Kaathagodaam Ki Garmiyaan - 5 in Hindi Fiction Stories by DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR books and stories PDF | काठगोदाम की गर्मियाँ - 5

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काठगोदाम की गर्मियाँ - 5

हल्दी, संगीत और एक पुराना नाम

सुबह का सूरज आँगन पर ठीक वैसे ही चमक रहा था जैसे कनिका के चेहरे पर हल्की-सी बेचैनी। घर में हल्दी की रस्म का शोर था। दीवारों पर पीला रंग, कोने में ढोलक की थाप, और महिलाएं लोकगीतों में खोई हुईं।

कनिका हल्दी की ट्रे हाथ में लिए आँगन में खड़ी थी। पूजा ने उसका हाथ पकड़ा और अंदर खींच लाई,

“अब आप मेहमान नहीं रहीं, भाभी जैसी लग रही हो… अब तो हल्दी लगवानी पड़ेगी!”

 

कनिका ने हँसते हुए मना किया, लेकिन जब रोहन ने सामने से देखा, तो कुछ नहीं कहा — बस मुस्कुरा दिया।

 

हल्दी के बाद संगीत शुरू हुआ। छोटे से गार्डन में सजे लाइट्स के बीच DJ सेटअप लगा था। नाचते हुए रिश्तेदार, खिलखिलाती बहनें, और कोने में खड़े वो दोनों — कनिका और रोहन।

 

“नाचोगी नहीं?” रोहन ने पूछा।

 

“मुझे आता नहीं,” कनिका ने जवाब दिया।

 

“सिखा दूँ क्या?”

 

“या फिर तुम ही नाच लो, मैं देख लूँगी,” कनिका ने मुस्कराकर कहा।

 

दोनों हँस दिए। लेकिन इस हँसी के बीच एक नज़र ऐसी भी थी जिसमें कहने से ज़्यादा छुपा हुआ था।

 

संगीत की गर्माहट बढ़ ही रही थी कि घर के बाहर एक कार रुकी। दरवाज़ा खुला — नीली जीन्स, सफेद शर्ट, और हाथ में फोन लिए कोई उतरा।

 

रौनक।

 

कनिका की मुस्कान थम गई। रोहन ने भी उसकी आँखों की दिशा में देखा।

 

रौनक की नजर सीधी कनिका पर पड़ी — वो आगे बढ़ा।

 

“हाय, अचानक आने का मन हुआ,” उसने कहा, जैसे कुछ भी बदला नहीं था।

 

“तुमने कहा था… पर यक़ीन नहीं था,” कनिका ने हल्की आवाज़ में कहा।

 

रोहन अब तक कुछ दूर खड़ा था, लेकिन हर चीज़ देख रहा था।

 

“अंदर चलें?” रौनक ने पूछा।

 

कनिका ने सिर हिलाया, और एक बार पीछे मुड़कर देखा — रोहन अब उनकी ओर नहीं देख रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर सब लिखा था।

 

 

रात को कनिका बालकनी में बैठी थी, वही उसकी पुरानी जगह।

 

रौनक पास कुर्सी खींचकर बैठ गया।

 

“कैसी हो?”

 

“ठीक,” कनिका ने छोटा-सा जवाब दिया।

 

“अब भी नाराज़ हो?”

 

“नाराज़ी नहीं रही… बस भरोसा नहीं रहा,” कनिका ने सीधा कहा।

 

रौनक चुप हो गया। उसके पास कोई सफाई नहीं थी।

 

“तुम्हें लगा मैं यहाँ अकेली रह रही हूँ?” कनिका ने पूछा।

 

“शायद।”

 

“नहीं हूँ,” उसने धीरे से कहा।

 

नीचे से रोहन की आवाज़ आई — पूजा उसे बुला रही थी।

 

कनिका बालकनी से नीचे झाँकी, रोहन ने नज़रें ऊपर उठाईं — दोनों की आँखें मिलीं।

 

इस बार कनिका ने नज़रें नहीं चुराईं। लेकिन उसने मुस्कराने की कोशिश भी नहीं की।

 

कभी-कभी, किसी के सामने चुप रहना — बहुत कुछ कह जाना होता है।

***

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Book name : Kaathagodaam Ki Garmiyaan / काठगोदाम की गर्मियाँ


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