शत्रुंजय तीर्थ की कला: चित्र और मूर्तियों में आध्यात्मिक संदेश
शत्रुंजय गिरिराज की वर्षगांठ, वैशाख वद छठी के पावन अवसर पर, इस पवित्र भूमि की कला और स्थापत्य हमें एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा पर ले जाते हैं। नौ टूंकों में विभाजित इस पर्वतमाला की छठी टूंक, जिसे मोदी की टूंक के नाम से जाना जाता है, अपनी अनूठी चित्रकला और मूर्तिकला के माध्यम से जीवन के अनमोल पाठ और आध्यात्मिक सत्यों को अनोखे ढंग से प्रस्तुत करती है। अहमदाबाद के धनी व्यापारी प्रेमचंद लवजी मोदी ने छरीपालक संघ की यात्रा के दौरान इस स्थान की दिव्य सुंदरता से प्रभावित होकर इस टूंक का निर्माण करवाया, जो उनकी गहरी श्रद्धा और कला के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
चित्रों की कहानी: अहंकार से वैराग्य तक
मोदी की टूंक के मुख्य मंदिर के गुंबद में दो सुंदर चित्र बने हुए हैं, जो हमें दो प्रेरणादायक कहानियों से परिचित कराते हैं। पहला चित्र भगवान महावीर स्वामी के पूर्व जन्म की एक घटना को दर्शाता है। जब महाराजा एक भव्य सामैया (स्वागत समारोह) करते हैं, तो उनके मन में यह अहंकार आ जाता है कि उनके जैसा भव्य कार्य कोई और नहीं कर सकता। लेकिन, उसी क्षण दशार्णभद्र नामक एक साधारण श्रावक उनसे भी अधिक भव्य सामैया करता है। यह देखकर महाराजा का अहंकार पिघल जाता है। यह चित्र हमें सिखाता है कि चाहे हम कितना भी अच्छा काम करें, हमें अहंकार से दूर रहना चाहिए।
दूसरा चित्र इस कहानी को एक नया मोड़ देता है। यह दिखाता है कि दशार्णभद्र के अहंकार रहित भव्य सामैया से देवों के राजा इंद्र भी इतने प्रभावित होते हैं कि वे स्वयं उनके चरणों में झुक जाते हैं। यह घटना दशार्णभद्र के लिए गर्व का कारण बन सकती थी, लेकिन उनकी विनम्रता उन्हें सद्गति की ओर ले जाती है। यह चित्र यह संदेश देता है कि हमें हमेशा सर्वश्रेष्ठ कार्य करने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन कभी भी यह भाव नहीं रखना चाहिए कि हमसे बेहतर कोई नहीं कर सकता। इसके अलावा, हमें दूसरों के अहंकार को तोड़ने का प्रयास भी नहीं करना चाहिए। ये चित्र हमें विनम्रता, निरहंकार और सद्भावना के महत्व को समझाते हैं।
मूर्तियों का मौन संवाद: पारिवारिक सुख और दुष्कर्मों के परिणाम
मोदी की टूंक में भगवान पार्श्वनाथ का एक शांत और सुंदर मंदिर स्थित है। इस मंदिर के खंभों पर बनी विचित्र मूर्तियां हमें गहराई से सोचने पर मजबूर करती हैं। यहां सांप, बिच्छू और बंदर जैसे जानवरों की आकृतियां एक-दूसरे को काटती हुई दिखाई देती हैं, जिनके साथ कुछ मानव आकृतियां भी हैं। ये असामान्य मूर्तियां पारिवारिक रिश्तों में कलह के कारणों और उसके विनाशकारी परिणामों को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाती हैं।
एक मूर्ति में दर्शाया गया है कि तीर्थ जैसे पवित्र स्थान पर भी यदि बहू अपनी सास का सम्मान नहीं करती और सास बहू को आशीर्वाद देने के बजाय क्रोधित होकर बुरे विचारों में लीन हो जाती है, तो परिवार में झगड़े और कड़वाहट पैदा होती है। वहीं, अगर कोई तीसरा व्यक्ति (पड़ोसी) आकर स्थिति को सुधारने के बजाय और भड़काता है, तो झगड़ा और बढ़ जाता है। ये मूर्तियां प्रतीकात्मक रूप से समझाती हैं कि क्रोध सांप की तरह डंसता है, लगातार बुरे विचार बिच्छू की तरह पीड़ा देते हैं और चुगली करने वाला व्यक्ति बंदर की तरह कूद-कूद कर रिश्तों को खराब करता है।
यह मूर्तिकला हमें एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि यदि हम सुखी और शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं तो तीर्थ स्थानों पर भी कलह से दूर रहना चाहिए, क्रोध और बुरे विचारों से बचना चाहिए, और कभी भी ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए जिनसे दूसरों के रिश्तों में खटास आए।
अड़बड़जी दादा की विशालता: श्रद्धा और समर्पण का स्मारक
मोदी की टूंक से नीचे उतरते हुए, हुलमणां नामक रमणीय स्थान पर अड़बड़जी दादा की एक भव्य और विशाल प्रतिमा स्थापित है। शुद्ध सफेद संगमरमर से निर्मित यह प्रतिमा लगभग 15 फीट चौड़ी और 18 फीट ऊंची है, जो भक्तों के हृदय में श्रद्धा और आदर की भावना जगाती है। विक्रम संवत 1686 में एक धर्मनिष्ठ व्यापारी द्वारा इस प्रतिमा की स्थापना की गई थी। पूरे वर्ष में केवल एक ही दिन, वैशाख वद छठी के शुभ दिन, जब शत्रुंजय गिरिराज की वर्षगांठ मनाई जाती है, तब अड़बड़जी दादा के विशेष दर्शन और पूजा का अवसर प्राप्त होता है। यह प्रतिमा भक्तों के लिए शांति और प्रेरणा का केंद्र है।
इस प्रकार, शत्रुंजय गिरिराज की मोदी की टूंक में स्थित अद्भुत चित्रकला और मनमोहक मूर्तिकला न केवल कला के उत्कृष्ट नमूने हैं, बल्कि वे हमें जीवन के गहरे सत्यों और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देते हैं। गिरिराज की इस वर्षगांठ के पावन अवसर पर, आइए हम इस कलात्मक विरासत को समझें और इसके द्वारा दिए गए उपदेशों को अपने जीवन में उतारकर आत्म-कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ें।