ड्रामा
समीर अंदर गया और बिना किसी भावना के बच्चे को हवा में उठा लिया।
वृषाली ने बच्चे की बोतल पकड़ लिया ताकि ज़रूरत पड़ने पर उस पर हमला कर सके, राहुल ने ज़रूरत पड़ने पर लड़ने के लिए अपना हाथ मुट्ठी में बाँध ली थी।
वे बेचैनी से किसी घटना के घटने का इंतजार कर रहे थे। तीस सेकंड, जो अनंत काल की तरह लग रहा था, उसके बाद सीमर के होठों ने कहा, "क्या तुम हो...मेरे पोते?",
उसके आवाज़ में स्नेह किसी नए प्लान का आगाज़ दे रही थी।
समीर के हाथ उस बच्चे की गर्दन की तरफ जा रहे थे।
उसे देख वृषाली बोटल छोड़कर उठी।
"स-समीर वो...", शब्दों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी,
"तू यहाँ क्या कर रही है?", समीर ने गुस्से से पूछा,
वह हकलाई।
"क्या तुम मेरे पोते को मुझसे छीनने की कोशिश कर रही हो?" उसने उस पर आरोप लगाया,
उसने तुरंत यह कहकर इनकार कर दिया, "जब मेरी आपातकालीन सर्जरी हो रही थी और जब आपका सहायक मुझे ज़हर देने की कोशिश कर रहा था, तब आप वहाँ कहाँ थे?! वो तो राहुल ने मुझे बचा लिया और आसरा दिया। आपके भवन में तो मुझे!",
वह यह कहते हुए रो पड़ी, "तुम सब जानते हुए मुझे धोखे में रख रहे थे और अनदेखा कर रहे थे जबकि मुझे कुछ भी नहीं पता। मैं खुद को यही सोच-सोचकर कोस रही थी कि मुझे क्या गलती हो गयी कि मुझे चेतावनियाँ पर चेतावनियाँ दिए जा रही थी।
तुम... तुम्हें शुरू से ही सब कुछ पता था और फिर भी तुमने मेरे बच्चे को मुझसे पाँच महीने तक दूर रखा?! मुझसे उसका हर एक पल छीन लिया और मुझे उपदेश दे रहे थे कि मैं तुम्हारा भरोसा कभी ना तोड़ूँ लेकिन... भरोसा, भरोसा जो तुमने तोड़ा है, मैं उसका क्या करूँगी?", वह अभी भी रो रही थी, "आपने जो भरोसा तोड़ा है, उसका क्या समीर बिजलानी?
मैं अस्पताल के बिस्तर पर बेसहारा पड़ी थी। मेरी गोद में एक पूरा नन्हा इंसान बिना चेतावनी के रख दिया गया था और आपके और आपके आदमियों का नामोनिशान नहीं था।
मैं चिंता से मरी जा रही थी कि मैं अकेले बेटे को बिना मदद के कैसे बड़ा करूँगी? मेरे दिल में ये सवाल क्यों आया?", वह उसे अपराध बोध से ग्रसित कर रही थी,
समीर उसे देख रहा था,
"क्योंकि आपने मुझे किनारा कर लिया था और अधीर जी, अधीर जी ने मुझे राम भरोसे छोड़कर चल दिए। डॉक्टर मेरे डिस्चार्ज की तैयारी कर रहे थे और मैं मदद के लिए आपको ढूँढ रही थी।
तब राहुल ने कदम बढ़ाया और मेरी मदद की पेशकश की, जब मैं आपसे मदद माँग रही थी। आपकी इच्छा के अनुसार मैंने अपनी भावनाओं को त्याग दिया लेकिन मैं अपने बेटे को नहीं छोड़ने वाली!",
वह अभी भी रो रही थी जबकि राहुल अंदर ही अंदर आश्चर्यचकित था।
"लगता है तुमने सब कुछ गलत समझ लिया मीरा।" उसने सौम्य स्वर में कहा,
बच्चा अचानक रोने लगा। राहुल ने उसे समीर के गोद से बाहर निकाला।
"मैं उसे संभालता हूँ जब तक आपलोग शांत नहीं हो जाते।", उसने अपने बेटे को सीने में भय का बोझ लेकर कमरे से बाहर चला गया।
अंदर चारों थे।
काफी देर तक कोई कुछ नहीं बोला।
फिर वृषाली ने शांति से पूछा, "क्यों?",
समीर ने अपनी दलील रखी, "तुम ठीक हो रही थीं और तुम्हारी मानसिक स्वास्थ्य स्थिर नहीं थी। तुम माँ बनने के लिए तैयार नहीं थीं।",
"आप कैसे तय कर सकते हैं?!
यह मेरा बेटा, मेरा मांस और मेरा खून है! मैं स्थिर नहीं थी, लेकिन मैं हत्यारिन भी नहीं थी। मैंने कभी किसी को चोट नहीं पहुँचाई, यहाँ तक कि एक चींटी को भी नहीं! आप कैसे मान सकते हैं कि मैं एक माँ बनने के लिए तैयार नहीं थी!", उसने अपनी सारी भड़ास निकाली,
"मैं चाहती हूँ! और मैं अपने बेटे को रखूँगी। मुझे पता है कि आपके इस स्कैंडल से डर रहे हो।
वृषा बिजलानी का छिपा हुआ बेटा हुआ वायरल।
चिंता मत करिए मिस्टर बिजलानी।
मैं अपनी और अपने बेटे की ज़िम्मेदारी आप पर नहीं थोपूँगी।
मैं उसे आपसे दूर ले जाऊँगी।
हमारा साया भी बिजलानी कॉरपोरेशन पर नहीं पड़ेगा। किसी को उसकी उपस्थिति का पता नहीं चलेगा। कृपया मुझे अपना बेटा रखने दीजिए।", वो हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रही थी।
"तुम्हें किसने कहाँ कि मैं इस बच्चे के खिलाफ हूँ?", समीर ने पूछा,
"तो फिर आपके सेवकों ने मुझे ज़हर देने की कोशिश क्यों की? उन्होंने मुझे पूरे दिन नजरअंदाज किया, बच्चे को नजरअंदाज किया और मुझे यूही चूहे मारने की दवा दी। अगर आपको मेरी बात पर यकीन नहीं है तो अपने छठवे फूलों के बगीचे की तीसरी गली की जाँच कर लीजिए, वहाँ की मिट्टी में ज़हर जमा हो गया होगा।",
समीर ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की लेकिन उसने कुछ ऐसा कहा जिससे उसे रुकना पड़ा।
"यदि राहुल ना होते तो आप मुझे मेरे अंतिम संस्कार पर मिलते। समीर, मैं बस तब तक सुरक्षित महसूस करना चाहती हूँ जब तक मैं पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाती या कम से कम एक सप्ताह के लिए!
कुछ दिनों के लिए मैं आपके आने का इंतजार नहीं करना चाहती (थोड़े दिन वृषाली को जीना है) या हर खाने के साथ चिंतित नहीं होना चाहती। मुझे बस समय चाहिए। समीर, मैं आपके पोते को आपसे दूर नहीं करना चाहती, मैं बस उसे सुरक्षित रखना चाहती हूँ। जैसा आज हुआ, आप और अधीर वहाँ नहीं थे तो उन्होंने मुझे और मेरे बेटे को ज़हर दे दिया। अगर आपके गैरहाज़िरी में फिर ऐसा हुआ... मैं इसके बारे में सोचना भी नहीं चाहती।", उसने काँपते हुए कहा,
उसने समीर का हाथ पकड़ा, "मैं इस बच्चे को खोना नहीं चाहती। मैंने आपसे आपके बेटा छीन लिया है पर पोते को सही इंसान बनाकर आपको सौंपना चाहती हूँ। इसी तरह में अपनी कृतज्ञता आपको दिखा सकती हूँ और मैं आपके पैसों के पीछे नहीं हूँ। मुझे ना तो समीर बिजलानी की बहू बनना है ना ही उसके वारिस के माँ होने के नाते ऐश-ओ-आराम की ज़िदगी।",
"मैं तुम्हारी बात समझता हूँ मीरा। मेरे पीछे मौत, साए की तरह है।", गहरी साँस ले समीर ने कहा, "ठीक है, तुम यहाँ जब तक चाहो रुक सकती हो। हम बस बीस मिनट की दूरी पर होंगे। अगर किसी भी तरह की दिक्कत हो तो मुझे सीधे कॉल कर देना।",
यह सुन वह समीर के हाथ को पकड़ फूट-फूटकर रोने लगी।
पीछे अधीर और ज़ंजीर सारी अजीब बाते बिना बोले, बिना प्रतिक्रिया दे देखे जा रहे थे।
लंबी बातचीत के बाद सब बाहर आए।
राहुल ने बाहर सबके लिए चाय तैयार की थी।
समीर राहुल के सामने बैठा। अधीर वृषाली को सोए हुए शिशु को अंदर ले जाने में मदद की। ज़ंजीर बाहर निकल गया।
"मैं, मीरा और अपने पोते को तुम्हारे भरोसे छोड़कर जा रहा हूँ राहुल। दोंनो का ध्यान रखना। और ये।", उसने उसे लिफाफा थमा दिया,
"यह क्या है?", राहुल ने पूछा, उसकी भौंहें ऊपर उठ गईं क्योंकि वह जानता था कि वह क्या कर रहा था,
उसने उसका मज़ाक उड़ाने के लिए एक स्पष्ट मुस्कान के साथ कहा, "खोलो इसे।",
अनिच्छा से उसने इसे खोला। उसमें समीर के हस्ताक्षर वाला एक खाली चेक निकला, "इसका क्या मतलब है?!", वह चिढ़ा लेकिन शांत रहा,
"तुम्हारे बीज से उत्पन्न मेरे तथाकथित पोते के लिए कुछ धन।", वह राहुल द्वारा बनाई गई चाय पी रहा था, "तुम्हारे पास महान कौशल है। तुम अपनी चाय की दुकान क्यों नहीं खोल लेते?",
राहुल ने मुठ्ठी बाँध ली थी। दो गहरी साँस ली उसने उस चेक को आगे किया, "मेरे बीज को और उस बीच को पालने वाली के लिए मुझे आपकी खैरात की ज़रूरत नहीं। इसे रख लीजिए। आपके इलाज में काम आएगा।", उसने समीर के आँखो में आँखे डालकर कहा,
"सही कहा, माँ के त्यागने के बाद दाई माँ ही उन्हें पालती है।", यह सुन वो समीर का कॉलर पकड़ने गया, तभी अधीर और वृषाली बाहर आए। राहुल सीधे बैठ गया। वृषाली की नज़र काँच के टेबल पर रखे खुले चेक पर गयी, "ये क्या हो रहा है इधर?", उसने पूछा,
समीर ने चेक टेबल पर छोड़ा, "कुछ नहीं मैं अब जा रहा हूँ। अपना ध्यान रखना।", सवेरे का सूरज निकल रहा था और समीर अपने आदमियों को ले निकल गया।
जाते हुए अधीर ने पूछा, "सर आप मान क्यों गए?",
समीर ने हँसकर कहा, "मज़े के लिए।",
घर में,
तीनों आँधी की तरह आए और तूफान की तरह निकल गए।
खिड़की से किरणे पूरे घर में फैल गयी।
"क्यों आया था वो यहाँ?", वृषाली ने पूछा,
"सनकियों को वजह की ज़रूरत नहीं होती।", राहुल ने ब्लैंक चेक को कचरे में फेंकते हुए कहा।
राहुल अंदर अपने कमरे में गया।
वृषाली ने ध्यान से उसे कचरे से निकाला। कचरा पेटी खाली था। उसने उसे ध्यान से बगल रखी कुक बुक में छिपा दिया।
वह पूरे घर में घूमी। एक-एक कोने को अच्छे से जाँचा। बाहर भी देखा। कुछ अजीब ना लगने पर वो अंदर आई। राहुल नहा-धोकर अपनी कॉफी बना रहा था।
वो धीरे से उसके पास गई।
राहुल ने उसकी तरफ देखा।
वह थोड़ा सोचकर बोली, "इस बच्चे की माँ...", वो अब भी सोच रही थी कि पूछे या ना पूछे। उसका हाथ रिकार्ड बटन पर था।
राहुल ने कहा, "बच्चे को जन्म देने के बाद उसे प्रसवोत्तर अवसाद हो गया था, वह हमारे बच्चे के साथ मातृत्व प्रेम का बँधन नहीं बना पा रही थी। मैं ज़्याउसकी देखभाल कर रहा था। वह सिर्फ काम करती और पूरे दिन उसे अनदेखा करती। एक सप्ताह के बाद मैं करीब ग्यारह बजे या उससे देर से पहुँचा, जहाँ मैंने पालना खाली था। मुझे लगा कि प्रिया उसकी देखभाल कर रही होगी, लेकिन वह सिर्फ उसके बगल में उसे लावारिस छोड़ काम कर रही थी। जब मैंने अस्पताल में पूछा तो वे उसे ढूँढ नहीं पाए। डॉक्टर और नर्स बस एक दूसरे में बात कर रहे थे। पुलिस भी कुछ खास नहीं कर पाई। उन्होंने बस बयान दर्ज किए और कुछ नहीं।", उसके हाथ क्रोध से काँप रहे थे, "मेरी पत्नी इस बात से
ज़रा सी भी चिंतित नहीं दिख रही थी। वह हमेशा की तरह ऑफिस जाती थी और अपना ज़्यादातर समय व्यापारिक यात्राओं पर बिताती थी।",
उसकी आँखें कह रही थीं कि उसके पास उगलने के लिए और भी बहुत कुछ था, "आज अपनी सारी भड़ास निकाल दो मिस्टर कपाड़िया। आपका बेटा आपके साथ है।",
पानी की बूँदें काउंटर पर गिरीं और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
"मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर सकता।",
"क्या? रुको, रुको, रुको! यह अचानक क्या है?", वह एक पल के लिए डर गयी,
उसने अपनी थकी हुई दोषी आँखों से देखा, "उसके अपहरण के अगले दिन मुझे अपने दरवाजे पर बच्चे की फोटो और तुम्हारी फोटो के साथ गुमनाम पत्र मिले।",
"क्या लिखा था उसमे?", उसने पूछा,
राहुल की नज़र इधर-उधर गई। उसने गर्म-गर्म कॉफी को एक झटके में पिया, "उसके उठने का समय हो गया है। मीरा तुम बगल वाले गेस्टरूम में जाकर आराम कर सकती हो।", कह वहाँ से दुम दबाकर भगा।
हैरान, उसने रिकॉर्ड बँद किया।
वह अपने फोन में राहुल कपाड़िया के बारे में खोज रही थी। बिजलनी के तहत उनकी कंपनी द्वारा किए गए प्रोजेक्टों के बारे में कई खबरें थीं, लेकिन इससे ज़्यादा कुछ नहीं। उसका निजी जीवन बहुत निजी था। अगले ही पल जब उसने अपना फोन रख दिया दरवाज़े की घंटी बज उठी।
"मीरा क्या तुम दरवाज़ा खोल सकती हो?", कमरे के अंदर से राहुल की आवाज़ आई,
"ठीक है।", वह कराहते हुए खड़ी हुई,
"पहले छेद से देखना।", उसने कहा,
"हाँ।", उसने झाँक कर देखा।
वह उसकी नर्स थी। वह एक बड़ा बैग ले खड़ी थी जो दवा के लिए आवश्यक से अधिक था। वह बहुत तनावग्रस्त थी, बहुत घबराई हुई थी।
"कौन?", वह बाहर पूछता हुआ आया,
उसने जल्दी से अपनी उंगली उसके होठों पर रख दी और उसे चुप होने का इशारा किया।
"चुप रहो, क्या तुम मेरा एक काम कर सकते हो?", उसने उसे अपनी योजना समझाई।
.....
"अब दरवाजा खोलो।", वह अंदर भागी और उसने दरवाजा खोल दिया।
राहुल पूरी तरह गंभीर था, उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव था, "तुम यहाँ क्यों आई हो?", उसने उससे रूखेपन से पूछा,
उन्होंने बताया, "समीर सर ने मुझे मिस मीरा की दवाइयों, सर्जरी के बाद की रिकवरी, उनके खान-पान और बच्चे की देखभाल के लिए यहाँ रहने का आदेश दिया है।",
उसकी भौंहें तन गईं, "कल तुम कहाँ थी?",
उसने उत्तर टालने की कोशिश करते हुए दूसरी ओर देखा।
"वैसे भी, अगर तुम यहाँ रहने की कोशिश कर रही हो, तो मेरे नियमों के अनुसार जियें। कोई बाहरी बोझ नहीं, कुछ भी नहीं।" उन्होंने दृढ़ता से कहा,
"लेकिन सर, यह उसकी दवा है।", उसने बातचीत करने की कोशिश की,
"पानी, एक साधारण गिलास पानी, क्रिस्टल स्पष्ट चूहे के जहर हो सकता है तो इन रसायनों पर भरोसा क्यों नहीं किया जा सकता है? मुझे अपनी रिपोर्ट दें और अतिथि कक्ष में स्नान करें। वह वह स्थान होगा जहाँ आप रहेंगे? ", अतिथि कक्ष की ओर इशारा करते हुए, "यह आपकी पसंद है, रुकें या जाएं?", वह पीछे नहीं हट रहा था, उसने अपना बैग उसे देने से पहले कई बार अपनी पोशाक को ठीक किया जैसे कि उसका जीवन उस पर निर्भर करता हो। वह भ्रमित और भयभीत होकर निर्देशानुसार स्नान करने के लिए अन्दर भागा।
इस बीच वृषाली बाहर आई और उसे कमरे के अंदर ले जाने का इशारा किया।
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