30 Minister with My Angel - 1 in Hindi Short Stories by Shantanu Pagrut books and stories PDF | 30 Minister with My Angel - 1

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30 Minister with My Angel - 1

 

 

 

 

 

 

                 मेरी Angel के साथ 30 मिनट

 

 

 

रात का समय था। एक लड़का अंधेरे में किसी से छिपकर तेज़ी से भाग रहा था। वह थक चुका था, साँसे फूल रही थीं, लेकिन रुकने का नाम नहीं ले रहा था। डर और घबराहट उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी।

 

अचानक एक गाड़ी तेज़ रफ्तार से आई और उसे टक्कर मार दी। वह ज़ोर से उछल कर दूर जा गिरा। सड़क पर उसका सामान बिखर गया। उसी गाड़ी से कुछ लोग उतरे और जल्दी-जल्दी उसका सामान टटोलने लगे, जैसे कुछ ढूंढ रहे हों।

 

उसी समय, दूर से एक पुलिस की गाड़ी आ रही थी। गाड़ी में बैठे अफसरों की नज़र उस घायल लड़के और उन लोगों पर पड़ी। पुलिस की गाड़ी ज़ोर से ब्रेक मारते हुए रुकी। अफसरों ने गाड़ी से उतरकर उन लोगों से सवाल करने की कोशिश की, लेकिन वह रहस्यमयी गाड़ी तुरंत भाग निकली।

 

पुलिस अफसरों ने घायल लड़के की हालत देखी और उसे तुरंत अस्पताल ले गए।

अस्पताल पहुँचने के बाद एक पुलिस अधिकारी घायल लड़के का सामान जांचने लगा। बैग में एक पहचान-पत्र (ID) मिला —

नाम था: रोशन अग्रवाल।

 

जैसे ही कॉन्स्टेबल ने ID देखी, वह चौंक उठा और बोला,

"सर! ये लड़का हमारे PSI दत्ता पगरुत के गाँव से है... शायद दत्ता सर को इसके बारे में कुछ पता हो!"

 

मुख्य अधिकारी तुरंत सतर्क हो गया।

PSI दत्ता पगरुत — एक ईमानदार, कड़क लेकिन दिल से बेहद नेक पुलिस अधिकारी, जिनकी हर केस पर नज़र होती है और जिनका जिले में खास सम्मान है।

 

“अगर ये केस दत्ता सर से जुड़ा है, तो हमें तुरंत उन्हें सूचना देनी चाहिए,”

अधिकारी ने कहा और फ़ौरन PSI दत्ता को कॉल लगाया।

 

 

---

 

दूर कहीं दत्ता सर अपने ऑफिस में बैठे कुछ फाइलों में व्यस्त थे। तभी फ़ोन की घंटी बजी।

उन्होंने कॉल उठाया —

"हेलो, दत्ता बोल रहा हूँ।"

 

अधिकारी ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी:

"सर, एक लड़का मिला है – रोशन अग्रवाल। बुरी हालत में था, किसी ने टक्कर मारकर भागने की कोशिश की। उसकी ID आपके गाँव से जुड़ी है... क्या आप उसे जानते हैं?"

 

दत्ता सर एक पल को चुप हो गए।

फिर जैसे कुछ याद आया — उनकी आंखों में चिंता की लकीरें उभर आईं।

 

“तुरंत मुझे लोकेशन भेजो... मैं अभी के अभी अस्पताल पहुंच रहा हूँ!”

उन्होंने बिना देर किए अपना सारा काम छोड़ दिया और भागते हुए अस्पताल की ओर निकल पड़े।

 

 

---

 

जैसे ही खबर फैली कि रोशन अस्पताल में है, उसके सारे दोस्त एक-एक कर अस्पताल पहुँचने लगे।

हर कोई हैरान और परेशान था —

"आख़िर रोशन के साथ ये सब हुआ कैसे?"

 

PSI दत्ता भी कुछ ही देर में अस्पताल पहुँचे...

अब कहानी एक नए मोड़ की ओर बढ़ रही थी...

 

PSI दत्ता अस्पताल पहुँचे और सीधे डॉक्टर से सवाल किया,

"डॉक्टर, क्या हुआ? वो ठीक तो है?"

 

डॉक्टर ने गंभीर स्वर में कहा,

"अभी ऑपरेशन चल रहा है... कुछ भी निश्चित रूप से कहना मुश्किल है।"

 

तभी कुछ लोग हड़बड़ाते हुए अस्पताल की ओर दौड़े चले आए। उनमें से एक लड़का, घबराया हुआ, ज़ोर से बोला —

"क्या हुआ रोशन को! वो ठीक है ना?"

 

वो था सौरभ, जो कि असम राइफल्स में एक बहादुर सोल्जर है। सौरभ के चेहरे पर ग़ुस्से और चिंता दोनों का भाव था।

एक ऐसा जवान, जिसने कई मोर्चों पर देश की रक्षा की थी, लेकिन आज उसका सबसे अच्छा दोस्त जीवन और मृत्यु के बीच लड़ रहा था।

 

PSI दत्ता उसे गले लगाने ही वाले थे कि तभी और भी दोस्त वहाँ पहुँच गए —

 

ऋषभ, जो नेवी ऑफिसर है — शांत लेकिन गहरे सोच वाला।

 

ऋषिकेश, एक साहसी आर्मी ऑफिसर — जो हमेशा दूसरों के लिए खड़ा रहता है।

 

और उनके साथ ही पुलिस फोर्स में कार्यरत — अमर्द, देवेंद्र, और तुषार —

ये सभी रोशन के स्कूल और कॉलेज के सबसे करीबी दोस्त थे।

 

 

उनकी एंट्री से अस्पताल में एक पल को हलचल सी मच गई। दोस्ती का जुनून और चिंता का शोर पूरे वॉर्ड में गूंज उठा।

 

डॉक्टर ने उन्हें बाहर जाने के लिए कहा।

PSI दत्ता ने सभी को बाहर ले जाकर शांत किया और अब तक जो कुछ हुआ था, विस्तार से समझाया।

 

इतने में डॉक्टर बाहर आए और बोले,

"रोशन के दिल के पास एक नुकीला लोहे का टुकड़ा फंसा हुआ है। अगर जल्द ऑपरेशन नहीं किया गया, तो हम उसे खो सकते हैं।"

 

तभी ऋषिकेश आगे बढ़ा और बोला:

"डॉक्टर, ऑपरेशन तुरंत शुरू कीजिए। पैसों की चिंता मत कीजिए — हम सभी दोस्त मिलकर उसके इलाज का पूरा खर्च उठाएँगे। वो ठीक होना चाहिए, बस!"

 

उसकी पत्नी, जो पास ही खड़ी थी, एक शांत और भरोसे से भरी मुस्कान के साथ बोली:

"सब ठीक हो जाएगा… भगवान सब ठीक करेंगे।"

 

लेकिन डॉक्टर ने चिंता में सिर हिलाते हुए कहा,

"ऑपरेशन तो ज़रूरी है, लेकिन हमारे पास इस वक़्त कोई कार्डियोलॉजिस्ट नहीं है..."

 

तभी अस्पताल के बाहर एक चमचमाती कार आकर रुकी।

 

कार से उतरी एक बेहद सुंदर लड़की — उसकी चाल में आत्मविश्वास था, आँखों में गहराई और चेहरे पर एक रहस्यमयी चमक।

उसने बिना समय गंवाए डॉक्टर को अपना ID दिखाया।

 

डॉक्टर चौंकते हुए बोले,

"आप... आप कार्डियक सर्जन हैं?!"

 

लड़की ने दृढ़ता से कहा,

"हां, और मुझे अब देर नहीं करनी है। तुरंत ऑपरेशन की तैयारी कीजिए!"

 

डॉक्टर जल्दी-जल्दी स्टाफ को अलर्ट करने लगे।

वो लड़की ऑपरेशन थिएटर में दाखिल हुई, और जैसे ही उसने रोशन को देखा, उसकी आँखें भर आईं।

 

"आख़िरकार... हम फिर मिल ही गए,"

वो बुदबुदाई।

"मुझे नहीं लगा था कि हम इस तरह मिलेंगे। लेकिन अब... मैं तुम्हें कुछ भी नहीं होने दूंगी..."

 

बाहर सभी चकित थे —

"ये लड़की कौन है?"

 

अमर्द ने कहा,

"वो बहुत अमीर और इंटेलिजेंट लगती है।"

 

देवेंद्र बोला,

"उसकी आँखों में कोई गहरा राज छिपा है..."

 

तभी ऋषिकेश चौंकते हुए बोला,

"मैंने इस लड़की को कहीं देखा है..."

 

ऋषभ ने उसकी ओर देखा और कहा,

"क्या कह रहे हो तुम?"

 

ऋषिकेश थोड़ी देर चुप रहा, फिर अपनी पत्नी की तरफ देखा और खामोश हो गया।

 

हालाँकि सबने बात संभाल ली, लेकिन सौरभ चुपचाप सोचता रहा,

"कहीं न कहीं... मैंने भी उस लड़की को देखा है..."

 

 

---

 

ऑपरेशन कई घंटों तक चला।

हर मिनट भारी था, और हर चेहरा चिंता में डूबा हुआ।

 

सौरभ, जो भले ही एक बहादुर सैनिक था, लेकिन दिल से बहुत ही भावुक इंसान था — उसकी आँखें भर आई थीं।

वो धीरे से बुदबुदाया,

"ये सब कैसे हो गया...? रोशन ऐसा कैसे फँस गया..."

 

PSI दत्ता तुरंत उसके पास गए, उसका कंधा थपथपाते हुए बोले:

"सौरभ... मैं जानता हूँ कि ये वक्त कितना कठिन है... लेकिन हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। रोशन को हमारी दुआओं की ज़रूरत है।"

 

तभी अचानक डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर से बाहर आए।

 

सबके कदम उस ओर दौड़ पड़े।

 

ऋषिकेश तुरंत आगे बढ़ा,

"डॉक्टर! क्या हुआ? वो ठीक है ना?"

 

डॉक्टर ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा:

"हाँ... अब रोशन खतरे से बाहर है।"

 

ऋषभ ने राहत की साँस लेते हुए कहा:

"थैंक यू, डॉक्टर..."

 

लेकिन डॉक्टर ने तुरंत कहा,

"मुझे धन्यवाद मत दीजिए — असली धन्यवाद तो उस महिला डॉक्टर को दीजिए, जिनकी वजह से रोशन की जान बच पाई।

अगर वो सही समय पर नहीं आतीं, तो हम कुछ नहीं कर पाते।"

 

ऋषिकेश की पत्नी धीरे से बोली,

"हाँ... हमें जरूर उनसे मिलना चाहिए। वो कहाँ हैं?"

 

डॉक्टर ने नर्स को भेजकर उस महिला डॉक्टर को बुलवाया — लेकिन कुछ ही देर बाद नर्स लौट आई और बोली,

"वो बिना किसी से मिले, चुपचाप बाहर चली गईं। अपनी कार में बैठीं... और निकल गईं।"

 

ऋषिकेश थोड़ा हैरान होकर बोला,

"शायद वो बहुत व्यस्त होंगी..."

 

उसकी पत्नी ने हाथ जोड़कर कहा,

"हमें भगवान का धन्यवाद करना चाहिए कि रोशन मामा अब ठीक हैं।

चलो, अब उनसे मिलने चलते हैं।"

 

ऋषिकेश ने हामी भरते हुए कहा,

"हाँ, चलो..."

 

लेकिन तभी डॉक्टर ने रोक दिया,

"आप सभी को अभी उनसे मिलने की इजाज़त नहीं है। रोशन खतरे से बाहर हैं, लेकिन अभी होश में नहीं हैं।

थोड़ा समय दीजिए, तब मिल सकते हैं।"

 

सबका मन थोड़ा उदास हुआ।

वो अस्पताल के वेटिंग एरिया में जाकर बैठ गए — लेकिन सभी के दिमाग में अब वो रहस्यमयी महिला डॉक्टर घूम रही थी।

 

कौन थी वो?

क्यों आई और बिना कुछ कहे चली गई...?

 

तभी ऋषिकेश की आँखों में जैसे कोई याद कौंध गई।

वो अचानक खड़ा हुआ और बोला,

"सौरभ... ऋषभ... वो कोई आम लड़की नहीं थी... वो... वो Angel थी!"

 

उसकी पत्नी ने तुरंत उसे हल्का सा धक्का मारा और बोली,

"क्या बोल रहे हो तुम?!"

 

ऋषिकेश ने सिर पकड़ लिया और धीमे स्वर में कहा,

"मैं उसे जानता हूँ... हाँ, मैं जानता हूँ उसे!"

 

PSI दत्ता ने चौंककर पूछा,

"कैसे? वो लड़की कौन है?"

 

ऋषिकेश सोचते हुए बोला,

"दत्ता सर, याद है? वो लड़की जो रोशन के साथ लाइब्रेरी में मिलती थी... चुपचाप बैठकर किताबें पढ़ती थी...

हम सब समझ नहीं पाते थे कि रोशन उसे इतना क्यों देखता था..."

 

तभी वो मुड़ा और बोला:

"अमर, देवेंद्र... तुम्हें कुछ याद आ रहा है?"

 

दोनों ने ज़ोर डालकर सोचने की कोशिश की...

लेकिन कुछ भी स्पष्ट याद नहीं आया।

 

ऋषिकेश ने आगे कहा,

 वो वही लड़की है — जिसे रोशन बहुत पसंद करता था।

वो Angel है... रोशन की ज़िंदगी की Angel!"

 

PSI दत्ता ने गंभीर स्वर में कहा:

"हमें पूरी कहानी जाननी होगी... ऋषिकेश, अब तुम्हें रोशन और Angel की कहानी हमें सुनानी पड़ेगी।"

 

ऋषिकेश ने लंबी साँस ली... और फिर कहना शुरू किया...

 

 

ये उस वक़्त की बात है, जब मैं – रोशन – लाइब्रेरी में नया-नया आया था।

मैं रोज़ एक ही सीट पर बैठता था — एक कोने की शांति में किताबों से दोस्ती करने वाला लड़का।

 

उस दिन कुछ अलग था...

 

मैं अपनी जगह पर नहीं बैठा, बस यूँ ही दूसरी तरफ बैठ गया।

तभी लाइब्रेरी का दरवाज़ा खुला — और वो अंदर आई।

 

एक लड़की... इतनी खूबसूरत, जैसे शाम की हल्की धूप हो।

 

वो सीधी आकर मेरी पुरानी जगह पर बैठ गई।

 

मैं अपनी किताब में डूबा हुआ था, लेकिन जैसे ही मेरी नज़र उस पर पड़ी —

मेरी साँसें रुक गईं।

इतनी प्यारी... इतनी मासूम!

 

उसकी आँखें जैसे किसी शांत झील का किनारा...

उसके बाल, काले बादलों की तरह मुलायम और लहराते हुए...

और वो पढ़ते हुए जब हल्के से भौंहें चढ़ाती थी — तो लगाता था जैसे वक्त भी थम गया हो।

 

मैं बस उसे देखता रह गया।

उसी एक पल में दिल हार बैठा...

 

लेकिन मैं जानता था — मुझे लड़कियों से बात करना नहीं आता।

और सुना था कि ये लड़की बात करने में काफी तेज़ है, किसी की भी बोलती बंद कर दे।

 

वो पढ़ाई में डूबी रही — और मैं, उसकी ख़ामोशी में डूबता गया।

 

तभी चमत्कार हुआ।

 

उसने मेरी तरफ देखा और बोली,

"सुनिए ज़रा..."

 

मैं चौंक गया — जैसे किसी ने नींद से जगा दिया हो।

"हां, बताइए..." — मैंने संभलते हुए कहा।

 

"मुझे ये सवाल समझ नहीं आ रहा, क्या आप बता सकते हैं कि इसे कैसे हल किया जाता है?"

 

मैं हक्का-बक्का था।

ये लड़की... मुझसे... खुद बात कर रही है?!

 

मन में जैसे लड्डू फूटने लगे।

 

मैंने सवाल देखा — आसान था।

अपनी पूरी मेहनत लगाकर उसे हल करके दिखाया।

 

वो मुस्कुरा कर बोली,

"ये तो इतना आसान था, लेकिन मैं इतने देर से कोशिश कर रही थी।

आपने कैसे कर लिया?"

 

मैंने उसे समझाना शुरू किया — और यही वो पल था,

जब हमारी चुप्पी की दीवार टूट गई।

 

उस दिन हम दोनों ने काफी बातें कीं।

वो अपनी किताबें समेटी और चली गई...

...लेकिन मैं तो उसके ख्यालों में ही खो गया था।

 

अफ़सोस!

मैंने उसका नाम तक नहीं पूछा था।

 

मैंने खुद से कहा —

"कोई बात नहीं, कल फिर मिलूँगा — और इस बार ज़रूर पूछूँगा..."

 

 

---

 

मैंने ये बात सबसे पहले ऋषिकेश को बताई।

वो बहुत खुश हुआ।

 

"आख़िर तुझे भी कोई पसंद आ गई!

मुझे तो लगा था तू जिंदगी भर यूँ ही किताबों में डूबा रहेगा।

चल बता, उसका नाम क्या है?"

 

मैंने शरमाते हुए जवाब दिया:

"यार, वो तो मैंने पूछा ही नहीं..."

 

"क्या? तूने तीस मिनट बात की और नाम नहीं पूछा?!"

ऋषिकेश हँसते-हँसते लोटपोट हो गया।

 

"तू तो कमाल है भाई, चल छोड़, अब मैं तेरी हेल्प करूँगा!"

 

 

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लेकिन अगले दिन...

मुझे किसी ज़रूरी काम से सौरभ के साथ बाहर जाना पड़ा।

 

दिल भारी था... क्योंकि मैं जानता था — शायद वो फिर लाइब्रेरी में आए।

 

जब वापस आया, तो देखा —

वो लड़की इस बार किसी दूसरी सीट पर बैठी थी।

 

मेरा दिल थोड़ा टूट गया,

लेकिन फिर भी मैं चुपचाप अपनी पुरानी जगह पर जाकर बैठ गया।

...उसके ख्यालों में खोकर पढ़ने का नाटक करता रहा।

 

तभी, वो और उसकी एक फ्रेंड, लाइब्रेरी के मालिक शिदु के साथ पैसे को लेकर बहस करने लगीं।

 

शिदु ने नाराज़ होकर उन्हें लाइब्रेरी छोड़ने को कहा।

 

वो दोनों जाने लगीं — लेकिन जाते-जाते,

उसने मेरी तरफ देखा।

 

जैसे कुछ कहना चाहती हो...

जैसे कोई अधूरी बात हो उसके मन में...

 

मैं समझ गया —

लेकिन मैं... बात करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाया।

 

उसकी फ्रेंड ने उसे खींचा — और वो चली गई।

 

उस दिन के बाद... वो फिर कभी नहीं आई।

 

 

---

 

. रोशन रोज़ उसका इंतज़ार करता था।

हर दिन 1:30 बजे, वो लाइब्रेरी के नीचे जाकर इंतज़ार करता।

कभी सड़क के उस पार देखता, कभी गेट की तरफ...

लेकिन वो नहीं आती।

 

ऋषिकेश ने उसे बहुत समझाया,

"यार, ये बस एक लाइब्रेरी की कहानी थी।

हो सकता है अब वो शहर छोड़ चुकी हो..."

 

रोशन ने बस धीमे से कहा:

"शायद... लेकिन मुझे तो उसकी एक झलक ही बहुत थी..."

 

 

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ऋषिकेश हर बार यही कहा करता था,

"ये रही तेरी 30 मिनट की Love Story...

और उस लड़की का नाम भी नहीं पता!

हम तो उसे 'Angel' ही बुलाते हैं अब..."

 

 

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और आज...

 

सालों बाद...

वही Angel, एक कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर बनकर अचानक अस्पताल में आकर रोशन की जान बचा गई।

 

क्या ये इत्तेफाक था...? या फिर किस्मत...?

 

डॉक्टर ने आकर PSI दत्ता से कहा —

"कुछ ही देर में रोशन को होश आ जाएगा।"

 

सभी के चेहरों पर राहत लौट आई।

लेकिन उसी वक़्त दत्ता सर के मोबाइल पर एक इमरजेंसी कॉल आया।

फोन के उस पार से आवाज़ आई —

"दत्ता, ओजोन हॉस्पिटल पर हमला होने वाला है।"

 

दत्ता चौक गया।

"क्या?! हमला क्यों? और कौन करेगा?"

 

सिनियर अफसर बोले —

"तुम्हारे पास पूरी पावर है। ये काम कोई आम गुंडे नहीं कर रहे। खबर पक्की है — उस हॉस्पिटल में कोई बड़ा VIP भर्ती है। उसकी सुरक्षा तुम्हारी जिम्मेदारी है।

हमलावर किसी को भी मार सकते हैं। पूरे हॉस्पिटल को उड़ाने का प्लान है।"

 

दत्ता ने पूछा —

"VIP कौन है?"

 

आवाज़ आई —

"नाम... रोशन अग्रवाल।"

 

दत्ता स्तब्ध रह गया।

"क्या? वही रोशन...?!"

 

"हां, वही। तुम्हें उसे हर हाल में बचाना है।"

 

"Yes Sir! मैं अपनी जान की बाज़ी लगाकर उसे बचाऊँगा।"

 

 

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दत्ता ने पूरी सच्चाई अपने दोस्तों को बता दी।

ऋषिकेश की पत्नी गुस्से में बोली —

"मेरे मामा को मारने आ रहे हैं? मैं उन्हें छोड़ूँगी नहीं!"

 

ऋषिकेश ने उसे समझाया,

"तुम हमारे साथ हो। लेकिन तुम्हें धैर्य रखना होगा। हम सब यहाँ हैं।"

 

सौरभ, जो असम राइफल्स का बहादुर सैनिक था, मुस्कुराया और बोला —

"आने दो... हमें देखने दो उनकी हिम्मत।"

 

ऋषिकेश बोला —

"तुम रोशन के पास रहो, उसका ख्याल रखो।"

 

 

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कुछ ही देर में,

काले शीशों वाली कई गाड़ियाँ हॉस्पिटल के बाहर आकर रुकीं।

पाँच लोग उतरे —

तीन के पास गन्स और

दो निहत्थे लेकिन खतरनाक चेहरे।

 

तीन गनमैन:

घातक, अनुभवी, एक-एक गोली सीधा दिल पर।

उनके चेहरे से ही पेशेवर अपराधियों की झलक साफ़ थी।

 

बाकी दो:

वे थे एस-रैंक अपराधी।

हथियार की उन्हें ज़रूरत नहीं थी। उनके हाथ-पैर ही मौत के समान थे।

 

🔥 पहला: अर्जुन नागरे (Taekwondo Champion)

 

एशियन गेम्स का पूर्व गोल्ड मेडलिस्ट।

 

अब दुनिया का मोस्ट वांटेड क्रिमिनल।

 

उसकी Back Kick इतनी खतरनाक कि सामने वाले की रीढ़ तोड़ दे।

 

 

🔥 दूसरा: भीमसिंह चौहान (गामा पहलवान के नाम से कुख्यात)

 

देहात से निकला राक्षस।

 

उसकी पकड़ से कोई छूट नहीं पाया।

 

गला दबाकर कितनों को मार चुका, गिनती किसी के पास नहीं।

 

 

 

---

 

तीनों गनमैन हॉस्पिटल में घुसे और गोलियाँ चलाने लगे।

चीख-पुकार मच गई।

लोग भागने लगे, लेकिन उन्होंने हर गेट पर बम लगवा दिए।

"अगर कोई भागेगा, तो पूरा हॉस्पिटल उड़ जाएगा।"

 

PSI दत्ता सब देख रहा था।

 

ऋषभ बोला,

"इनका प्लान साफ़ है... हॉस्पिटल उड़ाना। लेकिन इन्हें रोशन से क्या चाहिए?"

 

सौरभ ने अपने बैग से कुकरी निकाली।

ऋषभ हँस पड़ा —

"अबे, असम राइफल्स में कुकरी कहाँ?"

 

सौरभ:

"दोस्ती का तोहफा फेंका नहीं जाता।"

 

देवेंद्र:

"और तुझे उसके पैसे देने याद नहीं आई?"

 

सौरभ:

"अब तो याद आ ही गई..."

 

 

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PSI दत्ता:

"हमें रोशन को हर हाल में निकालना है। अगर ये लोग यहाँ तक पहुँच गए, तो वो ज़िंदा नहीं बचेगा।"

 

नीचे तीन गनमैन पहरा दे रहे थे।

अर्जुन नागरे और भीमसिंह चौहान — सीधा ICU की तरफ।

 

PSI दत्ता:

"मैं इन्हें पहचानता हूँ। ये कोई आम गुंडे नहीं।

ये दोनों एस-रैंक अपराधी हैं।

इनका नाम सुनते ही बॉर्डर तक की फोर्स काँप जाती है।"

 

 

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ऋषिकेश:

"हम भी आर्मी ऑफिसर हैं। इनकी औकात बता देंगे!"

 

सभी जोश में आ गए।

PSI दत्ता ने कहा:

"सावधान रहना — अर्जुन नागरे की Back Kick से कोई नहीं बचा।

और भीमसिंह... उसके बारे में कोई नहीं जानता कि कब क्या कर दे।"

 

 

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योजना बनी:

 

देवेंद्र, अमर और तुषार नीचे जाकर लोगों को बचाएँगे।

 

सौरभ सारे बम डिफ्यूज़ करेगा।

 

ऋषिकेश, ऋषभ और दत्ता ICU में जाकर रोशन को सुरक्षित बाहर निकालेंगे।

 

 

सभी एक साथ बोले:

"Yes Sir... तैयार!"

 

 

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🔥 अब असली लड़ाई शुरू होगी...

Angel, रोशन और पूरे हॉस्पिटल की किस्मत दांव पर