यह रही योग पर आधारित प्रेरणादायक कहानी, जो सरल, भावनात्मक और संदेशप्रद है। यह कहानी बच्चों, युवाओं और बड़ों – सभी के लिए उपयुक्त है।
---
🧘♂️ कहानी का नाम: “भीतर का दीप”
गाँव में एक छोटा-सा लड़का रहता था – अनुज। वह बहुत चंचल और बेचैन स्वभाव का था। हर काम अधूरा छोड़ देता, कभी ध्यान से पढ़ाई नहीं करता, और सबसे बड़ी बात – हमेशा शिकायत करता कि “मेरा मन नहीं लगता!”
उसके माता-पिता परेशान थे। वे उसे डाँटते नहीं थे, बल्कि समझाते रहते थे – “बेटा, मन को समझाओ, उसे भागने मत दो।” मगर अनुज के लिए ये बातें बोरिंग थीं।
एक दिन स्कूल में “योग दिवस” मनाया गया। गाँव में आए एक वृद्ध योगाचार्य – बाबा शंभुनाथ ने सभी बच्चों को बुलाया और कहा,
> “बच्चों, योग केवल शरीर का व्यायाम नहीं है, यह आत्मा की खिड़की है। इसे खोलोगे, तो अंदर रौशनी मिलेगी।”
अनुज ने यह सुना, लेकिन मन ही मन सोचा, “अरे, योग? ये तो बड़ों की चीज़ है। मैं क्यों करूँ?”
पर स्कूल में सबको सूर्यनमस्कार, प्राणायाम और ध्यान करवाया गया। अनुज ने भी पहली बार शांति से पाँच मिनट आँखें बंद कीं।
और तब… कुछ बदला।
जब उसने आँखें खोलीं, तो उसे भीतर एक नई शांति का अनुभव हुआ। ऐसा लगा जैसे उसके अंदर कोई दीप जल गया हो। कोई आवाज़ कह रही थी –
> “मन को थामो, सांस को देखो… यही जीवन की शुरुआत है।”
वह आवाज़ किसी और की नहीं, उसकी अपनी थी।
उस दिन के बाद अनुज ने रोज़ सुबह पाँच मिनट योग करने का फैसला किया। शुरुआत में उसे आलस आया, लेकिन वह खुद से कहता, “बस पाँच मिनट। फिर कुछ भी करूँगा।”
धीरे-धीरे पाँच मिनट, दस मिनट बने, और फिर पंद्रह। अनुज ने ध्यान लगाना शुरू किया, धीरे-धीरे श्वासों को समझा। वह अब हर बात पर चिड़चिड़ाता नहीं था। जब उसका मन पढ़ाई से भागता, वह गहरी साँस लेता और दो मिनट आँखें बंद कर लेता।
उसके शिक्षक भी यह बदलाव देखकर हैरान थे। एक दिन प्रधानाचार्य ने उसे बुलाकर पूछा,
“अनुज, ये बदलाव कैसे आया?”
अनुज ने मुस्कराकर कहा,
“मैंने खुद को बाहर नहीं, भीतर देखना सीखा है। बाबा शंभुनाथ ने कहा था – दीपक बाहर नहीं जलता, वह अंदर जलता है।”
समय बीता। अनुज दसवीं में आया और पूरे जिले में प्रथम आया। जब सम्मान समारोह हुआ, तब मंच पर वही बाबा शंभुनाथ भी आमंत्रित थे।
अनुज ने सबके सामने माइक पर कहा –
> “योग ने मुझे वो दिखाया, जो मेरी आँखें नहीं देख सकती थीं – मेरा मन, मेरा ध्यान और मेरी ऊर्जा।
पहले मैं खुद से भागता था, अब मैं खुद से जुड़ गया हूँ।”
बाबा शंभुनाथ मुस्कराए, उनकी आँखें भीग गईं। उन्होंने अनुज से पूछा,
“अब क्या लक्ष्य है तुम्हारा, बालक?”
अनुज ने जवाब दिया –
“अब मैं सिर्फ अच्छे अंक नहीं, अच्छे जीवन की ओर बढ़ना चाहता हूँ – और वह रास्ता योग से होकर जाता है।”
---
🌿 सीख:
यह कहानी बताती है कि योग सिर्फ शरीर की कसरत नहीं, बल्कि मन की चाबी है। जब बच्चा स्वयं अपना ध्यान भीतर ले जाता है, तो वह स्वयं को पा लेता है। योग वह दीपक है, जो बाहर से नहीं, भीतर से रौशनी करता है।
--दीपांजली
दीपा बेन शिंपी गुजरात