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भाग 1: गुलाबपुर और पुरानी हवेली
गुलाबपुर गाँव शांत, सुंदर और हरियाली से भरा हुआ था। लोग सरल जीवन जीते थे, और हर शाम चौपाल पर बैठकर चाय पीते-पीते किस्से सुनाते। लेकिन इन कहानियों में एक नाम सबसे ज़्यादा दोहराया जाता — “मिश्रा हवेली।”
ये हवेली गाँव के उत्तर छोर पर एक पुरानी पीपल की पेड़ के पास खंडहर जैसी खड़ी थी। लोग कहते थे, "उस हवेली की छत पर कोई हर रात चलता है... लेकिन अंदर कोई नहीं रहता।" बच्चे उस ओर झाँकने से डरते थे, और बुज़ुर्ग भी कानाफूसी में ही उसके बारे में बात करते।
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भाग 2: आरव की जिज्ञासा
आरव, 15 साल का होशियार और निडर लड़का था। वह गाँव के स्कूल में टॉपर था और हर चीज़ को तर्क से देखना पसंद करता था। उसे उन कहानियों पर यकीन नहीं था।
एक दिन आरव ने अपने दोस्तों से कहा,
"मैं उस हवेली में जाऊँगा। देखूँगा क्या सच में कुछ है या सब मन का वहम है।"
सबने उसे रोका, लेकिन आरव ने तय कर लिया।
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भाग 3: पहली रात हवेली में
अगली रात, आरव अपने साथ एक टॉर्च, मोबाइल कैमरा और थोड़े स्नैक्स लेकर मिश्रा हवेली पहुंचा। हवेली टूटी-फूटी दीवारों से घिरी थी, और पीपल के पत्ते रात की हवा में सरसराहट कर रहे थे।
आरव अंदर गया... सबकुछ शांत था। उसने हर कमरा देखा। धूल जमी थी, लेकिन कुछ भी अजीब नहीं। फिर वह सीढ़ियों से ऊपर छत की ओर बढ़ा।
जैसे ही उसने छत पर कदम रखा, उसे हल्की सी सरसराहट सुनाई दी। टॉर्च के उजाले में कुछ भी नहीं था। तभी मोबाइल कैमरे में कुछ तेज़ परछाईं सी दिखी — एक लड़की की आकृति।
आरव डर गया, लेकिन रुका नहीं।
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भाग 4: पुराने पन्नों की कहानी
अगले दिन आरव फिर गया, इस बार दिन में। उसने हवेली की सबसे अंदर वाली अलमारी खोली — उसमें एक पुरानी डायरी रखी थी। उस पर लिखा था —
“शिवांगी मिश्रा की डायरी — 1962”
डायरी में लिखा था:
> “मैं शिवांगी, इस हवेली में बंद हूं। पिताजी ने मेरी शादी तय कर दी है किसी बूढ़े ज़मींदार से। मैं रोज़ छत पर जाती हूं... सिर्फ़ आकाश को देखने और रोने के लिए। अगर मेरी कहानी कभी किसी को मिले, तो जानना — मैं यहाँ कैद हूं… मेरी आत्मा अब छत पर ही रहती है।”
आरव का दिल कांप गया। उसे समझ आया कि जो लोग रात को छत पर चलते सुनते थे, वो शायद शिवांगी की आत्मा थी... जो आज भी आज़ाद नहीं हुई थी।
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भाग 5: आत्मा की मुक्ति
आरव ने उस डायरी को गाँव के मंदिर में पंडित जी को दिखाया। पंडित जी ने पूजा की, और एक रात आरव ने शिवांगी की आत्मा से बात की।
उस रात छत पर फिर से वही आवाजें आईं।
आरव बोला,
"शिवांगी दीदी, अब आपकी कहानी सब जान चुके हैं। आपकी आत्मा अब मुक्त हो सकती है।"
कुछ सेकंड के लिए ठंडी हवा चली... और फिर सब शांत हो गया। जैसे किसी ने सुकून की साँस ली हो।
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भाग 6: नई सुबह
उस रात के बाद मिश्रा हवेली की छत पर कोई आवाज नहीं आई। लोग धीरे-धीरे वहां जाने लगे, और अब उसे “शिवांगी स्मृति भवन” कहा जाता था — जहाँ आरव की कहानी और शिवांगी की डायरी अब खुले में रखी गई थी।
आरव गाँव का हीरो बन गया। उसने दिखाया कि डर को तर्क से हराया जा सकता है, और हर कहानी के पीछे एक सच्चाई होती है... बस हमें उसे खोजने की हिम्मत चाहिए।
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⭐ सीख:
> कभी-कभी जो हमें डरावना लगता है, वो बस किसी अधूरी आत्मा की अधूरी कहानी होती है। अगर हम हिम्मत से उसे समझें, तो सब सुलझ सकता है।