आंसू सूख गए
जिस गति से संसार भौतिकता की ओर जा रहा है , उस के कारण नये नये रोगों उत्पन हो रहे हैं । बहुत ऐसे रोग हैं जो पहले नहीं थे परंतु आज के मनुष्य ने बिना किसी प्रयास और रिसर्च के खोज निकाले हैं।
आर्थिक सम्पन्नता के कारण मनुष्य एक प्रकार के चक्रव्यूह में फंसाता जा रहा है। इस चक्रव्यूह में प्रवेश करना आसान है परंतु बाहर निकलने के लिए जान गंवानी पड़ती हैं।
जब मनुष्य के ऊपर अर्थ का भूत सवार हो जाता है तो वह अपने रिश्तेदारों तथा मित्रों को भूल जाता है। यथार्थ में वह भूलता तो नहीं है परंतु अनदेखी करने का नाटक करता है।वह बहुत ही मतलबी और मानवता के प्रति असंवेदनशील बनने की चेष्टा करता है। परंतु यह है नियम प्रत्येक धनाढ्य व्यक्ति के साथ लागू नहीं होता है। संसार में ऐसे बहुत घनाढय व्यक्ति हैं जिनके पास बहुत धन दौलत है परंतु फिर भी वे मानवता के प्रति बहुत ही संवेदनशील है। परंतु ये लोग गिने चुने हैं।
स्थिति अब ऐसी हो गई है कि मनुष्य अपने आप में ही सिमिट्ता जा रहा है। पहले संयुक्त परिवार टूटा फिर एकांकी परिवार टूटा अब मनुष्य स्वयं में टूट गया है । भौतिक संपन्नता इतनी हो गई है कि अब मनुष्य एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहां उसे यह ज्ञात नहीं कि जाना कहां है।
समाज में जो धन से वंचित व्यक्ति हैं वे भी धनाढ्य लोगों का अनुसरण करने की चेष्टा करते हैं। इस होड़ में ये गरीब तबके के व्यक्ति कुछ न होने पर भी अधिक खर्च कर बठते हैं। इस कारण वे और गरीब होते चले जाते हैं। इसलिए कबीर ने कहा है तेते पांव पसारये जेती लांबी सोर ।
मित्रता प्यार मोहब्बत और मानवता धीरे-धीरे समाप्ति की ओर जा रही है। प्यार मोहब्बत का जितना भी भंडार था वह शादी से पहले समाप्त हो गया । प्यार मोहब्बत कोई ऐसी वस्नतु नहीं जो पंसारी की दुकान से खरीदी जा सके।
शादी तो कर ली परन्तु उसको चलाने के लिए, निभाने के लिए ग्रिस रुपी मोहब्बत और प्यार है ही नहीं। शादी को निभाने के लिए प्यार मोहब्बत कहां से लाएं । पता चला शादी भी टूटने लगी हैं। बहुत कुछ टूटता जा रहा है। यह टूटना कब समाप्त होगा, और कहां समाप्त होगा इसका करना बहुत ही मुश्किल है।
बड़े-बड़े महानगरों में स्थित और भी भयावह है। जहां पर लोग ऊंची ऊंची अट्टालिकाओं में रहते हैं और उन्हें यह नहीं मालूम कि पड़ोस में कौन रह रहा है। सब अपने आप में खोए हुये हैं। यदि कोई मर गया तो घर वाले एंबुलेंस मंगा लेते हैं और चार आदमी क्रिया कर्म करके आ जाते हैं। अब एक नई परंपरा देखने को मिल रही है, विदेश में रहने वाले बच्चे अपने मां बाप के अंतिम संस्कार में आना नहीं चाहते। आंसू सूख गए। निर्मोही हो गये।
वैसेेेेेेेे तो आज कल रोने वाले भी किराए पर मिल रहे हैं। क्योंकि अब आंखों के आंसू भी नहीं।
कुछ समय तक तो अकेला आदमी भावुक रहता है परंतु किसी का सहारा ना मिलने से वह कठोरता की ओर जा रहा है। मन की कठोरता के कारण वह निर्मोही हो रहहा है। मनुष्य में एकांकी पन स्वत: ही आ रहा है। क्योंकि उसने अपने जीवन की संपूर्ण शक्ति केवल अर्थ कमाने में लगा दी है।
हैनरी फोर्ड एक एक बहुत बड़े कार निर्माता थे
उन्होंने पूरा जीवन कार बनाने में लगा दिया परंतु जीवन की संध्या में उन्हें बहुत खेद होने लगा कि उन्होंने कार बहुत बनाई परंतु मित्र नहीं बनाए।
प्रगति या उन्नति की इस होड़ में उसने बहुत कुछ पीछे छोड़ दिया है। या यूं कहें उसने मूल्यवान वस्तु दाब पर लगा दी है। पैसे कमाने के चक्कर में उसका सुख चैन आराम और मन की शांति सब कुछ लुट गई है। मनुष्य ने भौतिक वस्तु और पैसे के लालच मे सब कुछ खो दिया है।
उसने अपना सुकून को प्रेत के यहां गिरवी रख दिया है। जो भी कोई बहुमूल्य वस्तु जैसे मन की शांति प्रेत के यहां गिरवी रख देता है तो उसका वापस मिलना असंभव हो जाता है। प्रायः देखा गया है कि जब कोई वस्तु किसी बाहुबली या किसी दादा भाई के पास गिरवी रख देता है उसका मिलना नामुमकिन हो जाता है। यहां तो मनुष्य ने अपना मन भी प्रेत के यहां गिरवी रख दिया है।
अब जो समय चल रहा है वहां आवश्यकता है कि हम अपनी प्राचीन संस्कृति की ओर लोटें। धन साधन है साध्य नहीं। कहते हैं जब नाव में पानी भर जाता है तो उसको ओख से बाहर निकाल देते हैं। ऐसे ही जब धन अधिक हो जाए तो उसे समाज की सेवा में लगा देना चाहिए। सनातन धर्म कहता है कि दान दया और तप कभी नहीं रुकने चाहिए। इनका अभ्यास निरंतर करते रहना चाहिए। करके देखिए मन को शांति अवश्य मिलेगी और जल्लाद रूपी प्रेत आपसे लाखों मील दूर रहेगा। दान आपके मानसिक और शारीरिक रोगों को दूर कर देता है।
LM SHARMA.