Shri Bappa Raval Shrankhla - Khand 2 - 3 in Hindi Biography by The Bappa Rawal books and stories PDF | श्री बप्पा रावल श्रृंखला खण्ड-दो - तृतीय अध्याय

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श्री बप्पा रावल श्रृंखला खण्ड-दो - तृतीय अध्याय

तृतीय अध्याय 
राजस्व की लूट

देबल (सिंध का तटराज्य) (एक मास उपरांत)
गऊओं को हाँकता चरवाहा चहुँ ओर दृष्टि घुमाता अपने पशुओं पर छड़ी लहरा रहा था, मानों उसकी फैलती आँखें आसपास के संभावित संकट को लेकर शंकित हों। सूर्य ढलने को था, जिसका संकेत पाकर गऊएं स्वयं ही बड़ी तीव्रगति से गौशाला की ओर लौट रही थीं। पशुओं को गौशाला में भेजने के बाद तन से अत्यंत दुर्बल दिखने वाला वो चरवाहा दायीं ओर के बीस कदम दूर अपनी खपड़ैल सी झुग्गी की ओर बढ़ा। उसके गालों के गड्ढे और शरीर पर उभरी हुयी हड्डियाँ देख ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों महीनों से उसने पौष्टिक भोजन न किया हो। शीघ्र ही अश्वों के पदचाप ने उसे सावधान कर दिया। वो शीघ्रता से अपनी झुग्गी के अंदर घुसा और द्वार बंद कर रोशनदान से बाहर का दृश्य देखने लगा।

आगे और पीछे दोनों ओर से दस दस अरबी घुड़सवार चल रहे थे। वहीं एक एक अश्व से बंधी रस्सियों से तीन तीन सिन्धी मनुष्यों के हाथ बंधे हुये थे, जिन्हें बंदी बनाकर अश्वों के साथ ही खींचा जा रहा था। सभी बंदियों के आधे सर छिल दिये गए थे तथा उनकी छाती पर अरबी भाषा में कुछ शब्द गुदे हुए दिखाई पड़ रहे थे, मानों दासत्व के चिन्ह हों। उनमें से तीन पुरुष उस चरवाहे जितने ही जीर्ण शीर्ण दिखाई पड़ रहे थे।

शीघ्र ही रोशनदान से देखते चरवाहे के पीछे झुग्गी में ही एक पगड़ी बांधे हष्टपुष्ट शरीर वाला व्यक्ति आ खड़ा हुआ, “तीन लोग पर्याप्त हैं इस कार्य के लिए ?”

चरवाहे ने पलटकर देखा, “बोधिस्तव्म अजेय्मस्तु। महाऋषि की क्या आज्ञा है ?”

“स्वर्ण चाहिए। बहाव से कल संध्या तक।”

“पाँच बलिदान पर्याप्त हैं। इमारत की नींव में दोनों सुरंग खोदी जा चुकी है। महाऋषि ने ऐसी उच्च कोटि की योजना बनाई है कि लावा अपने गंतव्य तक पहुँचने से पूर्व कभी ठंडा पड़कर रुकेगा नहीं। लाख, लकड़ी, राख और मांस से बना कुएं का अंदरूनी भाग अपना काम कर जायेगा।”

“शस्त्रसंताप की ओर से भी पाँच। हमारे लोगों का अंतिम दल इमारत की ओर निकल चुका है।” एक और बलिष्ठ शरीर वाले शस्त्रधारी व्यक्ति ने झुग्गी में प्रवेश करके अपनी मूंछों पर ताव देते हुये गर्व से कहा।

उसके आगमन पर चरवाहे और पगड़ीधारक ने गर्व से बोला, “शस्त्रसंतापम अजेय्मस्तु।” “अजेय्मस्तु।” शस्त्रधारी मुस्कुराया।

******

अश्वों से बंधे दासों का अंतिम समूह सूर्य ढलते ढलते तीस गज चौड़ी और तीस गज लम्बी इमारत के निकट आया। वहाँ पाँव में बेड़ियाँ बाँधे पहले से ही कई सिन्धी श्रमिक इमारत का कार्य समाप्त कर चाबुकों की मार खाकर किनारे की ओर एकत्र किये जा रहे थे। शीघ्र ही अश्वों के साथ अंतिम दल को लेकर आये एक अरबी अश्वारोही ने अपने अश्व से बंधी रस्सियाँ ढीलीं छोड़ीं और अपने बगल में खड़े घुड़सवार को संकेत करते हुये कहा, “क्या लगता है ? रात में और गुलामों की जरूरत पड़ेगी, ‘नदीम' ?”

नदीम नाम के रौबीली मूंछ और घनी दाढ़ी वाले उस हष्ट पुष्ट घुड़सवार ने सामने की ओर दस घोड़ों की रस्सियों से बंधे तीस सिंधी दासों की ओर कुछ क्षण देखा फिर सहमति में सर हिलाया, “इतने काफी होने चाहिए, ‘गुरबाज'। मदद की जरुरत पड़ेगी तो आराम फरमाने वालों को भी रात में पकड़ लायेंगे।”

हिचकी लेकर गुरबाज ने अपना गला सहलाते हुये सामने की इमारत की ओर देखा, “हम्म, दो दो कोस की दूरी पर ऐसी पाँच इमारतें आज बनकर तैयार हो चुकी हैं। हर एक इमारत पर हिफाजत के लिए कम से कम पचास जंगजू होने चाहिए। हुजूर लूटा हुआ खजाना लेकर कभी भी पहुँच सकते हैं।”

नदीम ने भी रस्सियों में बंधे मनुष्यों की ओर संकेत करते हुये कहा, “ठीक है, पहले इन गुलामों को ले जाकर रात में कुएं की तरी करने के लिए तैनात कर दो। बाकी फिर देखेंगे।”

******

शीघ्र ही एक सहस्त्र योद्धाओं की टुकड़ी के साथ सलीम बिन जैदी उस इमारत के पास आ पहुँचा। गुरबाज और नदीम के साथ दसों अरबी घुड़सवारों ने भूमि पर उतरकर उसे सलाम किया। सलीम ने उन सभी को घूरा फिर गुरबाज से प्रश्न किया, “सारे कुएं तैयार हैं ?”

“जी हुजुर।” गुरबाज ने सहमति में सर हिलाया, “यहाँ के हिफाजतगर्दों के हथियारों की धार के आगे परिंदा भी पर नहीं मार सकता। खजाना यहाँ हिफाजत से रहेगा।” सलीम ने ध्यान से सामने वाली इमारत की ओर देखा “हिफाजत के लिए कल यहाँ और फ़ौज भेजी जाएगी। एक हफ्ते तक खजाने को इन पांच इमारतों के कुओं में हिफाजत से रखना है। कोई चूक नहीं होनी चाहिये।”

“कोई चूक नहीं होगी, हुजुर। वैसे भी अब सिंध में किसकी जुर्रत है जो हमारे खजाने की ओर आँख उठाकर देख सके।” नदीम ने गर्व से बोला।

सलीम ने भौहें सिकोड़े नदीम की ओर देखा “सिंध में अब भी दुश्मन जासूसों की कमी नहीं है, बेवकूफ। रावड़ किले पर कब्जे के बावजूद हमने अलोर से लूटा हुआ खजाना किले में नहीं रखा, क्योंकि अभी तक हमें ये नहीं पता कि वो सिन्धी जासूस कौन कौन से खुफ़िया रास्तों से किले में आकर हमें लूट सकते हैं। इसलिए सतर्क रहो और दुश्मन को कमजोर समझने की गलती मत करना।” 

“जी, जी हुजुर। कोई गलती नहीं होगी।” नदीम ने भय से सर झुकाया।

“चलो फिर कुआँ दिखाओ।” सलीम अपने घोड़े से उतरा और इमारत की ओर बढ़ा। गुरबाज और नदीम भी उसके पीछे आये।

दस हाथ ऊँचे लोहे के कंटीले द्वार को खोल तीनों ने इमारत में प्रवेश किया। भीतर जाकर लोहे का एक और छह हाथ लम्बा द्वार खोल तीनों अंदर के कक्ष के भीतर आये। सामने जमीन से चार हाथ ऊँचा उठा कुआं था। उसके चारों ओर दस दास कुएं की बाहरी दीवार पर जल डालकर उसे तरी कर रहे थे। क्षणभर उन्हें घूर सलीम कुएं के निकट आया और उसकी तीस हाथ लम्बी गहराई देखी। अंदर बीस और दास कुएं को अंदर से तरी कर रहे थे। फिर नदीम और गुरबाज की ओर पलटा, “चलो पानी डालने का काम बहुत हो गया। ऐसे पाँच कुओं में पूरा खजाना तो आ ही जायेगा। गुलामों को ले जाओ और उतरवाना शुरू करो। रात होने से पहले सारा खजाना कुओं में इक्कठा हो जाना चाहिये। मैं बाकी के चार कुओं की जांच करके आता हूँ।”

******

शीघ्र ही तीस दासों की पंक्ति बनाकर पहली इमारत में रखने के लिए खजाना उतरवाया जाने लगा। ऐसा ही दो दो कोस की दूरी पर स्थित बाकी की चार इमारतों में भी हो रहा था। खजाना धीरे धीरे कुओं में भरा जाने लगा।

“ब्राह्मणाबाद पर हमारा कब्ज़ा हो चुका है। अगर मैं होता तो खजाना सीधे वहीं भेजता।” सिन्धी मजदूरों पर कोड़े हांकता नदीम अपने पास खड़े गुरबाज से बोला “क्या जरूरत थी यहाँ पर खजाने के लिए ख़ास इमारत बनाने की ? महीनों बर्बाद किये इसमें हुजूर ने ?”

गुरबाज ने हँसते हुए उसकी खिल्ली उड़ाई “अगर तुममें इतनी अक्ल होती तो आज तुम हुजूर सलीम की जगह ब्राह्मणाबाद के तख़्त पर होते।”

“अच्छा ? अगर तुम्हारे पास इतनी अक्ल है तो तुम्हीं इसकी वजह बता दो।”

“वजह बहुत सीधी है। आलोर का तबाह हुआ रावड़ किला तो अभी इस लायक है नहीं कि वहाँ खजाना रखा जा सके। उस जले किले को दोबारा बनाने में बहुत वक्त जायेगा। खबर आ चुकी है कि हिन्द की एकजुट हुयी सेना बहुत जल्द हम पर हमला करने वाली है। अब वो मारवाड़ से होकर सिंध में आयें या फिर भिन्नमाल से, पहले ब्राह्मणाबाद ही पहुँचेंगे। और तब तक इराक से हमारी फ़ौज वहाँ पहुँच पाएगी या नहीं, इसमें शक है। खुदा न खास्ता अगर हम ब्राह्मणाबाद का किला हार गए तो हमारा सारा खजाना लुट जायेगा। इसीलिये हुजूर कासिम ने ये तरकीब लगायी कि आलोर में ही ऐसी पांच इमारतें और कुएँ बनाकर खजाने को हिफाजत से रखा जाए, जो जल्द से जल्द बनकर तैयार हो जायें। वैसे भी सुलतान अल हजाज अगर नयी टुकड़ी भेजेंगे तो वो समुद्र के रास्ते सबसे जल्दी देबल ही पहुँचेंगे। अभी हमारे पास सिपाहियों की कमी है, इसीलिए यही जगह ठीक है।” कहते हुए गुरबाज ने एक दास की पीठ पर कोड़ा बरसाया “जल्दी कर।”

खजानों को धीरे धीरे करके कुएं में डालना आरम्भ किया गया। कुएं के भीतर ही दो मजदूर जिनका शरीर उस चरवाहे जैसा ही जीर्ण शीर्ण था, वो भी बाकियों के साथ काम में लगे हुए थे। जैसे जैसे कुएं में भरते स्वर्ण की ऊँचाई थोड़ी बढ़ी, दोनों ने एक हष्टपुष्ट धारी तीसरे व्यक्ति को नेत्रों का संकेत किया। दोनों कुएं की अंदरुनी दीवार के पास आये। तीसरे व्यक्ति ने उस स्थान पर स्वर्ण की उंचाई बढ़ानी आरम्भ की, जिससे वो दोनों बाकियों की नजर से बचे रहे। जैसे ही उस स्थान पर स्वर्ण की ऊँचाई थोड़ी बढ़ी, दोनों ने दीवार में पहले से बनी एक हाथ बड़ी एक गुप्त गोल सुरंग खोली और सबकी नजरें बचाते हुए तेजी से उसमें रेंगते हुये घुस गये। तीसरा हष्ट पुष्ट मजदूर उन्हें बाकियों की नजरों से बचाने के लिये उस सुरंग के आगे आकर खड़ा हो गया, और उन दोनों के घुसते ही तुरंत सुरंग में फावड़े से भरकर स्वर्ण डाल दिया जिससे किसी की नजर उस पर ना जाये।

सुरंग में आगे का रास्ता एक हाथ चौड़ा था, जिसके दोनों तरफ मिटटी की दीवारें थीं। उसी ढलान जैसे मार्ग पर रेंगते हुए दोनों श्रमिक आगे बढ़ते रहे। सौ गज आगे रेंगकर दोनों तरफ की मिटटी की दीवारों में एक एक सुरंग दिखाई दी जिनका मार्ग ऊपर की ओर था, दोनों श्रमिक दायीं और बायीं सुरंग में घुस गये और रेंगकर तत्काल ही ऊपर की भूमि पर गए जहाँ दो और युवक पहले से प्रतीक्षा कह रहे थे। युवकों ने दोनों श्रमिकों को बारी बारी हाथ देकर ऊपर उठाया। वहीं बाहर आते ही श्रमिक ने युवक से प्रश्न किया “श्रमिकधर्माम अजेय्मस्तु ! लावे तैयार हैं ?”

युवक ने सहमति में सर हिलाते हुए कहा “तापमान आशा से भी अधिक है। बहते हुए स्वर्ण को ठोस नहीं बनने दिया जायेगा।”

श्रमिक सहमति में सर हिलाते हुये मुस्कुराया “अब बस मध्यरात्रि की प्रतीक्षा है। बस कैसे भी शस्त्रसंताप के पाँच योद्धा आग लगाने में सफल हो जायें।”

******

मध्यरात्रि से पूर्व ही पाँचों इमारतों के पाँचों कुएं स्वर्ण से भर दिए गए। सारे दासों को बाहर निकाल दिया गया और शस्त्रधारण किये तीन सैनिक कुएं के पास ही खड़े रहे। मध्यरात्रि का समय आने को था, अकस्मात ही कुएं में पड़े स्वर्ण के ढेर से एक हष्ट पुष्ट युवक निकल आया। अरबी रक्षक उसे देख स्तब्ध रह गये। ये वही युवक था जिसने दो श्रमिकधर्माओं को सुरंग से निकलने में सहायता की थी। स्वर्ण के ढेर से निकलते ही उस युवक ने अरबियों के समक्ष भय के मारे हाथ जोड़ लिए। वो जोर जोर से साँस भर रहा था।

अरबी सैनिक ने डपटते हुए सवाल किया, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?”

“क्षमा, क्षमा, हुजुर।” श्वास भरते हुए युवक कुएं से उतरा और उनमें से एक अरबी योद्धा के पाँव पकड़ लिए “सोने को कुएं में इक्कट्ठा करते हुए मैं मूर्छित होकर कुएं में ही गिर गया था और नीचे ही दबा रह गया। बड़ी कठिनाई से बाहर निकला हूँ हुजूर।”

उस अरबी योद्धा ने अपना पाँव झटकारकर उस युवक को दूर किया और दूसरे अरबी योद्धा से पूछा, “क्या करना है इसका ?”

“माफ़ी, माफ़ी, हुजुर। मेरा पूरा परिवार है। मैं गलती से फँस गया था यहाँ।” युवक गिड़गिड़ाया अपनी बायीं ओर खड़े अरबी सैनिक के पाँव पकड़ लिये। उस अरबी सैनिक ने उसे घूरकर देखा फिर निकट खड़े साथी से बोला “कद काठी से तो अच्छा ख़ासा है। मारकर फायदा नहीं, इससे अच्छा काम लिया जा सकता है।”

तभी दूसरे अरबी सैनिक ने उसे चेताया “दिमाग ख़राब है क्या? सारे गुलामों को पहले ही बाहर भेजा जा चुका हैं। इस वक्त अगर किसी ने इस गुलाम को यहाँ से बाहर जाते देखा तो हुजूर हमारी गर्दनों को चौराहे पर लटका देंगे। इसे तो खत्म करना ही होगा और जल्दी करो, ज्यादा चीख न निकले।”

सहमति में सर हिलाते हुये सामने के सैनिक ने अपनी कटार निकाली। वहीं उसका पाँव पकड़े हुए युवक बुदबुदाया “सही कहा ! ज्यादा चीख नहीं निकलनी चाहिए।”

अगले ही क्षण उस युवक ने झप्पट्टा मारके उस सैनिक की कटार छीनी और बिना कोई क्षण गंवाएं उसकी गर्दन पर चला दी। अचानक से प्राण की भिक्षा माँगते मजदूर को आक्रमक हुआ देख बाकी दो अरबी सैनिक भी स्तब्ध रह गये। इससे पूर्व वो कुछ समझ पाते युवक ने दूसरे सैनिक की गर्दन पर भी कटार चलाकर दे मारी।

स्तब्ध हुये आखिरी सैनिक ने युवक के कौशल से भयभीत होकर भागने का प्रयास किया। किन्तु युवक उसकी पीठ पर झपटा और उसे घसीटते हुए भूमि पर लाया और उसके चीखने से पूर्व ही कांख में उसकी गर्दन दबा ली। तत्पश्चात उस सैनिक के कवच के कंधे के भाग को तोड़कर युवक ने उसी के लोहे से उस सैनिक की गर्दन चीर डाली और उसकी गर्दन दबाये रखी “हम शस्त्रसंताप संसार के हर शस्त्र से परिचित भी हैं और हर एक वस्तु से शस्त्र बनाना भी जानते हैं।” 

शीघ्र ही रक्त उगलते हुए तीसरे अरबी सैनिक ने भी अपने प्राण छोड़ दिये। उसके उपरांत शस्त्रसंताप युवक ने उन तीनों सैनिकों के सारे शस्त्र एकत्र किये। भाले का एक लकड़ी का टुकड़ा काटा, अपनी धोती का एक भाग फाड़कर उसके एक सिरे पर बांधा। फिर अपनी धोती में बंधी तेल की पोटली निकाली और तेल से उस ऊपरी सिरे को भिगोया। तत्पश्चात उसने दो कटारें उठाई और उन्हें आपस में लड़ाकर चिंगारी उत्पन्न की। मिट्टी के तेल से सने कपड़े ने शीघ्र ही भाले के उस टुकड़े को मशाल का रूप दे दिया। मशाल हाथ में लिए शस्त्रसंताप युवक ने थोड़ा आगे जाकर भूमि के एक टुकड़े पर भाला मारा और कुछ पग पीछे हट गया। उसका संकेत समझ शीघ्र ही भूमि पर बना गुप्त द्वार खोल पाँच पाँच श्रमिकधर्मा के लोग तेल के थैले लेकर निकले और उससे कुएं के स्वर्ण को ऊपर से नहलाना शुरू किया। कुछ ही क्षणों में अपना कार्य संपन्न कर जाने से पूर्व एक श्रमिकधर्मा ने शस्त्रसंताप युवक को दो बड़े बड़े थैले पकड़ा दिये। शस्त्रसंताप ने उसे खोलकर देखा तो एक में पचास से अधिक कटारें और एक हथौड़ा था। दूसरे में एक धनुष और सौ से अधिक तीर। उनके जाने के उपरांत तत्काल ही शस्त्रसंताप युवक मशाल को कुएं के निकट ले आया। लाख, माँस और लकड़ी की बनी कुएं की अंदरूनी दीवार ने तत्काल ही आग पकड़ ली। शीघ्र ही श्रमिकधर्माओं के अगले दल के लोग कड़ाहीयों में उठाकर कोयले ले आये जो पहले से तेल में सने हुए थे। वो सारी कड़ाही वहाँ रखने के उपरांत वो शीघ्रता से भूमि में बने गुप्त द्वार से प्रस्थान कर गये।

उनके जाने के उपरांत शस्त्रसंताप युवक ने एक एक कड़ाही उठाकर उसे कुएँ में फेंकना आरंभ किया। धीरे धीरे वो कुआं जलते कोयलों की भट्टी में परिवर्तित होने लगा। ठीक वैसा ही कुछ शेष चार इमारतों में भी हो रहा था। कुछ समय उपरांत इमारत के बाहर पहरा दे रहे लगभग सौ अरबी सैनिकों को उठती हुयी रौशनी दिखाई दी। संदेह होने पर उनमें से पाँच इमारत के भीतर आये। शीघ्र ही उन्होंने कूप कक्ष का द्वार खोला और सामने का दृश्य देखते ही उनकी आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गयीं।

भड़की हुयी अग्नि का ताप चहुँ ओर फ़ैल रहा था। उसकी ऊँची लपटों को देख क्षणभर को उन अरबियों की आँखें भी चुन्धियाँ गयीं, जिसका लाभ उठाकर वहाँ खड़े शस्त्रसंताप युवक ने दो कटारें बारी बारी से दो अरबी सैनिकों की गर्दन पर दे मारी। उन दोनों के गिरते ही शस्त्रसंताप ने तत्काल ही धनुष उठाया और एक के बाद एक बाण मारने आरम्भ किये। दो अरबी सैनिक तो घायल होकर वहीं गिर गए, पर छाती पर तीर खाया एक सैनिक वहाँ से भाग निकला।

अब शस्त्रसंताप को ये भलीभांति ज्ञात था कि बाकी के सुरक्षाकर्मी शीघ्र ही वहाँ पहुँचेंगे। वो तत्काल ही हथौड़ा लेकर कूप कक्ष के द्वार के निकट गया और हथौड़ा मारकर उस द्वार को तोड़कर दीवार से अलग किया, उसे उठाकर भूमि पर लाया और बोरे में रखी कटारें उसमें घुसाने लगा। शीघ्र ही वो द्वार एक लकड़ी के कवच के साथ साथ एक शस्त्र भी बन गया जिसके एक ओर कटारों का नुकीला समूह था। वो उस शस्त्रधारी द्वार को जलते कुएं के पीछे ले आया। फिर तत्काल ही धनुष और तीर संभाले वहीं बैठ गया। शीघ्र ही कुएं की भट्टी में घटते स्वर्ण का गिरता स्तर देख उसके मुख पर सफलता की मुस्कान आ गयी।

इधर कुएं से निकली ढलानुमा सुरंग में बैठे श्रमिकधर्मा ने जैसे ही पिघले हुए स्वर्ण को आते देखा वो तत्काल ही ऊपर दौड़कर आया और सामने खड़े युवक से कहा “बहाव आरंभ हो गया।”

युवक ने अपने साथियों के साथ तत्काल ही कड़ाही भरकर गर्म लावा श्रमिक को दिया “बहते हुए स्वर्ण का तापमान कम नहीं होना चाहिये।”

श्रमिकधर्मा ने सहमति में सर हिलाया और लावे की कड़ाई लिये वापस भूमि में बनी सुरंग में गया। उसकी ही भांति दूसरी ओर से भी एक श्रमिक लावा लेकर सुरंग में आया। दोनों ही लावा की कड़ाही लिए बड़ी कठिनाई से उसके ताप को सहते हुये ढलान से होते सुरंग के भीतर आये और प्रतीक्षा करने लगे।

शीघ्र ही इमारत के कुएँ से बहता हुआ स्वर्ण ढलान से होकर उनके सामने से गुजरा। दोनों श्रमिकों ने एक दूसरे को गर्व से देखा, “श्रमिकधर्माम अजेय्मस्तु।” गरजते हुये तत्काल ही दोनों श्रमिकधर्माओं ने पूरा लावा उस स्वर्ण में खाली कर दिया। लावे के साथ ऊँचे तापमान पर स्वर्ण बहता हुआ आगे की ढलान पर बहता गया। सौ गज की दूरी पर ऐसे ही श्रमिकधर्माओं के दल ने पुनः दो सुरंगों से बहते स्वर्ण का तापमान बनाए रखने के लिए उसमें लावे डालना जारी रखे और ऐसे ही सौ सौ गज की दूरी पर लावे डालकर स्वर्ण का बहाव बनाये रखा गया। ठीक ऐसा ही बाकी की चार इमारतों के कुएं से पिघलकर निकले स्वर्ण के साथ हो रहा था।

इधर पहली इमारत में जलते हुए कुएं के पीछे बैठे शस्त्रसंताप योद्धा ने तीर पर तीर चलाकर दसियों अरबियों को घायल कर दिया। किन्तु शीघ्र ही अरबियों का चलाया एक तीर उसकी छाती में आ लगा। ह्रदय के पास लगे तीर ने जिस नस को घायल किया था, उससे शस्त्रसंताप योद्धा को स्पष्ट संकेत मिल गया कि शरीर में बहती रक्त की धमनियां अब कभी भी रुक सकती हैं। अपने तीरों से लगभग पच्चीस अरबी योद्धाओं के शव गिराने के उपरांत शस्त्रसंताप योद्धा ने धनुष रखकर कटारों से भरा शस्त्रधारी द्वार उठाया और सामने आते अरबी योद्धाओं पर टूट पड़ा। वो उस द्वार को चहुँ ओर नचाता हुआ अरबियों को घायल करने लगा। शीघ्र ही एक और तीर शस्त्रसंताप की छाती में आ लगा किन्तु उस योद्धा ने अपने प्राण संभाले रखे और अरबी योद्धाओं को घायल करते और धकेलते हुए कूपकक्ष के बाहर ले गया और प्रवेश मार्ग पर कटारों से भरा द्वार लेकर उनके सामने खड़ा हो गया।

सामने नुकीली कटारें देख अरबी योद्धा कुछ क्षण के लिये रुके।

“जला डालो दरवाजा।” एक अरबी योद्धा के हुँकार भरने के कुछ क्षणों उपरांत ही एक अरबी सैनिक मशाल लेकर आया और द्वार के एक भाग पर आग लगा दी। तापमान बढ़ता रहा पर शस्त्रसंताप योद्धा द्वार को पकड़े रहा और जलते हुए स्वर्ण कुएं की ओर देखा। अरबियों ने जलते द्वार पर तीर बरसाने आरम्भ किये। अकस्मात ही अरबियों के चलाये कुछ तीर उस योद्धा के दोनों हाथों में आ धँसे।

बहते रक्त, रिस्ते घाव को जितना सहन कर सकता था किया और वो शस्त्रसंताप वीर द्वार पकड़े खड़ा रहा।

किन्तु शीघ्र ही अग्नि से द्वार टूटने लगा और अंततः उस तापमान के आगे उस वीर की शक्ति भी दुर्बल पड़ गयी। घायल हुआ शस्त्रसंताप गिरता हुआ द्वार छोड़ जलते हुये कुएं के पास आया। भट्टी में आधे से अधिक स्वर्ण पिघलकर बाहर जा चुका था। अरबी योद्धाओं ने उसकी पीठ पर असंख्य तीर चलाये।

योद्धा की बाजुयें सुन्न सी होने लगीं। उसने मुड़कर अरबी सैनिकों को निकट आते देखा। अपने शव को शत्रुओं के हाथ पड़ने से बचाने के लिए उसने साहस जुटाया और किसी प्रकार खड़ा होकर अपनी अंतिम छलांग मारी और स्वयं को उस स्वर्ण भट्टी को समर्पित कर दिया। अरबी योद्धा कुएं के आसपास का तापमान देखकर ही पीछे हट गए।

शीघ्र ही जल के कनस्तर मंगवाये गए, और अरबी सैनिक पानी डाल डालकर भट्टी को बुझाने का निरर्थक प्रयास करने लगे। वो जितना पानी डालते गए, आग बुझने के बजाय और भड़कती गयी और स्वर्ण को गलाती रही।

इधर पाँच इमारतों का पिघलता हुआ स्वर्ण हर सौ गज पर लावे के प्रभाव से अपना तापमान बनाये रखते हुए अंततः छह कोस दूर की दूरी पर एक सुरंग से बाहर निकला और जल से भरे पचास गज ऊँचे और बीस गज चौडे लोहे के विशाल मर्तबानों में गिरता गया। जिनके नीचे पहिये लगे हुए थे। जैसे जैसे स्वर्ण शीतल जल में गिरा, पानी छलककर बाहर आने लगा। स्वर्ण का तापमान भी धीरे धीरे गिरता रहा और वो ठोस होने लगा। ऐसे पाँच मर्तबान आसपास ही रखे थे जिनमें पाँचों इमारतों का स्वर्ण एकत्र हो रहा था। उनके आसपास लगभग दो सहस्त्र शस्त्रधारी योद्धा मर्तबानों की निगरानी कर रहे थे। और उन योद्धाओं का नेतृत्व कर रहे थे कन्नौज नरेश महाराज नागभट्ट प्रतिहार।

समुद्र तट पर हाथों में तलवार और ढाल लिए किसी भी संभावित संकट से जूझने को तैयार खड़े नागभट्ट चहुँ ओर दृष्टि घुमाये जा रहे थे। शीघ्र ही एक हाथ उनके कंधे पर आया। पलटकर देखा तो महाऋषि हरित को पाया जिनके मुख पर सफलता की मुस्कान थी “तो अलोर से लूटा सिन्धी खजाना हमने वापस पा ही लिया ?”

नागभट्ट ने मुस्कुराते हुये हरित ऋषि के उगते सूर्य की रौशनी में दमकते मुख की ओर देखा, “एक पड़ाव तो सफल हुआ, ऋषिवर। किन्तु यहाँ देबल में सलीम बिन जैदी के साथ लगभग सात सहस्त्र अरबी योद्धा भी हैं और देखकर ऐसा लगता है कि अतिशीघ्र हमें उनका सामना करना होगा। और तो और हम यहाँ अपनी कोई सेना भी नहीं लाये।”

मुस्कुराते हुए हरित ऋषि ने पूरे विश्वास से कहा “हम सौ लोग यहाँ छुपते छुपाते अलग अलग नौकाओं में आये हैं। यदि सेना लेकर आये होते तो अरबियों को हमारी गतिवधि का ज्ञान हो जाता और हम स्वर्ण लूटकर शत्रु को दुर्बल बनाने में सफल नहीं हो पाते।” श्वास भरते हुए हरित आगे बोले, “सत्य तो ये है कि आप प्रतिहारियों ने भिन्नमाल के चावड़ों पर विजय प्राप्त कर हमारा मार्ग और सरल कर दिया, जिसके चलते ही हम भिन्नमाल के समुद्री मार्ग से शीघ्रता से यहाँ देबल में पहुँच सके।” कहते हुए हरित ऋषि ने अपने सामने स्वर्ण के मर्तबान को व्यवस्थित करने के कार्य में लगे लगभग दो सहस्त्र योद्धाओं की ओर देखा “किन्तु महीनों अत्याचार सहने के उपरांत भी छिपकर यहाँ के सिंधी योद्धाओं ने जिस प्रकार हमारा समर्थन किया है, मैं उनके साहस का कायल हो गया।”

“ये कथाओं की शक्ति है, ऋषिवर। आपने ही कहा था कि जब दुष्ट मानमोरी को दण्डित करने की कथा भरत खंड में फैलेगी तो सिंध के कई योद्धा स्वेच्छा से हमारे समर्थन में आ जायेंगे। आपका अनुमान सत्य सिद्ध हुआ।”

“इन दो सहस्त्र के अलावा तीन सहस्त्र और सिंधी योद्धा एकत्र हुए हैं। संकेत मिलने पर वो भी क्रिया में आ जायेंगे। उनका समर्थन प्राप्त करने के लिए कालभोज का नाम ही पर्याप्त था। सलीम बिन जैदी के अतिरिक्त इस समय अरबियों का कोई हाकिम इस क्षेत्र में उपस्थित नहीं है और यदि वो अपनी सेना को लेकर यहाँ आ भी आ जाए, तो भी हमें रोक नहीं पायेगा। इन घने वनों के मध्य वो अरबी इन सिंधियों पर विजय नहीं पा सकते।”

“किन्तु कालभोज है कहाँ?” नागभट्ट ने चहुँ ओर दृष्टि घुमाकर देखा “सूर्य उदय हो चुका है और परिस्थिति देखकर तो यही लगता है कि सलीम की सेना से हमारा संघर्ष होना निश्चित है। युद्ध में हमें उसकी आवश्यकता पड़ेगी।”

हरित ऋषि ने श्वास भरते हुए पलटकर सागर की लहरों की ओर देखा “स्वर्ण से भरे इन मर्तबानों को लेने के लिए भिन्नमाल से हमारे जहाज आने को हैं। आपने उचित ही कहा, हमने आशा से अधिक समय लिया है और सलीम की सेना से संघर्ष होना निश्चित है। किन्तु सत्य कहूँ तो मैं भी यही चाहता हूँ कि ब्राह्मणाबाद का राजा सलीम यहाँ आये और हमारी तलवारों का आखेट बन जाये। यदि ऐसा हुआ तो हमारा आगे का मार्ग बहुत सरल हो जायेगा। इसलिए कालभोज बाद में ही आये तो उचित है। अभी उस सलीम को यही समझने दीजिये कि हमारी संख्या यहाँ दो सहस्र ही है।”

कुछ क्षण विचार कर नागभट्ट ने सहमति में सिर हिलाया “जैसा आप उचित समझें, ऋषिवर।”

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घने वृक्षों के सामने समुद्र तट पर खड़े कालभोज की दृष्टि एकटक जल की बहती धाराओं को निहारे जा रही थी। मन में नाना प्रकार की भावनायें लिये उगते हुये सूर्य के प्रकाश की ओर देख रावल अब भी विचलित सा दिख रहा था, मानों ह्रदय में बसे बड़े से बड़े अंधकार को अपनी किरणों से मिटाने का सामर्थ्य रखने वाली भगवान सूर्यनारायण की किरणें भी आज उसके मन को शीतलता प्रदान करने में असमर्थ थी। प्रातः काल की बहती शीत वायु के उपरान्त भी भगवा वस्त्र और जनेऊ धारण किये कालभोजादित्य रावल का लौह सा बदन यूं तप रहा था मानों बर्फीले पर्वतों के मध्य अग्नि की ज्वाला भड़की हुयी हो।

भौहें सिकोड़े और मुट्ठियाँ भींचे कालभोज अपने मन को संतुलित करने का प्रयास कर रहा था। क्षणभर को उसने नेत्र बंद किये ही थे कि अकस्मात ही उसकी दृष्टि के समक्ष अनेकों दृश्य तैर गए। कभी साबरमती के पास मिट्टी के महल बनाते हुए, गायों को साथ चराते, बाणों से बंधी रस्सियों से पर्वतों पर छलांग लगाते हर ओर उसे सुबर्मन ही दिखाई दे रहा था।

“मेवाड़ के महाराणा कालभोजादित्य रावल का स्वागत है।” अपने कंधे पर सर रख सुबर्मन के वो अंतिम शब्द मानों हर क्षण उसके पीछे पड़े हुये थे। जो ग्लानि के साथ उसके क्रोध को भी बढ़ाये जा रहे थे।

कुछ क्षणों के उपरांत एक हाथ कालभोज के कंधे पर आया। कालभोज पीछे मुड़ा और अपने सामने एक गेंहुए रंग के डील डौल शरीर वाले कवच के साथ श्वेत धोती और पगड़ी पहने युवक को खड़ा पाया, “संदेश आया है। कभी भी आपकी आवश्यकता पड़ सकती है।”

कालभोज ने श्वास भरते हुए उस युवक की ओर देखा, “तुम वहीं थे देवा। हर कोई मुझसे सुबर्मन से युद्ध करने की सलाह देता रहा, किन्तु तुम मौन रहे। एक शब्द भी नहीं बोला। क्यों?”

“तो क्या बोलता मैं?” भौहें सिकोडे देवा ने जल की धाराओं की ओर देखते हुये कहा, “सागर की इन लहरों की भांति कभी कभी समय और नियति पर भी हमारा वश नहीं होता। मना करके आपको धर्मसंकट में डाल नहीं सकता था और जिस भ्राता के साथ सारा बचपन बिताया उसका वध करने का समर्थन मैं कैसे कर देता?”

देवा के प्रश्न का बिना कोई उत्तर दिए कालभोज लहरों की ओर ही देखता रहा। उसका कंधा पकड़ देवा ने उसे आश्वस्त किया “जानता हूँ ये प्रश्न बहुत जटिल हैं। किन्तु ये केवल आपके ही नहीं मेरे मन में भी उठकर दिन रात मेरे ह्रदय को घायल किये जा रहे हैं। कभी कभी लगता है जो हुआ गलत हुआ। किन्तु दूसरी ओर लगता है जैसे पूरा बचपन समाप्त हुआ और आगे के जीवनपथ पर चलने को एक नया दृष्टिकोण मिल गया।”

“दृष्टिकोण, हम्म?” मुस्कुराते हुए कालभोज देवा की ओर मुड़ा “यही तो एक कारण था कि वर्षों तक मुझे मेरे पिता के सत्य से दूर रखा गया ताकि मैं धैर्य और दृष्टिकोण का पर्याय समझ सकूँ। गुरुदेव पर मुझे पूर्ण विश्वास है किन्तु..।” श्वास भरते हुए कालभोज का गला रुंध गया “भ्राता सुबर्मन के वो अंतिम शब्द; मेरे कंधे पर फैला उनकी आँखों और शरीर से बहता रक्त! उस अंतिम द्वन्द का हर दृश्य किसी अजगर की भांति मेरी आत्मा के साथ मेरी बौद्धिक क्षमता को निगलने के लिये बढ़ रहा है। जिस जीवन और पात्रता के पौधे को गुरुदेव ने अपने धैर्य और श्रम से वर्षों से सींचा है, आज उसका सांचा फूटता हुआ प्रतीत हो रहा। मैं चाहकर भी इसे वश में नहीं कर पा रहा और तुम कहते हो तुम्हें इस घटना से जीवनपथ का नया दृष्टिकोण मिल गया है, हम्म ?” माथे का स्वेद पोछ कालभोज ने देवा से प्रश्न किया “ऐसा कौन सा प्रकाश दिख गया तुम्हें, जो आज तुम्हारी वाणी ने भी इतनी गंभीर चर्चा करने का निर्णय ले लिया?”

“अब ये अनुमान तो मैं नहीं लगा सकता। बस इतना कह सकता हूँ कि गुरुदेव श्री हरित ऋषि से इतना ज्ञान तो मिला है कि मैं समय और परिस्थिति के अनुसार स्वयं को ढालने का प्रयास कर सकूँ। किन्तु जहाँ तक आपकी बात है, महारावल। तो बाल्यवस्था में भी आपके अतीत के दृश्य दुस्वपन बनकर आपको दुर्बल करते थे और आज युवावस्था में भी यथार्थ के दृश्यों को ह्रदय के एक कोने में विष की भांति धारण कर आप अपने भविष्य की संभावनाओं को नष्ट कर रहे हैं।”

“तो क्या कहना चाहते हो? मैं उस यथार्थ को यूं ही नकार दूँ, जैसे कुछ हुआ ही नहीं?”

“मेरे कुछ कहने या न कहने से कोई अंतर नहीं पड़ता, भोजराज। कदाचित कुछ घावों को समय के साथ भरने देना ही उचित है।” श्वास भरते हुये देवा ने पत्थर का एक टुकड़ा उठाकर सागर की ओर फेंका “बस स्मरण रहे इस वेदना के वशीभूत होकर आपसे कोई बड़ी चूक न हो जाये।”

तभी उन दोनों के कानों में सहस्त्रों अश्वों के पदचाप का स्वर सुनाई दिया। मुट्ठियाँ भींचते हुए कालभोज ने देवा को संकेत किया “अरबी सेना वन मार्ग पर आ चुकी है। ज्ञात करो, वो सलीम आया है या नहीं। अगर वो दिखे तत्काल ही संकेत भेजो।”

सहमति जताते हुये देवा अपने शस्त्र संभाल वन की ओर भागा।

वहीं अरबी सेना की आहट सुन नागभट्ट और उनके साथ कार्य कर रहे दो सहस्त्र सिंधी योद्धा अपने अपने शस्त्र धारण करके एकत्र होने लगे। तीन सौ अश्वारोही और बाकी के पैदल सैनिक शीघ्र ही सामने आने वाले सात सहस्त्र शत्रुओं का सामना करने को सज हुए।

अश्वों के टापों से भूमि काँपने लगी। घने वन के बीचों बीच होने वाले संभावित रक्तपात से भयभीत होकर वन्य पशु वृक्षों और पथरीले मार्गों से होकर निकट के पर्वतों की ओर भागने लगे।

अपनी धमनियां थामें फड़कती हुयी भुजायें लिए नागभट्ट के नेतृत्व में दो सहस्त्र सिन्धी योद्धा वन के ठीक बाहर शत्रु की प्रतीक्षा में थे। वहीं वन के मध्य सबसे ऊँचे वृक्ष की डाली पर खड़े देवा ने अरबी सेना को वनों के बीचों बीच दौड़ते हुये देखा। दो हाथ लम्बी दूरबीन उठाये सहस्त्रों अश्वारोहियों के बीच देवा की दृष्टि उन योद्धाओं के मध्य सलीम को ढूँढ रही थी।

शीघ्र ही उसे अरबी सेना के मध्य में दौड़ता हुआ एक विशाल अश्व दिखा। उसका सवार अधेड़ उम्र का एक बलिष्ठ पुरुष था। उसकी रौबीली आँखों के ठीक नीचे गाल पर एक घाव का चिन्ह उसके रूखे और सख्त अनुभव को झलका रहे थे, तो घनी और रुखी दाढ़ी उसकी आयु को। उसके अलग दिखने वाले अश्व और शिरस्त्राण के ठीक ऊपर लहरा रहे हरे रंग के फर को देख ये स्पष्ट झलक रहा था कि वही उस सेना का नेतृत्व कर रहा है।  

“देबल के इस क्षेत्र में कोई और हाकिम तो है नहीं। निसंदेह यही सलीम है।” अनुमान लगाते हुए वृक्ष की डाल पर खड़े होकर देवा ने सूर्य की रौशनी में दमकता केसरिया ध्वज लहराया। वो संकेत देख कालभोज तत्काल ही अपने अश्व पर आरूढ़ हुआ और अकेले ही वन की ओर बढ़ चला। इधर नागभट्ट प्रतिहार सिंधी सेना के साथ वन के ठीक बाहर खड़े प्रतीक्षा कर रहे थे।

“हर हर महादेव।” हुँकार के साथ जैसे ही कालभोज अकेले अरबी सेना पर वन में घुसकर बायीं ओर से आक्रमण को बढ़ा, देवा ने वृक्ष पर खड़े होकर तत्काल ही शंख बजा दिया।

उस शंख का स्वर सुन तत्काल झाड़ियों और वृक्षों में छिपे तीन सहस्त्र सिंधी योद्धाओं ने बाहर आकर अरबियों पर धावा बोल दिया। हर हर महादेव की हुँकार के साथ ही नागभट्ट ने भी अपने योद्धाओं के साथ वन में प्रवेश किया।

उस अप्रत्याशित आक्रमण से सलीम एकाएक स्तब्ध रह गया। बायीं ओर से अकेले ही शत्रु सेना में घुस आने का साहस दिखाने वाले कालभोज का वीरत्व देख किसी की भी आँखें कुछ क्षणों के लिए चकाचौंध हो जातीं। हुँकार के साथ प्रवेश करते ही उस गुहिलवंशी ने दो अरबी अश्वारोहियों का मस्तक काट गिराया, एक अरबी योद्धा को पकड़के उसे उसके अश्व से घसीटते हुए नीचे लाकर उसकी छाती भेद डाली, वहीं अपनी दायीं ओर से प्रहार करते शत्रु के अश्व की आगे की दोनों टाँगे एक प्रहार में काट डाली और सवार के नीचे आते ही उसका मुंड रुंड से अलग कर दिया।

तभी भूमि पर खड़े कालभोज पर प्रहार करने एक अरबी अश्व उसकी ओर बड़ा। यह देख हाथ में दो कटारें लिए देवा वृक्ष से कूदा और उस अरबी अश्व सवार के शिरस्त्राण को छेदकर उसका मस्तक चीरते हुए घसीटता हुआ उसे भूमि पर ले आया। उसे भूमि पर छोड़ देवा ने भी म्यान से दो तलवारें निकाली और रक्तपिपासु नरव्याघ्र की भांति अरबियों पर टूट पड़ा।

सिन्धी वीर अरबों पर ऐसे टूटे थे मानों अपनों के रक्त का प्रतिकार लेने को जाने कबसे आतुर हों। शत्रुसेना के रक्त में नहाये उन दोनों रणबांकुरों को देख विचलित हुआ सलीम कुछ क्षण अपने अश्व पर ही बैठा रहा। फिर उसने सामने से आकर प्रहार करने वाले नागभट्ट की ओर देखा। मुट्ठियाँ भींचे सलीम ने अपनी चेतना बनाये रखने का प्रयास करते हुए अपने आसपास दृष्टि घुमाई। छुपे हुए सिंधी योद्धा झाड़ियों से निकल निकलकर उछल उछलकर अरबी अश्वारोहियों पर कूदकर उन्हें भूमि पर गिराते हुए उन्हें यमसदन पहुँचा रहे थे।

अपने माथे का पसीना पोछ सलीम ने हुँकार भरते हुये अपनी सेना को आदेश दिया “घुड़सवारों, सामने हमला करो। पैदल सिपाहियों अपने आसपास की झाड़ियों की ओर बढो।”

अपने सैकड़ों साथियों के हताहत होने के उपरांत सलीम के आदेश पर अरबी योद्धा सिंधी तीरों के प्रहार से बचते हुए ढालों को ऊँचा किये एकत्र होने लगे। इस दौरान उनके एक सहस्त्र से अधिक योद्धा घायल होकर भूमि पर निढाल पड़े थे। फिर भी पूर्ण साहस जुटाकर अरबी योद्धा सिंधियों का प्रतिकार करने को आगे बढ़े।

कभी प्रकृति का सौंदर्य दर्शाने वाले ऊँचे ऊँचे टीलों के मध्य निर्मित हुए उस वन को अकस्मात ही रक्त की चादर ढकने लगी। अश्वों और मनुष्यों के माँस के लोथड़ों से आने वाली दुर्गन्ध कदाचित उस प्राकृतिक सौन्दर्य को कई महीनों के लिए नष्ट करने को तत्पर थी। किन्तु जब दो विपरीत विचारधारायें टकराती हैं तो वह प्रकृति को हमेशा ताक पर रख देती है। चाहें वो कितनी भी तड़पती रहे। सूर्य की रौशनी में उन चमकती तलवारों को उसकी परवाह नहीं होती। उन्हें तो बस प्यास होती है रक्त की और उन्हें थामने वाले योद्धाओं में आकांक्षा होती है शत्रु के शवों को कुचलकर अपना प्रभुत्व स्थापित करने की। किन्तु कदाचित मनुष्य की ये आकांक्षा भी नाकरात्मक ही सही किन्तु उसकी प्राकृतिक प्रवृति है और अधर्म और पाप के नाश के लिए कभी कभी मनुष्य का झुकाव ऐसी प्रवृतियों की ओर होना आवश्यक हो जाता है।

और वहीं यहाँ हो रहा था। सिंधी वीर अपनी मुक्ति के लिए तलवारें उठाकर संघर्ष में तत्पर थे और इसी संघर्ष के मध्य देवा ने कालभोज को सामने के पथरीले मार्ग की ओर संकेत किया। जहाँ से होकर वो सलीम तक पहुँच सकता था। कालभोज ने देखा अरबी अश्वों के मध्य गिरे हुए वृक्ष के एक तने से कूदकर वो एक बीस गज ऊँचे पत्थर के टीले पर चढ़ सकता है और वहाँ से टीले के ठीक नीचे युद्ध कर रहे सलीम के अश्व पर कूद सकता है।

कंधे उचकाते हुये कालभोज ने पीठ पर तलवार टाँगी, हाथों में एक गोलाकार ढाल और भाला लिया और अपने साथियों की सहायता से अरबी सेना का घेरा चीरते हुये मध्य में गिरे वृक्ष के तने पर चढ़कर दौड़ते हुए बीस गज ऊँचे टीले के बीच अपना भाला गाड़ा और एक छलांग मारकर उस गड़े हुए भाले पर अपना पाँव रखा और दूसरी छलाँग में टीले के ऊपर चढ़ गया। टीले पर चढ़कर उसने अपनी पीठ पर टंगा खड्ग निकाला और दूसरे हाथ में ढाल संभाले आगे बढ़ा।

जब नागभट्ट ने देखा कालभोज सलीम पर कूदने वाला है, उन्होंने सेना के अधिकतम भाग को उसी दिशा में जाने का आदेश दिया ताकि शत्रुओं के मध्य कालभोज अकेला न पड़े।

“हर हर महादेव।” टीले के ऊपर खड़े कालभोज की हुँकार सुन सलीम की दृष्टि उसी ओर मुड़ी। एक ओर नागभट्ट की सिन्धी सेना ने सलीम के सुरक्षा चक्र को तोड़ा, दूसरी ओर बीस गज ऊँचे टीले से छलांग लगाते हुए कालभोज ने ढाल का प्रहार सीधे सलीम के मस्तक पर किया।

चोट खाकर ब्राह्मणाबाद का वो बादशाह भूमि पर आ गिरा। बिना एक और क्षण गँवायें सलीम ने तत्काल ही भूमि से उठकर तलवार और ढाल संभाल ली और सामने खड़े, रक्त में नहाये कालभोज की ओर देखा। उसका बलवान भीम जैसा महाकाय शरीर ही बड़े बड़े योद्धाओं का ह्रदय थर्राने के लिये पर्याप्त था “कौन है ये खौफनाक जंगजू ?” वर्षों के युद्ध का अनुभव लिए सलीम केवल काया देखकर तो पराजय नहीं मानने वाला था किन्तु अब तक के देखे कालभोज के पराक्रम ने उसे थोड़ा विचलित अवश्य कर दिया था। फिर भी उसने अपनी तलवार और ढाल पर कसाव बढाया और कंधे उचकाते हुए कालभोज की ओर दौड़ा। निकट आते ही भोज ने उसकी तलवार के प्रहार को ढाल पर रोका और उसे चकमा देकर किनारे की ओर हटते हुए उसकी एड़ी पर पाँव से प्रहार किया। लड़खड़ाता हुआ सलीम पीछे हटा किन्तु शीघ्र ही संभलकर अपनी तलवार संभाली और पुनः प्रहार करने आगे बढ़ा। कालभोज ने अपनी ढाल उठाई और उसे चक्र की भांति घुमाकर फेंका।

छाती पर ढाल की चोट खाए सलीम लड़खड़ाया और इससे पूर्व वो संभलता वो गुहिलवंशी वीर तीन गज ऊपर उछला और तलवार की मुट्ठी का भीषण प्रहार सीधा सलीम के मस्तक पर किया। उस भीषण चोट से सलीम का शिस्त्राण फूटा और वो चक्कर खाकर भूमि पर गिर पड़ा। उस मर्मान्तक प्रहार के कारण शिरस्त्राण से टूटा एक टुकड़ा सलीम के मस्तक पर घाव कर गया। संभलकर उसने पुनः उठने का प्रयास किया, तभी उसे गिरा देख सिंधी योद्धाओं ने पूरे बल से जयघोष किया “कालभोजादित्य रावल, अजेय हो। अजेय हो।”

कालभोज का नाम सुनकर सलीम की आँखें भय और आश्चर्य से बड़ी हो गयीं। दृष्टि घुमाते हुये उसने सामने खड़े भोज की ओर देखा “तो यही है वो कालभोज! ये यहाँ कैसे आया?”

अकस्मात ही सलीम को कालभोज का रक्त सना महाकाय शरीर अत्यंत भयावह प्रतीत होने लगा। क्रोधाग्नि से भरी आँखें देख उसे ऐसा प्रतीत हुआ मानों काल स्वयं चलकर उसे ग्रसने के लिए आया हो। अब भोज का बढ़ता एक एक पग उसके हृदय को अंदर से कंपा रहा था। सलीम की रक्षा के लिए दो अरबी सैनिकों ने दायीं और बायीं ओर से कालभोज पर प्रहार किया। बायीं ओर की तलवार के प्रहार से झुककर बचते हुए कालभोज ने दायीं ओर अपनी छाती की ओर बढ़ी अरबी तलवार को अपने भारी खडग से रोका, और दो पग पीछे हटकर अपनी खड्ग बायीं ओर के अरबी सैनिक के मस्तक की ओर चलाकर फेंकी और दायीं ओर के सैनिंक का कंठ पकड़ उसे हवा में उठाते हुए भूमि पर पड़े पत्थर पर ऐसा पटका कि उसका शिरस्त्राण ही चकनाचूर हो गया और फटा मस्तक लिए उसका शरीर प्राण छोड़ने को तड़पने लगा। तत्पश्चात कालभोज की दृष्टि उस बायीं ओर के अरबी सैनिक की ओर गयी जो मस्तक पर भारी खड्ग की चोट खाकर मूर्छित होकर भूमि पर पड़ा था।

कालभोज वापस अपना खड्ग उठाकर सलीम की ओर बढ़ा। अपने मस्तक में धँसा लोहे का टुकड़ा निकाल सलीम ने शिरस्त्राण को भूमि पर फेंका और काँपते हाथों से अपनी तलवार पर कसाव बढ़ाया “सही सुना था इस हैवान के बारे में। ऐसे ही नहीं निजाम के इतने बड़े घोड़े को शमशीर के एक ही हमले में काट गिराया था इसने। मेरा मुक्कद्दर आज दगा दे गया जो ये सामने पड़ गया।”

युद्ध की वो भूमि सागर के अत्यंत निकट थी। वायु की गति तो तीव्रतम होनी ही थी। किन्तु कदाचित सलीम का भय उस वायु प्रवाह पर भी भारी था जो उसे पसीने में भिगोये जा रहा था। उस पसीने का प्रभाव उसके हाथों पर भी पड़ रहा था और उसकी तलवार हाथों से फिसली जा रही थी। एक एक पग पीछे हटते हुए और अपने निकट आते कालभोज को देख उसे मानों विश्वास हो चला था कि आज उसकी मृत्यु सुनिश्चित है। किन्तु उस प्रारब्ध को स्वीकार करने के स्थान पर वो पलटकर पीछे की ओर भागा। उसकी रक्षा के लिए दसियों अरबी कालभोज के सामने आकर खड़े हो गये। भोज कंधे उचकाकर कुछ पग पीछे दौड़ उस गिरे हुए वृक्ष के निकट पहुँचा जिस पर चढ़कर वो सलीम पर कूदने के लिए चट्टान पर चढ़ा था। तलवार को पीठ पर टांग कालभोज ने तीस हाथ लम्बा और दो गज मोटा वृक्ष अपने हाथों में पूरा उठा लिया।

गुहिलवंशी रावल का अतुल बल प्रदर्शन देख अरबियों के साथ साथ सिंधी भी स्तब्ध रह गए। सिंहनाद कर दौड़ते हुए भोज ने वो वृक्ष सीधा सलीम की रक्षा को खड़े अरबियों पर फेंका। जीवन में प्रथम बार ऐसा बलधारी देख सामने खड़े अरबियों के पाँव जहाँ थे वहीं जड़ हो गये। भीषण वेग से फेंका हुआ वो वृक्ष सीधा चार अरबियों की छाती पर गिरा। मुख से रक्त उगलते हुए वो चारों प्राण छोड़ने को तड़पने लगे। बाकी छह में से दो के पाँवों की हड्डियाँ टूटी और शेष किनारे हटकर किसी प्रकार घायल होते होते बचे। किन्तु इस दौरान उन्होंने भोज का सलीम तक पहुँचने का मार्ग अवश्य खाली कर दिया।

भयभीत हुआ सलीम शीघ्र ही एक दौड़ते अरबी अश्व को देख उस पर सवार हुआ और ऐड़ लगायी। कालभोज को भूमि पर दौड़ता देख एक सिंधी अश्वारोही उसके निकट आया और अपने अश्व से कूद उसे गुहिलदेव के निकट छोड़ पैदल ही अरबियों पर आक्रमण किया। उस सिन्धी अश्व पर आरूढ़ होकर भोज ने चंद क्षणों में उस अश्व को वश में किया और सलीम के पीछे लग गया।

अरबी योद्धा अपने युद्ध कौशल से सलीम को मार्ग देने लगे, तो सिंधी अपने भीषण प्रहारों से उन्हें तीतर बितर कर भोज के लिए मार्ग सुगम बनाते गये। घने वृक्षों, पथरीले मार्गों और सेनाओं के मध्य भय के मारे सलीम अपना अश्व दौड़ाता रहा। वहीं उसका वध करने को हठबद्ध कालभोज उसके पीछे लगा रहा।

तीव्रगति से अश्व दौड़ाते हुए कालभोज शीघ्र ही सलीम के निकट पहुँच गया और छलांग लगाते हुए उसे साथ लेकर लुढ़काते हुए भूमि पर ले आया। उसे भूमि पर रगड़ते हुये कालभोज ने उसे पुनः उठाया और उछालकर एक वृक्ष की ओर फेंक दिया। पीड़ा से तड़पते सलीम ने अपना शरीर संभालते हुए उठने का प्रयास किया। यह देख कालभोज ने उसका कंठ पकड़ उसे वृक्ष से सटाया और उसके मस्तक पर मुष्टिका का प्रहार आरम्भ किया।

एक के बाद एक वज्र समान मुष्टि प्रहार झेल सलीम की आँखों के आगे अंधकार सा छाने लगा। शिरस्त्राण टूटकर धँसने से बायीं आँख के ऊपर के भाग में पहले से ही सूजन आई हुयी थी। लगातार हुए कालभोज के मुष्टि प्रहारों से वो सूजन भी फट गयीं किन्तु कुछ मुष्टि प्रहारों के उपरान्त अकस्मात ही कालभोज का हाथ रुक गया। सलीम की रक्तरंजित आँखें और फटी हुयी सूजन देख भोज के हाथ यकायक ही काँपने लगे। घायल हुआ सलीम वृक्ष के सहारे ही कुछ क्षण के लिए लेट गया। सलीम के मुख की दशा कुछ ऐसी ही थी जो कुछ मास पूर्व सुबर्मन की हुयी थी। अपने भ्राता से महीनों पूर्व हुए द्वन्द का दृश्य अकस्मात ही भोज की दृष्टि के समक्ष तैर गया और सलीम के मुख के स्थान पर उसे सुबर्मन का रक्तरंजित चेहरा दिखने लगा।

भोज को अकस्मात ही विक्षिप्त हुआ देख सलीम को पहले तो कुछ समझ नहीं आया। किन्तु उसे एक उचित अवसर मान उसने तत्काल ही भूमि पर गिरी एक तलवार उठाकर कालभोज की ओर चलाई जो सीधा उसके उदर में जा घुसी। अपने उदर पर हुआ घाव देख भोज अचंभित रह गया। अकस्मात ही उसकी चेतना भी लौट आई और सामने उसे अपने वास्तविक शत्रु का मुख दिखाई देने लगा। दांत पीसते कालभोज ने सलीम को घूरा और उस अरबी योद्धा की पकड़ तलवार पर अपने आप ढीली पड़ गयी। भोज के पग लड़खड़ाये अवश्य किन्तु उसकी आँखों में छाए क्रोध से स्वयं सलीम के पाँव काँप रहे थे। वो किनारे हटकर अपने अश्व के निकट गया और उस पर से धनुष और बाण निकालकर दूर से ही भोज पर प्रहार करने का विचार किया।

किन्तु अभी सलीम ने अपना बाण धनुष पर चढ़ाया ही था कि सूं करता हुआ उसकी दायीं ओर से एक भाला आया और उसके हाथ पर घाव करता हुआ उसका धनुष छुड़ा गया। सलीम ने दायीं ओर दृष्टि घुमाई तो एक हाथ वाले एक अंधेड़ आयु के योद्धा को अश्व पर बैठा देखा। उसे देखते ही सलीम की आँखें आश्चर्य और क्रोध से बड़ी हो गयीं, “गद्दार मोखा।”

मोखा ने भूमि पर खड़े सलीम पर प्रहार करने के लिए एक और भाला उठाया। वहीं कालभोज ने भी अपनी उदर से तलवार खींच निकाली। फटे हुए उदर से मानों रक्त का झरना फूट पड़ा और वो गुहिलवंशी लड़खड़ाते हुए सलीम की ओर बढ़ने लगा। बायीं ओर छलांग मारकर सलीम मोखा के फेंके हुए अगले भाले से बचा और तत्काल ही अश्व पर आरूढ़ होकर उसे सीधा दौड़ाते हुए अपनी कमर में टंगा एक बिगुल उठाया और उसे फूँककर जोर से बजाते हुए आगे बढ़ा और आवाहन किया “भाग चलो।”

वो बिगुल सुनते ही अरबी योद्धा अपना अपना युद्ध छोड़ पीछे भागने लगे। भागते हुए उनमें से कई क्रोधित सिंधियों के तीरों का आखेट बनने लगे। सलीम का पीछा करने के लिए कालभोज ने लड़खड़ाते हुए अश्व पर चढ़ने का प्रयास किया, किन्तु शीघ्र ही उसकी चेतना ने उसका साथ छोड़ना आरम्भ कर दिया। किन्तु गिरने से पूर्व ही मोखा ने वहाँ आकर भोज को संभाल लिया।

आगे बढ़ते हुए नागभट्ट ने कालभोज को घायल देख सिंधी सेना को आगे बढ़कर अरबों का पीछा करने से रोक दिया और दौड़कर भोज को संभालने आये। मंद होती आँखें लिये भोज ने मोखा और नागभट्ट के कंधे पर हाथ रखा और उनका सहारा लिये पीछे की ओर चला। चलने के दौरान नागभट्ट उसकी पीठ रगड़ते रहे “अपने नेत्र खुले रखने का प्रयास करना भोज।”

******

शीघ्र ही भोज को शिविर में लिटाया गया और वैद्यों ने उसका परीक्षण आरम्भ किया। शिविर के बाहर बाकी सिंधियों के साथ मोखा, नागभट्ट और देवा भी चिंतित खड़े थे। शीघ्र ही हरित ऋषि वहाँ पधारे और सीधा नागभट्ट से प्रश्न किया “क्या हमें जो अनिष्ट सूचना मिली है, वो सत्य है?”

नागभट्ट ने सहमति में सर हिलाया। हरित ऋषि मोखा की ओर मुड़े “विश्वास करने योग्य बात नहीं लगती। समझ नहीं आता वो ऐसे कैसे घायल हो गया। तुम तो वहीं थे न मोखा?”

“आप मुझ पर संदेह कर रहे हैं, महाराज?” 

“प्रश्न सत्य सामने लाने का है। आप तो पिछले एक मास से गुप्तचरों द्वारा हमसे संपर्क बनाये हुए हैं। आपकी सहायता से ही तो हम अब तक यहाँ तक पहुँचे हैं। आप पर संदेह करने का अभी तक तो कोई उचित कारण हमें दिखाई नहीं देता।”

श्वास भरते हुये मोखा ने कहा “मुझे भी समझ नहीं आया उस क्षण को महाराणा को क्या हो गया था ? अपना रक्तरंजित मुख लिए सलीम उनके चरणों में अत्यंत दयनीय अवस्था में पड़ा था। उनके दो तीन और मुष्टि प्रहारों से वो यम के द्वार चला जाता किन्तु पता नहीं कैसे अकस्मात ही महाराणा के हाथ रुक गए और वो स्थिर और विक्षिप्त होकर सलीम को देखने लगे, मानों अपनी चेतना खो बैठे हों। उसी का लाभ उठाकर सलीम ने उनके उदर में तलवार घोंप दी।”

मोखा के वो शब्द सुन नागभट्ट को आश्चर्य हुआ, वहीं देवा दांत पीसते हुए चहलकदमी करने लगा “कहा था, कहा था मैंने भोज से कि भ्राता सुबर्मन की स्मृतियों को स्वयं पर इतना भी हावी न होने दें कि अनुचित समय पर कोई बड़ी चूक हो जाये।”

क्षणभर विचार कर हरित ऋषि ने प्रश्न किया “तो तुम्हारा कहने का अर्थ है कि भोज को उस सलीम में सुबर्मन का मुख दिख रहा था?”

“और क्या कारण हो सकता है, गुरुदेव ? जिस शत्रु का वध करने के लिए हमने इतना श्रम किया, वो सामने पड़ा हो और भोज उसे छोड़ दे। क्या ऐसा संभव है ?”

हरित ऋषि ने भौहें सिकोड़ते हुए नागभट्ट की ओर देखा, “ये समस्या बहुत विकट है, महाराज। वहाँ भिन्नमाल में चालुक्यराज और गुहिलवीर शिवादित्य हमारी योजना की सफलता की आस लगाये बैठे हैं और कालभोज की एक मानसिक वेदना ने हमारे सारे श्रम पर पानी फेर दिया।”

हरित ऋषि को क्रोधित देख नागभट्ट ने उन्हें शांत करने का प्रयास किया “एक भ्राता का वध करने की ग्लानि से मुक्त होना कदाचित इतना सरल नहीं है, ऋषिवर।”

हरित ऋषि क्रोध से फट पड़े “साधारण व्यक्ति के लिए कठिन हो सकता है, किन्तु जिस व्यक्ति के हाथ में अखंड हिन्द सेना की बागडोर हो वो न तो अधिक समय तक सुख का उपभोग कर सकता है, न दुःख उसके हृदय को पीड़ित कर सकता है। बाल्यकाल से मैंने उसके व्यक्तित्व को इसीलिए तपाया है कि वो विपरीत से विपरीत परिस्थितियों का सामना स्थिर बुद्धि से कर सके किन्तु सुबर्मन की स्मृतियाँ मेरे श्रम पर पानी फेरने में लगी हुयी हैं।” श्वास भरते हुए हरित ऋषि ने स्वयं के क्रोध को नियंत्रित करने का प्रयास किया “हमारी योजना थी कि देबल पर अधिकार कर हम समुद्री मार्ग से अपनी सेना को यहाँ लायेंगे और सीधा सिंध पर एक ओर से चढ़ाई कर देंगे, फिर भिन्नमाल से चालुक्यराज और शिवादित्य ब्राह्मणाबाद को घेरेंगे। किन्तु...।”

हरित ऋषि को क्रोधित देख वहाँ उपस्थित सभी मनुष्य मौन थे। अपने नेत्र मूँद मस्तिष्क को एकाग्र करने के लिए हरित ऋषि ने गायत्री मन्त्र का जाप किया। नेत्र खोल वो कुछ और क्षण मौन रहे। तभी शिविर में से वैद्य निकल कर आये और कालभोज की स्थिति से अवगत कराते हुए कहा, “रक्त बहुत बह गया है और फेफड़े पर भी एक गहरा घाव है। उन्हें पूर्णतः स्वस्थ होने में कम से कम सात दिनों का समय और लगेगा।”

वैद्य की बात सुन किसी ने भी एक शब्द नहीं कहा। भय के मारे सब के सब हरित ऋषि की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहे थे। वहीं हरित ऋषि बिना कुछ कहे शिविर के भीतर गए, जहाँ कालभोज को मूर्छित अवस्था में लेटा हुआ पाया। नागभट्ट, देवा और मोखा भी भीतर आये।

कालभोज की दशा देखते हुए महाऋषि हरित ने सीधा नागभट्ट से प्रश्न किया “आपकी क्या राय है, महाराज?" 

“महाराणा को यहाँ छोड़ना कहीं से भी उचित नहीं है, ऋषिवर। सात दिनों में बहुत कुछ हो सकता है। हमें उन्हें भिन्नमाल ले जाना चाहिए।”

“आप ऐसा नहीं कर सकते।” मोखा ने हस्तक्षेप किया, “यदि इस युद्ध के उपरांत आप लोग यहाँ से चले गये तो वो अरबी हमारे जीवन को नर्कतुल्य बना देंगे। यहाँ देबल की सीमा पर हमारे पास केवल मुट्ठीभर योद्धा हैं। ऊपर से यहाँ से ज्ञानबुद्ध का किला और उसकी सेना महज पचास कोस की दूरी पर है। वो तो स्वर्ण को लुटता देख सलीम हमें दुर्बल जानने के भ्रम में पड़कर महज इस गाँव में उपस्थित सात सहस्त्र योद्धाओं के साथ आया था। किन्तु यहाँ से जीवित बचने के उपरान्त यदि कल प्रातः काल वो वापस आया तो कम से कम ज्ञानबुद्ध के साथ पूरे बीस सहस्त्र योद्धाओं को लेकर आयेगा। हम उनका सामना कैसे कर पायेंगे?”

इस पर हरित ऋषि ने उसे शांत रहने का संकेत देते हुए कहा, “उन अरबियों के दास बन चुके ज्ञानबुद्ध की सैन्य शक्ति का भलीभांति ज्ञान है हमें, सामंत मोखा बसाया। दो सौ विशाल जहाजों में हिन्द सेना का पचास सहस्त्र का सैन्य बल कल प्रातः काल तक ही यहाँ देबल में पहुँच जायेगा। हम तो स्वर्ण लूटने के लिए मुट्ठी भर लोगों को केवल इसलिए लेकर आये थे ताकि वो सलीम हमारे सामने आ जाये और हम उसका अंत करके अरबियों का मनोबल तोड़ सकें। किन्तु देबल की ये भूमि अरबों का और अत्याचार नहीं सहेगी। इस भूमि पर विजय प्राप्त करने की हमारी पूर्व निश्चित योजना स्थगित नहीं होगी।” फिर वो नागभट्ट की ओर मुड़े, “कल प्रातः काल सेना के यहाँ आते ही आप युद्ध की योजना पर कार्य आरम्भ कीजिये, प्रतिहार नरेश। मैं कालभोज, देवा और मुट्ठीभर योद्धाओं को लेकर सागर के मार्ग से भिन्नमाल जा रहा हूँ। इससे पूर्व ज्ञानबुद्ध के लिए अरबों की कोई अतिरिक्त सहायता आये आपको देबल के मुख्य किले पर अधिकार करना होगा।”

“आप चिंता न करिए, ऋषिवर।” नागभट्ट ने दृढ़ होकर कहा, “वो अरबी पुनः देबल में पग नहीं रख पायेंगे। महाविष्णु मंदिर पुनः उठकर खड़ा होगा।” 

“समय बहुत मूल्यवान है, महाराज। आपकी प्राथमिकता शीघ्र से शीघ्र देबल पर विजय प्राप्त करके यहाँ का सुरक्षा चक्र को सुनिश्चित करने की होना चाहिये।” 

मोखा ने पुनः हस्तक्षेप का प्रयास किया “किन्तु मुझे समझ नहीं आ रहा कि जब देबल में हमारी विजय सुनिश्चित है तो महाराणा को भिन्नमाल भेजने की आवश्यकता ही क्या है ?”

हरित ऋषि ने गंभीर स्वर में कहा “क्योंकि सूचना मिली है कि अरबियों की सहायता के लिये इराक से बारह शक्तिशाली हाकिमों के नेतृत्व में दो लाख की अरब सेना निकल चुकी है। सेना विशाल है किन्तु फिर भी उन्हें सिंध में पहुँचने के लिए अधिक से अधिक तीन माह का समय लगेगा क्योंकि उनके मार्ग में कोई और बाधा नहीं है। सिंध के अधिकतम भाग पर वो अधिकार कर चुके हैं और अब उनका उद्देश्य है काश्मीर। युद्ध में शत्रुसेना का कुशल नेतृत्व कर सकें ऐसे केवल दो अरबी हाकिम सिंध में उपस्थित हैं, एक है कासिम और दूसरा सलीम। इसलिए उन बारह हाकिमों के पग सिंध में पड़े इससे पूर्व ही इन दोनों में से किसी एक की मृत्यु आवश्यक है।”

नागभट्ट ने मुस्कुराते हुए सहमति जताई, “आपकी रणनीति पर हमें पूर्ण विश्वास है, ऋषिवर। आप निश्चिंत होकर प्रस्थान कीजिये।”

हरित ऋषि ने नागभट्ट के निकट आकर उनके कान में कहा, “सलीम बच निकला है, ऐसे में हमें अपनी दूसरी योजना के अनुसार चलना होगा। शत्रुओं के छद्मधारियों के प्रयोग का समय आ गया है।”

“अर्थात कच्छ का तटीय युद्ध ?” नागभट्ट ने प्रश्न किया।

हरित ऋषि ने सहमति में सर हिलाया।