एक छोटा बच्चा, विकास, मध्यप्रदेश के एक शांत से गाँव में अपने माता-पिता और दो बहनों के साथ रहता था। बड़ी बहन वैशाली, और जुड़वाँ बहन कृषिका। उनका घर मिट्टी का था लेकिन प्यार से भरा हुआ। हर शाम माँ चूल्हे पर खाना बनाती थी, पिताजी खेत से लौटते वक्त बच्चों के लिए कुछ ना कुछ जरूर लाते थे।
लेकिन एक रात… सब कुछ बदल गया।
"घुप्प अंधेरे में चीखों की गूंज…"
वो रात आम रातों से अलग थी। बाहर कुत्ते अजीब तरह से भौंक रहे थे। हवा में अजीब सी गंध थी — जैसे कुछ बुरा होने वाला हो।
रात करीब 2 बजे, कुछ हथियारबंद डाकू दरवाजा तोड़कर घर में घुसे। विकास और कृषिका कोने में छिपे थे। उनकी आँखों में डर था, लेकिन शरीर पत्थर हो चुका था।
डाकुओं ने वैशाली को खींचकर घर से बाहर निकाला। माँ चीखी, पिता लड़े… लेकिन गोलियों की आवाज़ ने सब कुछ खामोश कर दिया।
डाकू गए… पीछे सिर्फ खून, सन्नाटा और आँसू छोड़कर।
"ज़िंदगी की दूसरी शुरुआत"
कुछ ही महीनों बाद, विकास और कृषिका ने गाँव छोड़ दिया। खेत बिक गए, यादें जल गईं।
अब वे शहर में थे — भीड़ में गुम, लेकिन दिल में एक ही सवाल लेकर:
"वैशाली कहाँ है?"
दिन में स्कूल, रात में पुलिस स्टेशन। हर रिपोर्ट, हर फोटो, हर संदिग्ध — लेकिन वैशाली का कोई पता नहीं।
"एक अनजानी जगह... और एक पहचान"
साल बीते... विकास और कृषिका अब 10वीं कक्षा में थे। स्कूल ट्रिप पर पहाड़ी जंगलों में घूमने निकले।
जगह सुनसान थी। चारों ओर वीराना, टूटे पगडंडी के रास्ते। तभी…
एक पेड़ पर तार से लटकती हुई एक लाश दिखी — जो कंकाल बन चुकी थी, उस पर फटे कपड़े, धूल और जाले लिपटी हुई थी ।
सभी बच्चे डर गए, टीचर ने तुरंत वापसी का आदेश दिया।
लेकिन विकास की नज़र उस लाश के गले में लटकते एक लोकैट पर पड़ी।
वही लोकैट — जो कभी उसकी माँ ने तीनों भाई-बहनों को मेले से लाकर दिया था।
उसने कृषिका को देखा। दोनों की सांसें थम गईं।
"सच के करीब... पर गुस्से में जलता दिल"
टीचर ने सबको वापसी के लिए कहा, लेकिन विकास की नज़र अब भी उस लोकैट पर थी।
उसने फैसला लिया — किसी की बात नहीं मानेगा।
वो पेड़ पर चढ़ा, कांपते हाथों से कंकाल के पास पहुँचा… और लोकैट उतारा।
तब उसने देखा कि यह लॉकेट तो वही है जो हम तीनों भाई बहन को मा ने बचपन में मेले में से दिया था । उसे समझते देर नहीं लगी और अपनी बहन की ओर नम आंखों से देखा और कहा।
"यही है…" — उसने सबको बताया।
टीचर ने तुरंत पुलिस को बुलाया। बॉडी को उतारा गया और फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया।
लेकिन उस वक्त… विकास की आँखें खून से लाल थीं।
उसका दिमाग सिर्फ एक बात सोच रहा था —
"अगर मेरी बहन का कातिल मेरे सामने आया… तो मैं उसे ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा…"
🔥 जारी रहेगा…
(Part 2 में: Forensic रिपोर्ट, कातिल का नाम... और बदले की आग!🔥)☠️
लेखक — विकास त्रिवेदी ( B. Pharmacy )