Chandan ke tike par Sindoor ki Chhah - 3 - Last part in Hindi Moral Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | चंदन के टीके पर सिंदूर की छाँह - 3 (अंतिम भाग)

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चंदन के टीके पर सिंदूर की छाँह - 3 (अंतिम भाग)

एपीसोड -3

नरेन ने अपनी आदत नहीं छोड़ी । रोज घर आते ही इशिता की बात करने लगते । वह चुपचाप नोट कर रहे थे कि मनु भी पास की कुरसी पर बैठा उन की एकएक बात ध्यान से सुनता रहता है और जैसे ही उन की बात समाप्त होती है , वह तुरंत मां के कमरे में चला जाता है । वह मन ही मन मुस्कराते - ‘अच्छा, तो उन के पीछे यह नन्हा जासूस लगा दिया गया है ।’

जब एक दिन मनु बहुत ध्यान से उन की बात सुन रहा था तो उन्होंने जानबूझ कर कहा, “मनु, मेरी पैंट की जेब में से रूमाल निकाल कर स्नानगृह में रख आना ।”

मनु नें हैंगर से पैंट उतारी और जेब में हाथ डाला तो उस में से दो रूमाल एकसाथ निकल आये । वह उन्हें देखकर चीखा, “मां!....मां!...पिताजी की पैंट की जेब से एक लड़की का रूमाल निकला है ।”

अपने कमरे में बैठी नीति फफक पड़ी । मनु के हाथ से रूमाल ले कर वह उन्हें दिखा कर बोली, “तो अब आप की जेब से लड़कियों के रूमाल भी निकलने लगे हैं ?”

“तुम जोगन बन गई हो लेकिन मैं तो जोगी नहीं बना?” वह ढीठ हो कर मुसकराये ।

``तो आप अपनी उम्र से आधी उम्र की लड़की से इश्क लड़ायेंगे ?``

``किसने कहा कि मैं इशिता ऐसे इश्क लड़ा रहा हूँ ?``

``क्यों आप हर दूसरे तीसरे दिन उसके साथ लंच नहीं करते हैं ?``

तो राहुल ने नीति को उनके कहने से फ़ोन करके आग लगा ही दी, वे ठहाका मार कर हंस पड़े ,``घर में ही नहीं तुम ऑफ़िस में भी जासूसी करने लगी हो ?``

वे उसे चिढ़ाते हुए वहां से हट गए ,``तुम क्यों दुनियांदारी में पड़ती हो?भगवान नाराज़ हो जाएंगे। ``

नरेन ने सोचा कि लोहा गर्म है ,चोट कर ही दी जाए। उन्होंने दूसरे दिन डिनर पर घोषणा कर ही दी ,``कल मैंने इप्शिता को डिनर पर बुलाया है। ``

नीति घुर्राई ,``मैं क्या अब तुम्हारे दोस्त की सेवा टहल करुँगी ?``

``मैं क्या अब तुम्हारे दोस्त की सेवा टहल करुँगी ?``

``तुमसे कुछ कौन कह रहा है ?बिन्दो बढ़िया खाना बना देगी। मीता नया डिनर सेट निकल लेगी और मैं सलाद काट दूंगा। ``

``मेरे रहते हुए कोई लड़की इस घर में नहीं घुसेगी। ``

``ये मत भूलो कि ये घर मेरा भी है। तुम्हारा तो इस घर में पूजाघर ही है। वैसे भी वह हर तीसरे दिन मुझे घर से कुछ न कुछ लेकर खिलाती रहती है। मेरा अभी फ़र्ज़ बनता है उसे इन्वाइट करुँ। ``

नीति पैर पटकती वहां से चली गई।

नियत समय पर इप्शिता दो बड़े चॉकलेट्स के पैकेट्स लेकर उनके यहाँ आ गई।मीता उसे देखकर बहुत खुश हो गई ,तुरंत ही ग्लास में सब लिए कोल्ड ड्रिंक ले आई। दोनों बच्चे उससे जल्दी ही घुलमिल गए। वे हँसते हुए ,बातें करते हुए खाना खाने लगे।

डिनर के बाद मिठाई खाते हुए मीता ने आश्चर्य से पूछा ,``आंटी !आपने एक बार भी मम्मी के बारे में नहीं पूछा ?``

``पूछने की बात ही नहीं है। सर मुझे सब कुछ बताते रहतें हैं। आई नो शी इज़ अ घनघोर सन्यासिन। ``

``तुम सन्यासिन किसे कह रही हो ?क्या सन्यासिन के बच्चे होते हैं ?``नीति अपने कमरे का पर्दा गुस्से से एक झटके में खोलकर बाहर निकल आई।

इप्शिता जैसे तैयार थी ,वह नाटकीयता से बिना घबराये बोली ,``यू नो ,मेरी दादी बताती है कि बच्चे हो जाने के बाद भी किसी औरत को दुनियां से विरक्ति हो जाती है। नथिंग स्ट्रेंज। ``

``मुझे देखो --क्या मैं सन्यासिन लग रहीं हूँ ?``

नरेन का अब ध्यान गया। नीति ने शिफ़ान की पीली साड़ी पहन रक्खी थी, कुछ ज्वैलरी पहन रक्खी थी। वह योग करती थी इसलिए उसका सांचे में ढाला जिस्म बहुत आकर्षक लग रहा था।

``कुछ कुछ सन्यासिन लग रहीं हैं। आपने पीली साड़ी जो पहन रक्खी है। ``

नीति राम सियाराम भूल कर सिसकने लगी, “ तुम मेरा घर बर्बाद करने क्यों चली आई हो?”

“आप का घर? नरेनजी तो कह रहे थे आप तो घर में रह कर भी नहीं रहती ।”

“क्या मतलब?”

“मतलब आप ने संन्यास ले लिया है घर में ही ।”

“संन्यास ही तो लिया है, कोई मर तो नहीं गई जो यह बाहर की लड़कियों के साथ गुलछर्रे उड़ाते फिरें.” वह चीखी ।

“नरेन जी ! आज इन का मूड ठीक नहीं है, मैं चलती हूँ । कल का कार्यक्रम तो आप को याद है न?”

“कौन सा? अच्छा, वह..याद है । चिंता मत करो ।”

``कौन सा प्रोग्राम ?``नीति चीखी।

``दैट इज़ सीक्रेट। `` इशिता नजाकत से अपना पर्स उठा कर वहां से चल दी । उस के जाते ही नीति मेज पर तरह तरह की मिठाई को देख कर बिफर उठी, “कभी इतना बढ़िया नाश्ता हम लोगों के लिये भी लाये हो?”

“अरे, संन्यासिनीजी !इतनी अशुद्ध भाषा मत बोलिये । आप संसार के मायाजाल से अपने को बचा कर कमरे में भजन कीजिये ।” कहते हुए नरेन सीटी बजाते हुए अपने कमरे में चले गए। वहाँ से उस की सिसकियों का मजा लेते रहे ।

थोड़ी ही देर में नीति दरवाजा खटखटाने लगी, “सुनिए...सुनिए ।”

“क्या?”

“वह कल के कार्यक्रम के बारे में क्या कह रही थी ?”

“कौन?”

उसे उस का नाम लेने में भी घृणा हो रही थी, “वही, लाल कपड़ों वाली चुड़ैल ।”

“कौन सी चुड़ैल?”

“वही ।”

“मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा,” नरेन मस्ती में गुनगुनाते रहे और नीति अपने कमरे में कुढ़ती हुई रोती रही ।

“अब?” नरेन ने बैंक में इशिता से पूछा ।

“आज आप ज़रा देर से घर जाइएगा । हम दोनों के संबंधों को ले कर नीति जी को ज़रा और भड़कने दीजिये ।”

नरेन उस शाम राहुल के यहाँ चले गये । वहीं से खाना खा कर रात को 10 बजे घर पहुंचे । देखा पत्नी राम नाम भूल कर बाहर के कमरे में ही बदहवास सी घूम रही थी । बच्चे अंदर कमरे में पढ़ रहे थे । उन्हें देख कर वह चिल्लाई, “इस समय आप घर आये हैं ? इतनी जल्दी क्या थी ?”

“ओह! ज़रा देर हो गई ।”

“कहाँ गये थे?”

“हमारे बैंक के पास एक बहुत अच्छा होटल खुला है । उस में जाने का मूड आ गया ।”

“ओह, तो इस का मतलब आज खाना भी घर पर नहीं खाओगे?”

“हाँ, वह क्या है कि इशिता ने इजहार कर के इतना कुछ खिला दिया कि पेट पूरी तरह से भर गया है । तुम आराम से रात के अपने ध्यान पर बैठ जाओ, मेरी चिंता छोड़ दो ।”

“तुम्हारी चिंता कैसे छोड़ दूँ ? आखिर पत्नी हूँ तुम्हारी ।”

“पत्नी ? हा...हा....हा... इतने वर्षों बाद आज कैसे याद आ गया ?”

“याद आने की क्या बात है ? और हाँ, होटल में खाना खाने के बाद कहाँ गये थे?”

“खाना खाने के बाद सीधे घर आ रहा हूँ ।”

“तो कहीं और भी जा सकते थे?”

“हाँ, मूड का और भविष्य का क्या ठिकाना?” वह आँखें झपका कर बोले ।

“मतलब यदि मूड हो तो तुम इशिता को ले कर होटल में भी ठहर सकते हो ?” उस ने लगभग रोआंसे हो कर पूछा ।

“हो सकता है, लेकिन इशिता माने तो सही ।”

सुन कर नीति का मुँह खुला का खुला रह गया, “मतलब तुम किसी भी हद को जा सकते हो?”

“जोगनजी ! आप अपना जोग धारण कीजिये । यह रोमांस, होटल में रुकने की बात आप के पवित्र मुख से शोभा नहीं देती ।”

“मेरे मुख से क्या शोभा देता है वह मुझे देखना है । पत्नी के होते हुए भी तुम किसी भी लड़की से संबंध बनाने को उत्सुक हो?”

“यार ! छोड़ो इस बहस को । अभी संबंध बने तो नहीं है, जब बन जाएंगे तो बता दूँगा,” वह कपड़े बदल कर अपने बिस्तर पर लेट गये । वह पीछे बकती, कुढ़ती रह गई । वह चादर ओढ़े चुपचाप मन ही मन मुसकरा रहे थे कि इशिता की दादी का बताया तीर सही निशाने पर लगा है ।

इशिता के निर्देशानुसार वह अगले दिन समय से ही घर पहुँचे । दरवाजा खुलते ही आश्चर्यचकित रह गये । पत्नी दरवाजा खोल रही थी । आज उस ने लाल रंग की सुनहरी पतली बॉर्डर वाली साड़ी पहन रखी थी । सूनी कलाइयां 4-4 लाल रंग की चूड़ियों और कंगन से सजी हुई थीं । माथे पर चंदन के टीके के स्थान पर बड़ी लाल सुनहरी बिंदी थी । गर्दन में तुलसी की माला के स्थान पर सोने की चेन चमक रही थी । उस की सिंदूर से भरी मांग व दमकते हुए चेहरे को देख कर मुग्ध हुए बिना न रह सके वह । लेकिन अनजान बने उसे अनदेखा कर आगे निकल गये और रोज की तरह पुकारने लगे, “मीता...मीता...”

दरवाजा बंद करते हुए पत्नी ने कहा, “मीता और मनु को 2 दिन के लिये उनकी मौसी ले गई है, दीपू की वर्षगांठ है ।”

“अच्छा ।” कह कर वह हाथमुँह धो कर रसोई में जाने लगे ।

“आप रसोई में क्यों जा रहे हैं ?”

“चाय बनाने ।”

“नहीं, आप बैठिये, चाय मैं बनाऊँगी ।”

“लेकिन तुम्हारा तो संध्या जाप का समय है ।”

“वह तो बाद में भी हो सकता है ।”

नीति चुपचाप चाय बना कर ले आई । वह यह देख कर अवाक रह गए कि चाय के साथ घर की बनी मठरियां भी हैं ।

“आज तो मेरी मेहमानों जैसी खातिर हो रही है,” वह उस के बनाये नाश्ते को चखते हुए बोले ।

“कैसी बनी है ?”

“वाह, लाजवाब ।”

“सच कहिये, कल जिस होटल में खाना खाया था उस से अच्छा है ?” वह उन्हें सजल आँखों से देखते हुए बोली ।

“हाँ, सच ही बहुत अच्छा है ।”

नाश्ता करने के बाद वह उठते हुए बोले, “तुम ने इतना पेट भर दिया है अब मैं वहाँ क्या खाऊँगा ?”

“कहाँ ?”

“अब तुम से क्या छिपाना । इशिता को चाइनीज़ खाने का बहुत शौक है । आज उसे चाइनीज़ खिलाने का वादा किया है । बच्चे घर पर नहीं हैं । मैं बाहर खा लूँगा । आज तुम खाना बनाने के झंझट से मुक्त हो । आज तुम अपने वेदपुराण आराम से पढ़ सकती हो । एकांत में जाप कर सकती हो । चाहो तो अपनी मंदिर वाली सहेलियों को घर पर बुला कर कीर्तन कर लो ।”

“क्यों मज़ाक उड़ा रहे हैं ? हर समय इशिता का ही नाम लेते रहते हैं । कभी मेरी परवाह करते हैं ?” पत्नी की आँखें डबडबा आईं ।

“तुमने कभी मेरे बारे में गंभीरता से सोचा है ? खैर अब तो हमारे रास्ते अलग हो चुके हैं...मैं तो जा रहा हूँ ...”

“मैं आप को आज कहीं नहीं जाने दूँगी,” कहते हुए उस ने अपनी दोनों बाँहें उन के गले में डाल कर कस दीं ।

बरसों बाद स्त्रीदेह की मादक गंध उन के इतनी निकट थी । उन की देह थरथरा उठी । उन्हें लग रहा था बरसों जिस रेगिस्तान की तपन में अकेले झुलसते रहै हैं, इस गंध को पा कर वह उस के खुमार में डूबे जा रहे हैं । उन्होंने कसी भुजाओं से अलग होने की कोशिश की लेकिन उस गिरफ्त से निकल नहीं पाए । नीति ने उन की आँखों में आँखें डाल कर कहा, “मैं ने कहा न, मैं आज आप को कहीं भी नहीं जाने दूँगी ।”

सुबह नीति ने कमरे की खिड़कियों पर से परदे हटाए, हलकी सुनहरी आभा ने जैसे उन की पलकों पर दस्तक दी, नीति वापस आ कर उन के पास बैठ गई । फिर मीठी मुसकराहट से उन से बोली, “सुनिये, क्या बैंक से दो दिन की छुट्टी नहीं ले सकते हैं?”

“सोचेंग. ” ऊपर से बनते हुए उन्होंने कहा, वरना मन तो हुआ कि कहें दो दिन तो क्या यदि कहो तो 1 महीने की छुट्टी ले लूं ।

“सोचने की बात नहीं है । अभी ‘हाँ’ कहिए ।”

“अच्छा, तो चलो दो दिन की छुट्टी ले ही लेंगे ।” उन्होंने उसे अपने पास खींचते हुए कहा ।

“सच?” नीति का चेहरा ख़ुशी से चमक उठा । उधर वह सोच रहे थे कि जिस इशिता के चंगुल से उन्हें बचाने के लिये पत्नी जीजान से जुट गई है, वह तो एक नाटक भर था, यह जान कर वह कितनी ख़ुशी होगी, पर इस बात की गवाही नीति को इशिता की दादी राहुल दे ही देंगे।

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