Episode 1: “शुरुआत नहीं, सौदा था”
“19 साल की थी मैं, जब ज़िंदगी ने मुझे बेच दिया था…”
बरसों से जिसे घर कहा था, उसी घर के कोने में बैठी मैं उस दिन अपना वजूद समेट रही थी। माँ की आँखें भीगी थीं, लेकिन लाचार। बाप… वो तो बस रिश्ता तय कर चुका था, मेरे बदले अपने कर्ज़ चुका चुका था।
मैं – दुआ शर्मा — ना मासूम थी, ना बेगुनाह। लेकिन इतना जानती थी कि इस सौदे में मेरी रज़ामंदी कभी माँगी नहीं गई।
“वो आदमी तेरे लिए नहीं है, दुआ!”
माँ ने फुसफुसाते हुए कहा, “उसकी आँखों में मोहब्बत नहीं, कोई और ज़हर है…”
16वीं मंज़िल का दरवाज़ा
शादी का नाम नहीं था इस रिश्ते में। बस एक कॉन्ट्रैक्ट। 6 महीने, और मैं उसकी ‘निजी मिल्कियत’ बन जाती।
नाम था उसका — वर्धान सिंह राजपूत।
उम्र – 29, रुतबा – खौफनाक, और दिल… शायद था ही नहीं।
वो शहर का सबसे ताक़तवर बिज़नेस टायकून था, लेकिन लोगों की सांस उसकी मौजूदगी से थमती थी।
जब पहली बार देखा उसे – ब्लैक सूट में, एक ठंडी मुस्कान के साथ — मेरी साँसें खुद ब खुद सख्त हो गईं।
“तुम्हें खरीदा है मैंने। और मैं कभी नुकसान का सौदा नहीं करता।”
उसके ये पहले अल्फ़ाज़ थे मेरे लिए।
पहली रात, उसका इम्तिहान
वो मुझे 16वीं मंज़िल के उस आलीशान अपार्टमेंट में लाया, जैसे किसी trophy को रखा जाता है।
“कपड़े बदलो। हम कहीं जा रहे हैं।”
उसकी आवाज़ में कोई भाव नहीं था। बस हुक्म।
मैंने कहा, “मैं तुम्हारी बीवी नहीं हूँ।”
वो पास आया, इतना करीब कि उसकी साँसें मेरी गरदन को छूने लगीं।
“तुम मेरी हो। किसी नाम की ज़रूरत नहीं।”
उसके स्पर्श में न तो प्रेम था, न हिंसा — सिर्फ़ हक़।
फ्लैशबैक — सौदे की वजह
मेरे पिता ने वर्धान से करोड़ों का कर्ज़ लिया था। नहीं चुका सके। और फिर… मैं उनका ‘ब्याज’ बन गई।
“तुम्हारे बाप ने काग़ज़ों पर तुम्हें मेरे नाम लिखा है, दुआ।”
उसने एक कॉन्ट्रैक्ट फाइल मेरी तरफ फेंकी।
“और अगर मैं मना कर दूँ?” मैंने ठंडी आँखों से पूछा।
“तुम्हारा छोटा भाई स्कूल नहीं जाएगा, तुम्हारी माँ का इलाज नहीं होगा। और तुम्हारा बाप…? जेल।”
मेरे पास इन्कार का हक़ नहीं था।
उसकी आँखों में कुछ था…
हर दिन, वर्धान मुझे देखता जैसे मैं कोई puzzle हूँ जो उसे हल करनी है।
उसकी आँखें कभी मेरी आँखों से नहीं हटती थीं।
कभी हुक्म देतीं। कभी खोजतीं। कभी… तरसतीं?
मैं समझ नहीं पाती — क्या वो मुझे चाहता है, या सिर्फ़ पाना चाहता है।
छूने की इजाज़त नहीं थी, लेकिन…
एक रात, जब मैं बालकनी में थी, वो पीछे से आया।
“तुम्हें डर नहीं लगता मुझसे?”
मैंने कहा, “डर नहीं लगता। लेकिन भरोसा भी नहीं है।”
उसने मेरी कलाई पकड़ी — बहुत हल्के से।
“तुम मेरी सबसे बड़ी गलती हो… और अब मेरी सबसे बड़ी ज़रूरत।”
And Then…
रात गहराई, और उसके सवाल गहरे हो गए।
“तुम virgin हो?”
उसके सवाल ने मुझे झकझोर दिया।
मैंने पलट कर कहा, “तुम कौन होते हो पूछने वाले?”
“मैं वो हूँ जिसने तुम्हें खरीदा है।”
उसका लहजा नर्मी से ज़्यादा तल्ख़ था।
लेकिन मैं टूटी नहीं थी।
मैंने अपनी आँखें उसकी आँखों में गड़ा दीं।
“खरीदा है न? तो फिर तोड़ने से पहले जान लो — मैं बिक सकती हूँ, लेकिन झुकूँगी नहीं।”
वो मुस्कराया। पहली बार… थोड़ा सा।
“अच्छा। ये खेल अब दिलचस्प होगा।”
🔚 To Be Continued…
क्या वर्धान की नफरत में सच में मोहब्बत है?
क्या दुआ इस ज़हरीले रिश्ते में खुद को बचा पाएगी या… बर्बाद हो जाएगी?