📖 Chapter 9: जिस रात रूह ने शेखर के अंदर से देखा
"जब कोई इंसान अपनी आत्मा से जूझता है, तो वो खुद को नहीं देखता… लेकिन जब आत्मा खुद इंसान के भीतर से देखे, तो डर सिर्फ नहीं होता… वो उस इंसान को अंदर से खा जाती है।"
---
🌑 Scene: रात 4:44 AM – कमरे की दीवारें कांप रही थीं, खामोश थे बर्तन
शेखर के शरीर के अंदर कुछ तड़प रहा था। वो पलकों को मूंदे, गहरी सांसें ले रहा था, लेकिन शरीर में रुकावट महसूस कर रहा था। जैसे कोई अंदर से उसकी हड्डियों तक खिसक रहा हो।
और फिर अचानक, उसने आँखें खोलीं — कमरे की दीवारें और बर्तन कांपने लगे। उसकी छाती पर एक काले धब्बे का आकार बन रहा था।
और फिर वही आवाज़ आई — "तू फिर मुझसे भाग रहा है, शेखर?"
💀 जब आत्मा ने खुद को शेखर के अंदर देखा
शेखर की आँखों में जो डर था — वो अब बदला नहीं था। लेकिन उसके अंदर कुछ और था — चांदनी का चेहरा।
वो शेखर की आत्मा से निकलकर उसके शरीर के अंदर घुस चुकी थी। शेखर के अंदर उसका चेहरा घूमने लगा, उसकी आँखें पलटने लगीं। रूह अब शेखर के भीतर थी, और वो अब उसे देख नहीं रहा था।
उसके शरीर में बेतहाशा झटका लग रहा था।
शेखर की आँखों से खून बहने लगा — और दीवार पर जो लिखा था, वो चांदनी का नाम था।
🔥 शेखर की आत्मा और चांदनी की लड़ाई
चांदनी की रूह शेखर के शरीर में समा चुकी थी, और अब दोनों के बीच कोई सीमा नहीं थी। वो शेखर के शरीर को अपना बना चुकी थी, और अब उसे छोड़ने के बजाय वो उसे गहरी हवाओं से लपेट रही थी।
शेखर की आत्मा चीखने लगी, "तू मुझसे नहीं बच सकती, चांदनी! मैं तुम्हें हर जगह खत्म करूंगा!"
लेकिन चांदनी की आवाज़ सुनाई दी — "तू मुझे खत्म नहीं कर सकता, शेखर… हम अब एक हैं। तुम जहाँ हो, मैं वही हूँ।"
💋 प्रेम, रूह और तड़प
शेखर ने अपनी पूरी शक्ति जुटाई, और अपनी आत्मा को बाहर निकालने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही वो चांदनी के साथ सटने वाला था, उसके शरीर में एक अजीब सा एहसास हुआ। रूह का सृजन, खून का आलिंगन।
शेखर का शरीर कांपने लगा। चांदनी की छवि उसकी आँखों में घुस गई और वो अपनी ख्वाहिशों में खो गया।
शेखर का शरीर अब चांदनी के बिना नहीं रह सकता था, जैसे कोई मांसाहारी अंधेरे में छिपी रूह हो।
उसके बाद क्या हुआ — यह सिर्फ शेखर और चांदनी ही जान सकते थे। लेकिन उन दोनों के भीतर एक ऐसा डर था, जिसमें अब मोहब्बत की कोई जगह नहीं थी।
📱 मोबाइल की स्क्रीन से आवाज़ आई – "तू मेरा अब नहीं… मैं तेरा सब कुछ हूं।"
देवा कमरे में आया, और देखा शेखर का शरीर बेहोश था।
मोबाइल स्क्रीन पर वही वाक्य लिखा था — "तू मेरा अब नहीं… मैं तेरा सब कुछ हूं।"
साथ ही स्क्रीन पर चांदनी का चेहरा झलक रहा था। देवा ने शेखर की मदद करने के लिए आगे बढ़ने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसके हाथ शेखर के शरीर पर पड़े — वो झुलस गया।
वो चीखा — "यह क्या हो रहा है भाई?"
दीवारों से फिर वही आवाज आई — "अब तुम दोनों मेरा हिस्सा हो… जैसे वह था, वैसे तुम भी हो।"
🔚 अंतिम दृश्य:
शेखर की आँखों में अब चांदनी की परछाई दिखने लगी। वो कभी नहीं छोड़ने वाली थी। उसके शरीर में अब एक नई ताकत थी — रूह के मिलन की ख्वाहिश।
बिस्तर पर उसी का चेहरा था, शेखर का नहीं। और फिर वही खून से भरी आँखें, जो कभी नहीं थमीं।
"जब आत्मा एक हो जाती है, तो शरीर महज एक खोखला बोझ बन जाता है… क्योंकि अब सिर्फ रूह के बीच प्रेम है।"
Next chapter
"Chapter 10: जिस रात बर्फ में आग लगी"