a silent voice in Hindi Human Science by Divya Shree books and stories PDF | एक ख़ामोश आवाज़

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एक ख़ामोश आवाज़

  कक्षा आठवीं का वो साल… 

आठवीं कक्षा की वो दोपहर आज भी मेरी यादों में ,            जस - की - तस बसी हुई है। क्लासरूम की हल्की हलचल, पंखे की आवाज़ और इंग्लिश पीरियड की वो मिली-जुली क्लास । जब मुझे पहली बार एहसास हुआ कि कुछ लोग हमारी दुनिया में होते हुए भी जैसे किसी और ही लोक के वासी होते हैं। 


मैं अपनी सेक्शन ‘A’ में थी और वो लड़का — कमल — सेक्शन ‘C’ में। हमारे इंग्लिश पीरियड्स संयुक्त रूप से होते थे। यहीं पहली बार मेरी नज़र उस पर पड़ी।


उस दिन कुछ अलग था। हमारे इंग्लिश टीचर, मनजीत सर, ग़ुस्से में थे। जिन बच्चों की नोटबुक अधूरी थी, उन्हें खड़ा कर लिया गया। कमल भी उनमें था। सर ने पूछा, 

“क्यों नहीं पूरी की नोटबुक?” 

कमल चुप। उन्होंने फिर पूछा। तब भी कोई उत्तर नहीं। उसकी आँखें ज़मीन में गड़ी थीं, जैसे कुछ कहना चाहता हो, मगर अल्फ़ाज़ रास्ता भूल गए हों।सर का ग़ुस्सा बढ़ा। उन्होंने डांटा, और फिर वही डंडा, जो बाक़ी बच्चों को भी पड़ा था — मगर जब कमल पर पड़ा… कुछ बदल गया। अचानक उसकी नाक से खून बहने लगा। पूरे क्लास में सन्नाटा छा गया।


बच्चों ने डर और चौंक के मिले-जुले स्वर में बताया, “सर! खून निकल रहा है।”बच्चों ने आपस में फुसफुसाना शुरू कर दिया — “शायद डंडा ज़ोर से लग गया,” कोई बोला, “या फिर कहीं  इसकी नक्खी तो नहीं छूठ गई होगी।” 

मैं चुपचाप उसे देख रही थी… कुछ अलग सा था उसमें। वो बस जमीं को घूरता रहा — एकटक।

 कोई शिकवा नहीं,

 कोई शिकायत नहीं।


सर चिल्लाए — “ड्रामा मत कर मेरे सामने!”  

 तभी किसी ने कहा — “सर, इसे थोड़ा कम समझ आता है… ये बचपन से ही ऐसा है।”


कमल अब भी वहीं खड़ा था, जैसे उसकी आत्मा किसी और ही दुनिया में हो। मंजीत सर बोले — “इसका मुँह धुलवाकर लाओ।”और उस पल… मैं समझ नहीं पाई कि ज़्यादा दर्दनाक क्या था —

उसके चेहरे से बहता खून, या उसके मन से बहती हुई वह चुप्पी।सर ने उसे मुंह धोकर आने को कहा, लेकिन वो टस -  से -  मस नहीं हुआ। दो लड़कों को बुलाया गया। वे जबरन उसे खींचकर ले गए। मुंह धोकर वो जब लौटा — आँखें लाल, मगर आंसू नहीं। जैसे हर भावना को भीतर ही पी गया हो।कमल वापस आकर चुपचाप अपनी जगह बैठ गया। क्लास में जैसे सब सामान्य हो गया था — सर पढ़ाने लगे, बच्चे फिर से नोट्स लिखने में लग गए।


मगर कमल की दुनिया अब भी उसी जगह ठहरी हुई थी जहाँ उसकी नाक से खून बहा था।मैंने देखा, वो अब भी जमीन की तरफ ही देख रहा था।

उसकी आँखें गीली थीं, लेकिन उनमें आँसू नहीं थे। वो ऐसा लग रहा था जैसे रोना भी भूल गया हो —

जैसे ये सब नया नहीं हो उसके लिए, बल्कि रोज का एक हिस्सा हो।क्लास खत्म होते ही बच्चे बाहर निकल गए, कुछ हँसते हुए, कुछ अगली पीरियड की बातें करते हुए।


लेकिन मैं कुछ देर और वहीं बैठी रही… मेरी नज़रें उस पर टिकी थीं, न चाहते हुए भी।


मैंने पहली बार खुद से पूछा:क्या हर बच्चा जो कम बोलता है, वो सच में कुछ नहीं समझता?

या हम ही इतने शोर में हैं कि उसकी खामोशी सुन नहीं पाते?


उस दिन मैंने पहली बार देखा…कि “नॉर्मल” कहे जाने वाली दुनिया से परे भी एक दुनिया होती है।एक ऐसी दुनिया जहाँ शब्दों से ज़्यादा ख़ामोशी बोलती है,जहाँ आँखों में कहानियाँ होती हैं, मगर उन्हें समझने वाले बहुत कम होते हैं।कमल को देख कर मुझे पहली बार एहसास हुआ कि कुछ लोग हमारे आसपास होते हुए भी जैसे किसी और ही धरातल पर जी रहे होते हैं। वो चलते हैं, बोलते हैं, स्कूल आते हैं, मगर उनकी आँखों में एक अलग सन्नाटा होता है —

ऐसा सन्नाटा जो शोर के बीच भी सुनाई देता है।मैंने जाना कि कुछ बच्चे केवल इसलिए अलग समझे जाते हैं क्योंकि वो हमारी तरह ‘व्यवस्थित’ नहीं होते।हमारे जैसे जवाब नहीं देते।हमारी तरह अपनी बात नहीं कह पाते।मगर इसका मतलब यह नहीं कि वो कुछ महसूस नहीं करते।


क्लास में हलचल थी…सर की डाँट और उस अप्रत्याशित घटना के बाद बच्चे फुसफुसाने लगे थे।कोई कह रहा था, “इसका दिमाग़ सही नहीं है…”कोई और मज़ाक उड़ाते हुए बोला, “क्या एक्टिंग कर रहा था यार, जैसे वही मारा गया सिर्फ़!”

एक लड़का हँसते हुए चिढ़ाने लगा, “अबे ओ कमल, तेरे लिए ही सर ने डंडा मंगवाया था क्या?”

कमल चुप था…

बिलकुल शांत।

ना गुस्सा, ना आंसू…

बस उसी जगह खड़ा, आँखें झुकी हुई, ज़मीन को देखता रहा — जैसे उसकी आत्मा कहीं और चली गई हो।मगर उसकी चुप्पी चीख रही थी।मैंने पहली बार जाना कि कुछ चुप्पियाँ शब्दों से ज़्यादा ज़ोर से बोलती हैं।


वो अकेला नहीं था…मगर फिर भी बिल्कुल अकेला था।मैंने देखा कि उस पर हँसी उड़ाने वालों के बीच वो खुद को एक दीवार की तरह समेटे खड़ा था।ना कोई सफ़ाई दी, ना जवाब…बस चुपचाप अपने भीतर समा गया।तभी मेरे मन में एक सवाल उठा—क्या कोई इस चुप्पी को सुन पा रहा है?मुझे एहसास हुआ,  मे उसे दया और सहानुभूती की नज़र से देख रही थी । शायद इस दुनिया में कुछ दर्द ऐसे होते हैं जो रोकर नहीं, चुप रहकर बयां होते हैं।और शायद कमल उसी भाषा में जीता था — चुप्पी की भाषा में।



क्या कमल के भीतर एक पूरी अलग दुनिया है, जो हम सभी से छुपी हुई है?


क्या कोई सुन पाएगा उस चुप्पी की आवाज़, जो शब्दों से भी ज़्यादा बोलती है?