैठे धनुर्धर नीचे झुककर अपना बचाव कर रहे थे। नीचे ढालों से सुरक्षित होने के उपरांत भी जहाज को चलाते नाविक भी चप्पू खेते हुए थोड़े थोड़े घायल होने लगे।
अरबों के जहाज निकट आते गए। कासिम भी हिन्दसेना को दुर्बल पड़ता प्रसन्नचित हो उठा। रावल ने जहाज के भीतर से ही दूरबीन से आगे देखा। कच्छ के तट से अब वो केवल आधा मील दूर थे और वहाँ सहस्त्रों अरबी घुड़सवारों के साथ अरबी हाकिम अल्लाउद्दीन बुठैल पहले से ही तैनात था। इधर देवा और उसका दल भी सागर तट के निकट पहुँचा और पानी से थोड़ा सर बाहर निकालकर अल्लाउद्दीन के घुड़सवारों की सेना की गतिविधि, उनके घनत्व देखते हुए ये अनुमान लगाने का प्रयास करने लगा कि उन्होंने कितना स्थान घेर रखा है। फिर पुनः जल में जाकर वो अपने योद्धाओं के साथ दूसरी दिशा में तैर गया।
“बहुत अच्छे, देवा।” दूरबीन से देवा की गतिविधि देख लेने के उपरांत म्यान में तलवार और काँधे पर धनुष बाण टांग कालभोज दौड़ते हुए छत पर आया और गर्जना की, “आक्रमण।”
सहस्त्रों हिन्दवीरों ने भी बगल के अरबी जहाजों से आ रहे तीरों के उत्तर में बाण चलाने आरम्भ किये। अकस्मात ही ये प्रहार झेल अरबी जहाज थोड़े पीछे हटने लगे। वहीं हिन्द के नाविक शीघ्र से शीघ्र टापू की ओर बढ़ने को प्रयासरत थे। कासिम भी ये समझकर खुश था कि शत्रु उसके जाल में फँस रहा है, “हमला करते रहो। जाना तो उन्हें टापू पर ही है।”
बाण पर बाण बरसते रहे और कुछ ही समय में हिन्दसेना के जहाज टापू के निकट पहुँच आये। तट से लगभग हजार गज की दूरी पर अल्लाउद्दीन पाँच हजार अरबी घुड़सवारों के साथ हिन्दवीरों की प्रतीक्षा कर रहा था। वहीं अरबी जहाजों ने अब तीन दिशाओं से हिन्द के दसों जहाज घेर लिये ताकि वो टापू पर उतरकर लड़ने पर विवश हो जायें। और हुआ भी वही, आकाश में तीर पर तीर चलते रहे। दोनों पक्ष के योद्धा घायल होकर गिरने लगे।
हिन्दवीरों के साथ अरबी योद्धा भी समुद्र तट पर आ गए। नाव खेने वाले नाविक भी शस्त्र और कवच धारण किये रण में कूद पड़े। लगभग पाँच सहस्त्र हिन्द के वीरों ने कासिम के दस सहस्त्र पैदल सैनिकों पर पूरी शक्ति से आक्रमण किया। कालभोज भी जहाज की छत से सीधा भूमि पर कूदा और निकट आये दो अरबी सैनिकों का मस्तक एक प्रहार में उतार आगे बढ़ा।
उसकी तलवार चलाने की गति देख अचंभित हुआ कासिम कुछ क्षण उसकी ओर देखता ही रह गया। दूर से ही कालभोज की छलाँग, उसका कौशल, शत्रु का शीश काटने की तीव्रता देख कासिम की आँखें आश्चर्य से फटी जा रही थीं। महज बीस क्षणों में भोज ने पन्द्रह अरबी सैनिकों को काट गिराया था, और अन्य को घायल करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था। तभी कासिम ने देखा की अपना मनों भारी भाला उठाये भोज ने उसे एक साथ तीन समांतर दिशा में दौड़ रहे अरबी सैनिकों की छाती में गाड़ा और भाले के द्वारा ही उन तीनों को उठाकर दो और अरबी सैनिकों की छाती पर फेंका। वो सिपाही भी भूमि पर गिरे, और भोज ने दौड़कर तत्काल ही भूमि पर गिरे उन दोनों के भी मस्तक अपनी तलवार से छेद डाले और आगे बढ़ गया।
पाँच सहस्त्र घुड़सवारों के साथ दूर खड़े कासिम के आदेश की प्रतीक्षा कर रहे अल्लाउद्दीन के अभी से पसीने छूट रहे थे। आखिर रावल के रौद्र रूप का उसने पहले भी सामना जो किया था।
कासिम भी उसकी शक्ति देख कुछ क्षण के लिए जड़ सा हो गया, “सही कहा था बादशाह सलीम ने, शुज्जा से ज्यादा ताकतवर, जयशाह से पैनी तलवार। ये अब तक मिला सबसे ताकतवर दुश्मन है।” अपने कंधे उचकाकर कासिम ने जहाज से उतरते हुए तलवार पर अपनी पकड़ मजबूत की, “उस शम्भूदेव ने कहा था कि कालभोजादित्य रावल में वो तीनों ख़ास बातें हैं जो किसी भी जंगजू को हर जंग में फतह का तोहफा देती है। देखते हैं इसकी वो तीन खूबियाँ इसे इस जंग में फतह दिला सकती है या नहीं।”
जहाज से उतरे अरबों ने हिन्दसेना के वीरों को दो दिशाओं से घेरना आरंभ कर दिया था। अपनी तलवार संभाले दौड़ते हुए कासिम ने बिगुल बजाते हुए हरा ध्वज लहराया। उस बिगुल का स्वर सुन रावल ने अपने सामने की ओर देखा।
कासिम का संकेत मिलते ही अल्लाउद्दीन ने अपने अश्व को ऐड़ लगायी और पाँच सहस्त्र घुड़सवारों को लेकर तीसरी दिशा से हिन्दवीरों को घेरने आगे बढ़ा। रक्त में नहाये रावल ने पहले मुस्कुराते हुये कासिम की ओर देखा, फिर पुनः सामने आते पाँच सहस्त्र अश्वों और अल्लाउद्दीन की ओर। कासिम को पहले तो उसकी मंशा समझ नहीं आई। किन्तु जैसे ही रावल ने अपनी कमर में बंधा शंख निकालकर उसे बजाया, तब कासिम को ज्ञात हुआ कि वो कितने बड़े भ्रम में था।
मेवाड़ नरेश के शंखनाद करते ही हर हर शम्भू, हर हर महादेव, जयभद्रकाली का शोर टापू के उस पर्वतीय वन के कोने कोने से सुनाई देने लगा। कासिम का ह्रदय काँपने सा लगा। वन से निकलकर महादेव के नाम की हुँकार लिए देवा के नेतृत्व में सहस्त्रों हिन्द के अश्वारोही दायीं और बायीं ओर से अल्लाउद्दीन की टुकड़ी पर आक्रमण को दौड़ पड़े। कासिम की आँखें आश्चर्य से फटी रह गयीं। एक समय सुनिश्चित दिखाई पड़ रही विजय अब हाथों से फिसलती जान पड़ रही थी।
देवा के नेतृत्व में आई ताज़ी टुकड़ी ने अरबी घुड़सवारों की कमर तोड़कर रख दी। वहीं कालभोज पुनः कासिम की ओर मुड़ा। नेत्रों के ही संकेत से भोज ने उसे द्वन्द की चुनौती दी। कासिम ने देखा की हिन्दसेना की ताज़ी टुकड़ी ने अरबी सेना को बिखेरकर रख दिया है। दस सहस्त्र हिन्द अश्वारोहियों के बीच उसके अरबी योद्धा पिसकर रह गये हैं। सहस्त्रों घुड़सवारों ने अब पैदल अरबी सिपाहियों को भी घेरकर उन पर प्रहार करना आरम्भ कर दिया था। रावल का शौर्य और शत्रु का साहस देख कासिम समझ चुका था कि अब यहाँ से उसकी विजय किसी भी प्रकार से संभव नहीं है। अपने माथे पर छाया स्वेद पोछ कासिम ने भी दूर खड़े अरबों के शव गिरा रहे रावल की ओर देखा जो रक्त में नहाये उसी की ओर बढ़ा चला आ रहा था।
जीवन में पहली बार कासिम के पैर सामने खड़े योद्धा को देख लड़खड़ाये थे। अब तक केवल रावल के शौर्य की कथायें सुनने वाले कासिम ने आज अपने नेत्रों से उसका रौद्र रूप देख लिया था। फिर भी उसने तलवार पर अपनी पकड़ मजबूती से बनाये रखी। भागने को पीछे केवल समुद्र था और दायीं ओर हिन्द के घुड़सवार पहले ही घेरा डालकर आक्रमण कर चुके थे। अब सामने आये रावल का सामना करने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं था। पिछले छह वर्षों से जिस महावीर की वो केवल कथायें सुन रहा था, आज वो स्वयं साक्षात उसके समक्ष आ रहा था। कुछ क्षण विचार कर मुस्कुराते हुए कासिम ने अपने शस्त्रों पर कसाव बढ़ाया, “कुर्बानी का जज्बा। उन तीन खूबियों में से एक। क्या ये एक चीज मुझे इस जंग में फतह दिला सकती है?” कंधे उचकाये उसने निकट आते रावल की ओर देखा फिर अपने साथ खड़े एक सिपाही को आदेश दिया, “जल्दी करो, जहाज से मेरे घोड़े को भेजो।”
रक्त से सनती हुयी सागर तट की भूमि शवों से पटती चली जा रही थी। सागर का जल बार बार अपना आकार बढ़ाकर आता और अपने जल से भूमि को स्वच्छ करने का प्रयास करते हुए मुट्ठीभर शवों को अपने साथ बहाकर ले जाता। किन्तु प्रकृति के उस तत्व का प्रयास बार बार विफल सिद्ध होता। क्योंकि जितने समय में वो उन शवों को बहाकर अपने आगोश में लेता, उतने में उसके दोगुने से भी अधिक मनुष्य गिरकर शवों में परिवर्तित होकर द्वीप को दूषित किये जा रहे थे।
कासिम जहाज से आये अपने घोड़े पर सवार हुआ ही था, कि अकस्मात ही बादल गरज पड़े। संध्या से एक प्रहर पूर्व ही आकाश के बादल इतने काले हो गए मानों शाम ढल आई हो। कुछ ही और क्षणों में वो बादल गरजे और वर्षा अपना प्रचंड रूप लिए धरा पर गिर पड़ी। समुद्र तट की गीली मिट्टी पर फिसलन और बढ़ने लगी। वहीं अपने शरीर पर बरसते जल के सान्निध्य को अपनी शक्ति का माध्यम बनाकर कालभोज अपने शत्रु की ओर दौड़ पड़ा। वहीं कासिम ने भी अपने अश्व को एड़ लगायी, दायें हाथ में भाला संभाला और साहस जुटाए दौड़ पड़ा मूसलाधार वर्षा के बीच महारावल से संघर्ष करने को।
बायें हाथ में एक मजबूत ढाल और अपनी भारी तलवार को थामे कालभोज अपने प्रधानशत्रु के तीव्रगति से आते भाले से बचते हुए उसके अश्व के बगल से निकल गया। कासिम अपना अश्व लिये आगे बढ़ गया, फिर पुनः कालभोज की ओर पलटा। भाले पर अपनी पकड़ मजबूत कर कासिम ने श्वास भरी और पुनः महारावल की ओर दौड़ पड़ा। शत्रु के शस्त्र और उसके अश्व की गति का विश्लेषण करने हेतु इस बार भी भोज ने कासिम पर प्रहार करने के स्थान पर केवल उसके भाले से बचने का प्रयास किया, किन्तु चतुर और फुर्तिला कासिम इस बार वीर गुहिल के कंधे पर घाव करते हुए निकल गया।
अपने घाव की ओर देख मुस्कुराते हुए गुहिल ने कंधे उचकाये और अपने ठीक सामने दो हाथ ऊँचा टीला देखा, फिर जड़ होकर अपने ही स्थान पर खड़ा हो गया। गुहिलदेव को घाव देकर आत्मविश्वास से भरे कासिम ने पुनः अश्व को उसी ओर मोड़ा और भाला नचाते हुए प्रहार करने चला।
जब कासिम के अश्व की दूरी महज तीन गज रह गयी, तब शत्रु की गति का अनुमान लगाये रावल ने दौड़ते हुए बगले के टीले पर पाँव रखा फिर अकस्मात ही पलटकर छलाँग लगाते हुए ढाल से सीधा कासिम के अश्व पर प्रहार कर दिया। उस प्रहार में इतनी शक्ति थी कि कासिम अश्व सहित लुढ़कते हुए भूमि पर गिर गया।
रावल के बल का भान लिए कासिम पुनः उठा और गिरे हुए अश्व की पीठ पर से तलवार और ढाल निकालकर संभाली। वर्षा इतनी तीव्र थी कि बलाढ्य से बलाढ्य वीरों के लिए शस्त्र थामकर संतुलन बनाये रखना अत्यंत दुष्कर होता, पर सामने आये रावल और कासिम ने कदाचित इस क्षण के लिए जाने कबसे प्रतीक्षा की थी।
“मुहम्मद बिन कासिम अल सकिफी, यही नाम है न तुम्हारा ?” रावल की वो गगनभेदी गर्जना मूसलाधार वर्षा के स्वर पर भी हावी थी।
कासिम ने सहमति में सर हिलाते हुए कहा “पिछले छह सालों से तुम्हारे किस्से सुनते आ रहा हूँ, कालभोज। आज पहली बार तुम्हारा दीदार करके दिल बाग़ बाग़ हो गया। बहुत से हाकिमों को धूल चटाई है तुमने, पर आज किस्मत ने तुम्हें उम्मयद खिलाफत के सबसे बड़े जंगजू के सामने लाकर खड़ा किया है। ये जंग आसान नहीं होने वाली।”
रावल ने मुस्कुराते हुए कटाक्ष किया, “हमें भाग्य ने नहीं मिलाया। तुम यहाँ मेरी इच्छा से आये हो।”
कासिम की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयीं, “मतलब वो लोग...”
“तुम अरबों का आश्रय लेने भिन्नमाल के चावड़ आये, हिन्दसेना की विजय की खातिर मिथ्या एक सूचना लाये।”
रावल के वचन सुन कासिम के पाँवों तले जमीन खिसक गयी। मुट्ठियाँ भींचे दांत पीसते हुए उसने अपने शस्त्रों पर पकड़ मजबूत की, “तो भिन्नमाल के चावड़ तुम्हारे दुश्मन नहीं थे।”
“तुम अब भी नहीं समझे कासिम। भिन्नमाल के पूर्व नरेश वनराज चावड़ तो अब भी हमारे बंदी हैं। तुम्हारे पास जो लोग आये थे वो तो सिंध के गुप्तचर दल से बोधिसत्व संघ के लोग थे। तुम स्वर्ण लुट जाने से इतना व्यथित थे कि उन्हें पहचान ही नहीं पाये, और यहाँ हमें दुर्बल जान घेरने के मंतव्य से आ पहुँचे।”
कासिम कुछ क्षण विचलित खड़ा रावल को देखता रहा। फिर तलवार और ढाल पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए बोला, “हम्म, तभी तुम्हारी फ़ौज यहाँ पहले से हमारे मुकाबले के लिए तैयार खड़ी थी, हम्म ? पर कोई बात नहीं। तुम्हारे गिरते ही तुम्हारी फ़ौज भी हथियार डाल देगी। बस उम्मीद करता हूँ कोई हमारे बीच नहीं आयेगा।”
“नहीं आयेगा, दिया वचन। अब तुम भी अपना प्रयास करके देख लो।” अपनी भारी तलवार नचाते हुए रावल अपने पैर जमाये खड़ा हो गया।
वर्षा से सागर के जल का बहाव और उसका स्तर भी धीरे धीरे बढ़ने लगा और उस भारी जल प्रपातों के मध्य कर्णों को चीर देने वाला स्वर लिए टकरा गयीं रावल और कासिम की तलवार।
इधर अपने अश्व को दौड़ाते और उँगलियों पर अपना भाला नचाते हुए देवा ने अल्लाउद्दीन की छाती पर मर्मांतक प्रहार करके उसे उसके अश्व से गिरा दिया। अल्लाउद्दीन अभी उठा ही था कि देवा के अश्व ने अपने खुरों से उसकी छाती पर भीषण प्रहार किया। पीड़ा से विचलित हुआ अल्लाउद्दीन लुढ़कता हुआ अपनी सेना के मध्य जा गिरा, और अपने ही अरबी अश्वों के खुरों से बचने का प्रयास करते हुए किसी प्रकार संभलते हुए उठा। उसका आखेट करने को हठबद्ध देवा ने पुनः उसकी ओर दौड़ लगायी। इस बार अल्लाउद्दीन ने भूमि पर गिरा एक टूटा हुआ भाला ढूंढ लिया, और उस छोटे से नुकीले टुकड़े को पूरी गति से देवा के अश्व के मस्तक की ओर लक्ष्य कर फेंका। देवा ने अपने अश्व को घुमाकर बचाने का प्रयास किया किन्तु वो टुकड़ा फिर भी उसके अश्व के कंठ में आकर धँस गया। पीड़ा से हिनहिनाता अश्व अपना संतुलन खोने लगा। उसके गिरने से पूर्व ही भाला और ढाल संभाले देवा भूमि पर कूद गया। अल्लाउद्दीन भी कहीं से भाला और तलवार ढूँढ लाया और देवा की ओर दौड़ पड़ा।
दौड़ते हुए दोनों योद्धा टकराए और अल्लाउद्दीन ने भाले और तलवार दोनों के उपयोग से देवा को पीछे धकेलना आरम्भ किया। भाले से भाला टकराया और तलवार के प्रहार को देवा अपनी ढाल पर रोकता रहा। शत्रु के उन भीषण प्रहारों से बचते हुए देवा पीछे हटता गया और अल्लाउद्दीन को स्वयं पर हावी होने दिया। अपना रक्षण करते देवा को बीस गज पीछे हटाकर जब उस अरबी हाकिम को अत्याधिक आत्मविश्वास हो गया, तभी देवा ने पाँच और गज पीछे दौड़कर ढाल को चक्र की भांति घुमाकर फेंका जो सीधा अल्लाउद्दीन की ठोड़ी पर चोट कर गया। तलवार को छोड़ अचंभित हुये अल्लाउद्दीन ने अपनी ठोड़ी को संभाला ही था कि देवा ने कमर से कटार निकालकर उसकी ओर चलाई और सीधा उस अरबी हाकिम की कमर में घुसा दी।
लड़खड़ाते हुए अल्लाउद्दीन पीछे हटा और उसकी दृष्टि कमर में धँसी कटार की ओर गयी, फिर उसने दृष्टि उठाकर देखा ही था कि सिंहनाद करते हुए देवा की ढाल का प्रहार सीधा उसके मस्तक पर हुआ। अल्लाउद्दीन का शिरस्त्राण टूटा। वो चक्कर खाकर धरती पर गिर पड़ा और मूर्छित हो गया। मूर्छित योद्धा पर प्रहार करना देवा को उचित न लगा और वो दूसरे योद्धाओं से जा भिड़ा।
इधर कालभोज का मुष्टि प्रहार खाकर कासिम धरती पर गिर पड़ा। अपने प्रतिद्वंदी की भयानक शक्ति से परिचित होकर कासिम का मस्तक झनझना गया। उसने पुनः उठकर रावल को घूरा इतने में भारी वर्षा के बीच सागर की एक बड़ी सी लहर आई और अपने भारी बहाव के थपेड़ों से दोनों योद्धाओं को कुछ क्षणों के लिए एक दूसरे से दूर कर दिया। इससे कासिम को संभलने का अवसर मिल गया।
दौड़ता हुआ कासिम पुनः रावल के निकट गया और उसकी तलवार के वार से बचते हुए घुटनों के बल झुककर ढाल से उसकी छाती पर वार किया। कासिम के वार में भी इतनी शक्ति थी कि कालभोज को भी चार गज पीछे धकेल दे। उस अरबी हाकिम का आत्मविश्वास बढ़ा और वो पुनः रावल की ओर चला। अपने पाँव की ओर बढ़ते उसके प्रहार को रोकने के लिए रावल हवा में उछला और उसकी छाती पर लात मारी। कासिम ने किसी प्रकार वो प्रहार सहा और कुछ पग पीछे हटकर भूमि पर गिरने से स्वयं को बचाए रखा।
इस बार कालभोज ने आगे बढ़कर आक्रामक प्रहार आरम्भ किये। भोज ने तलवार भांजनी आरंभ की। एक के बाद एक शक्तिशाली वार को अपनी ढाल पर रोक कासिम पीछे हटता रहा। उसके बायें हाथ में थमी ढाल पर भी अब दरार पड़ना आरंभ हो गयी थी। भूमि पर झुककर रावल के प्रहार सहते हुए अकस्मात ही कासिम को अवसर मिला और बिजली की फूर्ति से तलवार चलाते हुए उसने रावल के ढाल थामे हाथ पर प्रहार किया।
भोज ने हाथ पीछे कर उस वार से बचने का प्रयास किया किन्तु कासिम की चमकती तलवार के वार ने उसकी उँगलियों पर घाव किया और वो ढाल छोड़कर पीछे हटने पर विवश हो गया। हालांकि कासिम की ढाल में भी अच्छी खासी दरार पड़ गयी थी, फिर भी रावल की ढाल छुड़ाकर मुहम्मद बिन कासिम का आत्मविश्वास कई गुना बढ़ गया।
अपनी ऊँगली से बहता रक्त देख रावल ने मुस्कुराते हुए कासिम को घूरा। सुबर्मन के उपरांत कासिम पहला ऐसा योद्धा था जिसने कालभोजादित्य रावल के हाथ से कोई शस्त्र छुड़ाया था। गिरी हुयी ढाल भोज ने पुनः नहीं उठाई और अपने स्थान पर स्थिर खड़ा रहा।
कासिम दौड़ता हुआ प्रहार करने आया, उसकी तलवार के प्रहार को रावल ने अपनी तलवार से रोका, और तीव्रगति से आती उस अरबी हाकिम की ढाल पर मुष्टिका का भीषण वार किया। दरारों से भरी कासिम की ढाल इस बार दो टुकड़ों में बंटकर गिर गयी। फिर उसकी छाती पर पंजा मारकर रावल ने उसे चार गज पीछे धकेला और पूर्ण बल से अपनी तलवार लिए उछला। कासिम ने उस प्रहार को अपनी तलवार पर झेलने का प्रयास किया, किन्तु इस बार उसके खड्ग ने भी पराजय स्वीकार कर ली और दो टुकड़ों में बंट गयी। रावल ने अपनी तलवार नीचे रखकर कासिम की छाती पर एक और पंजा मार उसे भूमि पर गिरा दिया, और इससे पूर्व वो उठकर खड़ा होता, भोज ने उसके दोनों पाँव पकड़कर और उसे उठाकर एक टीले की ओर फेंका। पत्थर के टीले से टकराकर कासिम पुनः भूमि पर गिरा।
अपने सिपहसालार को इस तरह भूमि पर गिरा देख अरबी सिपाहियों के शस्त्र भी ढीले पड़ने लगे, और वो हिन्दवीरों का आखेट बनने लगे। वहीं कासिम ने भी अपना माथा पीटते हुए स्वयं को समझाने का प्रयास किया, “नहीं, नहीं, ये सिर्फ डर है, उन किस्सों का डर। ये भी एक इंसान ही है और ताकत मुझमें भी कम नहीं।”
स्वयं को समझाकर गुर्राते हुए कासिम ने अपना शिरस्त्राण और कवच दोनों उतारा, और कंधे उचकाये कालभोज की ओर दौड़ा। भोज ने भी स्वयं के शरीर को कवच और शिरस्त्राण के भार से मुक्त किया और मुट्ठियाँ भींचे कासिम की प्रतीक्षा करने लगा। रावल के निकट पहुँचते ही कासिम ने हवा में उछलकर अपने प्रतिद्वंदी की छाती पर लात मारी।
पहली बार इस द्वन्द में कालभोज भूमि पर गिरा। अपनी भुजायें फड़काते हुए कासिम उसी ओर दौड़ा, इतने में ही रावल ने उठते हुए अपनी बायीं कोहनी से शत्रु की छाती पर वार कर उसे पीछे हटा दिया। दोनों प्रतिद्वंदियों ने पुनः एक दूसरे के नेत्रों में देखा और मल्लयुद्ध को भिड़ गये।
वर्षा रुक चुकी थी। आकाश से बादल छंट चुके थे, और शीतकाल की उस ऋतु में भी पर्वतों के नीचे जाते सूर्य का प्रकाश दिखने लगा था। सागर तट की गीली मिट्टी में दोनों योद्धा लोटते हुए एक दूसरे को पछाड़ने का प्रयास करने लगे और अंततः अवसर पाकर रावल ने कासिम को अपने कंधे पर उठा लिया और नचाते हुए भूमि पर फेंका।
भूमि पर गिरते ही कासिम का अंग अंग अब उसकी क्षीण हुयी शक्ति का प्रमाण देने लगा। वो भूमि से उठा ही था कि भोज का भीषण मुष्टि प्रहार उसके मुख पर हुआ। रक्त उगलते कासिम का माथा पुनः चकरा गया। अत्यधिक आत्मविश्वास में उसने कालभोज को मल्लयुद्ध की चुनौती देकर बहुत बड़ी भूल की थी। भोज ने निकट आकर उसके मस्तक पर एक और मुष्टि का वार किया। चक्कर खाकर कासिम पुनः धरा पर गिरा और किसी सहायता की आशा से अपनी दृष्टि घुमाकर इधर उधर देखने लगा। तभी उसके हाथ में मिट्टी में दबी एक शूलगदा का हत्था आ गया। रावल पीछे से उसके निकट आया ही था कि उसने उठते हुए दस हाथ लम्बी बेड़ी से जुड़ी वो शूलगदा घुमाई।
भोज ने अपनी चपलता का प्रयोग कर बचने का प्रयास किया, किन्तु उस गदा के शूल उसके उदर को छू ही गए, और उसके वो अंगवस्त्र फाड़ डाले जिसने अब तक उसके घाव को ढक रखा था।
रावल थोड़ा लड़खड़ाया। देबल के युद्ध में सलीम के दिये घाव से फिर से रक्तस्त्राव आरम्भ हो गया था। वहीं शूलगदा थामे कासिम ने मुस्कुराते हुए भोज को घूरा और पुनः शूलगदा उसकी ओर चलाई। नेत्रों में रक्त का अंगार लिए कालभोज इस बार उस वार से बचा और शूलगदा से जुड़ी बेड़ी ही पकड़ ली।
कासिम गदा छुड़ाने का भरसक प्रयास करता रहा किन्तु महारावल की पकड़ इतनी सुदृढ़ थी कि वो प्रयास ही करता रह गया और कालभोज उसके निकट आ गया। अगले ही क्षण भोज ने कासिम को पकड़कर वही बेड़ी उसके गले में डालकर जोर लगाकर उसका गला घोंटने का प्रयास करते हुए उसे घुटनों के बल झुका दिया, “कहो मुहम्मद बिन कासिम, पराजय स्वीकार करते हो ?”
प्राणवायु को तड़पते कासिम ने उस शूलगदा की बेड़ियों पर हाथ मारना आरम्भ किया। तभी सूर्यास्त का शंखनाद सुन रावल के हाथ अपने आप रुक गए। उसने कासिम के मुख पर पुनः मुष्टि प्रहार किया। इस बार मस्तक पर हुआ वो वार कासिम सहन न कर पाया और चक्कर खाकर मिट्टी में गिर पड़ा।
“हर हर महादेव।” देवा ने हिन्दसेना का ध्वज लहराते हुए विजय की घोषणा की। सिंह से चिन्हित केसरिया रंग का ध्वज को रण में लहराते और हर हर महादेव के नारे सुन अरबों ने अपने शस्त्र डालने आरम्भ कर दिए।
वहीं रावल ने लगभग अचेत हुए कासिम की छाती पर पाँव रख गर्जना की “जय एकलिंग जी।” इसी उद्घोष के साथ कालभोज ने विजय का शंखनाद किया।
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अगले दिन प्रातः काल कासिम की आँखें खुलीं तो उसके समक्ष स्वच्छ आकाश था। पक्षियों के चहचहाने का स्वर सुन उसकी नींद टूटी। वो उठकर बैठा तो पाया कि वो अब तक बड़े आराम से एक लकड़ी की चौकी पर लेटा हुआ था। उसके घावों पर औषधियां लगी हुयी थीं। दृष्टि उठाकर देखा तो पाया उसे हिन्द के दसियों योद्धाओं ने घेर रखा है और सामने लकड़ी की चौकी पर ही बैठा कालभोज उसे देख मुस्कुरा रहा था “निद्रा पूरी हो गयी, मुहम्मद बिन कासिम ?”
कासिम ने बिना कुछ कहे भौहें सिकोड़ते हुए रावल को घूरा। वहीं भोज ने अपने एक सैनिक को संकेत किया। वो सैनिक एक पात्र में हरे रंग की औषधी लेकर कासिम के निकट आया, “पी लीजिये, शीघ्र स्वस्थ हो जायेंगे।”
सैनिक के हाथ से वो पात्र लेकर कासिम ने संशय में भरकर उस हरे रंग के द्रव्य को देखा।
“यदि तुम्हारा अंत ही करना होता, तो उसके लिए विष की आवश्यकता नहीं थी। मेरी भुजायें ही पर्याप्त थीं।” रावल ने कटाक्षमय स्वर में कहा, “पी लो। स्वास्थ्य लाभ होगा।”
रावल के नेत्रों में सत्यता का आभास कर कासिम भौहें सिकोड़े उस औषधि को पी गया। फिर मुँह पोछते हुए उसने कालभोज से प्रश्न किया “दुश्मन को कैद करने का तरीका बड़ा नायाब है तुम्हारा। मुझे जिन्दा रखने की वजह क्या है?”
कालभोज मुस्कुराया “कैदी ? नहीं, नहीं, मुहम्मद बिन कासिम। तुम तो हमारे अतिथि हो। आखिर छद्म चावड़ों के प्रयोग से हमने ही तो तुम्हें यहाँ बुलाया है। इसलिए जब तक अतिथि की तरह व्यवहार करोगे, अतिथि का ही सम्मान पाओगे।”
कासिम ने क्षणभर रावल को घूरा फिर पुनः प्रश्न किया, “दूसरे सवाल का जवाब नहीं दिया तुमने।”
“यही न कि तुम्हें जीवित रखने के पीछे हमारा क्या मंतव्य है ? तो ध्यान से सुनो, कासिम।” उठकर भोज उसके निकट आया, “हमने देबल पर आक्रमण करके सलीम का वध करने की योजना बनाई, जिससे ब्राह्मणाबाद पर विजय प्राप्त करने का हमारा मार्ग सरल हो जाये। असफलता मिलने पर ये पूर्व निश्चित था कि हम बहरूपिये चावड़ों को तुम अरबों के पास भेजकर तुम्हारे मन में ये भ्रम डालेंगे कि यदि समय रहते तुमने हमारे सागर कारवां पर आक्रमण कर दिया तो तुम अपना स्वर्ण भी वापस लूट सकते हो, और मेरा वध भी कर सकते हो। इस कार्य के लिए तुम्हारे पास केवल दो ही प्रमुख सेनापति थे एक तुम और दूसरा सलीम। सलीम ब्राह्मणाबाद का राजा है, उसे तो तुम भेजने वाले थे नहीं। समय की कमी के कारण तुमने इस पर गहन विचार नहीं किया और तुम हमारे जाल में फँस गये।” मुस्कुराते हुए रावल ने कासिम को घूरकर देखा, “रही बात तुम्हें जीवित रखने की, तो ये मेरा निर्णय था। ये युद्ध मैंने इसीलिए किया था कि तुम्हें एक अंतिम अवसर दे सकूँ।”
“मैं कुछ समझा नहीं।”
कालभोज उठकर कासिम के निकट आया, “तुम पिछले चार महीनों में दो लाख से भी अधिक सिंधियों को दासत्व की बेड़ियों में बाँधकर इराक भेज चुके हो। जाने कितनी नारियों का शील भंग किया, गऊओं को चौराहों पर काटा, मंदिरों को तोड़ा। सत्य कहूँ तो यदि ये मेरा निजी युद्ध होता, तो मैं तुम्हारे सौ टुकड़े कर देता। किन्तु यहाँ प्रश्न एक महाविकराल संग्राम का है। जानता हूँ खिलाफत से तुम्हारी लाखों की सेना भी आने वाली है। जब लाखों से लाखों टकरायेंगे तो पूरी सिंध की भूमि रक्त की नदी बन जायेगी। इसलिए देबल का स्वर्ण लूट उस पर विजय प्राप्त करने के उपरांत हमने तुम्हें यहाँ बुलाकर अपनी शक्ति और नीति का प्रदर्शन दिखाया।”
“अपनी चालाकी और ताकत की नुमाइश करके साबित क्या करना चाहते हो ?”
भोज ने क्रोध में भरकर कासिम के कंधे को पकड़ा, “तुम्हें भलीभांति ज्ञात है कि तुम आने वाले युद्ध में विजयी नहीं हो सकते। क्योंकि तुमने जो सिंधियों पर अत्याचार किये हैं, उसका परिणाम तुम स्वयं देख चुके हो।”
कासिम कटाक्षमय भाव में मुस्कुराया और शय्या से उठते हुए कालभोज से नजरें मिलाईं, “तो तुम्हें लगता है चंद सिंधियों ने हमसे बगावत कर दी, तो तुम्हारे आने से पूरी सिंध की आवाम ही तुम्हारी तरफ आ जायेगी? बहादुरी के कुछ किस्से क्या मशहूर हो गए तुम्हारे, लगता है तुमने अपने आप को खुदा ही समझ लिया।”
“ये व्यर्थ का मूर्खतापूर्ण तर्क तुम स्वयं को ढांढस बँधाने के लिए दे रहे हो या तुम्हें ये लगता है कि तुम अपने इन वचनों से सत्य और हमारे दृष्टिकोण को बदल लोगे?”
रावल के कटाक्ष के बाण ने कासिम के होंठों को सी दिया। भोज ने दृढ़ होकर कहना आरम्भ किया “सत्य क्या है तुम भी जानते हो ? विद्रोह केवल सागर तट पर लूट में हमारा साथ देने वालों ने ही नहीं किया, अपितु देबल के युद्ध में भी ज्ञानबुद्ध के आधे योद्धाओं ने उसका साथ छोड़ दिया था। और उसकी वजह सीधी सी है क्योंकि उन्होंने तुम अरबों के अत्याचारों को देखा है और कहीं न कहीं तुम्हारा समर्थन देने वाले सिंधी भी अब जानने लगे हैं कि तुम लोग समय आने पर उन्हें भी नहीं छोड़ोगे। युद्ध में जब सेनायें लगभग बराबर हों, तो विजय उसी की होनी है जिसके पास उस जनमानस का समर्थन हो और जो वर्षों से वहाँ निवास कर रहे हों। तुम्हें सिंध पर अधिकार किये चंद महीने ही हुए हैं। और एक राज्य की भूमि को समझने और उसका उचित प्रयोग करना सीखने में वर्षों लग जाते हैं। कौन सी फसल कब और कितनी बेहतर उगती है, किस ऋतु में कौन से भोज्य पदार्थ का अधिक उपयोग हो सकता है और किसका कम, कौन से और किस तरीके के व्यापार से अधिक से अधिक धन लाभ होगा। ये सब जाने बिना और संसाधनों पर नियंत्रण पाए बिना कोई भी राजा लम्बे समय तक शासन नहीं कर सकता। सत्य यही है कि वर्षों से निवास कर रहे साधारण जनमानस के भौतिक ज्ञान और समर्थन के बिना तुम्हारी सेना की शक्ति क्षीण होती जाएगी। और समर्थन प्राप्त करने के लिए प्रजा के ह्रदय में स्थान बनाना पड़ता है, जो तुम अरबी कभी नहीं बना सकते।”
कासिम ने रावल के तर्क का कोई उत्तर नहीं दिया, बस मुट्ठियाँ भींचे उसे घूरता रहा। रावल ने पुनः चेतावनी देते हुए कहा, “हमारे पूर्वज मर्यादा पुरुषोत्तम अयोध्या नरेश प्रभु श्रीराम ने भी युद्ध से पूर्व लंकापति रावण को अंतिम चेतावनी दी थी। भले ही तुमने कितने ही पाप किये हों, किन्तु एक रघुवंशी होने की मर्यादा का मान रखते हुए इतने विकराल नरसंहारक युद्ध को छेड़ने से पूर्व मैं तुम्हें अंतिम अवसर देना चाहता हूँ। मैं जानता हूँ राजा भले ही सलीम हो पर अरबी सेना सुनती केवल तुम्हारी है, मुहम्मद बिन कासिम। तुमने भी वर्षों संघर्ष करके सिंध को जीता है, इसलिए यदि तुम सिंधी प्रजा से न्यायोचित व्यवहार का वचन दो, तो मैं तुम्हें प्राणदान भी दूंगा और आधा सिंध भी तुम्हारा। आलोर और ब्राह्मणाबाद दोनों में से किसी एक को अपनी राजधानी चुन लो। मैं मेवाड़ नरेश कालभोजदित्य रावल तुम्हें वचन देता हूँ कि यदि तुमने संधि का मार्ग चुना तो देबल से लूटा हुआ सारा स्वर्ण भी तुम्हें लौटा दिया जायेगा और आधे सिंध पर तुम्हारा अधिकार होगा। और हिन्द की सेना आधे सिंध पर अधिकार करके ये सुनिश्चित करेगी कि तुम अरबी सिंधियों पर अत्याचार न करो।”
रावल का प्रस्ताव सुन कासिम सोच में पड़ गया। भोज ने पुनः कठोर स्वर में कहा, “स्मरण रहे, ये अंतिम अवसर है। क्योंकि यदि एक बार हम सारे क्षत्रिय अपने शस्त्र धारण कर रण में उतर आये, तो हमारी तलवारों में केवल सिंध को मुक्त कराने का संकल्प ही नहीं, अपितु हर नारी का शील भंग करने वाले असुरों का रक्त बहाने की प्यास भी होगी। गौहत्या और मंदिरों को ध्वस्त करने वाले हाथ काट दिये जायेंगे, सिंधियों को दास बनाने वाले हर असुर का शव भूमि पर गिरा दिखाई देगा। राजा दाहिर ने तुम अरबों को कई बार युद्ध में हराया और हर बार तुम अरबी रण से भागते और पुनः शक्तिशाली होकर आक्रमण करते। तुमने सद्पुरुषों के आचरण का बहुत लाभ उठाया, किन्तु स्मरण रहे यदि इस बार युद्ध हुआ तो हम तुम्हारे योद्धाओं को लौटने का अवसर भी नहीं देंगे। इसलिए उचित यही होगा कि संधि और शांति का मार्ग चुनकर आने वाले विनाश को रोक लो। अब सब तुम्हारे हाथ में है।”
क्षणभर रावल की ओर देख कासिम मुस्कुराया, “सही कहा था आचार्य शम्भूदेव ने। तुम हिन्द के जाबांजों की वो तीन खूबियाँ तुम्हारी ताकत का सबसे बड़ा राज है।”
“क्या मतलब है तुम्हारा?”
अपनी तक्षशिला यात्रा का वृतांत सुनाते हुए मुहम्मद बिन कासिम ने भोज से प्रश्न किया, “क्या लगता है तुम्हें ? क्या पंडित शम्भूदेव सही थे ?”
“तुम्हारी आँखें चीखती हुयी कह रही हैं कासिम, कि तुमने उन तीन गुणों के सत्य की गरिमा और उसकी शक्ति का स्वयं आभास किया है जिसका भान तुम्हें आचार्य शम्भूदेव ने कराया था। तो फिर भला तुम्हें मुझसे उत्तर की अपेक्षा क्यों है ?”
“क्योंकि शम्भूदेव का मानना था कि उन तीन खूबियों को अपनी जिन्दगी में सबसे लम्बे वक्त तक अगर किसी ने ढाला है तो वो तुम हो।”
“ये सब तो मेरे गुरुदेव महाऋषि हरित की कृपा है।” कालभोज ने गर्व से कहा “और उसका परिणाम तो तुम्हारे सामने दिखाई दे रहा है।”
श्वास भरते ही कासिम ने दृढ़ होकर कहा “माना इस वक्त पलड़ा तुम्हारा भारी है, कालभोज। पर थोड़े दिनों के लिये आचार्य शम्भूदेव से सबक लेने के बाद हम अरबों ने भी अपने जंग के तौर तरीके बदलने शुरू कर दिए हैं। बहुत जल्द हम सिंधियों का भरोसा जीतेंगे, और इस जंग का अंजाम हमारे हक़ में होगा। मैं बादशाह सलीम को ऐसी तरकीब के बारे में समझाकर आया हूँ कि अगर मैं यहाँ मारा भी जाऊं, तो भी अरबों में इतनी ताकत होगी कि वो तुम्हारी हिन्द की फ़ौज को सिंध से बाहर खदेड़ सकें।”
कालभोज हँस पड़ा। कासिम उसका अट्टाहस सुन चिढ़ गया। उसका मुख देख कालभोज ने पुनः अपने कटाक्ष के बाण चलाये, “इस बात से कोई अनभिज्ञ नहीं कि तुम जैसे योद्धाओं को बाल्यावस्था से हम हिन्द के लोगों से घृणा का पाठ पढ़ाकर तैयार किया जाता है। और तुम्हें लगता है रातों रात तुम्हारी ये प्रवृति बदल जायेगी ?”
“मेरे लोग इतने भी बेगैरत नहीं हैं, जो मेरे इस हुक्म की तामिल न कर सकें।”
मुट्ठियाँ भींचे कालभोज ने निकट आकर कासिम से आँखें मिलाई, “मनुष्य की मूल प्रवृति कभी नहीं बदलती, कासिम। चंद नगरों के नगरप्रमुख भय अथवा लालच के कारण तुम्हारे साथ संधि कर सकते हैं, तुम्हारे दासत्व में बंध सकते हैं। किन्तु सामान्य जन ऐसे लोगों के बहकावे में नहीं आने वाले। क्योंकि तुम लोग उन्हें कभी ह्रदय से स्वीकार कर ही नहीं सकते, यही तुम विदेशी आक्रमणकारियों की प्रवृति है। सहायता के बढ़ते हाथों में यदि सहचरी के भाव के स्थान पर करुणा का ढोंग और स्वार्थ हो, तो सहायक के मन में उपकार का अहंकार आ जाता है, और सहायता लेने वाला मनुष्य देर सबेर उसकी प्रवृति का सत्य जान ही लेता है, और वो समझ जाता है कि सहायक के मन में उसके लिए कोई सम्मान नहीं है। ऐसे तत्व समाज में ऊँच और नीच का भाव उत्पन्न करके अराजकता के बीज बोते हैं। और ऐसा समाज बनाने वाले शासकों ने सदैव पतन का सामना किया है, और यही होता रहेगा।”
अंगडाई लेते हुए कासिम दृढ़ स्वर में बोला, “अपनी ये फिजूल की बकवास करते हुए तुम अपने हिन्द के लोगों की फितरत भूल गए। मेहमान को खुदा का दर्जा देते हैं तुम्हारे लोग। और मैं यहीं तुम्हारे सामने सीना ठोक के बोलता हूँ, हम उनकी इसी खासियत का फायदा उठाकर उनके दिलों में वापस जगह बनायेंगे। ये तो सच है कि सिंध पर जुल्म बहुत हुए हैं पर याद रहे मैं जो तरकीब बादशाह सलीम को समझाकर आया हूँ, मेरे ना होने पर भी एक महीने के अंदर सिंधी पूरी तरीके से हमारे वफादार हो जायेंगे, और तुम्हारी फ़ौज इतनी जल्दी तो हमला कर नहीं पायेगी। तो सोच लो जंग में फतह किसकी होगी।”
कासिम की कपोल कल्पित बातें सुन भोज मुस्कुराकर उसकी ओर देखता रहा।
श्वास भरते हुए कासिम आगे बोला, “जानता हूँ तुम्हारे जासूस सिंध के चप्पे चप्पे पर फैले हैं जो बहुत आसानी से हमारी तरकीबों की खबर तुम तक पहुँचा सकते हैं। तो ध्यान से सुनो रावल, मैं तुम्हें यहीं इसी वक्त अपनी सारी तरकीबें बता देता हूँ, ताकि तुम अपना वक्त जाया न करो। हम पहले ये किस्से फैलायेंगे कि मुहम्मद बिन कासिम और सलीम आज तक खलीफा और सुल्तान अलहजाज के हुक्म के गुलाम थे इसलिए सिंधियों और सिंधी शहजादियों को गुलाम बनाकर इराक भेजने पर मजबूर थे। पर सिंध के लोगों के दर्द से मुखातिब होकर अब उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया है और वो खिलाफत से बगावत करके हिन्द को ही अपनी सरजमीं बनाने वाले हैं। ये किस्से फैलाने के बाद, हम पाँच सौ या हजार सिंधी गुलामों को ही अरबियों का भेष देंगे और उन्हीं को आवाम के बीच भेजकर ये कहानी बतायेंगे कि यही वो गिने चुने लोग हैं जिन्होंने सिंध की औरतों के अस्मत पर हाथ डाला, बच्चों का क़त्ल किया। सिंध के अलग अलग शहरों में पचास पचास लोगों को ले जाकर हम उन्हें आवाम के सामने सूली पर लटकाकर बताएँगे कि यहीं हैं वो शैतान जो औरतों और बच्चों पर हमारी इजाजत के बिना जुल्म कर रहे थे। इस तरकीब पर काम करना मैंने तभी शुरू कर दिया था, जब मैं तक्षशिला से निकला था। मेरी गैरमौजूदगी में भी एक महीने के अंदर सिंध की पूरी आवाम ब्राह्मणाबाद के बादशाह सलीम और उनके बारह हाकिमों के साथ कंधे से कंधा मिलाये खड़ी होगी, और तुम देखते रह जाओगे रावल। इस जंग में फतह हमारी ही होनी है।”
“तो तुम्हें लगता है अपने इन प्रपंचों से तुम सिंधियों का ह्रदय जीत सकते हो?”
“जीत सच की नहीं होती, रावल। ऐसा सिर्फ कहानियों में सुनने को मिलता है, क्योंकि हर हमलावर अपने हमले को सही ठहराने के लिए जीतने के बाद वहाँ के किस्सों को अपने हिसाब से लिखता है। त्वारीख का नाम सुनहरे लफ्जों में उसी का लिखा जाता है जिसके पास किस्सों को काबू करने की ताकत हो। हो सकता है सारे सिंधी मेरा भरोसा न करें। कुछ करेंगे, कुछ नहीं करेंगे। पर एक शुरुआत तो हो ही जायेगी, जिसके चलते सिंध की आवाम मुत्ताहिद होकर न हमारे खिलाफ खड़ी हो पाएगी ना तुम्हारा साथ दे पायेगी। वैसे भी देबल को जीतना मेरे लिए भी इतना मुश्किल नहीं था। तो तुम्हारा देबल को जीतना कोई बड़ी बात नहीं है। पर ना वहाँ से अलोर का सफ़र आसान होगा, ना भिन्नमाल से ब्राह्मणाबाद का। देबल और ब्राह्मणाबाद के रास्ते में पानी की इतनी कमी है, और सूखे जंगल इतने ज्यादा हैं कि कोई भी फ़ौज उस रास्ते को अख्तियार नहीं कर सकती। तुम्हारी फ़ौज को अलोर से होकर और वहाँ फतह हासिल करके ही ब्राह्मणाबाद आना होगा। अलोर में हमारे लाखों सिपाही जल्द तैनात हो जायेंगे, तो उस किले पर तो तुम सपने में भी कब्ज़ा नहीं कर सकते। और अगर तुमने देबल पर कब्ज़ा छोड़ अपनी पूरी फ़ौज को इक्कठा करने के लिए भिन्नमाल ले गए, तो अलोर की अरबी फ़ौज वहाँ हमला करके फिर से देबल को कब्जे में ले लेगी। वहीं देबल पर कब्जा जमाये रखा और भिन्नमाल से ब्राह्मणाबाद पर हमला किया तो अपनी देबल की फ़ौज के साथ चालुक्यराज विजयादित्य से कभी नहीं मिल पाओगे। तुम्हारी फ़ौज दो हिस्सों में बँटकर रह जायेगी और वही तुम्हारी शिकस्त की वजह बनेगी।”
कालभोज ने पूरे ध्यान से कासिम की बात सुनी, फिर उसके निकट आकर उसके नेत्रों में घूरकर देखा, “अब तुम ध्यान से सुनो, कासिम। बना लो जितनी योजनायें बनानी हैं। हम देबल को अधिकार में ले चुके हैं तो उसे त्याग कर वहाँ की प्रजा को अनाथ नहीं करेंगे। सर्वप्रथम हम सिंध के सारे समुद्रीतट के नगरों पर अधिकार करेंगे, जिसके उपरांत सागर मार्ग से अरब देशों से तुम्हारे लिए कोई सहायता नहीं आ पाएगी। फिर मैं स्वयं देबल जाऊँगा और वहीं से महाराज नागभट्ट प्रतिहार के साथ अलोर पर आक्रमण करके उस किले पर अधिकार करूँगा। दूसरी ओर भिन्नमाल से चालुक्यराज विजयादित्य अपनी सेना लिए ब्राह्मणाबाद पर आक्रमण करेंगे। किसी मोर्चे पर हमारी संख्या कम होगी और कहीं पर अधिक। तुम भी अपनी रणनीति उसी अनुसार बनाना। और यदि तुम इस भ्रम में हो कि तुम एक महीने में सिंधी प्रजा की विचारधारा बदलकर उन्हें हमारा समर्थन करने से रोक सकते हो, तो एक क्या, मैं तुम्हें दो महीने का समय देता हूँ। मुक्त करता हूँ मैं तुम्हें, तुम स्वयं जाओ और प्रयास करके देख लो। शीघ्र ही तुम्हें भान हो जायेगा कि एक विदेशी आक्रान्ता किसी भूमि को जीतकर उसके इतिहास के साथ खिलवाड़ तो कर सकता है, पर जनसाधारण की जिह्वा सदैव सत्य का अंश लिए पीढ़ी दर पीढ़ी उसका प्रचार करती रहती है। मनुष्य के इस प्रवृतिकर्म को संसार का बड़े से बड़ा आक्रांता भी रोक नहीं सकता, तो तुम्हारी क्या बिसात है।”
कासिम आश्चर्यचकित रह गया, “तो तुम मुझे आजाद कर रहे हो ?”
“निसंदेह।” रावल का ये निर्णय सुन देवा सहित आसपास खड़े योद्धा भी हतप्रभ रह गये।
देवा ने उसके निकट आकर समझाने का प्रयास किया, “ये आप क्या कर रहे हैं, भोजराज ? ये तो हमारी योजना का भाग नहीं था।”
“अब बन गया।” कालभोज का स्वर कठोर हो गया “ये हिन्दसेना के सेनापति का निर्णय है, जो मैंने बहुत सोच समझकर लिया है।”
देवा बिना कोई प्रश्न किये सहमति में सर झुकाकर पीछे हट गया। वहीं रावल पुनः कासिम की ओर मुड़ा, “जाओ कासिम, अपना प्रयास करके देख लो। ठीक दो महीने के उपरांत हमारे आक्रमण आरम्भ हो जायेंगे। किन्तु यदि उससे पूर्व तुमने आक्रमण की पहल की तो तुम्हें उसका यथोचित उत्तर भी मिलेगा। तुम्हारे साथ तुम्हारे बचे खुचे सैनिकों को भी मुक्त करके सागर तट पर भेज दिया जायेगा। जाओ यहाँ से।”
कासिम मुस्कुराया, “उम्मीद है बहुत जल्द जंग के मैदान में हमारा आमना सामना होगा, कालभोजादित्य रावल।” कंधे उचकाये कासिम पीछे की ओर मुड़ा।
उसके जाने के उपरांत देवा भोज की ओर मुड़ा, “ये तो चला गया। अब आगे क्या करना है ?”
“मैं यहाँ की बची खुची सेना लेकर वापस देबल जा रहा हूँ। तुम कुछ लोगों के साथ भिन्नमाल जाकर तातश्री को मेरा सन्देश दो कि वो पचास सहस्त्र योद्धाओं को लेकर तैयार रहे हैं। आज से ठीक दो महीने उपरांत वो अभीरस के तट पर आक्रमण करेंगे। एक लाख की सेना लिए चालुक्यराज ब्राह्मणाबाद की सीमा पर पड़ाव डालेंगे किन्तु मेरा संदेश मिले बिना आक्रमण नहीं करेंगे। उसके आगे क्या करना है, ये मैं तुम्हें विस्तार से लिखकर दूँगा। और तुम बची हुयी पचास सहस्त्र की सेना को लेकर सागर के मार्ग से देबल पहुँचों। ठीक दो मास के उपरांत हम आलोर पर आक्रमण करेंगे।”