Gazal - Sahara me Chal ke Dekhte Hain - 2 in Hindi Poems by alka agrwal raj books and stories PDF | ग़ज़ल - सहारा में चल के देखते हैं - 2

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ग़ज़ल - सहारा में चल के देखते हैं - 2

ये जो नफ़रत है कम होने को जो तैयार हो जाए।

महब्बत फिर ज़माने में गुले गुलज़ार हो जाए।।

 

तिरी नज़रे इनायत का अगर इज़हार हो जाए।

हमारे दिल का  मौसम भी गुले - गुलज़ार हो जाए।।

 

कहीं ऐसा न हो के ज़िन्दगी दुश्वार हो जाए।

जिसे जीना हो मरने के लिए तैयार हो जाए।।

 

कभी तेरी गली की  ख़ाक छानी हमने भी लेकिन ।

यही हसरत थी दिल में बस तिरा दीदार हो जाए।।

 

जो देखून्गी बयाँ वो ही करूँगी तुम से मैं खुलकर।

ज़माने भर में ही फिर क्यूँ न हा हा कार हो जाए।।

 

क़ुसूर इसमें अँधेरे का नहीं है जब हवा अक्सर।

बुझाने के लिए सारे दिये तैयार हो जाए।।

 

अना के साथ समझौता तो मुश्किल "राज़" है अपना।

कही बे बात ही ना  बेसबब तकरार हो जाए ।।

 

अलका "राज़ "अग्रवाल ✍️✍️

 

 

करो तकरार मत उनसे, बिछा दो राह में कलियां

प्रकट उनके लिए हमसे, जरा आभार हो जाए।

           -सरि

*****ग़ज़ल*****

चेहरे से जब ज़रा दे हटा नकाब- ए- हिजाब की ।

दीदार ही करा तू वो सूरत ए माहताब  की।।

 

मुझसे करो फिर तुम न बात माहताब की ।

साहब  ये छोड़ दो भी है बातें हिसाब की ।।

 

तौबा न बात कर जो दिये उन गुलाब की ।

अब याद आए है वो उन्ही के शबाब की ।।

 

दिल ऐ ज़िगर मिरा भी निशाने पे वो रहा ।

उनकी फ़क़त रही वो उल्फ़त हिज़ाब की ।।

 

यादें हसीन " राज़ "है जो खुशबू गुलाब सी ।

बातें  चली बज़्म तेरे मेरे शबाब की !।

 

अलका "राज़ "अग्रवाल ✍️✍️

****ग़ज़ल ******

 

क्या नया अपना लें सारा  सब पुराना छोड़ दें।

लोग कहते हैं हमें गुज़रा ज़माना छोड़ दें।।

 

कब कहा है मैंने ये सारा ज़माना छोड़ दें।

मेरे ख़ातिर अपने दिल में इक ठिकाना छोड़ दें।।

 

ये तो सब होता ही होगा वो सब होना है जो।

ज़ल जलों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें।।

 

सिर्फ़ मेरा दिल नहीं मुजरिम दयारे- इश्क़ का।

आप अब इल्ज़ाम ये मुझ पर लगाना छोड़ दें।।

 

अश्क बारी में गुज़र जाए न अपनी ज़िन्दगी।

ऐ ! ख़ुदा हंसने का क्या इंसां बहाना छोड़ दें।।

 

ये शरर हैं रौशनी इनसे नहीं हो पायेगी ।

आप चिंगारी से अब दीपक जलाना छोड़ दें।।

 

कम न होगी मुश्किलें आँसू बहाने से कभी।

दौरे - गर्दिश में भी क्यूँ हम मुस्कुराना छोड़ दें।।

 

हौसले क़ायम रखें इन मुश्किलों के दौर में

ख़ौफ़ से ज़ालिम के हम क्या मुस्कुराना छोड़ दें।।

 

ज़िन्दगी ने " राज़ "बख़्शी हैं फ़क़त तारीकियाँ।

इसलिए हम घर में क्या दीपक जलाना छोड़ दें।।

 

अलका "राज़ "अग्रवाल ✍️✍️

क्या नया अपना लें सारा  सब पुराना छोड़ दें।

लोग कहते हैं हमें गुज़रा ज़माना छोड़ दें।।

 

कब कहा है मैंने ये सारा ज़माना छोड़ दें।

मेरे ख़ातिर अपने दिल में इक ठिकाना छोड़ दें।।

 

ये तो सब होता ही होगा वो सब होना है जो।

ज़ल जलों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें।।

 

सिर्फ़ मेरा दिल नहीं मुजरिम दयारे- इश्क़ का।

आप अब इल्ज़ाम ये मुझ पर लगाना छोड़ दें।।

 

अश्क बारी में गुज़र जाए न अपनी ज़िन्दगी।

ऐ ! ख़ुदा हंसने का क्या इंसां बहाना छोड़ दें।।

 

ये शरर हैं रौशनी इनसे नहीं हो पायेगी ।

आप चिंगारी से अब दीपक जलाना छोड़ दें।।

 

कम न होगी मुश्किलें आँसू बहाने से कभी।

दौरे - गर्दिश में भी क्यूँ हम मुस्कुराना छोड़ दें।।

 

हौसले क़ायम रखें इन मुश्किलों के दौर में

ख़ौफ़ से ज़ालिम के हम क्या मुस्कुराना छोड़ दें।।

 

ज़िन्दगी ने " राज़ "बख़्शी हैं फ़क़त तारीकियाँ।

इसलिए हम घर में क्या दीपक जलाना छोड़ दें।।