डर क्यों आता है? – हार और असफलता की छाया
हम सभी के भीतर एक अनकहा डर छुपा होता है — कुछ नया करने का, असफल होने का, लोगों की बातों का। ये डर कई बार हमारे सपनों से बड़ा बनकर खड़ा हो जाता है। लेकिन क्या आपने कभी गहराई से सोचा है कि यह डर आता कहां से है? और क्यों हम इसकी छाया में जीना शुरू कर देते हैं?
डर – एक स्वाभाविक भावना
सबसे पहले ये समझना ज़रूरी है कि डर कोई दुश्मन नहीं है। यह इंसानी मस्तिष्क की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो हमें खतरे से बचाने के लिए बनी है। पुराने समय में जब इंसान जंगलों में रहता था, तो यह डर ही था जो उसे सतर्क रखता था — जंगली जानवरों से, ज़हरीले भोजन से, या ऊँचाई से गिरने से।
आज के समय में जंगल नहीं है, लेकिन डर अब भी हमारे साथ है। अब उसका रूप बदल चुका है —
अब हम डरते हैं आलोचना से, रिजेक्शन से, फेल होने से, और सबसे ज़्यादा, “लोग क्या कहेंगे” से।
असफलता का डर — सबसे बड़ा भय
हममें से ज़्यादातर लोग असफलता से इतना डरते हैं कि कोशिश ही नहीं करते।
कुछ सामान्य विचार जो हमारे मन में आते हैं:
“अगर मैं फेल हो गया तो?”“अगर सबने मुझे गलत साबित कर दिया तो?”“अगर मेरा सपना टूट गया तो?”
यह डर असफलता का नहीं होता, बल्कि उसकी सामाजिक छवि का होता है।
हम यह मान बैठते हैं कि एक बार असफल हुए, तो हमारी पहचान खत्म।
लेकिन सच तो यह है कि असफलता सिर्फ एक अनुभव है, आपकी पहचान नहीं।
🔎 डर से बात कीजिए, उससे भागिए मत
जब भी डर महसूस हो, तो उसे दबाने की बजाय उससे संवाद करें।
अपने आप से पूछिए:
“मैं किस बात से डर रहा हूँ?”“क्या यह डर सच में वास्तविक है, या बस मेरे दिमाग की कल्पना?”
जब आप डर को पहचानते हैं, उसका विश्लेषण करते हैं, तो वह छोटा लगने लगता है। डर को शब्द देना, उसका आधा असर खत्म कर देता है।
🪜 असफलता — दीवार नहीं, सीढ़ी है
ज़िंदगी में कोई भी बड़ा काम बिना असफलता के पूरा नहीं हुआ है।
हर सफल व्यक्ति की कहानी के पीछे असफल प्रयास छिपे हैं।
एडिसन जब लाइट बल्ब बना रहे थे, उन्होंने हज़ारों बार कोशिश की।
किसी ने उनसे पूछा —
“आप 1000 बार फेल हुए, कैसा महसूस होता है?”
एडिसन ने मुस्कुराकर जवाब दिया —
“मैं 1000 बार फेल नहीं हुआ, मैंने 1000 तरीके खोजे जो काम नहीं करते।”
यह सोच ही वह फर्क है, जो असफलता को सफलता की राह बना देती है।
डर की दिशा बदलें
डर को मिटाया नहीं जा सकता, लेकिन उसकी दिशा बदली जा सकती है।
उदाहरण के लिए:
अगर आप स्टेज पर बोलने से डरते हैं, तो इसका मतलब है — आपके भीतर बोलने की चाह है।अगर आप रिजेक्शन से डरते हैं, तो इसका मतलब है — आप स्वीकार किए जाना चाहते हैं।
अब सवाल यह नहीं है कि डर है या नहीं,
सवाल यह है कि आप उसके बावजूद आगे बढ़ेंगे या नहीं।
निष्कर्ष
डर हमारा शत्रु नहीं है, वह सिर्फ़ एक संकेत है।असफलता एक दीवार नहीं, बल्कि अगली मंज़िल की पहली सीढ़ी है।डर से भागिए मत, उससे बात कीजिए।डर आपको रोकने नहीं, आपको रास्ता दिखाने आया है।
अब आपसे एक सवाल:
क्या आप अपने डर को पहचानने के लिए तैयार हैं?
क्या आप उस डर के बावजूद पहला कदम बढ़ा सकते हैं?
अगर हाँ, तो यकीन मानिए — आपने जीत की पहली शुरुआत कर दी है।
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