स्थान: एक IT कंपनी का ओपन-स्पेस ऑफिस, चौथी मंज़िल।
समय: सुबह 10:15 AM
लाइट ग्रे दीवारों वाला मॉडर्न ऑफिस, जिसमें नीली कुर्सियों और लैपटॉप्स की कतारें थीं। हर टेबल पर कॉफी मग, sticky notes, और employees के थके हुए चहरे। पर एक कोने की डेस्क पर माहौल कुछ अलग था।
वहाँ दो लोग काम कर रहे थे — Navya और Reevan।
Navya, डेटा एनालिस्ट — शांत, focused, थोड़ी अलग-सी।
Reevan, सिस्टम आर्किटेक्ट — गंभीर, reserved, और बहुत observant।
दोनों एक ही प्रोजेक्ट पर थे — एक क्लाइंट के लिए UX सिस्टम रीडिज़ाइन। यह टीमवर्क था, लेकिन इनके बीच की टीमस्पिरिट बाकी सब से बिल्कुल जुदा थी।
Navya headphones लगाए बैठी थी, उसकी स्क्रीन पर कोड और चार्ट्स थे। उसका चेहरा तनाव से भरा था, लेकिन आंखों में वही गहरी एकाग्रता।
Reevan अपनी सीट से उसकी तरफ झुका — आवाज़ बहुत नर्म थी:
“Navya, कुछ मदद चाहिए इस SQL issue में?”
Navya ने धीरे से हेडफोन उतारे।
“Thanks… बस कुछ logic मिस हो रहा था। आप देख लें तो अच्छा होगा।”
Reevan ने उसका लैपटॉप उसकी तरफ खींचा। जब तक वो error ठीक कर रहा था, Navya ने चुपचाप उसे देखा — जैसे उसकी उंगलियों की हर हरकत को पढ़ रही हो।
“Done,” Reevan बोला। “By the way, आज तुमने लंच नहीं किया?”
Navya थोड़ी हिचकी, फिर धीरे से बोली —
“घर पर कुछ ठीक नहीं था। Appetite नहीं थी।”
Reevan ने जवाब में कुछ नहीं कहा, बस अपने टेबल ड्रॉअर से एक energy bar निकाल कर उसकी तरफ बढ़ा दिया।
“ताकत रखो, बिना लड़े ये दुनिया सुधरती नहीं।”
Navya चौंक गई — ये शब्द सीधे उसके भीतर जा लगे। उसे याद आया, कैसे कुछ हफ्ते पहले जब उसके abusive cousin Vinay ने उसे डरा कर घर में कैद किया था, तब यही इंसान — Reevan — उसकी आखिरी उम्मीद बना था।
उसने ही पुलिस को बुलाया, उसे बचाया, और बिना सवाल किए उसे ऑफिस लौटने का हौसला दिया।
अब भी Reevan कुछ नहीं कहता था, लेकिन उसकी मौजूदगी ही Navya को grounded रखती थी।
Reevan को Navya की condition का पता था — उसका autism, उसकी anxiety, उसका trauma। पर उसने कभी सहानुभूति नहीं दिखाई — बस साथ दिया।
दिन के आखिर में, क्लाइंट प्रेजेंटेशन थी। सब conference room में थे — seniors, managers, और कुछ clients।
Navya को बोलना था। Nervousness उसके चेहरे पर साफ थी।
प्रेजेंटेशन शुरू हुआ। Navya ने slides बदलनी शुरू कीं — आवाज़ धीमी, लेकिन सटीक। कुछ सेकंड के बाद उसका गला सूखने लगा, हाथ काँपने लगे। Words अटक गए।
तभी पीछे से एक आवाज़ आई —
“Navya, slide 4 explain करना तुमसे बेहतर कोई नहीं कर सकता। Take your time.”
वो Reevan था।
Navya ने एक गहरी सांस ली, उसकी तरफ देखा, और फिर उसी आत्मविश्वास से बोलना शुरू किया — जैसे कोई उसके पीछे खड़ा हो, उसकी ढाल बनकर।
प्रेजेंटेशन खत्म हुआ। Clients ने तालियाँ बजाईं।
Navya की आंखों में हल्की सी नमी थी।
लौटते समय, लिफ्ट के पास खड़े हुए Reevan ने धीरे से कहा —
“तुमने बहुत अच्छा किया आज। Proud of you.”
Navya ने पहली बार मुस्कुराते हुए सिर झुकाया और कहा —
“Thanks… सिर्फ आपके होने से मैं थोड़ा कम अकेली लगती हूँ।”
Reevan कुछ नहीं बोले। पर उनकी आंखों में वही बात थी जो शब्दों से परे थी —
“तुम अब कभी अकेली नहीं रहोगी।”
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यह रिश्ता शब्दों का मोहताज नहीं था।
यह दो टूटी आत्माओं का मेल था, जो अब धीरे-धीरे एक-दूसरे की मरम्मत बन चुके थे।