Manzile - 31 in Hindi Motivational Stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | मंजिले - भाग 31

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मंजिले - भाग 31

एक जंग ------(31)

                        ये स्टोरी मर्मिक एक कुशल युवक की सोच पर आधारित है। ये साल 1950 का पाँचवा महीना है। डेट पर कोई खास धयान नहीं है। रुसी अधिकारी पूरी जानकारी के साथ युद्ध करने से पहले दुश्मन को जांचना चाहते है। इस लिए युवक डामिकस्तान को उस हद मे भेजा जाता है। हथियारों से लेस कर के गुप्त तरीके से, ये कहानी सत्य है। उसको एक टेंक के  ज़रिये वहा भेजा जाता है। स्पिनर बंदूक उसके हाथ मे होती है। उसका निशाना 40 फुट तक का होता है। वो बारूद लिए बसती मे उतरता है। कभी लड़ाई की थी उसके बापू ने भी... वो शहीद हुआ था देश के लिए।

आज वो रात को फोटो कलिक करता हुआ कब शहर मे आ गया उसे पता ही नहीं चला। वो वही घर देख रहा था यहाँ उसके डेड को गोलियों से छलनी कर दिया गया था। वो बे खौफ था। वो चार भाषा जान लेता उसमे दो भाषा बोल सकता था।

वो खड़ूस जर्मनी की सैना का जायजा ले रहा था। जो रशिया के लगभग करीब ही ठहरी थी। बर्फबानी हवाओ ने ऐसा लगा जैसे जरनल का दिल तोड़ दिया हो। बर्फ ही बर्फ थी चारो ओर। किसी की निगाह उसको नहीं खोज रही थी, बल्कि वो उनका जायजा लगा रहा था।

                             वो बेखौफ था। मौत से भी झूझने वाला दलेर फौजी था। जर्मनो के बीच था। जानकारी इकठी कर रहा था। किस ओर से बारूद फेका जाये तो जर्मन फौज को बेहद नुकसान होगा।

ये आज घड़ी थी, डेड और आपनी धरती पर आये दुश्मनो को सबक सिखाने की। लेकिन वो कुछ भी कर सका। कारण बर्फबानी हवाओं ने उनको कमजोर कर दिया था।

वो एक चटान के पीछे हो गया था, जो बर्फबारी मे भी नक्शा बना सके। उसमे सहास था। उत्तर दिशा ही उन पर हर तरा से भारी थी। वो 3  बटालियन का जवान था, जो बहुत तेज करार था। फिर वो पीछे होता हुआ, बरुदो को एक लाइन मे बाधता गया था। एक लम्मी चटान के पीछे से उसने बरुद को आग मे झोक दिया... और आप उसी स्थान पे पहुंच गया यहां उसने हवा मे उड़ने वाली तछतरी को छोड़ा था।

पर वो जल्द भागा। उसको भी छोड़ दिया। वो भाग कर सफर पूरा करना चाहता था...

पर एक भी बारूद चला नहीं, यही बात उसे खोलने लगी।

सैना नायक जर्मनी ने तारे जल्दी से काट दी थी। पर ज़ब वो पंहुचा तो उसका निशाना बारूद ही थे... हवा का रुख जरूर उल्टा था पर निशाना सटीक था। कितने ही जर्मी फौजी मौत के  घाट उतर गए। पर जरनल का उसपर हमला इस ग्वार गुज़रा... कि वो एक सास मे ही खत्म हो गया।

उधर ये धमाके सुने गए। वो अब किसी को भी जाना नहीं दें सकते थे... सब को भून दिया.... ये थी श्रदाजलि उस युवक की जो रूस की धरती को बचा गया। शहीदों मे सम्मान मे आज भी उसका नाम डामिकस्तान लिया जाता है।

एक सच्चा देश भगत.... बर्फबारी मे भी उलट हवा मे भी जिसने आपनी धरती की हिफाजत की। वो था शख्स "----डामिकस्तान " आज भी लोग याद करते है।

(चलदा )------------------------- नीरज शर्मा

                                 शहकोट, जलधर

                             पिन 144702