Beyond Boundaries: A Farmer’s Daughter’s Journey in Hindi Women Focused by Priyanka Singh books and stories PDF | छोटी सी बेटी, बड़ा सा सपना

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छोटी सी बेटी, बड़ा सा सपना

छोटे से गाँव की रहने वाली आरती, एक गरीब किसान की सबसे बड़ी बेटी थी। घर में तीन बहनें और एक छोटा भाई था। पिता दिन-भर खेतों में मेहनत करते और माँ घर का सारा काम सँभालती। आरती बचपन से ही होशियार थी, लेकिन गाँव के लोग कहते – "बेटी को ज्यादा पढ़ाने का क्या फायदा? आखिर शादी ही तो करनी है।"

पर आरती के सपने कुछ और ही थे।

जब वो पाँचवीं कक्षा में थी, तब पहली बार उसने एक महिला टीचर को स्कूल में पढ़ाते देखा। वही पल था जब उसने मन में ठान लिया – "मुझे भी टीचर बनना है!"

हर दिन वो सुबह उठकर घर के सारे काम करती, बहनों की देखभाल करती और तब स्कूल जाती। कई बार उसे भूखा भी रहना पड़ता, लेकिन पढ़ाई में कोई समझौता नहीं करती। गाँव की लड़कियाँ जब गुड़ियों से खेलतीं, आरती किताबों से खेलती थी।

दसवीं की परीक्षा में उसने जिले में दूसरा स्थान पाया। अखबार में नाम छपते ही रिश्तेदारों के ताने शुरू हो गए – "अब जल्दी शादी कर दो, वरना हाथ से निकल जाएगी!"
पर उसके पिता ने कहा – "नहीं! ये मेरी बेटी है, और ये उड़ना चाहती है।"

आरती इंटर की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी, लेकिन कॉलेज जाने के लिए रोज़ 10 किलोमीटर साइकिल से जाना पड़ता। बारिश, धूप, सड़क की धूल – कुछ भी उसे रोक नहीं पाया।

धीरे-धीरे उसने बीए और फिर बीएड पूरा किया। और एक दिन... वही लड़की जो कभी दूसरों के किताबों के पुराने पन्नों से पढ़ती थी, अब खुद एक स्कूल में टीचर बन गई।

जब वो पहली बार अपनी क्लास में बच्चों को पढ़ा रही थी, तो उसकी आँखों में आँसू थे – ये आँसू खुशी के थे... संघर्ष के थे... अपने वजूद को साबित करने के थे।

गाँव के लोग अब कहते – "हमारी बेटियों को आरती जैसा बनना चाहिए।"

आज भी जब कोई उससे पूछता है – "तू कैसे कर पाई ये सब?"
वो मुस्कराकर कहती है –
"बस, खुद से वादा किया था – बेटी हूँ, तो क्या हुआ... सपना मेरा भी पूरा होगा!"


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💡 📚 संघर्ष की स्याही से लिखा हर पन्ना

स्कूल तक का रास्ता काँटों भरा था – कभी नंगे पाँव, कभी दूसरों की किताबों से, और कभी-कभी भूखे पेट। गाँव के कुछ लोग उसे ताने देते,
"लड़की होकर क्या करेगा इतना पढ़-लिख के?"

पर एक दिन उसका रिपोर्ट कार्ड पूरे ज़िले में पहला आया। वही लोग जो उसे रोक रहे थे, अब अपने बच्चों को उसके जैसे बनने की सलाह देने लगे।

पर असली लड़ाई तब शुरू हुई जब वो कॉलेज जाना चाहती थी।

गाँव में कोई कॉलेज नहीं था, न ही बस। आरती हर दिन 10 किलोमीटर दूर शहर जाती – साइकिल से। बारिश में भीगती, सर्दी में काँपती, गर्मी में झुलसती – लेकिन रुकती नहीं थी। कई बार लड़कों की छींटाकशी सुनकर रोती थी, पर हिम्मत नहीं हारती थी।

एक दिन माँ ने उसे रोते देखा और पूछा,
"इतना क्यों सहती है बेटा?"
आरती ने मुस्कराते हुए कहा,
"क्योंकि मुझे सिर्फ अपनी ज़िंदगी नहीं बदलनी... मुझे और बेटियों को भी रास्ता दिखाना है माँ।"


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✨ आत्मसम्मान का मोड़

बी.ए और बी.एड करने के बाद भी नौकरी आसानी से नहीं मिली। एक समय ऐसा भी आया जब परिवार ने खुद ही शादी की बात छेड़ दी। रिश्तेदारों ने कहा –
"अब तो उम्र भी निकल रही है, पढ़ाई से पेट नहीं भरता!"

आरती ने एक बार फिर अपने आत्मसम्मान को थामा और कहा,
"शादी ज़रूरी है, पर पहचान के बाद... पहले मैं खुद को बना लूँ, फिर किसी का साथ दूँगी।"


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🏆 सपनों की उड़ान

आख़िरकार एक दिन उसका सिलेक्शन सरकारी स्कूल में हो गया। पहले दिन जब वो अपने छात्रों के सामने खड़ी थी, तो उसकी आँखें भर आईं। वही लड़की जिसे कभी स्कूल की फीस भरने में मुश्किल होती थी, आज वो 100 बच्चों को रोशनी देने आई थी।

गाँव के लोग अब उसे "मैडम जी" कहकर बुलाते हैं। वही लोग, जिन्होंने कहा था "लड़की होकर क्या करेगी?", आज अपने बच्चों को उसकी क्लास में भेजते हैं।


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💬 आरती का संदेश

आज आरती गाँव में एक चैरिटी क्लास भी चलाती है – उन लड़कियों के लिए, जिन्हें स्कूल नहीं भेजा जाता।

जब भी कोई बच्ची उससे पूछती है –
"मैडम जी, आप इतनी बड़ी कैसे बनीं?"
वो मुस्कराकर कहती है –

> "बड़ी मैं नहीं बनी, मेरा सपना बड़ा था… और मैंने कभी उसे छोड़ने नहीं दिया।"




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🌈 निष्कर्ष:

यह कहानी सिर्फ आरती की नहीं,
हर उस बेटी की है –
जो चुपचाप सब कुछ सहती है,
लेकिन एक दिन दुनिया को दिखा देती है कि
"बेटी होना कमज़ोरी नहीं… सबसे बड़ी ताक़त है।"