An ancient mystery on the ocean waves in Hindi Fiction Stories by Dr Nimesh R Kamdar books and stories PDF | समंदर की लहरों पर एक प्राचीन रहस्य

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समंदर की लहरों पर एक प्राचीन रहस्य

समंदर की लहरों पर एक प्राचीन रहस्य: कौडिन्य का पुनर्जन्म और आकाश-चित्रक का जादू

आज से लगभग दो हज़ार साल पहले की बात है... नहीं-नहीं, आज से नहीं, बल्कि कल्पना कीजिए कि हम एक ऐसी दुनिया में हैं जहाँ समय थोड़ा अलग चलता है। जहाँ भृगुकच्छ (आज का भरूच) बंदरगाह, अपने पूरे शबाब पर है, और जहाँ ज्ञान सिर्फ़ किताबों में नहीं, बल्कि तारों में, लहरों में और मिट्टी के कणों में भी छुपा है।
भृगुकच्छ के तट पर, सुबह की पहली किरणें धरती को छू रही थीं। हवा में नमक की और ताज़ा लकड़ी की खुशबू घुली हुई थी। घाट पर, हथौड़ों की आवाज़ें और नाविकों का शोर गूँज रहा था। और यहाँ, एक अद्भुत जहाज़ आकार ले रहा था - 'कौडिन्य'। यह सिर्फ़ एक जहाज़ नहीं था, यह एक राष्ट्र के गौरव का प्रतीक था, और एक ऐसे लड़के के सपने का आधार भी, जिसका नाम था आर्यन।
आर्यन, कोई आम लड़का नहीं था। वह गुरुकुल का एक होशियार शिष्य था, जो समंदर के विज्ञान, तारों की विद्या और प्राचीन शिल्प कला में गहरी रुचि रखता था। उसका सपना था भारत के समुद्री इतिहास के खोए हुए पन्नों को फिर से लिखना। 'कौडिन्य' जहाज़ का निर्माण उसके लिए सिर्फ़ एक प्रोजेक्ट नहीं था, यह एक चलती-फिरती किताब थी, एक पहेली थी जिसे वह सुलझाना चाहता था।
हर सुबह, आर्यन भृगुकच्छ के किनारे पहुँच जाता। उसके गुरु, आचार्य रणवीर, जो समंदर के विज्ञान और जहाज़ बनाने की कला के गहरे जानकार थे, वे इस जहाज़ के निर्माण की निगरानी कर रहे थे। आचार्य रणवीर के सफ़ेद बालों और अनुभवी आँखों में प्राचीन ज्ञान का एक अथाह सागर छुपा था।
आज आर्यन ख़ास उत्साहित था। पिछली रात उसे गुरुकुल के पुराने पुस्तकालय में एक ऐसी हस्तलिपि मिली थी, जिसे किसी ने पढ़ा नहीं था। 'समुद्रयात्रा-सूत्रम्' नाम की यह हस्तलिपि, एक अज्ञात नाविक 'कौडिन्य' का ज़िक्र करती थी, जिसने दूर पूरब के देशों के साथ भारत के रिश्ते बनाए थे। यह हस्तलिपि, जिसने उसे रात भर जगाए रखा, 'कौडिन्य' जहाज़ के निर्माण से सीधे जुड़ी हुई थी।
पहला भाग: अतीत की गूँज और एक अनजाना संकेत
आर्यन धूल और लकड़ी की रज़ के बीच से चलता हुआ, जहाँ कारीगर कुशलता से लकड़ी को आकार दे रहे थे, सीधा जहाज़ बनाने की जगह पर पहुँचा। 'कौडिन्य' भव्य लग रहा था। उसकी 65 फ़ीट की लंबाई, 22 फ़ीट की चौड़ाई और 13 फ़ीट की ऊँचाई वाकई कमाल की थी। आचार्य रणवीर एक लकड़ी के तख्ते की गुणवत्ता जाँच रहे थे।
"प्रणाम, गुरुदेव!" आर्यन ने श्रद्धा से कहा।
आचार्य रणवीर ने सिर उठाया, उनकी आँखों में थकान थी, पर एक ज्ञानी चमक भी। "आओ बेटा आर्यन। क्या आज कोई नई विद्या मिली?"
आर्यन ने उत्साह से अपनी पोटली से नाज़ुक हस्तलिपि निकाली। "गुरुदेव, इसे देखिए! कल रात पुस्तकालय में मुझे यह 'समुद्रयात्रा-सूत्रम्' नाम की अप्रकाशित हस्तलिपि मिली। इसमें एक नाविक 'कौडिन्य' का ज़िक्र है, जिसने समुद्री लुटेरों का सामना किया और दूर-दूर तक जहाज़ चलाए!"
आचार्य रणवीर ने हस्तलिपि को हाथ में लिया। "सच में? यह तो अद्भुत है! हमारे पूर्वजों के ज्ञान का यह एक अनमोल हिस्सा है। यह 'कौडिन्य' वही महान नाविक हो सकता है जिसने फूनान साम्राज्य बनाने में मदद की।"
"बस इतना ही नहीं, गुरुदेव," आर्यन ने कहा, "इसमें 'कौडिन्य' के जहाज़ के निर्माण के बारे में भी कुछ बारीकियाँ हैं। ख़ासकर, इसमें 'निर्मिका सिलाई' का ज़िक्र है। मुझे लगता है कि यह वही 'सीने की विधि' है जिस पर आप इतना ज़ोर देते हैं, जिसमें कोई लोहे की कील का इस्तेमाल नहीं होता, बस लकड़ी के जोड़ों और प्राकृतिक धागों का उपयोग होता है।"
आचार्य रणवीर की आँखों में चमक आ गई। "'निर्मिका सिलाई'? अगर इसमें विस्तृत वर्णन है तो वह हमारे लिए अनमोल होगा! हमें इस तरीक़े को सीखने में सालों लग गए हैं। इसमें लकड़ी को मोड़ने की प्रक्रिया के बारे में भी कुछ है - 'बाष्प-तापन' और 'काष्ठ-आकारन'।"
आर्यन ने तुरंत अनुवाद किया, "हाँ, गुरुदेव, 'बाष्प-तापन' यानी भाप से गरम करना, और 'काष्ठ-आकारन' यानी लकड़ी को आकार देना। यह सब तो आप हमें सिखाते ही हैं!"
आचार्य रणवीर हँसे। "देखो आर्यन, यही तो हमारे पूर्वजों की बुद्धि है! हज़ारों साल पहले भी वे जानते थे कि लकड़ी को बिना नुक़सान पहुँचाए कैसे मोड़ना है।"
वे दोनों जहाज़ के अंदर गए। 'कौडिन्य' को बनाने में मुख्य रूप से सागवान की लकड़ी का इस्तेमाल हुआ था, और उसकी कील (नीचे का हिस्सा) जंगली कटहल की लकड़ी से बनी थी।
अचानक, आर्यन ने हस्तलिपि के एक पन्ने पर एक अजीब-सा निशान देखा। यह एक छोटा, धुँधला प्रतीक था, जो समंदर की लहरों और एक तारों के समूह जैसा दिख रहा था। उसके नीचे एक छोटा, खुदा हुआ वाक्य था: "यदा गुप्तं द्वारं उद्घाटयते, तदा कालप्रवाहः प्रकटीभवति।" (जब गुप्त द्वार खुलेगा, तब समय का प्रवाह प्रकट होगा।) यही प्रतीक उसने गुरुकुल के एक पुराने, खोए हुए द्वीप के नक़्शे पर भी देखा था।
"गुरुदेव, यह क्या है?" आर्यन ने आचार्य रणवीर को दिखाया। "यह प्रतीक मैंने एक पुराने नक़्शे पर देखा है जो 'निर्जन द्वीप' का ज़िक्र करता है, जिसे कभी ढूँढ़ा नहीं जा सका।"
आचार्य रणवीर ने ध्यान से देखा। "ऐसा निशान मैंने कभी नहीं देखा। और यह वाक्य... 'गुप्त द्वार' और 'समय का प्रवाह'? यह कुछ रहस्यमयी लग रहा है। क्या यह हस्तलिपि सिर्फ़ ऐतिहासिक नहीं, बल्कि किसी छिपे हुए संदेश का नक़्शा है?"
दूसरा भाग: नक्षत्रों का रहस्य और खोए हुए द्वीप की भविष्यवाणी
आर्यन ने तुरंत हस्तलिपि से एक और हिस्सा पढ़ा: "यदा चन्द्रः तारकान् सन्मिलति, तदा कौडिन्यः प्रथमं यात्रां करिष्यति। एषा यात्रा अतीतस्य रहस्यानि उद्घाटयिष्यति भविष्यस्य मार्गं च प्रस्तरिष्यति।" (जब चंद्रमा तारों से मिलेगा, तब 'कौडिन्य' अपनी पहली यात्रा पर निकलेगा। यह यात्रा अतीत के रहस्यों को खोलेगी और भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेगी।)
"चंद्रमा और तारों का संयोग?" आचार्य रणवीर सोच में पड़ गए। "हम तो बस जहाज़ का निर्माण पूरा होने का इंतज़ार कर रहे थे, लेकिन इसमें कुछ और गहरा रहस्य छुपा हुआ है।"
आर्यन ने तुरंत अपनी नक्षत्र-पत्रिका और खगोल विज्ञान के ज्ञान का उपयोग किया। "गुरुदेव, अगली पूर्णिमा के दिन गुरु और शुक्र ग्रह, जिन्हें अक्सर 'तारा' कहा जाता है, चंद्रमा के बहुत करीब दिखाई देंगे। यह एक दुर्लभ 'त्रिकोणीय संयोग' होगा। और मुझे लगता है कि इस 'गुप्त द्वार' और 'समय के प्रवाह' का संबंध उस खोए हुए 'निर्जन द्वीप' से है।"
आचार्य रणवीर की आँखों में चमक आ गई। "तो क्या यही वह संयोग है जिसका ज़िक्र हस्तलिपि में है? अगर ऐसा है तो, 'कौडिन्य' की पहली यात्रा एक सामान्य यात्रा नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और रहस्यमयी अभियान होगी! और शायद, वह रहस्य इस जहाज़ में ही कहीं छुपा है।"
उसी रात, जहाज़ का निर्माण लगभग पूरा हो चुका था। आर्यन जहाज़ के अंदरूनी हिस्से में सिलाई की विधि की जाँच कर रहा था। उसे एक जगह, जहाँ लकड़ी के तख्ते ख़ास तरीक़े से जुड़े थे, वहाँ एक छोटा, छिपा हुआ डिब्बा दिखा। वह इतनी चतुराई से छुपाया गया था कि अगर कोई ख़ास ध्यान न दे तो उसे ढूँढ़ना मुश्किल था। उसने धीरे से उसे खोला। अंदर एक छोटी ताँबे की नली थी।
तीसरा भाग: रहस्यमयी नली और कालचक्र का संकेत
आर्यन ने ताँबे की नली आचार्य रणवीर को दिखाई। "गुरुदेव, इसे देखिए! मुझे जहाज़ में यह छिपा हुआ डिब्बा मिला। शायद यह वही 'गुप्त द्वार' है जिसका हस्तलिपि में ज़िक्र है!"
आचार्य रणवीर ने ध्यान से नली को हाथ में लिया। वह बहुत पुरानी लग रही थी, लेकिन उसकी सतह पर कोई ज़ंग नहीं था। उस पर भी वही अजीब प्रतीक खुदा हुआ था जो हस्तलिपि पर था - लहरें और तारों का समूह।
नली के अंदर एक छोटी, मुड़ी हुई चर्मपत्र की नली थी। आर्यन ने उसे सावधानी से बाहर निकाला और खोला। उस पर एक प्राचीन भाषा में कुछ लिखा हुआ था, जो संस्कृत जैसी ही थी लेकिन उसमें कुछ अनजाने शब्द और अविश्वसनीय चित्र थे।
"यह क्या है?" आचार्य रणवीर ने पूछा।
"यह कोई सामान्य भाषा नहीं है, गुरुदेव," आर्यन ने कहा। "यह 'गुप्त संकेतों' की भाषा है, जिसका उपयोग प्राचीन भारतीय नाविक और व्यापारी गुप्त संदेश भेजने के लिए करते थे। और यह चित्र..."
गुरुकुल के प्राचीन विद्वानों की मदद से, आचार्य रणवीर और आर्यन ने चर्मपत्र का अनुवाद किया। उसमें लिखा था:
पहली यात्रा पर, गुरु और शुक्र मिलेंगे, चंद्रमा पंख फैलाएगा, वहाँ जल के हृदय में एक मार्ग खुलेगा।
जहाँ आदि ज्ञान बसता है, वहाँ समय का प्रवाह उल्टा बहता है।
एक कालचक्र का संकेत मिलेगा, जो अदृश्य को दृश्य बनाएगा।
केवल शुद्ध हृदय और निडर आत्मा ही सत्य को पहचान पाएगी।
और वह मार्ग, जो गुप्त द्वीप पर समाप्त होता है, तुम्हें "पुरातन आलय" के गुप्त मंदिर तक पहुँचाएगा।
उस मंदिर में, तुम्हें "आकाश-चित्रक" मिलेगा, जो भविष्य की गूँज दिखाएगा।
आर्यन और आचार्य रणवीर चकित रह गए। "कालचक्र? समय का प्रवाह उल्टा बहता है? एक गुप्त द्वीप पर 'पुरातन आलय' और 'आकाश-चित्रक' जो भविष्य दिखाएगा?" आचार्य रणवीर ने कहा, "यह तो सिर्फ़ ज्ञान की बात नहीं, यह तो किसी अलौकिक शक्ति का संकेत है! कौडिन्य सिर्फ़ एक नाविक नहीं था, वह कोई महान ज्ञानी भी था!"
चौथा भाग: 'कौडिन्य' की पहली यात्रा: समय की लहरों पर और एक रहस्यमयी भँवर
पूर्णिमा का दिन आ गया। 'कौडिन्य' भृगुकच्छ के जल में शांति से तैर रहा था, उसके पाल हवा में लहरा रहे थे। वह वाकई एक अद्भुत दृश्य था!
शाम को, आसमान साफ़ था। चंद्रमा, गुरु और शुक्र ग्रह सचमुच एक दुर्लभ संयोग में आ रहे थे, जैसे कि प्राचीन हस्तलिपि द्वारा तय किए गए नक्षत्र मार्ग पर चलने के लिए 'कौडिन्य' को संकेत दे रहे हों।
जहाज़ पर एक छोटा, ख़ास चुना हुआ दल था: आचार्य रणवीर, आर्यन, कुछ कुशल नाविक, और एक अनुभवी वैद्य तथा ज्योतिषी। आचार्य रणवीर ने पतवार संभाली। आर्यन के पास हस्तलिपि, चर्मपत्र और द्वीप का पुराना नक़्शा था, और उसकी आँखें आसमान और समंदर दोनों पर थीं।
जहाज़ धीरे-धीरे किनारा छोड़कर खुले समंदर की ओर बढ़ा। नाविकों ने पाल खोले। हवा की गति के साथ, 'कौडिन्य' गर्व से आगे बढ़ा, जैसे हज़ारों सालों की नींद से जाग गया हो।
चंद्रमा और तारों का संयोग और भी स्पष्ट हो गया। आर्यन ने हस्तलिपि से एक श्लोक पढ़ा: "यत्र तिस्रो ज्योतयः मिलन्ति, तत्र पूर्वस्या नौकायाः गुह्यः मार्गः प्रकटीभवति।" (जहाँ तीनों ज्योतियाँ मिलती हैं, वहाँ पूरब की नौका का गुप्त मार्ग प्रकट होता है।)
अचानक, जहाज़ के नीचे से एक धुँधली, नीली रोशनी निकलने लगी। सभी आश्चर्यचकित हो गए। वह रोशनी धीरे-धीरे बढ़ती गई, और वह जहाज़ को एक निश्चित दिशा में खींच रही थी, ऐसा लग रहा था।
"गुरुदेव, यह वही रोशनी है जो मैंने अपने सपने में देखी थी और चर्मपत्र में 'जल के हृदय में मार्ग' के रूप में उल्लिखित है!" आर्यन उत्साह से बोला।
आचार्य रणवीर ने पतवार संभालते हुए कहा, "आर्यन, यह कोई सामान्य घटना नहीं है। यह अतीत का ज्ञान है जो हमें मार्गदर्शन दे रहा है। इस रोशनी का पीछा करो!"
रोशनी उन्हें एक ऐसी जगह ले गई, जो किसी नक़्शे पर नहीं थी। वहाँ, समुद्री धाराएँ असामान्य रूप से व्यवहार करने लगीं। एक छोटा, लेकिन शक्तिशाली भँवर पानी में दिखा, जो सामान्य भँवर से अलग, पानी को नीचे खींच रहा था, जैसे कोई अदृश्य गहराई में रास्ता बना रहा हो। उसकी मध्य से एक अस्पष्ट गुलाबी रंग की रोशनी बाहर आ रही थी।
'कौडिन्य' उस भँवर के क़रीब पहुँचा। दल के सदस्य घबरा गए। "गुरुदेव, यह क्या है? क्या हम अंदर जा सकते हैं?" एक नाविक ने डरे हुए अंदाज़ में पूछा।
"चर्मपत्र में लिखा है, 'जहाँ आदि ज्ञान बसता है, वहाँ समय का प्रवाह उल्टा बहता है'," आर्यन ने कहा। "शायद यह 'समय का प्रवाह' है, कोई अदृश्य प्रवेश द्वार!"
आचार्य रणवीर ने एक गहरी साँस ली। "आर्यन, हम इतनी दूर आ गए हैं। मुझे लगता है कि यही मार्ग है। ख़तरा है, पर ज्ञान का बुलावा उससे बड़ा है।"
उन्होंने पतवार को स्थिर रखा और 'कौडिन्य' को धीरे-धीरे भँवर के बीच ले गए। जहाज़ काँपने लगा, और चारों ओर पानी का भयानक शोर सुनाई देने लगा। एक तेज़ रोशनी चमकी, और जहाज़ अंदर खिंच गया। एक पल के लिए सब कुछ अँधेरा हो गया, और फिर…
पाँचवाँ भाग: खोए हुए द्वीप पर: रहस्यमयी 'पुरातन आलय' और 'आकाश-चित्रक' का जादू
जब आँखें खुलीं, तो वे एक अलग ही जगह पर थे। भँवर ग़ायब हो गया था। 'कौडिन्य' एक शांत, साफ़ पानी की झील में तैर रहा था, जिसके चारों ओर घना जंगल और ऊँचे पहाड़ थे। यह कोई नक़्शे पर अंकित द्वीप नहीं था – यह वही खोया हुआ 'निर्जन द्वीप' था!
द्वीप के बीच में, एक प्राचीन, पत्थर का 'पुरातन आलय' (मंदिर) खड़ा था, जिस पर अनोखे प्रतीक खुदे हुए थे। मंदिर के अंदर से एक तेज़, नीली रोशनी आ रही थी, जो ऐसी लग रही थी जैसे सूरज की रोशनी न हो।
"यह अविश्वसनीय है!" पुरातत्वविद् आश्चर्य से बोले। "यह द्वीप मौजूद है! और यह मंदिर!"
जहाज़ मंदिर की ओर बढ़ा, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे खींच रही हो। मंदिर के प्रवेश द्वार पर, एक विशाल, घूमता हुआ 'कालचक्र' था, जो तेज़ रोशनी फैला रहा था। यह वही 'कालचक्र' था जिसका चर्मपत्र में ज़िक्र था, और जो समय के प्रवाह को प्रकट करने वाला था।
आर्यन ने चर्मपत्र में लिखा आख़िरी श्लोक याद किया: "केवल शुद्ध हृदय और निडर आत्मा ही सत्य को पहचान पाएगी।"
वे मंदिर के अंदर गए। वहाँ, एक विशाल कक्ष में, 'कालचक्र' के नीचे एक स्तंभ खड़ा था। यह वही 'ज्ञान-स्तंभ' था जिसका उल्लेख हस्तलिपि में था! उस पर उन्नत समुद्री ज्ञान, खगोल विज्ञान और दर्शन के रहस्य खुदे हुए थे।
जब आर्यन ने 'कालचक्र' पर हाथ रखा, तो एक अद्भुत घटना हुई। उसकी आँखों के सामने दृश्य प्रकट होने लगे - जीवित, वास्तविक दृश्य! वह 'कौडिन्य' को अपने जहाज़ पर देख सकता था, समुद्री लुटेरों से युद्ध करता हुआ, रानी सोमा से मिलता हुआ, और फूनान साम्राज्य की स्थापना करता हुआ। उसने प्राचीन भारतीय बंदरगाह देखे, जहाँ से ऐसे ही जहाज़ दुनिया भर में व्यापार करते थे। वह सिर्फ़ देख नहीं रहा था, वह महसूस कर रहा था - कौडिन्य की निडर आत्मा, प्राचीन भारतीय नाविकों का उत्साह, और उस समय का उन्नत ज्ञान।
और फिर, सबसे अविश्वसनीय घटना हुई। 'कालचक्र' के केंद्र से एक तेज़ रोशनी निकली, और वह कक्ष की दीवारों पर प्रतिबिंबित हुई। दीवारों पर, चित्र बनने लगे - जीवित, गतिशील चित्र! यह 'आकाश-चित्रक' था, जो भविष्य की गूँज दिखा रहा था!
आर्यन ने भविष्य के दृश्य देखे: भारत के तटों पर फिर से विशाल जहाज़ लंगर डाल रहे थे, लेकिन वे आधुनिक तकनीक और प्राचीन ज्ञान के मेल से बने थे। उसने भारतीय नाविकों को आत्मविश्वास से दुनिया के महासागरों में फिर से यात्रा करते देखा, 'कौडिन्य' जैसे जहाज़ प्राचीन ज्ञान और आधुनिक नवाचार के प्रतीक बनकर दुनिया भर में भारत का झंडा लहरा रहे थे। उसने देखा कि भारत, इस प्राचीन ज्ञान का उपयोग करके, समुद्री विज्ञान और अनुसंधान में दुनिया का नेतृत्व कर रहा है।
"यह सिर्फ़ एक रिकॉर्डिंग नहीं है, गुरुदेव!" आर्यन ने काँपते हुए आवाज़ में कहा। "यह 'कालचक्र' समय में झाँक कर अतीत को जीवित कर रहा है, और 'आकाश-चित्रक' हमें भविष्य दिखा रहा है! हम अतीत को महसूस कर रहे हैं और भविष्य को देख रहे हैं!"
आचार्य रणवीर की आँखों में आश्चर्य और गर्व दोनों थे। "आर्यन, तुम्हारे निडर आत्मा और शुद्ध हृदय ने ही हमें इस सत्य तक पहुँचाया है। कौडिन्य की विरासत आज जीवित हुई है!"
'कौडिन्य' पर मौजूद दल ने 'ज्ञान-स्तंभ' और 'कालचक्र' को सुरक्षित रूप से बाँधा। धीरे-धीरे, नीली रोशनी धुँधली हो गई, और चंद्रमा तथा तारों का संयोग भी बिखर गया। 'कौडिन्य' भँवर से वापस आया, और शांति से भृगुकच्छ बंदरगाह की ओर लौट गया।
छठवाँ भाग: रहस्य का अनावरण और भविष्य की दिशा
सुबह, 'कौडिन्य' भृगुकच्छ बंदरगाह पर लौट आया। किनारे पर भारी भीड़ जमा थी - व्यापारी, कारीगर और आम लोग। सभी उत्सुक थे कि इस पहली यात्रा में क्या हुआ।
आचार्य रणवीर और आर्यन, 'ज्ञान-स्तंभ' और 'कालचक्र' के साथ, जहाज़ से नीचे उतरे। आचार्य रणवीर ने भीड़ के सामने खड़े होकर घोषणा की, "आज, 'कौडिन्य' जहाज़ ने न केवल अपनी पहली यात्रा पूरी की है, बल्कि इसने भारत के समुद्री इतिहास का एक खोया हुआ अध्याय भी खोज निकाला है! यह 'ज्ञान-स्तंभ' और यह 'कालचक्र' हमें दिखाएँगे कि हमारे पूर्वज कितने उन्नत थे, और यह हमें समय के रहस्यों को सुलझाने में भी मदद करेगा। हमने खोया हुआ 'निर्जन द्वीप' और 'पुरातन आलय' खोज निकाला है!"
यह ख़बर दुनिया भर में फैल गई। 'कौडिन्य', 'ज्ञान-स्तंभ', 'कालचक्र', खोया हुआ द्वीप और 'आकाश-चित्रक' अब चर्चा का केंद्र बन गए थे। आर्यन रातोंरात एक महान खोजकर्ता के रूप में जाना जाने लगा।
'कौडिन्य' अब सिर्फ़ एक प्रदर्शन का हिस्सा नहीं रहेगा, वह भारत के समुद्री अनुसंधान के लिए एक जीवित प्रयोगशाला बनेगा। 'ज्ञान-स्तंभ' में छिपा ज्ञान, ख़ासकर 'कालचक्र' और 'आकाश-चित्रक' द्वारा प्रकट होने वाली जानकारी, को सुलझाने के लिए भारत के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों की टीमें काम पर लग गईं। प्राचीन भाषाओं के विशेषज्ञ, खगोलशास्त्री और भौतिकशास्त्री सभी इस रहस्य को सुलझाने के लिए एक साथ काम कर रहे थे।
आर्यन जानता था कि यह तो बस शुरुआत थी। भारत का समुद्री इतिहास अनंत रहस्यों से भरा था, और वह उन रहस्यों को सुलझाने के लिए तैयार था। वह भविष्य देख सकता था - एक ऐसा भविष्य जहाँ भारत अपने शानदार अतीत के ज्ञान का उपयोग करके एक नए युग का निर्माण करेगा। भृगुकच्छ का बंदरगाह फिर से वैश्विक व्यापार और ज्ञान का केंद्र बनेगा, और भारत के जहाज़ फिर से समंदर की लहरों पर गर्व से यात्रा करेंगे, भारत की कीर्ति के गीत गाएँगे, जो समय की लहरों पर अनंत काल तक गूँजते रहेंगे।
क्या आप जानना चाहेंगे कि 'कालचक्र' और 'आकाश-चित्रक' का रहस्य कैसे सुलझाया गया, और क्या भारतीय नाविक सचमुच समय में झाँक पाए?