"दीया – एक रौशनी की तलाश"
---
भूमिका:
यह कहानी एक छोटी-सी लड़की दीया की है, जो गहरी गरीबी और सामाजिक बंदिशों के बीच भी उम्मीद और शिक्षा की रौशनी खोजती है। यह केवल एक लड़की की नहीं, बल्कि उन लाखों बच्चों की कहानी है जो विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानते।
---
🌟 दीया – एक रौशनी की तलाश
गांव का नाम था "रामपुर छोटा"। वहाँ बिजली तो कभी-कभी आती थी, लेकिन अंधविश्वास हर वक्त मौजूद रहता था। उसी गांव की संकरी गलियों के एक पुराने कच्चे घर में रहती थी दीया, नाम से ही जैसे कोई उजाला।
दीया की उम्र बस 13 साल थी, लेकिन सोच और नज़रें बहुत गहरी। घर में माँ थी – बीमार और थकी हुई। पिता का चेहरा उसने कभी देखा नहीं। दीया खुद अपने आप में एक परिवार थी।
हर सुबह दीया कुएँ से पानी लाती, फिर पास की झोंपड़ियों में झाड़ू-पोंछा करती। बदले में मिलते थे कुछ पैसे और एक टाइम का खाना। लेकिन उसकी सबसे प्यारी चीज़ थी – स्कूल की पुरानी किताबें, जो उसे पास की सरकारी स्कूल की एक टीचर मैडम ने दी थीं।
रात को दीया दीये की रौशनी में पढ़ती। माँ कहती, “बेटी, नींद ले ले, थक जाएगी…”
पर दीया जवाब देती, “माँ, पढ़ लिखकर मैं तुम्हारा इलाज करवाऊंगी।”
लेकिन सब कुछ आसान कहाँ था?
गांव के लोग कहते – “लड़कियाँ पढ़कर क्या करेंगी? शादी करके चली जाएंगी।”
कई बार माँ भी डर जाती, “क्या दीया की पढ़ाई समाज से टकराव बन जाएगी?”
---
रात की रौशनी
एक दिन स्कूल में एक प्रतियोगिता हुई – "अपने जीवन का सपना"।
दीया ने लिखा – “मैं डॉक्टर बनकर हर उस माँ का इलाज करूंगी जो इलाज के बिना मरती है।”
सब हंस दिए। लेकिन मास्टर जी की आँखें भर आईं।
उन्होंने दीया की प्रतिभा को पहचाना और एक NGO से संपर्क किया। अगले हफ्ते दीया को शहर के एक छात्रावास में बुलाया गया – मुफ्त शिक्षा, रहन-सहन और पुस्तकें।
जब दीया शहर पहुँची, तो उसे पहली बार लिफ्ट में चढ़ने, ट्रैफिक लाइट देखने, और कंप्यूटर छूने का मौका मिला। पर मन में डर था – “क्या मैं इन सब के बीच अपने आप को पा सकूंगी?”
धीरे-धीरे दीया ने खुद को ढालना शुरू किया।
वह पढ़ाई में अव्वल आने लगी। विज्ञान की प्रयोगशाला में उसकी आँखें चमकती थीं।
एक बार एक प्रश्न आया – “अंधेरे में भी कौन जलता है?”
उसने जवाब दिया – “दीया” – और पूरा क्लास तालियों से गूंज गया।
---
परीक्षा और परिवर्तन
समय बीतता गया। दीया ने 12वीं में टॉप किया। फिर मेडिकल प्रवेश परीक्षा दी – और सफलता पाई।
अब वह गाँव की पहली लड़की थी जो डॉक्टर बनने वाली थी।
दीया की माँ के आँसू नहीं थमते थे। लेकिन अब ये आँसू दुख के नहीं, गर्व के थे।
पाँच साल बाद, जब दीया डॉक्टर बनकर अपने गांव लौटी, तो लोग सिर झुकाए खड़े थे।
उसने एक मोबाइल क्लिनिक खोला, जो हर दिन किसी नए गांव जाती थी।
आज दीया का नाम आसपास के 40 गांवों में जाना जाता है।
वह कहती है –
"मैंने कभी सपना नहीं छोड़ा, क्योंकि मुझे यकीन था कि उजाला किसी ना किसी दीये से ही आएगा।”
---
🔚 निष्कर्ष:
दीया की कहानी हमें बताती है कि हालात कितने भी कठिन हों, अगर इरादे मज़बूत हों तो कोई भी सपना पूरा हो सकता है। शिक्षा, आत्म-विश्वास और दृढ़ संकल्प – यही असली रौशनी हैं।
दीपांजलि
दीपाबेन शिम्पी