कहानी का शीर्षक: "नीलू और हरित ग्रह की खोज
बहुत समय पहले की बात है। भारत के एक छोटे से गाँव में एक प्यारी सी बच्ची रहती थी — नीलू। वह कक्षा पाँच में पढ़ती थी और उसे पेड़-पौधे, पक्षी और नदियाँ बहुत पसंद थीं। हर सुबह वह अपने घर के पीछे लगे आम के पेड़ से बातें करती, फूलों को पानी देती और चिड़ियों के लिए दाने रखती।
एक दिन स्कूल में उसकी शिक्षिका, श्रीमती वर्मा ने बच्चों को बताया कि इस बार "पर्यावरण सप्ताह" मनाया जा रहा है। उन्होंने सभी बच्चों से कहा, "आप सभी को पर्यावरण को बचाने के लिए एक काम करना है — कोई भी एक आदत जिसे आप बदलें या शुरू करें, जिससे धरती को बचाया जा सके।"
नीलू को यह सुनकर बहुत खुशी हुई, पर साथ ही वह सोच में पड़ गई, "मैं क्या करूँ जिससे सच में बदलाव आए?"
रात को नीलू अपने दादी से पूछने गई, "दादी, पहले के ज़माने में पर्यावरण कैसा था?"
दादी मुस्कुराईं और बोलीं, "बिलकुल साफ़ और शुद्ध! पेड़ों की भरमार थी, नदियाँ स्वच्छ थीं, पक्षी हर जगह चहचहाते थे। लेकिन अब लोग ज़्यादा प्लास्टिक इस्तेमाल करते हैं, पेड़ काटते जा रहे हैं और नदी-नालों को गंदा कर देते हैं।"
नीलू को बहुत दुख हुआ। उसी रात उसे एक सपना आया।
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सपना:
नीलू एक हरे-भरे, चमकते ग्रह पर पहुँचती है। वहाँ पेड़ बात करते हैं, फूल गाते हैं और नदियाँ मुस्कराती हैं। पर तभी एक अंधेरा बादल आता है और सब कुछ बदलने लगता है — पेड़ सूखने लगते हैं, जानवर भागते हैं, और हवा धुएँ से भर जाती है।
तभी एक छोटी सी रौशनी नीलू के पास आती है। वह एक जादुई तितली थी। तितली बोली, "नीलू, यह हरित ग्रह अब संकट में है। केवल तुम इसे बचा सकती हो — अगर तुम अपने ग्रह पर पर्यावरण बचाने के लिए बच्चों को प्रेरित करो।"
नीलू ने वादा किया — "मैं लौटते ही कुछ बदलूँगी!"
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अगला दिन:
सपने से प्रेरित होकर नीलू ने अगले दिन स्कूल में एक योजना बनाई — "हर बच्चा, एक पौधा!"
उसने अपने दोस्तों को समझाया, "अगर हम सब मिलकर एक-एक पौधा लगाएँ और उसकी देखभाल करें, तो एक दिन पूरा गाँव हरा-भरा हो सकता है!"
बच्चों ने मिलकर स्कूल के पीछे एक खाली मैदान में पेड़ लगाने की शुरुआत की। नीलू ने घर में प्लास्टिक की बोतलों से पानी की बूँद-बूँद बचाने वाला यंत्र बनाया, जिससे पौधों को लगातार पानी मिलता रहे।
धीरे-धीरे स्कूल का मैदान एक हरित उद्यान में बदल गया। नीलू और उसके दोस्तों ने पेंटिंग और पोस्टर बनाकर गाँव वालों को भी समझाया — "प्लास्टिक कम करें", "पेड़ लगाएँ", "नदी को साफ़ रखें"।
गाँव की महिलाएँ अब कपड़े की थैली ले जाने लगीं। पापा ने बाइक की जगह साइकिल से आना शुरू किया। स्कूल में एक "ग्रीन डे" हर महीने मनाया जाने लगा।
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कुछ महीनों बाद:
वही गाँव, जो कभी धूल और प्लास्टिक से भरा था, अब हरियाली और ताज़ी हवा से महकने लगा। पक्षी वापस आने लगे, और बच्चों का खेल अब पेड़ों की छाँव में होने लगा।
जिले के अफ़सर जब गाँव आए, तो उन्होंने कहा, "यह गाँव अब हमारे जिले का सबसे साफ और हरित गाँव बन गया है।"
उन्होंने नीलू को "ग्रीन हीरो अवार्ड" से सम्मानित किया। नीलू ने मंच पर खड़े होकर कहा:
> "मैं कोई सुपरहीरो नहीं हूँ। मैं तो बस एक बच्ची हूँ जिसे अपने धरती माँ से प्यार है। अगर हम सब छोटे-छोटे कदम उठाएँ — जैसे प्लास्टिक से बचना, पेड़ लगाना, पानी बचाना — तो हम सब मिलकर धरती को फिर से हरा-भरा बना सकते हैं।"
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सीख (संदेश):
इस कहानी से बच्चों को यह सिखने को मिलता है कि पर्यावरण बचाना कोई कठिन काम नहीं। अगर हर बच्चा एक छोटा-सा काम भी करे — जैसे एक पौधा लगाना, प्लास्टिक का प्रयोग न करना, पानी की बचत करना — तो बड़ा बदलाव संभव है।
"धरती हमारी माँ है, इसका संरक्षण हमारा धर्म है!"
दीपांजलि
दीपाबेन शिम्पी