अपने सगुणों रूप में देवी भुनेश्वरी को देवी पार्वती के नाम से जाना जाता है।
देवी भुनेश्वरी का प्रतिमा विज्ञान।
देवी भुनेश्वरी दिखने में त्रिपुरा सुंदरी के जैसी दिखती है।
देवी भुनेश्वरी अपने बालों में अर्ध चंद्र के साथ उगते सूर्य का रंग हैं।
देवी भुनेश्वरी की चार भुजाएं और तीन आंखों से दर्शाया गया है।
उनकी दो भुजाओं अभय और वरद मुद्रा में दिखाई गई है। बाकी दो भुजाओं में पाशा और अंकुश पकड़ रखा है।
पुत्र प्राप्ति के लिए भुनेश्वरी देवी मां की आराधना की जाती है।
अपने भक्तों को अभय एवं सिद्धियां प्रदान करना देवी मां का सभाविक गुण है।
और भुनेश्वरी देवी मां सुर्य के समान तेज और उर्जा प्रकट होने लगती है।
ऐसा व्यक्ति भुनेश्वरी देवी मां को आदिशक्ति और
प्रकृति की कहा जाता है।
देवी भुनेश्वरी मां ही शताक्षी, शाकम्बरी के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
कहते हैं कि भुनेश्वरी देवी मां को काल की जन्मदात्री भी कहा जाता है।
(भुवनेश्वरी देवी मां की साधना)
भुवनेश्वरी देवी मां की आराधना से सभी प्रकार के
सुखों की प्राप्ति के लिए देवी भुनेश्वरी मां कि साधना से संतान धन ज्ञान और भाग्य प्राप्ति के लिए की जाती है।
(देवी भुनेश्वरी मां का मुल मंत्र)
ॐ ह्री श्री नमः।
श्री देवी भैरवी ( 5)
वारवय भैरवी महाविद्या में से
पाचवी देवी मां है।
और भैरवी देवी मां का एक उग्र और भयानक रूप है।
और प्रकृति मे देवी काली से अप्रभेध है।
जो विनाश से जुड़ी भगवान शिव की उग्र अभिव्यक्ति है।
भैरवी देवी की उत्पत्ति।
श्री दुर्गा देवी सप्तशती भैरवी देवी को मुख्य बे चंडी के रूप में देखा जाता है।
चंड और मुंड का वध करती है।
देवी भैरवी मां की उत्पत्ति देवी काली की छाया विग्रह से उत्पन्न हुई।
भैरवी देवी मां की प्रतिमा
भैरवी देवी के दो अलग-अलग चित्र है।
एक दृष्टि से भैरवी देवी काली से मिलती जुलती है उसे श्मशान घाट एक सिर विहीन शव के ऊपर बैठे हुए दर्शाया गया है।
देवी भैरवी मां की चार भुजाएं और एक हाथ में तलवार और एक हाथ में त्रिशूल और राक्षस का कटा शीश रखती है।
और चौथी भुजा अभय मुद्रा में है जो डरने का आग्रह करती है।
अन्य प्रतिमा श्री दुर्गा देवी मां से मिलती-जुलती है।
इस प्रस्तुति में देवी भैरवी मां के दस हजार उगते सूर्य की चमक से चमकती है देवी भैरवी मां की चार भुजाएं हैं वे दो भुजाओं में पुस्तक और माला धारण करती है। और शेष दो भुजाओं में भय दूर करने वाली और वरदान देने वाली मुद्राएं बनाती है।
इस मुद्रा को क्रमशः अभय और वरदा के रूप में जाना जाता है।
देवी भैरवी भी कमल के फूल फर पर विराजती हैं।
देवी भैरवी मां कि साधना हमें बूरी आदतों से बूरु शक्तियों से व बूरी आत्माओं से के प्रभाव से छुटकारा मिलता है।
देवी भैरवी मां की साधना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं इसलिए देवी भैरवी मां को बदी छोड़ माता भी कहा जाता है।
और देवी भैरवी मां के नाना प्रकार के भेद बताए गए हैं।
जो त्रिपुरा, भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी,
भुवनेश्वरी भैरवी, संपदाप्रद भैरवी,
कमलेश्वरी भैरवी, कामेश्वरि भैरवी, नित्या भैरवी,
रूद्र भैरवी, तथा षटकुटा भैरवी, त्रिपुरा भैरवी आदि और देवी भैरवी माता की साधना बूरी आत्माओं और शारीरिक कमजोरीयों से छुटकारा पाने के लिए भी की जाती है।
और मन चाहा जीवनसाथी का प्रेम विवाह के लिए
और शीघ्र विवाह के लिए देवी भैरवी की साधना की जाती है।
मां भैरवी का मूल मंत्र
(ॐ ह्री भैरवी कलौं ह्री स्वाहा)