Prem ke Do Adhyay - 1 in Hindi Love Stories by Satveer Singh books and stories PDF | प्रेम के दो अध्याय - भाग 1

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प्रेम के दो अध्याय - भाग 1

प्रेम के दो अध्याय  

अध्याय- 1| भाग 1

       

    जब मैंने आँखें बंद की तब उस स्वर्णिम वेला का मनोरम दृश्य मेरे सामने चलचित्र की भांती प्रकट हुआ। भादो की सौरभ युक्त सुबह थी, मेघाच्छन आकाश के विस्तार के नीचे कलरव करते पक्षी और वृक्ष की छाँव में बंधी गाय जिसके गले में बंधी घंटी का वह स्वर मेरा ध्यान भटका रहा था। 

    अतः मैंने किताब रख दी और भाभी को चाय के लिए बोल दिया। “भाभी! चाय बना लो न, आलस आ रहा है।” मैं बोल कर फिर किताब पढनें लगा। इतनें में डाॅरबेल बजा। 

    “जरा देखना तो कोन है?” भाभी ने रसोई से आवाज़ दी। मैं उठ कर दरवाजा खोलने गया। जैसे ही दरवाजा खोला सामने एक इक्कीस वर्षीय सुंदर तरुणी खड़ी थी। दुबली-पतली कद-काठी, माथे पर अत्यंत छोटी लाल बिंदी, नाक में नथुनी और लीलन का सफेद मख्खन-सा पजामा और हल्के गुलाबी रंग का कुर्ता, बंधे बाल लेकिन एक रेशमी लट्ट उसके कपोलों को चुम रही थी। उसने माथे का पसीना पोंछते हुए कहा। 

    “जरा यह पकड़ना तो।” उसने बैग की तरफ इसारा किया। 

    “जी! लाइए।” और मैंने बैग लेली। और हाॅल में ले आया। वह भी बीना हिचकिच के मेरे पीछे आ गइ और साॅफे पर बैठ गइ। और बोली। “आपके यहाँ मेहमानों को पानी के लिए नहीं पुछा जाता?” 

   “जी नहीं! हमारे यहाँ पुछा नहीं जाता। सीधा ला कर दे दिया जाता है।” भाभी ने लोटा देते हुए कहा। उसने एक हँसी हँस कर कहा। “तब तो आप महमान नवाजी का पुरा ख्याल रखते हैं।” 

    “जी बिल्कुल!” भाभी ने हँस कर कहा। “अच्छा! आने में कोई परेशानी नहीं हुई?” 

    “हुई तो नहीं भाभी, लेकिन यहाँ बस केवल एक ही आती है। इसलिए दो घंटे इंतजार करना पड़ा इस बिहड़ जैसे गाँव में आने के लिए।” उसने पसीना पोंछते हुए कहा। “बाकी आप देख ही रही है कि क्या हालत हो गई है यहाँ आते-आते!” 

    “तुम दोनों बैठो, मैं चाय बना लाती हूँ।” भाभी ने कहा। 

    “अरे! भाभी आप रहने दो, मैं बना लाता हूँ। आप बाते करो।” और मैं चाय बनाने के लिए चला गया। कुछ देर बाद मैंने चाय दोनों के हाथों में थमा दी और खुद चाय पीने लगा। 

    “तुम तो इससे परिचित हो नहीं।” भाभी ने मेरी ओर इसारा करते हुए कहा। “यह मेरा देवर है सुशांत, बी. ए. किया है इसने।” 

    “और अब क्या करते हैं यह?” पल्लवी ने पुछा। और मेरे मुँह पर अनायास ही स्मिता छलक पड़ी। वह मंद मुस्कान शायद लाज की थी। और मैं बोला। “जी करता तो कुछ नहीं, किसान का पुत्र हूँ तो खेत का काम कर लेता हूँ और कवि भी हूँ।” 

    “ओहो! तो आप कवि हैं। फिर हमें भी कुछ सुना दिजीए।” पल्लवी ने तकल्लुफ़ से कहा। 

    “जी! आप अभी आइ हैं तो अभी विश्राम कीजिए यह सब तो बाद में भी होता रहेगा।” मैंने जल्दी से चाय खत्म की और बाहर जाने लगा तो भाभी ने रोक लिया। 

    “पहले मिल तो लो। यह मेरी मित्र है न उमा उसकी छोटी बहन है। हमारे पास के शहर में एम. ए. के एग्जाम दे रही है। और बाद में एक कोरस भी करेगी इसलिए दो महीने के लिए यहीं रूकेगी। तुम जरा पापा से बात कर लेना।” 

    “ठीक है भाभी!” और मैं बाहर आ गया। 


शेष अगले भाग में.......