हरीद्वार के आगे उतर की तरफ पहाड़ों में दूर तक चले जाइए तो एक ऐसे मुकाम पर पहुंचियेगा जहां पानी एक मोटी धारा गाय के मुंह से मानिंद एक मुहरे की राह, बर्फ के पहाड़ों से निकाल कर बड़े जोर और शोर के साथ एक नीची जगह में गिरती है । यह धारा हमारी गंगा मां है।
उसके निकलने के मुहरे को गौमुख कहते हैं।
और इस जगह का नाम गंगोत्री है
गंगोत्री बहुत ही सुन्दर जगह है। बर्फसतान से आती हुई गंगाजी की सफेद धारा देखने में बहुत खूबसूरत मालूम होती है।
और उसके उतरने की आवाज पहाड़ों में गूंजती
हुई ध्वनि बहुत प्यारी लगती है।
गंगोत्री हिंदूओं का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है।
देस यानी मैदान के रहने वालों के लिए वहां जाने का पहाडी रास्ता बहुत मुश्किल है और जिस जमाने का किस्सा किताब में लिखा जाता है उस जमाने मे और भी ज्यादा मुश्किल था।
क्योंकि अब कहीं कहीं सड़कें और पूल भी बन गए हैं। इससे पहले तंग पगडंडीयां थी , जिन पर से रास्तागीतरो को पैर फिसल कर पहाड़ के नीचे खड्डे
मे गिर जाने का भय रहता था।
और गहरी नदियों को उतरने के लिए उनके ऊपर एक किनारे से दूसरे किनारे तक मोटे मोटे रस्से लगा रहते थे।
जिन्हें झूला कहा जाता है उन पर चलने वाले लोगों का कभी कभी पैर फिसलने से लोग ऊपर से गिर कर मर जाते और हजारों साल पहले की बात है इस गंगोत्री के नजदीक एक छोटी सी झोपडी में एक साधु रहता था उसकी उम्र लगभग पचास साल के करीब होगी देखने में वे बहुत बुढ़ा जान पडता था उसका ऊंचा लंबा कद रंग गोरा चेहरे पर भूरी लबी डाढी जो उसकी छाती को ढंक और उस पर गौर करने से पता चलता कि वो अपनी जवानी में बड़े आराम और मजे से रहा होगा मगर माथे पर की सुकड़ी हुई लकीरें से और भावों के भीतर गड़ी हुई आंखों से ऐसा ख्याल होता था कि कोई भारी दुःख इस आदमी के साधू होने का सबब हुआ है।
ये साधू चिड़ियों और जानवरों पर बहुत प्रेम मुहब्बत करता था। परिंदों को वो इंसान ही समझता था वह इसके मिज़ाज को यहां तक जान गए थे कि हत्यारे जानवर भी दूसरे जानवरों की तरह इसके पास आने से डरते नहीं थे न इस को किसी तरह का कोई नुक्सान पहुंचाने थे।
एक दिन शाम को ये साधू आसन पर बैठा हुआ था अस्ताचल के पिछे डूबते सूरज की सजावट को देख रहा था कि उसकी नजर दो कौओं पर पड़ी जो की उड़ते उड़ते खिलवाड़ कर रहे थे
लड़ते लड़ते एक उनमें से गंगा जी की धारा में गिर पड़ा। वहां पर बहाव जोर का था।
और उसके पंख भीग कर इतने भारी हो गये थे कि उड़ने की ताक़त ना रख कर वह बह चला और जरूर डूब जाता, लेकिन साधू ने पानी में से घूस कर झट अपनी कुबडी की चोंच से उसे बाहर निकाल लिया।
और किनारे पर रख दिया।जब उसखे पंख सूख गए दोनों कौए एक ऊंची चट्टान की तरफ़ उड़ गए जो गौमुख के ठीक ऊपर थी।। कुसाधू ने उन कौओं को उस चट्टान के बीचोंबीच एक छोटी सी खोह में घुसते हुए था कुछ देर बाद साधू ने देखा कि दोनों कौए उसकी तरफ आ रहे हैं और आ कर उसके पैरों पर बैठ जाते हैं ।
क्रमशः ✍️