अदृश्य नायक, यानी एक (Invisible Hero) यह शब्द उन लोगों के लिए इस्तेमाल होता है जो समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन अक्सर उनकी पहचान छिपी रहती है, और यहां पर हम बात करने वाले है ऐसे ही एक (Invisible Hero) की, यानी कि एक फ़ार्मासिस्ट, जो हम सबके बीच एक "दवा देने वाला" बनकर रह गया है।
तो चलिए जानने है और समझते हैं कि फ़ार्मासिस्ट को एक अदृश्य नायक, क्यूँ कहा है?
राजकोट के एक शांत मोहल्ले में, जहाँ बरसों से धूप-छाँव का खेल चल रहा था, वहीं एक पुरानी, मगर हमेशा साफ-सुथरी 'कपूर फ़ार्मेसी' खड़ी थी। इसके मालिक थे मिस्टर कपूर, जिनकी उम्र 38 साल थी। उनकी आवाज़ में वो सौम्यता थी जो बरसों के अनुभव और लोगों के साथ सीधे संपर्क से आती थी। सुबह-शाम मोहल्ले के लोग, जिनमें बूढ़े-बुज़ुर्ग और युवा भी शामिल थे, सिर्फ़ दवा लेने ही नहीं, बल्कि एक भरोसा और सुकून पाने भी आते थे। मिस्टर कपूर सिर्फ़ पर्चे पर लिखी दवा नहीं देते थे; वो हमेशा धैर्य से सुनते, सलाह देते और हर किसी को महसूस कराते थे कि वो उनके लिए मौजूद हैं।
महामारी की दस्तक :
फिर एक दिन, ख़बर आई – कोविड-19. शुरुआत में, ये सिर्फ़ दूर की कोई बीमारी लगी, लेकिन जल्द ही इसने राजकोट और पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया। डर और अफ़वाहों का एक ऐसा दौर शुरू हुआ, जिसने हर किसी की ज़िंदगी बदल दी। जहाँ डॉक्टर और नर्सें अस्पतालों में युद्ध लड़ रहे थे, वहीं मिस्टर कपूर जैसे देश के लाखों फार्मासिस्ट अपनी-फ़ार्मेसी में एक और युद्ध लड़ रहे थे। एक ऐसा युद्ध जिसकी चर्चा कम हुई, पर जिसका महत्व किसी से कम नहीं था।
फ़ार्मेसी का माहौल पूरी तरह से बदल गया। पहले जहाँ लोग आराम से दवा लेते थे, अब वहाँ मास्क पहने, आँखें डरी हुई और आवाज़ें घबराई हुई सुनाई देती थीं। दवाओं, मास्क और सैनिटाइज़र की कमी होने लगी। हर फ़ोन कॉल पर एक ही सवाल था। "क्या ऑक्सीजन मिल जाएगी?
मिस्टर कपूर ने महसूस किया कि यह सिर्फ़ दवाएं देने का समय नहीं था, बल्कि आशा देने का भी था। उन्होंने अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना, अपनी फ़ार्मेसी के दरवाज़े चौबीसों घंटे खुले रखे। सुबह जल्दी उठकर, देर रात तक काम करते हुए, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि किसी को भी ज़रूरी दवा के बिना वापस न लौटना पड़े। वह अपनी गाड़ी से उन बुज़ुर्गों और बीमार लोगों तक दवाएं पहुंचाते, जो बाहर नहीं निकल सकते थे। यह सिर्फ़ राजकोट में नहीं हो रहा था। देश के हर कोने में, हर छोटा-बड़ा फार्मासिस्ट यही कर रहा था।
उन्होंने देखा कि डर लोगों को कैसे गलत सूचनाओं की ओर धकेल रहा था। उन्होंने अपनी फ़ार्मेसी को एक सूचना केंद्र बना दिया, जहाँ वह सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों, सही सावधानियों और टीकाकरण के महत्व के बारे में बताते। उन्होंने लोगों को समझाया कि कैसे घर पर रहते हुए हल्के लक्षणों का प्रबंधन किया जा सकता है और कब अस्पताल जाना ज़रूरी था। उनकी शांत, तार्किक बातें लोगों को अफ़वाहों से दूर रखतीं और उन्हें सही रास्ते पर चलने का साहस देतीं।
अस्पतालों में बेड्स की कमी थी, और कई मरीजों को घर पर ही रहकर अपना इलाज करना पड़ रहा था। ऐसे में, मिस्टर कपूर ने घर-घर जाकर उन मरीजों को दवाओं के सही उपयोग, खुराक और संभावित दुष्प्रभावों के बारे में बताया। उन्होंने अक्सर आधी रात को भी फोन उठाए, लोगों की घबराहट सुनी और उन्हें शांत किया। उनका काम सिर्फ़ दवा बांटना नहीं था; यह एक चिकित्सकीय पेशेवर का काम था जो रोगी की समग्र देखभाल का हिस्सा था। दवाओं के बीच के संभावित इंटरैक्शन को समझना, सही खुराक सुनिश्चित करना, और मरीजों को दवा के प्रभावों के बारे में शिक्षित करना। यह वही काम था जो देश का हर फार्मासिस्ट निस्वार्थ भाव से कर रहा था।
एक दिन, एक बुज़ुर्ग दंपत्ति उनकी फ़ार्मेसी में आए। उनके बेटे को कोविड हो गया था और उसे तुरंत ऑक्सीजन की ज़रूरत थी, लेकिन कहीं मिल नहीं रही थी। उनकी आँखों में बेबसी थी। मिस्टर कपूर, जो खुद भी थकान से चूर थे, फिर भी उन्होंने घंटों तक कई जगहों पर फ़ोन किए, अपनी जान-पहचान के लोगों से मदद मांगी। अंततः, उन्होंने कहीं से ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतज़ाम किया और उसे उस परिवार तक पहुँचाया। उस दिन, मिस्टर कपूर ने सिर्फ़ ऑक्सीजन नहीं दी, बल्कि उस परिवार को सांस लेने की उम्मीद भी दी – ठीक वैसे ही जैसे देश के हज़ारों फार्मासिस्ट उस कठिन समय में अनगिनत परिवारों के लिए जीवन रक्षक साबित हुए थे।
पोलियो से कोविड तक :
एक शाम, जब फ़ार्मेसी में भीड़ कम थी, मिस्टर कपूर अपनी कुर्सी पर थके हुए बैठे थे. उनकी नज़र दीवार पर लगे एक पुराने, धुंधले पोस्टर पर पड़ी 'दो बूँद ज़िंदगी की'. अचानक, उनके मन में पोलियो अभियानों की यादें ताज़ा हो गईं जिनमें उन्होंने काम किया था। हफ़्ते भर पहले से आइस जमाना, वैक्सीन कैरियर को सावधानी से तैयार करना, उन्हें सही तापमान पर पोलियो बूथ तक पहुँचाना। हर पोलियो बूथ पर डॉक्टर, नर्स और आशा बहनें बच्चों को पोलियो की खुराक पिलातीं, और उनकी तस्वीरें अखबारों और न्यूज़ में आतीं। लेकिन वैक्सीन के सही भंडारण, सुरक्षित परिवहन और उपलब्धता सुनिश्चित करने वाले फार्मासिस्ट का नाम कहीं नहीं आता था। वे हमेशा 'अदृश्य' ही रहे, ठीक वैसे ही जैसे कोविड महामारी में वेंटिलेटर तक पहुँचने वाली दवाओं को सुनिश्चित करने में उनका योगदान अदृश्य रहा।
यह सोचकर उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान आई और थोड़ी कसक भी। उनका काम हमेशा पर्दे के पीछे का रहा था, महत्वपूर्ण होते हुए भी अक्सर अनसुना और अनदेखा।
सम्मान और पहचान :
एक आवश्यक बदलाव महामारी ने मिस्टर कपूर से बहुत कुछ छीना था। नींद, अपने परिवार के साथ बिताया गया समय, और अपनी खुद की मानसिक शांति, लेकिन हर सुबह, जब वो अपनी फ़ार्मेसी का शटर उठाते, तो उन्हें अपने काम का महत्व महसूस होता। वह जानते थे कि हर पर्ची पर सिर्फ़ दवा नहीं, बल्कि एक उम्मीद लिखी होती है, और उस उम्मीद को लोगों तक पहुँचाना उनका कर्तव्य था।
जब महामारी का प्रकोप धीरे-धीरे कम हुआ, तो राजकोट के लोग मिस्टर कपूर को एक नायक के रूप में देखते थे। वह सिर्फ़ एक फार्मासिस्ट नहीं थे; वह उस कठिन समय में एक प्रकाशस्तंभ थे, जिसने निस्वार्थ सेवा, धैर्य और मानवता की सच्ची भावना से लोगों के जीवन में आशा की लौ जलाए रखी।
उनकी फ़ार्मेसी अब पहले से भी ज़्यादा विश्वसनीय जगह बन चुकी थी, जहाँ लोग जानते थे कि मुसीबत के समय में मिस्टर कपूर हमेशा उनके साथ खड़े रहेंगे। यह कहानी इस बात का प्रमाण थी कि जिस तरह एक डॉक्टर रोगी के जीवन में अहम भूमिका निभाता है, ठीक उसी तरह एक फार्मासिस्ट भी दवाओं के सही वितरण, सलाह और मार्गदर्शन से, स्वास्थ्य प्रणाली का एक अभिन्न अंग होता है। वे सिर्फ 'दवा देने वाले' नहीं होते; बी.फार्मा (Bachelor of Pharmacy) या एम.फार्मा (Master of Pharmacy) जैसी उच्च डिग्री प्राप्त, दवाओं के जटिल विज्ञान को समझने वाले, और रोगियों के लिए महत्वपूर्ण सलाहकार होते हैं। वे सिर्फ कोविड ही नहीं, बल्कि पोलियो जैसे अभियानों में भी अग्रिम पंक्ति के अदृश्य नायक रहे हैं।
फार्मासिस्टों का योगदान अविस्मरणीय है, फिर भी वे अक्सर एक 'अदृश्य नायक' बनकर रह गया है। समाज को फार्मासिस्टों के इस निस्वार्थ योगदान को नवाज़ना चाहिए, जिसके वे हकदार हैं। उनकी सेवाएँ हमारे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए उतनी ही आवश्यक हैं जितनी कि कोई स्वास्थ्य पेशेवर की।
This story dedicated to all pharmacists....
कहानी को पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद, आपको कहानी कैसी लगी कमेन्ट करके अवश्य बताएगा। और कोई सुझाव है तो रिव्यू सेक्शन में लिख सकते हैं। आपका बहुमूल्य समय देने के लिए बहुत बहुत धन्यावाद। जल्द ही फिर मिलेंगे अगली कहानी में,
तब तक खुश रहिए मुस्कराते रहिए और पढ़ते रहिए। ।
_Miss chhoti