"एक ऐसी औरत की सच्ची कहानी, जिसने सिर्फ़ कमाई नहीं — अपना आत्मसम्मान भी वापस पाया।"
"तुमसे नहीं हो पाएगा..."
"एक ऐसी औरत की सच्ची कहानी, जिसने सिर्फ़ कमाई नहीं — अपना आत्मसम्मान भी वापस पाया।"
1. "घर की चारदीवारी से निकलकर खुद की पहचान बनाने का सफर।"
2. "पैसों से बड़ी होती है इज़्ज़त — और वो मैंने कमाई है।"
3. "मैंने सिर्फ़ बिज़नेस नहीं किया… मैंने खुद को फिर से जिया।"
✍️ Story by Priyanka Singh:
शादी के बाद ये शब्द जैसे मेरी पहचान बन गए थे। घर, बच्चे और रसोई तक ही मेरी दुनिया सिमट गई थी। लेकिन दिल के किसी कोने में एक टीस थी — एक अधूरा सपना था।
मुझे बिज़नेस करना था, और मैंने ठान लिया था कि एक दिन जरूर करूंगी।
फिर एक दिन, मोबाइल पर एक वीडियो देखा — एक महिला, जो घर से ही काम करके सफल हो रही थी। उसकी बातें दिल को छू गईं। उसी वक्त खुद से वादा किया — अब और नहीं रुकना। अब मुझे भी आगे बढ़ना है।
मैंने धीरे-धीरे सीखना शुरू किया — online classes, training, webinars — जहाँ जो मिल जाए, सब सीखा। शुरुआत में कुछ समझ नहीं आता था, लेकिन हार नहीं मानी। घर के कामों के साथ, बच्चों की ज़िम्मेदारी के बीच, रोज़ थोड़ा-थोड़ा समय निकालकर अपने सपने को पंख देने लगी।
लोग कहते थे, "क्यों टाइम खराब कर रही हो?"
कभी-कभी खुद को भी शक होता था — क्या मैं सच में कर पाऊंगी?
पर दिल की आवाज़ कहती — "तू रुक मत, तू चल।"
और मैंने सुना।
धीरे-धीरे काम समझ में आने लगा,
अब हालात बदल रहे हैं।
मुझे बिज़नेस करना था — और मैंने किया भी। अब मैं सफलता की ओर बढ़ रही हूं।
अब मैं सिर्फ एक गृहिणी नहीं, बल्कि एक self-made महिला हूं। लोग अब मुझसे प्रेरणा लेते हैं, और पूछते हैं — “कैसे किया तुमने?”
मैं बस मुस्कुराकर कहती हूं —
"जब एक औरत खुद को पहचान लेती है, तो फिर कोई भी ताकत उसे नहीं रोक सकती।"
मैंने खुद को फिर से पाया — और अब कभी खुद को खोने नहीं दूंगी।शुरुआत आसान नहीं थी। ना समझ थी, ना सिस्टम। जो थोड़ी बहुत जमा पूंजी थी, उसी से थोड़ा-थोड़ा सीखना शुरू किया। बहुत बार गलती हुई, नुकसान हुआ, हौसला भी टूटा। घरवाले भी पहले बोले — "क्या मिलेगा इससे?" लेकिन दिल नहीं मना।
एक कोना पकड़ा घर में, मोबाइल उठाया, और धीरे-धीरे काम शुरू किया। कई बार रोटी बनाते वक्त दिमाग presentation पर होता था, और बच्चों की पढ़ाई के बीच client ke message ka जवाब देती थी।
पहली कमाई सिर्फ ₹500 की थी।
किसी और के लिए मामूली रकम थी, लेकिन मेरे लिए वो ₹500 नहीं, मेरी मेहनत और हिम्मत की पहली जीत थी।
अब हर महीने मेरी आमदनी बढ़ रही है। बहुत सी औरतें मुझसे पूछती हैं — “तूने कैसे किया?”
मैं बस कहती हूं — "मैंने खुद पर भरोसा किया… और बस चलती गई।"
मुझे business करना था… और मैंने किया भी। अब मैं सफलता की ओर बढ़ रही हूं — गर्व से, आत्मसम्मान से।
अब मैं सिर्फ एक गृहिणी नहीं — एक मिसाल हूं, अपने बच्चों के लिए, समाज के लिए… और खुद के लिए भी।
पहले जब मैं कुछ सीखने या करने की बात करती थी, तो घर में कोई ज़्यादा गंभीरता से नहीं लेता था।
कई बार हँसी भी उड़ती थी — "घर बैठो, ये सब तुम्हारे बस की बात नहीं।"
लेकिन मैंने किसी को दोष नहीं दिया... मैंने खुद को बदलना शुरू किया।
जब मेरी पहली कमाई घर आई, तो किसी ने कुछ नहीं कहा... लेकिन सबने देखा।
दूसरी बार जब कमाई थोड़ी और बड़ी हुई — तब वही लोग, जो कभी टोका करते थे, अब कहने लगे —
"हमारी बहू/बीवी/बेटी को देखो, कितनी समझदार है... आज घर की शान बन गई है।"
आज मुझे सिर्फ पैसे नहीं मिलते — आज मुझे घरवालों की 'इज़्ज़त' मिलती है।
यही मेरी सबसे बड़ी कमाई है।
...और आज जब मैं खुद कमाकर लाती हूं, तो सिर्फ पैसों की नहीं,
मेरी मेहनत की इज़्ज़त होती है।
पहले जो लोग टोकते थे, वही अब कहते हैं —
"हमारी बहू को देखो, कितनी समझदार और आत्मनिर्भर है।"
मुझे बिज़नेस करना था, और मैंने किया भी। अब मैं सफलता की ओर बढ़ रही हूं — गर्व से, आत्मसम्मान से।
क्योंकि हमारे लिए सिर्फ पैसे कमाना ज़रूरी नहीं होता —
हमारे लिए सबसे बड़ी कमाई होती है — आत्मसम्मान।
और मैंने खुद को फिर से पाया… अब मैं कभी खुद को खोने नहीं दूंगी।
> "Hamare liye paiso se zyada zaroori hota hai – apna astitva aur atmasamman."
प्रियंका सिंह, एक गृहिणी से आत्मनिर्भर महिला बनने का सफर अपने हौसले और हिम्मत से तय कर रही हैं। उनकी कहानियाँ सच्ची ज़िंदगी की झलक होती हैं — हिम्मत, संघर्ष और उम्मीद का आईना।
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